कुमांऊनी होली : अलग रंग अलग ढंग

होली का त्यौहार मस्ती,उल्लास और मौज मजे का पर्व है. दुनिया में सभी जगह होली बड़ी ही धूमधाम से मनाई जाती है.लेकिन कुमाऊंनी होली का अपना एक अलग ही रंग है, पूरे विश्व में इस होली की अलग पहचान है. यहाँ होली मात्र एक दिन का त्यौहार नहीं बल्कि कई दिनों तक चलने वाला त्यौहार… Continue reading कुमांऊनी होली : अलग रंग अलग ढंग

परुली: हिम्मत ना हार ..

आज पहली बार उसे गोल्ज्यू का ध्यान आया. उसने सुना था गोल्ज्यू से कुछ भी मांगो वह मिल जाता है. उसने सवा रुपये का उचैण (करार) अलग रखा और मन ही मन गोल्ज्यू से कहा कि गोल्ज्यू मुझे डॉक्टर बना देना.आपके थान आके एक घंटी जरूर चढ़ाउंगी.

परुली:आखिर क्या होगा ?

दूर पहाड़ों को देखते देखते ही तो उसने कल्पना की थी कि इन्ही पहाड़ों के उस पार होगा कोई एक शहर. जहाँ यह लाइट टिम टिम करती हैं. उसके घर में तो लम्फू (मिट्टी तेल का लैम्प) का उजाला होता है या छिलुके का. वह सोचती थी कि कभी वह उस पार जायेगी. एक बड़े शहर में कदम रखेगी.बिजली के लैप देखेगी. न जाने कितनी कल्पनाऎं.

परूली : शादी की तैयारी

पहली बार उसे अपनी लड़की होने का अहसास हुआ. एक लड़की किस हद तक मजबूर हो सकती है इस बात से मन ही मन उसे खुद से घृणा होने लगी.

परुली: चिन्ह साम्य होगा क्या ??

अरे पढ़ लिख के क्या बैरिस्टर बनेगी. ब्या तो तब भी होगा ना और फिर तो वही भनपान, गोरु-बाछों का मोव निकलना, गुपटाले पाथना, पानी सारना और घरपन के सारे काम, इन सब में तेरी पढ़ाई क्या काम आयेगी रे परुली..और अच्छे रिश्तो के लिये मना नहीं करना चाहिये

नराई ह्यूं (बरफ) की

दिल्ली की बढ़ती ठंड को देख मुझे इच्छा हुई कि मैं कका से पूछूं कि पहाड़ में जब कड़ाके की ठंड पड़ती थी या बरफ पड़ती थी तो कैसा माहौल होता था और कैसे लोग उस ठंड का सामना करते थे. क्या बताऊँ भुला… पहाड़ में ठंड तो यहाँ की ठंड से भौते ज्यादा हुई… Continue reading नराई ह्यूं (बरफ) की

केमो बस की सर्-रर प्वां प्वां..

बस पहाड़ी रास्तों पर हाँफते धीमे रफ्तार डीज़ल का धुँआ उगलते चढ़ रही है.केमो* की उस बस में बैठते ही उसे लगा था कि वह जैसे अपने घर पहुंच गया.ट्रेन की सारी रात की थकन बस में अपना सूटकेस रखते ही जैसे उड़न छू हो गयी. उन टेढ़े मेढ़े,ऊंचे नीचे रास्तों में हिचकोले खाती बस… Continue reading केमो बस की सर्-रर प्वां प्वां..

आमा और जंबू का धुंगार..

कल से तो सतझड़ (बारिश होना) पड़ रहे हैं भुला. सारे लकड़ी, गुपटाले भीग गये हैं. चूल्हा जलाने में धुंआ तो होगा ही. आमा (दादी) चूल्हे में फूंक मारते मारते अपने नाती को समझा रही है. लेकिन नाती जो अभी मात्र पांच साल का ही है उसे इस सतझड़ और गुपटालों (उपले)  से क्या मतलब.… Continue reading आमा और जंबू का धुंगार..

नराई ठंड की …

[पहाड़ की ठंड का अपना एक अलग ही आनन्द है. इस आनन्द को वही महसूस कर सकता है जिसने इसको जिया है,एक टूरिस्ट की भांति एक-दो दिन के लिये नहीं बल्कि कई दिनों तक. उस पर से पहाड़ी भाषा,जो मूल रूप से कुमांउनी या गढ़वाली बोली के रूप में जानी जाती है,उसकी अपनी अलग ही… Continue reading नराई ठंड की …