पिछले दिनों नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर जाना हुआ.टिकट काउंटर के पास ही एक विश्रामालय है. उसके पास खड़े रह कर प्रतीक्षा कर रहा था कि सामने एक बोर्ड लगा हुआ देखा. पहले हिन्दी में पढ़ा फिर सोचा शायद मैं गलत समझ रहा हूँ.फिर अंग्रेजी में पढ़ा. मतलब तो वही निकलता था हिन्दी वाला 🙂
क्या मैं सही समझ रहा हूँ कि रेलवे एक्ट के हिसाब से रेल यात्री टैक्सी या ऑटो के लिये मोलभाव नहीं कर सकते यानि वो जिस भी भाव में ले जायेगा जाना पड़ेगा या फिर आप दंड के भागी होंगे.आप भी देखिये. ज्ञान जी इस पर थोड़ा प्रकाश डालें तो बेहतर है.
सटीक पकड़ा!!
हिन्दी अनुवाद ने मैसेज के अर्थ का अनर्थ कर दिया.
मुझे लगता है यह टैक्सी/आटो वालों के लिये है कि वो यात्रियों से प्रचार/प्रसार नहीं कर सकते और न ही उन्हें लुभाने के लिये उनके आगे/पीछे घूम सकते हैं.
समीर जी ने सही कहा। देखिए देश की हालत अंग्रेजी लिखना, हिंदी से ज्यादा आसान हो गया है।
हिन्दी की चिन्दी है यह! 🙂
रेलवे एक्ट की धारा देख बाद में सही सन्दर्भ/अर्थ देखूंगा. अभी घर पर रेलवे एक्ट की प्रति नहीं है.
आप वहां क्यों इंतजार करते रहे. दरियागंज आ जाते, कुछ चाय-वाय पीते. न इंतजार करते, न झुंझलाहट होती और न हिन्दी की चिंदी निकलती.
उफ़ क्या हिंदी है । इसे कहते है हिंदी की टांग तोडना।
वाह मान गए काकेश भाई, खूब पकड़ा आपने भी……सचमुच हिन्दी की चिंदी इसे ही कहते हैं।
खूब नज़र पाई है काकेशजी आपने । सही जगह पकड़ा… यही है हिन्दी की चिन्दी
जहाँ तक मेरी जानकारी है कि कोई भी ऑटो या टैक्सी चालक यात्री के साथ मोलभाव नहीं कर सकता यानि उसे हमेशा मीटर से ही चलना है. मीटर में जितना किराया आए उसे वही लेना चाहिए और यात्री को भी उसे मोल भाव करने हेतु बाध्य नही करना चाहिए. दिल्ली में न्यायभूमि नामक एक संस्था है जो दिल्ली के ऑटो चालकों को ईमानदारी से, मीटर से और बिना मनाही के साफ़ सुथरे ऑटो में सवारी के साथ बढ़िया व्यवहार कैसे करें. इस विषय में प्रशिक्षित कर रही है. अधिक जानकारी के लिए सभी पाठकों से अनुरोध है कि एक बार न्यायभूमि कि वेबसाईट जरुर देखें.
WEBSITE – http://www.nyayabhoomi.org