कल एक महान विचारक की पुरानी डायरी हाथ लग गयी. यह सोच के डायरी खोली कि शायद उसमें किसी घोटाले की चर्चा होगी लेकिन उसमें तो महान चिंतन के अद्भुत सूत्र थे.प्रस्तुत हैं उसी डायरी के कुछ अंश..
दुखी होना मेरी मजबूरी ही नहीं मेरा पेशा भी है. मैं अक्सर अपनी सुविधानुसार दुखी हो जाता हूँ. दुखी होना मेरे लिये एक अदद सुख का टुकड़ा अपने नाम कर लेने का माध्यम है. आजकल जो ज्यादा दुखी है वो उतने ही अधिक सुख के टुकड़े नये नये फ्लैट्स के माध्यम से अपने नाम बुक करा रहा है. दुखी होना सुख-सुविधा नामक चिड़िया को संवेदना के ढेले से मार अपने बैक बैलेंस जैसे किसी पिजरे में कैद कर लेने में सहायक भी है. आप जितना ज्यादा सुखी हों आपको दुखी होने के उतने ही ज्यादा अवसर भी मिलेंगे और कारण भी. हर नया दुख आपके लिये सुख के नये द्वार खोलेगा.
ये अच्छा समय है जब आप किसी भी स्थिति , परिस्थिति , विषय , घटना पर दुखी हो सकते हैं. आप अच्छी तरह से अंग्रेजी बोल सकते हों तो आप हिन्दी की दशा-दिशा पर आंसू बहा सकते हैं.अंग्रेजी में भाषण देके हिन्दी के प्रति अपने प्रेम का इज़हार कर सकते हैं. अपनी खराब हिन्दी को अपनी व्यवसायिक मजबूरी की आड़ में छिपा सकते हैं. अंग्रेजी के शब्दों को अपनी बोलचाल में शामिल कर आप अपनी विद्वता का ढोल पिटवा कर अपने हिन्दी दुख का प्रदर्शन कर सकते हैं.जितना दुख आप प्रदर्शित करेंगे उतना ही हिन्दी सेवा का मेवा आप प्राप्त कर सकते हैं. पिछले कई सालों से लोग ऎसा कर रहे हैं और आने वाले कई सालों तक लोग ऎसा करते रहेंगे.
दुखी होना और सहानुभूति बटोरना एक ही क्रिया के दो अलग अलग रूप हैं. या यूँ कहें कि एक क्रिया है तो दूसरी प्रतिक्रिया. लेकिन दोनों का अस्तित्व बहुत महत्वपूर्ण है. आप का दुखी होने का अभिनय उतना ही सफल है जितनी सहानुभुति आप अर्जित कर पा रहे हैं. आप के दुखी होने का फल लोगों के सहानुभूति के प्रदर्शन में हैं. जितनी सहानुभूति आप अर्जित कर पायेंगे उतना ही खुद को सुख के करीब पायेंगे.
दुनिया का हर व्यक्ति दुखी होने की योग्यता रखता है. आप दलित हैं तो सवर्णो को गाली दे सकते हैं उनके व्यवहार पर दुखी हो सकते हैं. उनके पूर्वजों द्वारा आपके पूर्वजों पर किये गये अत्याचारों का बदला आप आरक्षण की तलवार से आने वाली कई पीढ़ियों तक ले सकते हैं.हर अवसर पर सवर्णों को लतियाना और अपने हर दुख का कारण सवर्णों द्वारा की गयी किसी गलती पर थोपना आपके व्यक्तित्व के दो प्रमुख लक्षण होने चाहिये. आप सवर्ण है तो आरक्षण के खिलाफ बोलकर दुखी हो सकते हैं.आप सहित आपके जितने भी अयोग्य रिश्तेदार सरकारी नौकरी प्राप्त करने में असफल रहे उन सबका का ठीकरा आप आरक्षण के सर पर फोड़ सकते हैं.आप आरक्षण के खिलाफ मोर्चा भी खोल सकते हैं,आत्मदाह की धमकी भी दे सकते हैं.
आप महिला हैं तो पुरुषों द्वारा किये जा रहे हर अच्छे और बुरे काम को कोसकर दुखी हो सकती हैं. आपकी हर परेशानी के मूल में कोई ना कोई पुरुष है. आप उस पुरुष को ढूंढ निकालिये और उसकी कारिस्तानियों पर दुखी होकर सहानुभूति की बेल पर चढ़ सुख सुविधा के नये नये फलों का स्वाद चखिये. आपके लड़की होने से आपको अतिरिक्त लाभ है.दुखी होने की कला हर औरत को विरासत में मिलती है. दुखी होना हर औरत का जन्मसिद्ध अधिकार है इसलिये आपके आंसू आपके आंखो के एकदम किनारे पर निवास करते हैं जिन्हे आप बिना किसी अतिरिक्त प्रयास के अपनी इच्छानुसार जब चाहें तब निकाल सकती हैं. आधे से ज्यादा पुरुष आपके दुखी होने का अभिनय करने से पहले ही अपनी संवेदनाओं के रुमाल ले के सहानुभूति प्रदर्शन के लिये तैयार बैठे रहते हैं.कुछ अन्य ,जो अपने पुरुषत्व के अहम के कारण अपने मन को मार कर अपनी संवेदनाओं के प्रदर्शन में संकोच करते हैं, वो भी आपकी आंसुओं की अनवरत धारा को देखकर अपने रुमालों को अपनी जेबों में नहीं रख पायेंगे.आपके लिये बाजी जीतना आसान है लेकिन ध्यान रहे आप लक्ष्य केवल रुमाल हासिल करना नहीं है इसलिये भावनाओं के अतिरेक में ना बहें.अपनी नजर पुरुष की जेब के उस पर्स पर बनाये रखें जिसमें सुख-सुविधा रूपी गहने रखे गये हैं. यदि आप पुरुष है तब भी आप महिलाओं की स्थिति पर दुखी हो सकते हैं. घर में पत्नी को पीट कर हुई खुशी को महिलाओं पर होने वाले अत्याचारों पर भाषण देकर मिटा सकते हैं.
कल भी जारी रहेगा……….
बहुत दुख हो रहा है आपकी यह स्तरीय पोस्ट पढ़ कर। पहले अन्दाज होता तो अपनी पोस्ट कुछ बेहतर बनाने का यत्न करते! 🙂
अब सारे हिट तो आपके पास जाने वाले हैं।
चलें। रुमाल खोजें आंसुओं के लिये!
दुखी होना और सहानुभूति बटोरना एक ही क्रिया के दो अलग अलग रूप हैं. या यू कहें कि एक क्रिया है तो दूसरी प्रतिक्रिया…
अद्भुत सत्य है। पहले पढ़ा है, लेकिन याद नहीं आ रहा कि किसका लिखा हुआ है। इतनी शानदार रचना की याद दिलाने और उससे फिर रू-ब-रू कराने के लिए शुक्रिया।
काकेश जी मैं गरुण की तरह आप से कहना चाहता हूँ कि दुखी आत्माओं को लोग बहुत देर तक नहीं झेलते। मेरा यह सदुपदेश ध्यान में रखे। आपका कल्याण हो।
hindi ki seva se meva milta hai, sachi? meri tipani roman mein dekh ker yeh mat samajhiyega ki mein english mein hindi ki durdasha ka rona ro rahi hun…devnagari fonts na hone ki majboori hai…lekh bahut hi badhiya banaa hai , pataa nahi tha ladki hone ke itne faayade ho sakte hain yaa bhunaaye jaa sakte hain nahi toh ro ro ker ab tak toh pataa nahi kitti jabein saaf ki hoti …badhiya likha hai
दुख बाकायदा धंधा है। प्रोफेशनल दुखी बहुत सुख में हैं। जो वैसे सुखी दिखते हैं, वे सारे के सारे बड़े दुख में है। प्रोफेशनल दुखियों के पास दिल्ली में कई कारें हैं, फ्लैटें हैं. और विदेश यात्राएं भी हैं। ये दुख चिंतन छोड़ो, दुखी बनो। मुंह लटकायमान बनाओ, वाणी को अंगरेजी च लटकायमान बनाओ। दुनिया को भटकायमान बताओ। कुछ जम जाये दुकान तो हमें भी बताओ।
वाह ! क्या सरल सा उपाय सुझाया है ! आश्चर्य कि हमने इसपर अबतक ध्यान नहीं दिया ।
घुघूती बासूती
दुःख का धंधा कभी न मंदा…..
बहुत मस्त…ज़बर्दस्त.
सही है. दुखी हो लिये आपको पढ़कर सुबह सुबह. अब तिजोरी देखते हैं टिप्पणियों की.
हर नया दुख आपके लिये सुख के नये द्वार खोलेगा. बहुत खूब कहा…. अब इंतज़ार है सुख के नए द्वार खुलने का… आशा की किरण दिखाने का धन्यवाद
अच्छे तरीके बताये हैं दुख से सुख बटोरने के। अमल बड़ा मुश्किल है लेकिन करने का प्रयास करने में क्या हर्ज!
आपकी पोस्ट पढ़कर हम भी दुःखी हो लिए। ब हू हू 🙁