आलोक जी-9-2-11 के बारे में दो चीजें सबको मालूम ही होंगी. एक कि वो अक्सर टेलीग्राफिक पोस्ट लिखते हैं और दूसरा वो कहीं भी गलत हिन्दी देखते हैं तो टोक जरूर देते हैं. लेकिन आज सुबह से उनका एक और रूप सामने आ रहा है.आपने भी नोट किया हो. वो रूप है एक सफल टिप्पणीकार का. जिस भी चिट्ठे पर देखो आज आपको आलोक जी की टिप्पणी जरूर मिलेगी.समीर जी को भी शायद अब खतरा नजर आ रहा होगा. आलोक जी के इसी रूप के दर्शन आज हमारे चिट्ठे पर भी हो गये. हम तो धन्य हो गये जी. समीर जी भले ही कहें (और ठीक कहें) कि वो टिप्पणी पढ़ कर देते हैं ( मेरी पिछ्ली पोस्ट पर उनकी टिप्पणी देखें) लेकिन आलोक जी ने बकायदा पोस्ट को पढ़ कर कुछ कठिन शब्दों का अर्थ भी पूछ लिया.
थोड़ा शब्दार्थ बताने का कष्ट करेंगे तो बड़ी अनुकंपा होगी।
मँड़हे
अलक्ष
उबहनी
मँड़ई
खाँची फाँदना
ढखुलाही
डाँड़-बाँधविनीत,
आलोक
अब आदिपुरुष पूछें और हम जबाब ना दें तो कैसे बात बने. तो लीजिये आलोक जी के लिये शब्दों के अर्थ.आप भी जान लें और कोई शब्द कठिन लगा हो तो पूछ लें कोशिश की जायेगी कि उसका अर्थ बताया जाय.
मड़हा- मिट्टी से बना हुआ छोटा घर, भुना हुआ चना
अलक्ष – अज्ञेय, अदृश्य, जो देख ना पड़ता हो. यहाँ पर मतलब उस स्थान से है जहाँ से उसने रमायण उठाई थी(मंदिर).[ रामायण वाला प्रसंग इस पोस्ट में आया था ]
उबहनी- इसका अर्थ तो होता है रस्सी पर यहाँ पर लट (बाल) से मतलब है.
मँड़ई– पर्णशाला, छोटी कुटी या झोपड़ी
खाँची फाँदना– खाँची (कीचड़), यहाँ पर मिट्टी सानने से मतलब है.
ढखुलाही – त्रिपाल, किसी वस्तू उपर फैलाकर नीचे की वस्तु को छिपाना.
डाँड़-बाँध- अर्थदंड, हरजाना
दुआ करें कि आलोक जी के इसी रूप के दर्शन हर दिन हों.
अरे वाह। आपने तो प्रविष्टि ही लिख डाली। धन्यवाद। आमतौर पर शब्दार्थ पूछने पर लोग चिड़चिड़ा जाते हैं, मेरी स्कूल की हिंदी अध्यापिका की तरह। “भाव को समझो, अर्थ को नहीं” (और मुझे बार बार मत टोको)
अब दुबारा मूल प्रविष्टि को पढ़ता हूँ, दुगुना आनंद आएगा।
शब्दार्थ जान कर कृतज्ञ हुए महाराज.
आलोक जी क्या खतरा-वो भी तो मित्र हैं भाई.
अन्तर यह रह गया कि आलोक जी अर्थ नहीं मालूम थे तो उन्होंने पूछा और आप खुश हो लिये….और हमें अर्थ मालूम थे तो सिर्फ इसलिये की आप खुश हों और समझे कि हमने ध्यान से पढ़ा है- जबरदस्ती अर्थ पूछने लगूँ क्या…. अब इस पोस्ट में भी कोई शब्द नहीं मिल रहा जिसका मतलब पूछा जाये चलो ऐसा करें-समीर का अर्थ ही बता दें. अब खुश. हा हा 🙂 🙂
वैसे सच में शब्दार्थ जान कर कृतज्ञ हुए.
हा हा, आलोक जी को जी से टिप्पणी करानी हो तो बस वर्तनी गलत लिख दो। बाकी हम भी कई बार टोक देते हैं पर आजकल कुछ लोग नाराज होने लगे हैं, इसलिए हिम्मत नहीं होती।
मुझे अभी तक नही मिली आलोक जी की टिप्पणी :(( कहा हो आलोक बाबू ?
आप सचमुच किस्मत वाले हैं कि आलोकजी की टिप्प्णी मिली, ये तो प्रसाद है जो बहुत थोड़ा थोड़ा बँटता है और किस्मत वालों को 🙂
सही कहते हैं काकेशजी,
किस्मत तो कल हमारी भी खुल गई थी जो आलोक भाई ने हमारे धाम पर भी दर्शन दिए ।
धन्य हुये बांचकर!