बीच बीच में मुझे ना जाने क्या होने लगता है कि मैं हिन्दी ब्लॉगिंग के बारे में सोचने लगता हूँ.फिर वही उहापोह वाली स्थिति होती है कि लिखें या ना लिखें. अब इस उमर में लेखक या साहित्यकार तो बनने से रहे तो फिर क्या फायदा…अपने काम में मन लगायें और उसी में कुछ करने की कोशिश करें. जब इस तरह की उहापोह वाली स्थिति आती है तो मैं पढ़ने लगता हूँ.कल भी तीन चार घंटे खूब पढ़ा.दिन के बाद के लगभग सभी चिट्ठे पढ़े और अधिकांश में टिप्पणीयां भी की. फिर कुछ पुराने चिट्ठे पढे.ज्ञान जी के पुराने लेख पढ़े और समझने की कोशिश की गैस्ट आर्टिस्ट की तरह पदार्पण करने वाले ज्ञान जी कैसे दैनिक ब्लॉगर बन गये. फिर फुरसतिया जी के कुछ पुराने अच्छे लेख पढे. मजा भी आया. अंतत: सोचा कि चलो जब तक मन हो लिखते रहें.
आप सोच रहे होंगे कि आज खोया पानी नहीं छ्पा.बस थोड़े देर में उसका तीसरा भाग लेकर हाजिर होता हूँ.
गूगल का नया ट्रांसलिट्रेसन टूल हिन्दी लिखने के लिये काफी अच्छा है. इसकी सहायता से आप रोमन में लिख कर आराम से हिन्दी लिख सकते हो. इसीलिये इसे मैने अपने कॉमेंट बॉक्स के नीचे लगाया था. आजकल कई लोगों ने इसे अपने चिट्ठे पर लगा रखा है.इस औजार को चिट्ठे में लगाने से दिक्कत यह है कि जब भी कोई आपके लेख पर आता है तो उसका कर्सर इस टूल के पहली लाइन पर आ जाता है और आपको लेख को पढने के लिये ऊपर जाना होता है. मुझे इससे कई चिट्ठों में समस्या हुई तो सोचा कि मेरे पाठकों को भी यह समस्या होती होगी इसलिये इस टूल को अपने चिट्ठे से हटा दिया.आपके पास कुछ समाधान हो तो बताइयेगा.
आजकल मुन्नी पोस्ट लिखने का फैशन बन गया है. फुरसतिया जी जो अपनी फुरसतिया लम्बी पोस्ट लिखने के लिये बदनाम हैं वो भी आजकल एक पोस्ट को तीन पोस्टों में ठेलने लगे है. निरमलानंद जब से कानपुर से लौटे है तब से उनकी पोस्ट छोटी होने लगी हैं इसीलिये वो आजकल दिन में चार मुन्नी पोस्ट ठेल देते हैं.आलोक जी एक ही बोतल का पानी दो दिन पिला रहे हैं. ज्ञान जी तो पहले ही प्रोब्लॉगर की टिप पढ़कर छोटा छोटा ही लिखते हैं.
चलिये मैं भी यह मुन्नी पोस्ट समाप्त करता हूँ. थोड़ी देर में लेकर आ रहा हूँ…खोया-पानी का तीसरा भाग.
चलिये रविवासरीय फुटकर विचार के सन्दर्भ में आपने हमें याद किया। बहुत अच्छा लगा। बहुत बहुत धन्यवाद।
हम तो अभी भी अपने को गेस्ट ब्लॉगर ही मानते हैं।
मुन्नी पोस्ट ज़िन्दाबाद!
आगे कुछ ऑर स्फुट विचारों का स्वागत रहेगा
ये पुनर्विचार अच्छा लगा। पाण्डेयजी और आलोकपुराणिक ने बहुत लफ़ड़ा किया इस मामले में। रोज-रोज अपनी दुकान सजा के बैठ गये और हमें मजबूर किया कि हम भी मुनिया पोस्टें लिखने लगें। लोगों ने भी हल्ला मचाया कि हाय इत्ता कैसे पढ़ेंगे। 🙂
इसी पोस्ट का देखो। लिखना शुरू किया ब्लागिंग पर और बिना पूरा विचार हुये खतम हो गयी। 🙂 खोया-पानी को नेट पर लाने का काम बहुत अच्छा है। जारी रखें इसे। बाकी इंतजार है आपकी अगली पोस्ट का।
मुन्ना पोस्ट लिखो और पढने वालो पर छोड दो बस..
कुछ ज्यादा ही बड़ी थी। 🙂
हम भी कुछ ऐसा ही कर रहे हैं आज…. माउस के ऐरो को स्क्रीन पर गोल गोल घुमा कर जो भी ब्लॉग खुलता है उसे पढ़ रहे हैं और भटके मन को कोई राह ढूँढने मे मदद कर रहे हैं. इसी लिए ऊलजलूल पढ़ रहे हैं.
ह्म्म आइडिया बुरा नहीं है मुन्नी पोस्ट का , कौशिश करेगे आगे से हम भी मुन्नी पोस्ट लिखने की पर क्या करें अपनी तो जबां एक बार चलने लगे तो बस राजधानी हो जाती है