हमारे पड़ोस के झा जी सरकारी कर्मचारी हैं. कल ट्रैफिक जाम को झेलते,कोसते घर पहुंचे ही थे कि उनकी धर्मपत्नी जी आ के खड़ी हो गयी और पूछ्ने लगी. आप कितना घूस लेते है जी? इस हमले के लिये वो तैयार ना थे.उन्होने थूक को निगलते हुए,स्थिति को संभालते हुए हिम्मत कर पूछा. लेकिन तुम क्यों पूछ रही हो? तो पत्नी ने बताया कि मिसेज चावला पूछ रही थी कि तुम्हारे पति कितना घूस खाते हैं.इससे पहले कि वो कुछ बोलते और अपनी घूस ना खा पाने की नग्नता को ईमानदारी की चादर से ढंकने की कोशिश करते वो बोल पड़ीं. देखिये आप खूब घूस खाइये क्योंकि हमे अगले महीने स्विटजरलैंड जाना है.पता है मिसेज चावला पिछ्ले हफ्ते ही स्विटजरलैंड घूम कर आयी है.उनकी ये पूरी ट्रिप उनके विभाग के एक कॉंट्रेक्टर द्वारा स्पॉंसर थी. झा जी को अल्टीमेटम दे दिया गया. अब झा जी परेशान है. अपनी ये परेशानी उन्होने हमें भी बता डाली.
हमने उनसे कहा तो इसमें क्या है घूस लेना शुरु कर दीजिये. झा जी थोड़ा ज्यादा सैंसिबल नहीं थे.पुराने विचारों के आदमी थे और डरपोक टाइप थे.जो सरकारी कर्मचारी घूस नहीं लेता वो पुराने विचारों का ही होगा ना.मॉडर्न जमाने के लोग तो इस संकट में पड़ते ही नहीं हैं. हमने उन्हें उपदेश देना शुरु किया.
देखिये झा जी, डरने से कुछ नहीं होता.घूस खाना भ्रष्टाचार का नहीं शिष्टाचार का लक्षण है.जरा सोचिये यदि घूस ना होती तो क्या होता.फाइलें पड़ी रहती.उनको आगे खिसकाने वाला कोई नहीं होता.तो कैसे होते आपके,हमारे इतने सारे काम? घूस है तो दुनिया चल रही है. आप ये ना समझे केवल सरकारी कर्मचारी ही घूस लेते हैं.ये प्रथा तो सदियों पुरानी है. क्या आपने कभी भगवान को घूस नहीं दी.आप जब अपनी मन्नत पूरी करने के लिये भगवान को प्रसाद चढ़ाते हैं या कोई और चीज करते हैं तो भी घूस ही है ना. और सरकार खुद भी घूस लेती है.सरकार फ्लाईओवर बनाती है.पहले उसे बनाने के लिये टैक्स लेती है और फिर बनाने के बाद टॉल टैक्स.स्कूल वाले पढ़ाने के लिये फीस तो लेते ही हैं लेकिन साथ में डोनेसन भी लेते हैं. रेलवे टिकट के पैसे तो लेती है.टिकट को तत्काल करवाने के लिये पैसे भी लेती.पहले केवल सरकारी कर्मचारी ही घूस लेते थे अब सरकार भी लेती है. गाजियाबाद में भी म्युनिसपालिटी पन्द्रह परसैट लेती है.
घूस खाना स्टेटस सिंबल है.यदि आप घूस नहीं खाते तो आप पिछ्ड़े हैं ऎसे पिछ्ड़े कि आपको आरक्षण भी नहीं मिल सकता. देखिये आपके विभाग में पहले भी लोग घूस ले रहे थे अब भी ले रहे हैं और आगे भी लेते रहेंगे. आपके लेने या ना लेने से कोई फरक नहीं पड़ता.आप नहीं लेंगे तो आपका हिस्सा कोई और लेगा. आप घूस नही लेंगे तो आप पर कोई विश्वास नहीं करेगा.सब सोचेंगे जो आदमी घूस नहीं लेता वो काम क्या करेगा.घूस आपकी पुरानी किताब पर लगा हुआ नया कवर है. घूस सार्वभौमिक सत्य है. घूस वर्तमान है.घूस उज्जवल भविष्य है. घूस आश्वाशन है. घूस भ्रष्टाचार की लहलहाती फसल को पोषने वाली खाद है. घूस लेना आपका कर्तव्य है.घूस लेना आपका अधिकार है. घूस देना आपकी मजबूरी. यदि आप घूस दे सकते हैं तो घूस ले क्यों नहीं सकते.
मेरे उपदेशों का झा जी पर कुछ असर सा हुआ. लेकिन यदि कभी पकड़े गये तो?उन्होने पूछा. देखिये झा जी अव्वल तो घूस लेने वाले यदि अपने ऊपर वालों को खुश रखें तो पकड़े ही नहीं जाते और यदि पकड़े भी गयी तो घूस तो है ही ना. घूस दे के तुरंत छूट भी जाते हैं.
मेरी बातें अब उन्हें पूरी तरह समझ में आ गयी थी.उनके चेहरे पर दृढ़ता थी. उन्होने मुझे धन्यवाद किया और बिना कुछ बोले चल दिये.
सुना है अगले महीने झा जी गोवा जा रहे हैं. कल मिसेज झा ने क्लब में गाना भी गाया ” घूस खायें सैंया हमारे”.
वैसे घूस का ये मुद्दा ही दस-बीस सालों में खत्म हो जाएगा। राइट टू इनफॉरमेशन जैसे एक्ट ने लोगों के हाथ में इसे मिटाने का जरिया दे दिया है।
आमीन कि अनिल जी का कथन भविष्य में सत्य साबित हो!!
घूसखोरों का पडोस भौत दुखदायक होता है। इनके यहां सिंगापुर शापिंग के संस्मरण होते हैं और ईमान वाले के यहां आलू खरीदने तक में मरण होते हैं। ईमानदार बंदे के लिए भौत तरह के मरण हैं। फिर भी घूसखोरों के पड़ोस में रहने की परिणाम यह होता है कि बीबी की निगाह में बंदा बहुत जल्दी गिर जाता है। इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि या तो बंदा खुद बेईमान हो ले, या फिर बेईमान का पड़ोस छोड़ दे।
इतना तगड़ा उपदेश।
बडे मंझे कलाकार लगते है।
लगता है टी.वी.वालों को ख़बर नही है। वरना …… 🙂
उई दैया,
इधर आप कह रहे हैं कि
घूस खाना भ्रष्टाचार का नहीं शिष्टाचार का लक्षण है
उधर समीरजी ने कहा कि टिपपणी करना शिष्टाचार है
तो सिद्ध हुआ कि टिप्पणी करना भ्रष्टाचार है….ठीक है न।
बहुत बेहतरीन!!
अब मसिजीवी जी के गणित में तो कोई खोट दिखती नहीं है तो हम सबसे बड़े भ्रष्टाचारी याने कि शिष्टाचारी. 🙂
मजा आया जागरुकता अभियान के तहत यह आलेख देख कर.
अनिल जी के मूँह में घी शक्कर. काश, उनकी जुबां पर स्वरस्ती बैठी हों उस वक्त.
धन्य हों गुरुवर आपने दिव्य ज्ञान दिया। लेकिन क्या करें हमारा काम घूस लेने वाला है ही नहीं। 🙁
harishankar parasaiji ek mahan vidambankar the bhavishy vedhi drishti hone se hi ghoos ka vyangya aaj bhi vaisa hi hai aur rahega