हिन्दी चिट्ठाजगत की दुनिया आजकल शोधमय भी है और हिटास के प्रति जागरूक भी.कोई हिट होना सिखा रहा है तो कोई हिट करना.हिट पर आधारित सभी चीजें हिट हैं.हिट की हीट का ये असर है कि लोग हिट की चाह में लेखन कर रहे हैं.भले ही आप कहें कि हिट के लिये न लिखो खुद के लिये लिखो लेकिन इसका परोक्ष लाभ भी है कि हिन्दी में ‘कुछ’ लिखा जा रहा है. सारा लिखा स्तरीय ना भी हो तो कूड़ा भी नहीं है.
विषयों की विविधता भी बढ़ी है. विविधता चुनाव का अवसर देती है और बने बनाये परिवार या गुट से अलग होने का अवसर भी. वो दिन धीरे धीरे खतम हो रहे हैं जब आपको किसी भी लेख को पढ़कर ना चाहते हुए भी “अच्छा है अच्छा है” कहना पड़ता था. अभी आप “पीठ खुजाने” के बोरिंग काम से ऊपर उठकर विमर्श के लिये तैयार हो पाते है या हो पायेंगे. टिप्पणीयों में विमर्श हो या लेखों में विमर्श किसी भी तरह का काम हिन्दी के लिये अच्छा ही है. हाल में हुए विवादों ने भले ही किसी के लिये व्यक्तिगत रूप से भला किया हो या ना हो हिन्दी और हिन्दी चिट्ठाजगत का जरूर भला किया है.लोग अपने विचार खुलकर रखने लगे है. चाहे उसकी परिणति भड़ास के रूप में हो या परिवर्तित पंगेबाज के रूप में.
ये परिवर्तन मैने भी खुद में भी महसूस किया है.मेरा भी हिन्दा चिट्ठाजगत से पारिवारिक मोह भंग हुआ है और मेरी अन्य विषयों के प्रति सोच विस्तृत हुई है. पहले मैं सोचा करता था कि शायद में किसी चिट्ठाकार से ना मिलूं या उससे बातें ना करूँ ..गुमनाम रहकर ही लिखते रहूँ ऎसी सोच थी..यह मेरे अन्दर के भय के कारण था या मेरे अंतर्मुखी व्यक्तित्व के कारण ..नहीं मालूम ..पर अब वो सोच नहीं रही.. प्रमोद जी ने मेरे किसी लेख पर अपनी टिप्पणी में कहा था कि “डरो मत अब बड़े हो गये हो”…मुझे लगता है कि मैं सचमुच बड़ा हो गया हूँ..ये अहसास मुझे दूसरों को समझने के लिये उकसाता है.. फालतू की बातों में उलझ कर समय व्यर्थ ना करूं ऎसी सोच देता है.. इसलिये मैं इसे चिट्ठाजगत की उपलब्धि मानता हूँ …कम से कम अपने लिये…
नये फीड संयोजको का आना शुभ संकेत है आने वाले समय इनकी जरूरत और भी महसूस की जायेगी..इनका स्वरूप भी बदलेगा और इनसे होने वाली अपेक्षाऎं भी ..
आशा करें हम हिन्दी का रोना रोने वाले लोग हिन्दी के नाम पर खुश भी हो सकेंगे..
आपका सही कहना है. आज ही मैंने हिट के नाम पर आत्मालाप किया है एक और बार, और बहुत खुश भी हुआ हूँ 🙂
अरे हम तो बहुते दिन से कह रहे है कि अब अब आप बडॆ हो गये हो,चलो आज मान तो गये…अब बडे होने की खुसी मे बतासा तो कम से कम बाट ही दिया जाय भैये..काहे की मौका भी है ,मौसम भी,और चार खाने वाले भाइ (चारा नही चार ध्यान दे)भी इकट्ठे हो रिये है…:)
इसका एक सीधा मतलब तो ये हुआ कि आप कल कल कनाट प्लेस आ रहे हैं। और ये आप बिल्कुल बजा फरमा रहे हैं कि इन सब लफड़ों से हिंदी ब्लॉगिंग बिंदास हुई है- सबका भला बनकर रहने वालों का अपने दर्शन पर पुनर्विचार का अवसर मिला है। ब्लॉगिंग नई चाल मे ढल रही है। आप अकेले नहीं हम सब बड़े हो रहे हैं।
शुक्रिया जनाब
देर आयद दुरुस्त आयद। कल मिलता हूँ आपसे पूरी गर्मजोशी से।
शुभ लक्षण हैं.. आप के भी यह..
विचार पसंद आये. सच में बड़े हो गये हो हमारे साथ साथ. 🙂
bahut bdhiyaa soch hai.
deepak bharatdeep
अच्छा है, अच्छा है। 🙂
आपको तो हम बहुत पहले से बड़ा माने बैठे हैं। ये क्या पंगा है जी, आप आज बड़े हुए हैं, तो पहले क्या थे।
काकेशजी आप स्वप्न में टार्च लेकर ढूँढ़ने निकले थे कुछ.
एक बच्चा गुम है सुना है उसकी कुछ ऋषियों ने हत्या कर दी गाली बकता था.
उसकी लाश तुम्हारी नारदमेड टार्च में नज़र नहीं आयेगी.
हमें तो रंज इस बात का है-
फूल तो कुछ दिन बहारे ज़ाफिज़ा दिखला गये.
हसरत उन गुंचों पे है जो बिन खिले मुरझा गये.
लोग मशाल ले कर उसे ढूँढ़ रहे हैं.तुम ने वो भी सपना देखा है.
अशोक वाटिका में त्रिजटा भी तम्हारी तरह सपना देखती थी.
हुयहै सत्य दिवस दिन चारू
वक्त सौ मंसिफों का मुंसिफ है
वक्त आयेगा इंतज़ार करो.
डॉ.सुभाष भदौरिया अहमदाबाद.
सबकी पिछाड़ी सूंघते फिरते रहने वाले भदौरिया क्या तुम्हे इतनी भी अकल नहीं कि कहां पर क्या बोलना चाहिये.जब समझदार लोग बोल रहे हों तो तुम जैसे मूरख लोगों को नहीं बोलना चाहिये.ई-कविता से निस्कासित,कलुषित अपने आप को गजल के तीसमारखां समझने वाले,बहर के पीछे बहरे अपनी मानसिक विक्षिप्तता का ईलाज करवाओ फिर इस ब्लॉगजगत में आओ.
हम तो यही कहेंगे हिट मिले ना मिले बस हम हिट रहें
कुछ भी करिए गुर्राइये, काटिए, लपटिए, झपटिए, लिखते रहिए। और, हिट का चक्कर तो नहीं कहूं लेकिन, हर दिन एग्रीगेटर पर कहीं बतंगड़ दिखने की चाह में मैं भी कुछ-कुछ तो लिख ही डालता हूं। सही है लगे रहिए। कभी किसी को बोरियत हो दूसरे लोग डांट डपट दीजिए। बस ब्लॉगिंग बढ़ती रहेगी। वरना तो एक जैसे किसी भी काम से थोड़ा दिमाग चलाने वाले को बोरियत होने लगती है।