सागर भाई की उलझन और रचना जी की माफी

मेरी पिछ्ली पोस्ट पर काफी अच्छे कॉमेंट आये.सागर जी और रचना जी के कॉमेंट प्रस्तुत हैं.

english-cocacolaसागर भाईसा बोले काकेश जी , इस लेख में तो विषयांतर हुआ कोई बात नहीं पर इस लेख की अगली कड़ी में उसे भी पूरा करें। क्यों कि मुझे यह लग रहा है कि आप मेरी कहानी लिख रहे हैं।
मैने हिन्दी माध्यम से ११वीं तक पढ़ाई की। बच्चों का भी यही हाल है। वे पहले राजस्थान में हिन्दी माध्यम से पढ़े।अब हम हैदराबाद में हैं, हिन्दी माध्यम की स्कूल पास ना होने की वजह से अंग्रेजी स्कूल में बच्चों को दाखिला दिलवाया। अब उनकी वह हालत है कि ना तो वे सही अंग्रेजी जानते हैं ना ही हिन्दी! रोज हम सब इस वजह से तनाव में जीते हैं क्यों कि मैं भी व्यवसाय में अंग्रेजी ना जानने की वजह से सफल नहीं हो पा रहा ना बच्चे अध्ययन में। बहुत कुछ कहना है पर और कभी,…

सागर भाई आपके अनुरोध पर इस लेख की अगली कड़ी में अपनी पूरी कहानी लिखुंगा. आप भी वादा करें उसके बाद अपनी कहानी लिखेंगे.  

रचना जी ने कहा

सबसे पहले मैं इस कमेन्ट में श्री सागर चंद नाहर जी से क्षमा मांगना चाहती हूँ क्योकि एक बार ईमेल पर उन्होने मुझसे कहा था की उन्हे इंग्लिश नहीं आती और मै हिन्दी में मेल दूं। मैने इस बात को सच नहीं माना क्योकि मुझे लगा की वह मुझे हिन्दी में लिखने को मजबूर करना चाहते है । तब मैं इस हिन्दी ब्लॉगिंग में नयी थी, और कई बार उसके बाद सागर जी के ब्लॉग पर गयी पर क्षमा मांगने का कोई अवसर नहीं मिला। आज मिला है तो सागर भाई क्षमा कर दे।english-of-india

अब बात इंग्लिश और हिन्दीकी , मैने इस विषय को कई बार उठाया है की सबको इंग्लिश कि जानकारी होनी चाहिये पर हर बार मुझे कमेंट्स मे गालियां तक मिली है । आज मैं इस ब्लोग पर ये कहना चाहती हूँ की अगर किसी को भी इंग्लिश मैं कोई भी सहायता चाहिये , जैसे कहीं अप्लिकेशन देनी हो , या किसी के भी बच्चे को इंग्लिश में फॉर्म इत्यादि भरना हो तो मुझ से निःसंकोच ईमेल पर सम्पर्क कर सकते है। कोई भी बात जो आप दूसरो से पूछने में हिचकते हो कि कोई क्या कहेगा उसे मुझे ईमेल कर दें, यथा संभव मैं आप को उसकी हिन्दी बता दूंगी । अगर रोमन मैं आप समझ लेंगे तो मेरा वक्त कम लगेगा पर अगर आवश्यक है तो मैं हिन्दी में भी लिख दूंगी । इंग्लिश मुश्किल नहीं है , आपकी हिचक इस को मुश्किल बनाती है । अगर आप को नहीं भी आती है तो भी अपने बच्चो को अवश्य इंग्लिश माध्यम से ही पढाएं । हिन्दी हमारा दिल है और इंग्लिश हमारा दिमाग और तरक्की के लिये दिमाग की जरुरत ज्यादा होती है । मातृ भाषा या राष्ट्र भाषा बदने की जरुरत नहीं है , जरुरत हैं अपनी सोच बदलने की , देश का विकास बिना इग्लिश के हो सकता है पर व्यक्ति के विकास में इंग्लिश का योगदान लेना कुछ बुरा नहीं है । और वह जितने लोग इंग्लिश कि बुराई करते हैं , यहाँ हिन्दी ब्लोगिंग समुदाय में भी उन सब के इंग्लिश में भी ब्लोग है !!! उनसब के घर मै इंग्लिश के अखबार भी आते हैं और उनमे बहुत से केवल टाइम पास के लिये भाषा पर वाद विवाद करते हैं ।

रचना जी आपका धन्यवाद. अगली पोस्ट में इस विषय पर फिर अपने विचार रखुंगा.

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By काकेश

मैं एक परिन्दा....उड़ना चाहता हूँ....नापना चाहता हूँ आकाश...

14 comments

  1. उनसब के घर मै इंग्लिश के अखबार भी आते हैं और उनमे बहुत से केवल टाइम पास के लिये भाषा पर वाद विवाद करते हैं ।
    ————————————————–

    मैं इस कथन से अपनी सहमति दर्ज कराये बिना नहीं रह सकता। मैं स्वयम हिन्दी मध्यम के स्कूल में पढ़ा हूं – हायर सेकेण्डरी तक। और अपने बच्चे,पैसे की कमी के कारण नहीं, पूरी सोच से हिन्दी माध्यम के स्कूल में पढ़ाये हैं। यह मानता रहा हूं कि प्रारम्भिक शिक्षा मातृभाषा में सर्वोचित है।
    पर हिन्दी के प्रति जबरी सेण्टी होना बेकार की बात लगती है।

  2. मतलब भाषा की समस्या सुलझा कर ही मानोगे? ठीक है.. अब किसी को तो करना था.. चलो लग जाओ बन्धु..

  3. मेरे माता पिता दोनो विश्वविद्यालय मे रीडर के पद से रिटायर हुए है । उनका सब्जेक्ट हिन्दी था । पर मेरी माता की जिद ने हमे इंग्लिश मीडियम मे शिक्षित किया । पर घर पर इंग्लिश कभी नहीं बोली जाती थी । मैने बहुत मेहनत की अपनी अग्रेजी बोलचाल को सुधारने की और आज मे दोने भाषायो मे काम कर सकती हूँ । देश भक्त होने का मतलब मेरी नज़र मै इंग्लिश का बहिष्कार नहीं हे अपितु इंग्लिश सीख कर उस पर शासन करना है । मुझे फक्र है कि मे इंग्लिश और हिन्दी दोने माद्यम मे काम कर सकती हूँ । हिन्दीमेरा दिल है और हिन्दी मेरा अभिमान है और मै हिंदुस्तान मे रह कर इस बात को कहती हूँ । इंग्लिश मेरी मजबूरी नहीं मेरी ज़रूरत है और मै बिना hypocracy के इसे मानती हूँ । मेरे विचारों को आपने मंच दिया धन्यवाद .

  4. चिट्ठा पढ कर अच्छा लगा. प्रिय सागर ने जो कहा है वह बहुत लोगों का अनुभव है. रचना जी ने जिस तरह जवाब दिया वह उनके विशाल हृदय को दिखाता है. साथ ही साथ उन्होंने एक बहुत अच्छा कथन दिया है:

    “देश भक्त होने का मतलब मेरी नज़र मै इंग्लिश का बहिष्कार नहीं हे अपितु इंग्लिश सीख कर उस पर शासन करना है ।”

    यह एक दम सही है. मेरी लगभग सारी पढाई हिन्दी माध्यम में हुई. स्नातकोत्तर होने के बाद मैं ने स्वयं के प्रयत्न से अंग्रेजी सीखी एवं धाराप्रवाह बोलने लगा. लेकिन इसके बावजूद मैं हिन्दीप्रेमी ही रहा एवं अंग्रेजी बोलने में ऊचा एवं हिन्दी बोलने में नीच नहीं समझता क्योंकि कोई भी भाषा न तो ऊची है न नीची. हां एक बात जरूर है, हिन्दुस्तान में कई लोग जिस तरह अंग्रेजी को आगे बढाने के लिये हिन्दी का दमन करते हैं उसका मैं घोर विरोध करता हूं — शास्त्री

    हिन्दी ही हिन्दुस्तान को एक सूत्र में पिरो सकती है.
    मैं अंग्रेजी खबर जाल से मुफ्त में पढ लेता हूँ. घर
    पर हिन्दी अखबार मंगाता हूं. एक दर्जन हिन्दी
    पत्रिकायें भी मंगाता हूं.

  5. मुझे लगता है हमारी भावनाएं एक सी है बस व्यक्त अलग अलग तरह से कर रहे हैं. साथ ही खुद को दुसरे से ज्यादा हिन्दी प्रेमी मानने की भावना भी कुछ कुछ काम कर रही है.

    अंग्रेजी मजबुरी है तो कहीं कहीं जरूरी भी है. अंग्रेजी हमारे मानस पर शासन न करे और हिन्दी को मजबुत करने के लिए मन से काम करें यही कामना है. अंग्रेजी को एक हथियार के रूप में उपयोग किया जाना चाहिए. और हिन्दी का मजाक बर्दास्त न करें, चाहे वह फिल्मी कॉमेडी ही क्यों न हो.

  6. मुझे तो आप सब के लेखों का इंतजार है जी क्योंकि अपन न तो हिन्दी अच्छे से जानते है और ना ही इंग्लिश.

  7. व्यवहारिकता सर्वोपरि है. अंग्रेजी जानना या अंग्रेजी का इस्तेमाल गुलामी को दर्शाता है, ऐसी बात कहना शायद जायज नहीं है. वैसे ही हिन्दी का इस्तेमाल देशभक्त होने की निशानी है, यह बात भी ठीक नहीं.

    लेकिन मातृभाषा का इस्तेमाल जितना ज्यादा कर सकें उतना ही बढ़िया है. रचना जी और नाहर जी ने बड़ी इमानदारी से अपनी बातें रखी हैं.

  8. मेरे ख़याल से तो कोई भी भाषा वो चाहे हिन्दी हो या इंग्लिश हो उसे जानने या बोलने मे कोई हर्ज नही है।

  9. धन्यवाद काकेश जी,
    मैं जल्दी ही पूरी बात आपके सामने रखने की कोशिश करूंगा। साथ ही रचना जी क्षमा मांग कर मुझे शर्मिन्दा ना करें, मौका ही ऐसा था कि कोई भी यही समझता कि मैं आपको हिन्दी लिखने को बाध्य कर रहा हूँ।

  10. हिन्दी इंग्लिश की गिटपिट मे तो मै ऐसी पिसी की बस अब तक कोई रास्ता नही मिला…

    लेकिन एक बात पक्की है, हिन्दी को बढाने के लिये कुछ भी कर कर लिया जाये, पर जो हिन्दी पर अटक जाते हैं, वास्तव मे खुद कोसते ही हैं… उदाहरण के तौर पर मै भी हूँ 🙂
    हाँ इतना जरूर किया है कि, मेरे बाद भाई बहनो को तकलीफ ना हो, इसलिये हिन्दी से उनकी मुलाकात ना हो, इसका बन्दोबस्त कर दिया है… ताकि कम से कम उनका भविष्य बेहतर बने।

  11. ्मुद्दा सिर्फ़ हिन्दी और इंगलिश पर ही क्युं सीमित है। मुझे तो लगता है कि हम जितनी ज्यादा हो सके उतनी भाषाएं सीखें। मेरी भी ग्याहर्वीं तक की शिक्षा हिन्दी माध्यम से ही हुई थी, अंतिम दो साल गुजराती भी सीखनी पड़ी थी, जो हमने सहर्ष सीखी थी, कॉलेज में आते ही इंगलिश माध्यम में पढ़ाई शुरु हो गयी पर अगर मन में कोई डर या पूर्वग्रह न हो तो कोई भी भाषा सीखना इतना मुश्किल नहीं। हम रचना जी से भी सहमत है। हिन्दी मेरा भी दिल है और अग्रेंजी मेरा दिमाग्। आगे बढ़ने के लिए दोनो जरुरी

  12. Rachna ji——-bilkul thik kaha—hindi dil hai to —-eng-demag hai aor apney kal ko behatar bananey ke liye—bhvi peedhi ko—english ko madhyam banana hi padega—sampurn shamat hu aapse–

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