यह चिठ्ठा 16 मार्च 2007 को यहाँ प्रकाशित किया गया था ।
बहुत दिनों से सोच रहा था कि मैं भी Blogging (चिठ्ठाकारी) प्रारम्भ करूँ पर एक तो हिन्दी लिखने का सहज साधन उपलब्ध नहीं था, दूसरा ये भी भय था कि कही हिन्दी चिठ्ठाकारी के धुरुन्धर (लिंक दिया जा सकता था पर दे नही पाया…आप सुझायें.) इसे अन्यथा ना ले लैं। पहली समस्या को सुलझाया Indic IME को कंप्युटर में स्थापित कर। अब मैं Microsoft word (2007) में टाइप तो कर पाता हूं पर गति अभी भी बहुत कम है….विशेषकर ‘आ’ की मात्रा लगाना भूल जाता हूं और फिर पीछे जाने पर मात्रा लगाना कठिन हो जाता है। क्योंकि अब वो मात्रा नहीं पूरा ‘आ’ बन जाता है। आशा है ‘धुरुन्धर’ सहायता करेंगे। फिर अमित जी का ब्लोग पढ़ा तो लगा कि दिल्ली में तो हम भी थे तो 6 घंटे चली वार्ता का हिस्सा तो हो ही सकते थे।फिर खुद को टटोला तो लगा कि हमने तो अभी चिठ्ठाकारी प्रारम्भ भी नहीं की फिर कैसे इस शिखर वार्ता का हिस्सा बनते। तो प्रेरणा मिली कि चलो कुछ लिखा जाय। वैसे नारद और अक्षरग्राम पर अपना आना जाना लगा रहता है ..पिछ्ले 2-3 महीनों से हिन्दी की लगभग सारी पोस्ट पढ़ रहा हूं।पहले सोचा करता था कि ब्लॉगिंग वही लोग करते होंगे जो या तो पत्रकार हैं, या फिर सरकारी कर्मचारी जिनके पास समय बहुत रहता है। हालाँकि ये बात काफी हद तक सच भी है पर पूर्णतः नहीं। चलो अभी बहुत हो गयी बकबक ..बांकी फिर ..अभी तो हिन्दी लिखना सीख ही रहा हूँ।
आ जाओ भैया, आखिर ब्लॉग बना ही लिया, माने नही।
सही है, लगे रहो, हिन्दी चिट्ठाकारों के परिवार मे आपका हार्दिक स्वागत है।
किसी भी प्रकार की समस्या के लिए हम आपसे एक इमेल की दूरी पर है।
सही किया कि लाइन में लग लिये। बधाई इस बहादुरी के लिये कि लिखना शुरू किया।
Swagat hai 🙂 http://akshargram.com/sarvagya/index.php/Welcome bhi dekhein.
“…पहले सोचा करता था कि ब्लोगिंग वही लोग करते होंगे जो या तो पत्रकार है , या फिर सरकारी कर्मचारी जिनके पास समय बहुत रह्ता है …..”
बहुत बढ़िया, उम्दा और सही सोच रही होगी आपकी. बहरहाल, वह बदल कैसे गई?
हिन्दी चिट्ठाजगत् में आपका स्वागत है. नियमित चिट्ठा लेखन हेतु शुभकामनाएँ. (कोई सरकारी संस्था जॉइन कर लो तो आसान हो जाएगा 🙂
आपका चिट्ठा सुंदर बन पड़ा है, लिखते रहें। नहीं भैया सभी के पास समय की कमी है पर एक तो हम लती हैं चिट्ठाकारी के (या हिंदी के) दूसरा इस किस्म की बैठकबाजी से पत्नी कम नाराज होती है कि चलो मुआ है तो ऑंखें के सामने ही।
काकेश जी, चिट्ठानगरी में स्वागत। यह पृष्ठ भी पढ़े। मेरे विचार में आ की मात्रा का इलाज यह है कि फोनेटिक टाइपिंग न कर के इन्स्क्रिप्ट टाइपराइटर की आदत डाल लें। इस ऑनलाइन टाइपराइटर को भी आज़माएँ।
अपने ब्लॉग के शीर्षक में “मैं” को “में” कर दें।
हो सके तो वर्डप्रेस में हर पोस्ट की अंग्रेज़ी स्लग बनाएँ ताकि पोस्ट का पर्मालिंक छोटा बने।
आपका स्वागत है श्रीमान जी । लिखते रहिये, पढ़ते रहिये और पढ़ाते रहिये ।
स्वागत हिअ श्रीमान इस महफिल में.
धन्यवाद … उत्साह-वर्धन के लिये.
रवि जी ने कहा “कोई सरकारी संस्था जॉइन कर लो तो आसान हो जाएगा” ..क्या करें मुइ मिलती ही तो नहीं …हम तो सर बोलने और कार में घूमने के अलावा कुछ पा न सके..
रमन जी ने गलती दिखायी …सुधार ली गयी …आपने कहा “हो सके तो वर्डप्रेस में हर पोस्ट की अंग्रेज़ी स्लग बनाएँ ताकि पोस्ट का पर्मालिंक छोटा बने।” ..कैसे बनायें भेजे में बात घुसी नहीं..
आप लोगों का उत्साह-वर्धन रहेगा तो लिखते , पढ़ते और पढ़ाते रहेगें
काकेश जी Post Slug देने के लिए वर्डप्रैस.कॉम के पोस्ट एडीटर में (जिसमें आप पोस्ट लिखते हैं) के दांई तरफ वाले कॉलम में Post Slug बॉक्स होता है उस पर +/- का टॉगल बटन क्लिक करके उसमें इंग्लिश में पोस्ट का नाम लिख दॆं। ऐसा करने पर आपकी पोस्ट का टाइटल तो हिन्दी मॆं रहेगा लेकिन लिंक इंग्लिश में।
बाकी हिन्दी टाइपिंग संबंधी जानकारी के लिए सर्वज्ञ पर इस लिंक पर जाएं: http://www.akshargram.com/sarvagya/index.php/How_to_Type_in_Hindi
काकेशजी, आपका चिट्ठाजगत में स्वागत है।
अरे भई, ऐसे भी बहुत लोग हैं जिनके पास अधिक समय नहीं होता परन्तु फिर भी अपनी व्यस्तता के चलते थोड़ा समय निकाल लिख ही लेते हैं!! 😉
स्वागत है काकेश जी
Post Slug सही करने के लिये मैने यहाँ एक लेख लिखा है, एक बार देख लेवें तो शायद आपकी राह आसान हो जायेगी।
http://nahar.wordpress.com/2007/03/06/fornewbloggers/
हिन्दी चिट्ठे जगत में स्वागत है।