पिछ्ले दो हफ्ते से शनिवार-टिप्पणी-चर्चा बंद है.एक कारण तो यह है कि मेरी व्यस्तता काफी बढ़ गयी है और दूसरा यह कि चर्चा लायक कोई टिप्पणी आई भी नहीं थी. लेकिन इस बार कुछ टिप्पणीयाँ है जिन्हें आपके साथ बांटना जरूरी समझता हूँ..
मेरी पोस्ट भारत की राष्ट्रभाषा अंग्रेजी क्यों नहीं है?? पर ‘स्वामीजी अर्धनारेश्वेर महाप्रभु संत गिरिमहाराज फ्रॉम हिमालयाज’ की टिप्पणी आयी जो रोमन में थी. लेकिन यह सौभाग्य की बात है स्वामी जी की नजरें इस नाचीज़ पर इनायत हुईं. अपने अनुभवों से स्वामी जी बताते हैं.
मेरा जन्म,उत्तराखंड की वादियों मे हुआ और 18 साल वहाँ रहने के बाद, मै पर्यावरण और पर्वतारोहण की ऊपर अपना ध्यान लगाने लगा, बिदेशियों के साथ मेरा संपर्क 1969 से होने लगा जब मैं, सिक्किम, दार्जिलिंग,डलहौजी, उत्तरकाशी आदि आदि स्थानों में पर्वतारोही बिदेशियों को घूमाता रहा.संयोग से, मेरा विदेश मे आना हुआ और अब तक इन पिछले 36 सालों में मैने लगभग 38 देशों की यात्रा की है और अब स्कैंडैविया मे रह रहा हूँ.यहां पर, मैने देखा की अँग्रेज़ी भाषा बोलने से देश तरक्की नही करता है. स्वीडन के लोग स्वीडिश बोलते हैं, फिनलैंड के लोग फिनिश बोलते हैं, नॉर्वे के लोग नॉर्वेजियन बोलते हैं, डेनमार्क के लोग डैनीश बोलते हैं, जर्मन के लोग जर्मन बोलते हैं, फ्रांस के लोग फ्रैंच बोलते है,बॉल्टिक देशौं के लोग बॉल्टिक भाषा बोलते हैं, रशियन रुसी बोलते हैं,इटॅलियन इटली और स्पॅनिश स्पेन और पुर्तगाली पुर्तगाली बोलते हैं और लगभग, ये सभी देश तरक्की कर रहे हैं. तो मेरा मतलब यह है की हमें भी हिन्दी ही बोलनी चाहिए भारत में.
जब कभी मे 4-5 साल मे एक दो हफ्ते के लिए भारत आता हूँ ,तो मुझे बड़ा अचंभा होता हे की वहां अब लोग सिर्फ़ अँग्रेज़ी बोल रहे हैं और हिन्दी बोलने में उन्हें कुछ झिझक सी महसूस होती है.मेरी प्रार्थना है की हिन्दी बोलो क्योंकि वो हमारी मातृबोली है फिर अँग्रेज़ी आदि भाषा भी बोलो,वह कोई गंदी बात नहीं हे,परंतु देश की तरक्की अपनी भाषा बोलने से होगी और मेरा सुझाव हे की हर हिन्दुस्तानी बच्चा-बच्ची कम से कम 12 कक्षा तक विद्यालयों में ज्ञान ले. ज्ञान अपनी भाषा मे होना बहुत ज़रुरी हे.
अच्छा तो आपके हृदय मे बैठे उस परमात्मा को मेरा प्रणाम और आप सब को मेरा स्नेह भरा आशीष. स्वामीजी गिरिमहारज़ फ्रॉम केदारनाथ उत्तराखंड.
स्वामी जी की तरह ही कुछ और लोग हमारे द्वारे आकर अपने विचारों से परिचित कराते हैं. जैसे गब्बर सिंह के ख़त पर दनदनाती टिप्पणीयां पर शोले के कई किरदार अपनी छाप छोड़ गये.कालिया जी आये और बोले
कालिया (जो पहले नमक खाता था)
शिव कुमार जी ( देखिये हम लोग कितने सुधर गए हैं. अब लोगों के नाम के साथ जी लगाने लगे हैं) ने पुराणिक जी की पोस्ट पर मेरी हाजिरी भूल से लगा दी. मैं यह हलफनामा देता हूँ कि मैंने पुराणिक जी की पोस्ट पर कोई कमेंट नहीं किया. इसलिए यहाँ कमेंट लिख रहा हूँ.
सरदार की हालत बिल्कुल वैसी ही हो गई है जैसा उन्होंने वित्त मंत्री को लिखी गई चिट्ठी में दिया है. हमलोग उनसे सचमुच में बहुत तंग हैं. एक दिन जब हमलोग आटा, चावल, दाल वगैरह नहीं ले आए तो उन्होंने हम तीनों को लाइन में खड़ा कर दिया. फिर मुझसे अपना वही वर्ल्ड फेमस डायलाग बोले कि तेरा क्या होगा कालिया. मैंने कहा सरदार मैंने आपका शेयर खाया था. जानते हैं क्या कहा उन्होंने? बोले शेयर खाया था अब गोली खा. अब दो ही चीज सस्ती बची है. शेयर और गोली. तुम शेयर पहले ही खा चुके हो इसलिए अब गोली खा.
हमसब धन्यवाद देते हैं उन साहित्यकार को जिन्होंने हमारी तकलीफ न केवल जनता के सामने रखी अपितु जनता के दिल में हमारे लिए हमदर्दी जगाई. उड़ती ख़बर सुनी है कि हम डाकुओं के लिए अब स्पेशल ‘डाकू कार्ड’ बनाने पर वित्त मंत्री राजी हो गए हैं. इन कार्ड के जरिये हमें अब सस्ता चावल, गेंहू, दाल, आलू, प्याज वगैरह मिल जायेगा.
यहाँ केवल एक ही लोचा है, हम लोग चाहते हैं कि हमें गोली, बंदूक, ए के ४७ वगैरह भी इसी कार्ड के जरिये सस्ते में मिले. अभी तो सरकार हमारी बातें मानने से इनकार कर रही है लेकिन हमें आशा है कि एक-दो मीटिंग के बाद मान जायेगी. हमने सरकार को भरोसा दिला दिया है कि अगले चुनाव तक डाकुओं की आवादी में करीब चालीस प्रतिशत की बढोतरी की उम्मीद है. नेता लोग इस बात से खुश हैं कि उन्हें एक नया वोट बैंक मिलेगा. और नए नेता भी.
पुनश्च:
हरी चचा प्रणाम.
ये चरित्र देश की घटनाओं से तो परिचित हैं ही मेरी पोस्ट भी पढते हैं. जैसे गब्बर सिंह के वालिद साहब हरि सिंह ने उसी पोस्ट पर कहा.
हरी सिंह
काकेश जी,
आपने हाल ही में शंका व्यक्त की थी कि साहित्य क्रांति लाने में सक्षम है या नहीं. मेरा व्यक्तिगत अनुभव कहता है कि निश्चित तौर पर साहित्य क्रांति लाने में सक्षम है. और मेरे जीवन में इस क्रांति के लिए मैं आलोक पुराणिक जी को और उनके साहित्य को धन्यवाद देता हूँ.
देखिये न, मैंने उनकी पोस्ट पर टिपण्णी लिखते हुए अपने पुत्र गब्बर से डाक द्वारा रुपये भेजने के लिए कहा था. आज ही मुझे पन्द्रह हजार का मनीआर्डर मिला है. मेरे जीवन में इस क्रांति के लिए मैं पूरा का पूरा श्रेय आलोक पुराणिक जी को देता हूँ. गाँव के बनिए का उधार चुकाने के बाद अगर कुछ पैसा बच गया तो मैं इंस्टालमेंट पर एक कंप्यूटर लूंगा. मैंने निश्चय किया है कि अब मैं ख़ुद साहित्य का सृजन करूंगा. मुझे आशा ही नहीं पूर्ण विश्वास है कि मैं अपना एक ब्लॉग बनाऊँगा जिसका नाम होगा ‘लूट-पाट’.
अलोक पुराणिक जी के ब्लॉग पर मैंने कमेंट किया ही था. आपके ब्लॉग पर इसलिए कर रहा हूँ जिससे आप भी मेरे ब्लॉग ‘लूट-पाट’ पर आयें और कमेंट करें.
हरी सिंह
गब्बर सिंह के वालिद
हरी सिंह की टिप्पणी पर नीरज जी ने गब्बर के अड्डे से गब्बर और सांभा की कुछ अंतरंग बातें बतायीं.
neeraj
जब से हरी सिंह जी की टिप्पणी पोस्ट पर आयी तब से क्या हुआ रामगढ के पास के गब्बर के अड्डे पर सुनिए:
गब्बर : “यहाँ से पचास पचास कोस दूर जब कोई बच्चा रोता था तो उसकी माँ कहती थी की बेटा सो जा नहीं तो गब्बर आ जाएगा….और ये हमारा बाप हरी सिंह हमारा नाम पूरा मिटटी में मिला दिए हैं….अरे क्या जरूरत थी उनको टिपियाने की? और सबको बताने की, की उनकी माली हालत ख़राब है… ई का नाम है हाँ…अलोक पुराणिक का ब्लॉग पढने का जुगाड़ कर लिए वो और नमक का जुगाड़ नहीं कर पाए ..धिक्कार है…. इसकी सज़ा जरूर मिलेगी..बराबर मिलेगी…अरे ओ साम्भा जरा बता तो सज़ा किसको दें? अपने बाप को की उस बनिए को या आलोक पुराणिक को?
साम्भा: सरकार अभी हम मोबाइल पे एस एम् एस पोल ले के बता देते हैं…आज कल इस धंधे में खूब कमाई है सरकार. जनता बिल्कुल तैयार ही रहती है. होली तक का टाइम देते हैं सरकार…हरी सिंह के लिए एच , बनिए के लिए बी और आलोक पुराणिक के लिए ऐ टाइप करें अपना नाम लिखें और ४२०४२०४२०० पर भेज दें.
(आप क्या पढ़ रहे हैं? उठाइये अपना मोबाइल और शुरू हो जाईये ….)
अभी हाल ही कि पोस्ट लड़ाई खतम हो गयी क्या? पर हरी सिंह जी फिर आये और बोले.
हरी सिंह (आशा है अब बताने की जरूरत नहीं कि मैं गब्बर का वालिद हूँ) |
एक दम ठीक कहा है जी. बिना लड़ाई के सब सूना-सूना लगता है. देखिये न, मेरे पुत्र गब्बर ने अगर बलदेव ठाकुर के दोनों पुत्रों को नहीं मारा होता तो आगे चलकर दोनों जायदाद वगैरह के लिए लड़ते. मेरा गब्बर बलदेव ठाकुर से लड़ाई नहीं करता तो आपको शोले पसंद आती क्या? नहीं न. आजकल तो बिना लड़ाई के क्रिकेट जैसा मनोरंजक खेल भी नहीं चलता जी तो ये नीरस जीवन कैसे चलेगा. और ब्लागिंग तो एक दम्मे नहीं चलेगी.
पुनश्च:
जैसा की मैंने आपको बताया था, मैंने इन्स्टालमेन्ट पर एक कंप्यूटर खरीद लिया है. अभी तक ब्लॉग तो नहीं बना सका लेकिन एक-दो दिन में ही ये काम भी कर डालूँगा. गब्बर ने फिर दस हज़ार भेजा था. जीवन अब कुछ ठीक लग रहा है तो सोच रहा हूँ कि ब्लागिंग भी कर ही डालूँ. बोरियत से छुटकारा मिलेगा. एक बार ब्लागिंग शुरू कर ली तो फिर लड़ाई वगैरह से आपलोगों को कृतज्ञ भी करता ही रहूँगा.
दुविधा केवल एक बात की है. कहीं ऐसा न हो कि मेरे ब्लॉग के समर्थन में रामगढ के नौजवान सड़क पर उतर आयें और धीरे-धीरे मेरे समर्थन की आगा चारों तरफ़ फ़ैल जाए. लेकिन छोटी-मोटी लड़ाइयां तो करता ही रहूँगा जी. आख़िर बोरियत से छुटकारा पाने का इससे अच्छा रास्ता नहीं है.
हरी सिंह
आशा है अब रामगढ़ के लोग भी पोस्ट पढ़ेंगे और टिप्पणी देंगे.
हा हा!!! यह टिप्पणी संकलन पढ़ना भी बहुत आनन्द दायक रहता है. जारी रखें. 🙂
शानदार संकलन!
काकेश जी,
बहुत खूब है आपकी टिपण्णी चर्चा. हरी सिंह जी और कालिया जी (देखिए हम भी कितने शालीन हो गए है जो इन लोगों के नाम के साथ जी लगा रहे हैं. ये शायद लड़ाई ख़त्म होने का नतीजा है.) की टिपण्णी गजब की है.
इमाम साहब (अहमद के वालिद)
काकेश जी,
आज बसन्ती ने पढ़कर बताया तो पता चला कि हरी सिंह, कालिया और सांभा तक आजकल ब्लॉग पर कमेंट कर रहे हैं. सुनकर लगा कि आज नमाज अदा करने जाऊंगा तो उस अल्लाह से पूछूंगा कि अहमद के साथ-साथ मुझे दो चार बेटे और दिए होते तो मुझे बाकी के कामों से निजात मिलती और मैं भी कमेंट वगैरह दे पाता.
दिखाई तो देता नहीं इसलिए आज ही बसन्ती से एक ब्रेल का कीबोर्ड मंगवाया तो ये कमेंट दे पा रहा हूँ. अहमद के मामू का ख़त आता था तो बसन्ती पढ़कर सुना देती थी. लेकिन कमेंट करने के लिए उसके ऊपर भरोसा तो नहीं कर सकता. देखेंगे कि मैं उसे कमेंट डिकटेट कर रहा हूँ और वह मेरा कमेंट नहीं लिखकर बीरू को प्रेमपत्र लिख रही है.
कुछ बड़े ब्लॉगर के पोस्ट बसन्ती ने पढ़कर सुनाया तो लगा कि ये ब्लागिंग तो बड़ी मजेदार चीज है. और लड़ाए वगैरह होती रहे तो मजा दुगुना हो जाता है. इतने सालों तक नीरस जीवन जीने के बाद लग रहा है कि अब जीवन बढ़िया बीतेगा. दो ही काम करूंगा अब. नमाज अदा करूंगा और ब्लॉग पोस्ट पर कमेंट करूंगा.
ये सुनकर खुशी हुई कि गब्बर ने हरी भाई को पैसे भेजे थे. काकेश जी, अगर हरी सिंह अपना ब्लॉग का लिंक आपको भेजे तो बसन्ती के मेल अड्रेस पर एक मेल भेज दीजियेगा. उसका ब्लॉग पढ़ें में मज़ा आएगा.
पुनश्च:
कालिया, इस उम्र में तो एके-४७ की बातें करना बंद करो बरखुरदार. कभी तो एके-४७ को भूलकर एके हंगल की बात करो.
. आज ही मुझे पन्द्रह हजार का मनीआर्डर मिला है. मेरे जीवन में इस क्रांति के लिए मैं पूरा का पूरा श्रेय आलोक पुराणिक जी को देता हूं।
-किस उल्लू के पठ्ठे को श्रेय चाहिए।
मुझे उन पंद्रह हजार के क्रांतिकारी मनीआर्डर से सिर्फ पांच हजार रुपया भिजवायें।
आलोक पुराणिक
थैंक्स सब्जेक्ट टू रिसिप्ट आफ 5000 रुपये
ये पैसे का क्या चक्कर है जी क्या आलोक जी को पैसे मिले..?,बस ये बतादे हम तो खुद जाकर वसूल लायेगे जी..?
Wow! Great thikginn! JK