मेरी व्यस्तता कम होने का नाम नहीं ले रही है. ज्ञान जी ने तो पहले ही इन कारणों से लिखना कम कर दिया. हमारे रोल मॉडल तो ज्ञान जी ही हैं तो जब उन्होने लिखना कम किया तो लाज़मी है हमको भी करना ही पड़ेगा.तो अभी नियमित लिखना संभव नहीं हो पायेगा. हाँ चिट्ठे पढ़्ना जारी रहेगा लेकिन हर जगह टिपियाना संभव नहीं होगा. मेरे ब्लॉग में आज का दिन व्यंग्य का है. तो चलिये आपको परसाई जी का एक व्यंग्य पढ़वाते हैं.
किसी देश की संसद में एक दिन बड़ी हलचल मची। हलचल का कारण कोई राजनीतिक समस्या नहीं थी, बल्कि यह था कि एक मंत्री का अचानक मुण्डन हो गया था। कल तक उनके सिर पर लंबे घुंघराले बाल थे, मगर रात में उनका अचानक मुण्डन हो गया था। सदस्यों में कानाफूसी हो रही थी कि इन्हें क्या हो गया है। अटकलें लगने लगीं। किसी ने कहा- शायद सिर में जूं हो गयी हों। दूसरे ने कहा- शायद दिमाग में विचार भरने के लिए बालों का पर्दा अलग कर दिया हो। किसी और ने कहा- शायद इनके परिवार में किसी की मौत हो गयी। पर वे पहले की तरह प्रसन्न लग रहे थे। आखिर एक सदस्य ने पूछा- अध्यक्ष महोदय! क्या मैं जान सकता हूं कि माननीय मंत्री महोदय के परिवार में क्या किसी की मृत्यु हो गयी है?
मंत्री ने जवाब दिया- नहीं। सदस्यों ने अटकल लगायी कि कहीं उन लोगों ने ही तो मंत्री का मुण्डन नहीं कर दिया, जिनके खिलाफ वे बिल पेश करने का इरादा कर रहे थे। एक सदस्य ने पूछा- अध्यक्ष महोदय! क्या माननीय मंत्री को मालूम है कि उनका मुण्डन हो गया है? यदि हां, तो क्या वे बतायेंगे कि उनका मुण्डन किसने कर दिया है?
मंत्री ने संजीदगी से जवाब दिया- मैं नहीं कह सकता कि मेरा मुण्डन हुआ है या नहीं!
कई सदस्य चिल्लाये- हुआ है! सबको दिख रहा है। मंत्री ने कहा- सबको दिखने से कुछ नहीं होता। सरकार को दिखना चाहिए। सरकार इस बात की जांच करेगी कि मेरा मुण्डन हुआ है या नहीं। एक सदस्य ने कहा- इसकी जांच अभी हो सकती है। मंत्री महोदय अपना हाथ सिर पर फेरकर देख लें। मंत्री ने जवाब दिया- मैं अपना हाथ सिर पर फेरकर हर्गिज नहीं देखूंगा। सरकार इस मामले में जल्दबाजी नहीं करती। मगर मैं वायदा करता हूं कि मेरी सरकार इस बात की विस्तृत जांच करवाकर सारे तथ्य सदन के सामने पेश करेगी। सदस्य चिल्लाये- इसकी जांच की क्या जरूरत है? सिर आपका है और हाथ भी आपके हैं। अपने ही हाथ को सिर पर फेरने में मंत्री महोदय को क्या आपत्ति है?
मंत्री बोले- मैं सदस्यों से सहमत हूं कि सिर मेरा है और हाथ भी मेरे हैं। मगर हमारे हाथ परंपराओं और नीतियों से बंधे हैं। मैं अपने सिर पर हाथ फेरने के लिए स्वतंत्र नहीं हूं। सरकार की एक नियमित कार्यप्रणाली होती है। विरोधी सदस्यों के दबाव में आकर मैं उस प्रणाली को भंग नहीं कर सकता। मैं सदन में इस संबंध में एक वक्तव्य दूंगा।
शाम को मंत्री महोदय ने सदन में वक्तव्य दिया-अध्यक्ष महोदय! सदन में ये प्रश्न उठाया गया कि मेरा मुण्डन हुआ है या नहीं? यदि हुआ है तो किसने किया है? ये प्रश्न बहुत जटिल हैं। और इस पर सरकार जल्दबाजी में कोई निर्णय नहीं दे सकती। मैं नहीं कह सकता कि मेरा मुण्डन हुआ है या नहीं। जब तक जांच पूरी न हो जाए, सरकार इस संबंध में कुछ नहीं कह सकती। हमारी सरकार तीन व्यक्तियों की एक जांच समिति नियुक्त करती है, जो इस बात की जांच करेगी। जांच समिति की रिपोर्ट मैं सदन में पेश करूंगा। सदस्यों ने कहा- यह मामला कुतुब मीनार का नहीं जो सदियों जांच के लिए खड़ी रहेगी। यह आपके बालों का मामला है, जो बढ़ते और कटने रहते हैं। इसका निर्णय तुरंत होना चाहिए। मंत्री ने जवाब दिया- कुतुब मीनार से हमारे बालों की तुलना करके उनका अपमान करने का अधिकार सदस्यों को नहीं है। जहां तक मूल समस्या का संबंध है, सरकार जांच के पहले कुछ नहीं कह सकती। जांच समिति सालों जांच करती रही। इधर मंत्री के सिर पर बाला बढ़ते रहे। एक दिन मंत्री ने जांच समिति की रिपोर्ट सदन के सामने रख दी। जांच समिति का निर्णय था कि मंत्री का मुण्डन नहीं हुआ था। सत्ताधारी दल के सदस्यों ने इसका स्वागत हर्ष-ध्वनि से किया। सदन के दूसरे भाग से ‘शर्म-शर्म’ की आवाजें उठीं। एतराज उठे- यह एकदम झूठ है। मंत्री का मुण्डन हुआ था। मंत्री मुस्कुराते हुए उठे और बोले- यह आपका ख्याल हो सकता है। मगर प्रमाण तो चाहिए। आज भी अगर आप प्रमाण दे दें तो मैं आपकी बात मान लेता हूं। ऐसा कहकर उन्होंने अपने घुंघराले बालों पर हाथ फेरा और सदन दूसरे मसले सुलझाने में व्यस्त हो गया।
: हरिशंकर परसाई
रचना ने समा बांध दिया, जल्दी अपनी व्यवस्ता निपटाओ, दाज्यू तुम्हारी टिप्पणी बिना हमारा ब्लोग सूना सूना पड़ा है 🙁
अरे जनाब, जल्द काम निपटायें और यहाँ जारी रहें. टिप्पणी नहीं करोगे तो कैसे चलेगा यह जगत..सरकार की एक नियमित कार्यप्रणाली होती है।
मजा आ गया परसाई जी की यह रचना बहुत समय बाद पुनः पढ़कर…ये कभी भी पुरानी नहीं होती.
आभार इस पेशकश का, मित्र. 🙂
सुन्दर! शानदार रचना परसाईजी की। जारी रहें भैये।
काकेश जी,
व्यस्त हैं. व्यस्त रहना भी चाहिए. लेकिन टिपण्णी न करना तो ठीक नहीं है. आप ‘व्यस्त टिपण्णी’ ही करें, लेकिन करें जरूर. अगर नहीं करेंगे तो हम जैसों का तो मुंडन हो जायेगा…..:-)
और परसाई जी का व्यंग पोस्ट करने के लिए धन्यवाद.
भई ऐसा है, कि हम कतने भी व्यस्त रहें पहुंच ही जाते हैं टिपियाने, टिपियाओ धर्म का पालन करना अति आवश्यक जो है 😉
ऊ का है न कि बिन टिप्पणी सब सून………………;)
परसाई जी को पढ़वाने के लिए शुक्रिया!
बढ़िया व्यंग्य पढ़वाने के लिए धन्यवाद । यह टिप्पणी धर्म की बात से हम सहमत हैं । सभी पाठकों व विशेषकर टिप्पणीकारों की बात पर ध्यान दिया जाए ।
घुघूती बासूती