नौ-दो-ग्यारह रहने वाले यदि सुबह के भूले की तरह शाम को घर आकर “अनुगूंज बाइस” करें तो क्या हो ? किसी नये ब्लॉगर ने चुपके से मेरे कान में सवाल पूछा. अब हम भी कोई पुराने ब्लॉगर तो थे नहीं कि अपनी फुरसत का उपयोग,कुछ नया ना लिख पाने की हताशा में, अपने पुराने संस्मरणों को लिखने के लिये करने लगते 🙂 और ना ही इतने नये कि आज से 90 साल बाद के हिन्दुस्तान की झलक ही दिखला देते. तो पहले तो हम चुप ही रहे लेकिन जब एक नयी नयी ब्लॉगरनि (महिला ब्लॉगर) ने यही सवाल किया तो हमें भी अपना ब्लॉगज्ञान बधारने कि खुजली सी महसूस हुई. हमने उन दोनों को समझाया और कहा देखिये जब वन डे के खिलाड़ी को टैस्ट में खिलाया जाय तो उसे थोड़ी याद रहेगा कि वो किस इनिंग्स में खेल रहा है ..वो तो केवल ओवरों के आंकड़े रखता है या रन रेट के;वो भी पूरे डीटेल में…. उसी तरह जब टेलीग्राम लिखने वाला चिट्ठी लिखने लगे वो भी ई-मेल के जमाने में तो ऎसी गलतियां होना लाजमी है ना..
दोनों के चेहरे पर मुस्कुराहट के सवाल थे और जानने की जिज्ञासा..पर हम चालू थे सत्यनाराय़ण कथा बाचने वाले पंडित जी की तरह.. अब हिन्दुस्तान अमरीका बने इसमें किस को क्या एतराज हो सकता है आज नहीं तो कल बन ही जायेगा शायद 90 साल का इंतजार भी ना करना पड़े पर तब अमरीका क्या होगा ?..इस पर तो कोई चर्चा ही नहीं है… अब हम हिन्दुस्तानी बड़े आशावादी हैं जब कोई कहता है “हिन्दुस्तान अमरीका बन जाये” तो यह मान ही लेते हैं कि इसका मतलब “अमरीका हिन्दुस्तान हो जायेगा”.. हो सकता है जब तक हिन्दुस्तान अमरीका बने तक अमरीका “सुपर-अमरीका” बन जाये… 40 रुपये का डालर 400 रुपये का हो जाये .. लेकिन ऎसा मानना हमारे देश के प्रति अन्याय होगा वो भी साठोत्तर स्वातंत्र्य वाले वर्ष में.. इसलिये हम अपनी पसंद के हिसाब से जो भी हो माने जाते हैं….माने भी क्यों ना जब अनुगुंज 22 दूसरी बार होगी तो ऎसा ही तो होगा ना … संजय भाई भी चुप हैं जो पहले भी अनुगूंज 22 करवा चुके हैं…तरुण जी भी अमरीका में अपने कंट्रोल पैनल के पेंच खुलवा रहे;होंगे समीर जी के स्क्रूड्राइवर से कि ये क्या हो गया 23 के बाद 22 कैसे आ गया..खैर ये तो अक्षरग्राम चौपाल के पंच जाने ..हम तो अभी पांच जबर्दस्त पंच तलाश रहे है कि इस बार कि अनुगूंज (नम्बर में क्या जी..) में क्या लिखें…
गहन विचार करते करते;हम गहन निद्रा में विलीन हो गये,जैसे संसद में संसद सदस्य हो जाते हैं…और देखते क्या हैं कि हिन्दुस्तान सचमुच अमरीका हो गया… आपको ये शायद बहुत खुशी की बात लग रही हो लेकिन हम बहुत दुखी हैं… आई. टी. के आदमी हैं ना..लास्ट फ्राइडे को ही हमको पिंक स्लिप पकड़ा दी गयी… यानि हम को नौकरी से निकाल दिया गया..क्योकि जो काम हम करते थे वो सारा काम अब एक छोटे से अफ्रीकन देश जिंगाड़ा मे आउटसोर्स कर दिया गया है… जिस काम के हम को महीने में 20 हजार मिलते थे उसी काम को जिंगाडू 500 रुपये महीने में करने के लिये तैयार है ..क्योकि वहां की मुद्रा जुगाड़ी एक रुपये में 40 के आसपास मिलती है …
बहुत से जिंगाड़ू आजकल भारत में भी आ रहे हैं… सुना गया है कि जिंगाड़ा में भारत का वीजा लेने के लिये लाइने लगती हैं…भारत का बिहार राज्य भी आजकल तरक्की पर है क्योंकि अधिकतर जिंगाड़ू बिहार में बस रहे हैं… उन्हे बिहार में अपने देश की जैसी अनुभुति होती है…जिंगाड़ूओं को आकर्षित करने के लिये भारत सरकार ने भी कई नयी नयी योजनाऎं बनायी हैं..वीजा की संख्या भी इस साल बढ़ायी जा रही है…
भारत की युनिवर्सिटियों मे भी जिंगाड़ू उच्च शिक्षा ग्रहण करने आ रहे हैं ..पिछ्ले “पूस सैसन” में 2 लाख जिंगाड़ूओं के भारत आने का समाचार है ..ज्ञात रहे भारत मे अभी युनिवर्सिटी मे चार सैसन होते है .. जेठ सैसन,सावन सैसन,पूस सैसन और बसंत सैसन ..सरकार एक नया सैसन भादो सैसन चालू करवाने पर भी विचार कर रही है…
पिछले दिनों जब हमारा कंपूटरवा खराब हुआ और हमने “सहायता सेवा” में फोन किया तो एक महिला ने कहा “कहिये श्रीमान जी मैं रजनी आप की किया सहायिता कर सकती हूँ… “..और भी बहुत कुछ वो बोलीं….उनकी हिन्दी समझने के लिये मुझे शब्दकोष का सहारा लेना पड़ा…. मैं उसे अपने कंपूटर की समस्या बता रहा था वो शायद कहीं से देख के मेरे ब्लड प्रेसर के आंकड़े बता रही थी…. किसी ने बताया कि आजकल सारी सहायता सेवा जिंग़ाड़ा से संचालित होती हैं… जिंगाड़ा गये कुछ लोगों ने बताया कि वहां गली गली में हिन्दी सिखाने वाले इंस्टीट्यूट खुल गये हैं… जहां अलग अलग ऎक्सैंट में हिन्दी सिखायी जाते है ..जैसे भोजपुरी हिन्दी , मराठी हिन्दी , बंगाली हिन्दी, पंजाबी हिन्दी आदि…
भारत के प्रमुख पेय चाय ,लस्सी और सत्तू आजकल जिंगाड़ा में बहुत प्रसिद्ध हैं …वहां हर पार्टी में लोग कत्थक और भरतनाट्यम की धुन पर नाचते हैं और इन पेयों का आनंद लेते हैं… इन पेयों की रेसिपी भी वहां के लोग अपने अपने ब्लॉग मे बता रहे हैं… भारत में आने वाले जिंगाड़ू भी अब भारत की फ्लाइट में बैठते ही चाय या सत्तू की मांग करने लगते हैं.. हाँलाकि उनकी पत्नियों थोड़ी चितित भी रहती हैं और उन्हे मना भी करती हैं पर जिंगाड़ी पुरुष मानते थोड़े हैं… उसी तरह से बीड़ी भी जिंगाड़ा में बहुत फेमस है ..भारत से भी कई चीजों का निर्यात पिछ्ले कुछ सालों में बढ़ा है ..इनमे ‘बिपाशा छाप बीड़ी’ और ‘राखी सावंत छाप यूज मी डस्टबिन’ प्रमुख हैं….
भारत के कई त्यौहार भी भारत से ज्यादा जिंगाड़ा में मनाये जाते हैं… दिवाली , होली , ईद सभी जिंगाड़ा में लोकप्रिय हुए हैं..यहां तक कि वहां के लोग जिंगाड़ियन त्योहार भले ही भूल गये हों लेकिन भारतीय त्योहारों को पूरे उत्साह से मनाते हैं… जनम दिन पर दिया जलाके मिठाई भी बांटते हैं… ये और बात है कि भारत में अधिकतर लोग अभी भी मोमबत्ती बुझा के केक काट रहे हैं…
उधर जिंगाड़ा प्रगति पर है इधर हम अपनी नौकरी को रो रहे हैं..पहले ही आरक्षण की मार से नौकरियों का अकाल था अब जिंगाडूओं के आने से कंपटीशन और बढ़ गया है…. ये लोग इतने सस्ते में सारे काम कर डालते हैं कि भारतीयों को कोई पूछ्ता ही नहीं है… हम भी परेशान हैं सोचते हैं जितने रुपये हैं उनसे जिंगाड़ा में कोई बढिया सा फार्म हाउस खरीदें और वहीं बस जायें…. काश हिन्दुस्तान अमरीका ना होकर हिन्दुस्तान ही रहता….
यही सोचते सोचते आंख खुल गयी…उफ नींद भी ना …!! तब ही आती है जब इतनी महत्वपूर्ण चीज सोच रहे होते हैं….अब क्या करें??? कब सोचें पंच लाइन अनूगूंज के लिये और आज तो पंच अगस्त भी हो गया जी..यानि लास्ट डेट..चलो छोड़ो अब अगली अनूगूंज में ही लिखेंगे…. उसका जो भी नम्बर हो ..हम अपना नम्बर तो लगा ही देंगे….
बढ़िया !!झन्नाटेदार!!
धांसू च फांसू। जी कहां थे, अमेरिका में, जो इत्ती जोरदार कल्पनाएं लाये हैं।
स्मार्ट निवेश बोले तो आलोक पुराणिक हैं।
बहुत मौज ले लिये। 🙂
खूब मौज ली, पंच लोग 23 के बात 22 कैसे आया, इसका राज खोलें।
हे हे, सही है। 🙂
बहुत सही.
–उधर सुना है जिंगाड़ा के ब्लॉगरों ने अनुगूँज का आयोजन किया है कि यदि जिंगाड़ा भारत हो जाये….धड़ाधड़ प्रविष्टियाँ छापी जा रही हैं. 🙂
हे हे हे
सही है जब अमरीका बने के ख्बाब लेंगे तो ‘साम्राज्य’ स्थापना के लिए अफगानिस्तान व इराक (व भारत) भी खोजने ही होंगे- जिंगााड़ा ही सही।