पिछ्ले अंक में हमने होली के तीन प्रमुख रूपों की चर्चा की थी. आज हम उसी में से एक रूप खड़ी होली की चर्चा ‘छालड़ी’ के संबंध में करेंगे.जिस दिन देश, दुनिया के अन्य भागों में होली मनायी जाती है उस दिन कुमांऊ में मुख्य होली होती है जिसे “छरड़ी” या “छालड़ी” कहते हैं. यह फाल्गुन मास की पूर्णिमा को मनायी जाती है. इस दिन पानी और रंगों से होली खेली जाती है.
सुबह होते ही घरों में इस होली की तैयारियाँ शुरु हो जाती हैं.एक थाली में अबीर गुलाल रखा जाता है.घर के सदस्यों के लिये आमतौर पर पूरी और आलू के गुटके (आलू की सूखी सब्जी) बनाये जाते हैं. होली में अबीर लगाने वाले लोगों के लिये कुछ चिप्स,पापड़ तले जाते हैं. कुछ लोग आलू,चने या छोले,पकोड़ी आदि भी बनाते हैं. भांग की पकोड़ी भी कुछ जगह बनायी जाती है. पूरी-आलू खाने के बाद घर के पुरुष पहले अबीर लगाने के लिये निकलने की तैयारी करते हैं. अपने होली के कपड़े पहनते हैं. रुमाल की एक पोटली में सूखा अबीर गुलाल रखते हैं. आजकल रुमाल की जगह पॉलीथीन के पैकेट का इस्तेमाल भी लोग करते हैं. जो लोग गीला रंग लगाना चाहते हैं वो एक रुमाल में कोई गाढ़ा रंग रख कर उसे हल्के पानी से भिगा देते हैं और उसे भी एक पॉलीथीन के पैकेट में रख अपनी जेब में डाल लेते हैं.जब भी किसी को गीला रंग लगाना हो तो रुमाल को थोड़ा गीला किया और चुपड़ दिया मुंह में रंग.
होली की पोशाक पहनने के बाद सबसे पहले द्य्प्ताथान (घर का मंदिर) में भगवान को अबीर-गुलाल लगाया जाता है. फिर घर के सभी सदस्य एक दूसरे को अबीर-गुलाल का टीका लगाते हैं. अपने से बड़े लोगों को पांव छूके या हाथ जोड़ कर नमस्कार किया जाता है. समवयस्क पुरुष और महिलाएं एक दूसरे के गले मिलते हैं.उसके बाद घर के पुरुष अपने अपने दोस्तों के साथ पूरे गांव, मोहल्ले या अपने नाते-रिश्तेदारों के यहाँ अबीर का टीका करने के लिये निकलते हैं.
सुबह दस – साढ़े दस बजे तक सब गांव या मोहल्ले के प्रमुख शिव मन्दिर पर एकत्र होते हैं.यह शिव मंदिर वही होता है जहां सामुहिक चीर बांधी गयी थी. ‘छलड़ी’ के पहले दिन इसी स्थान पर चीर दहन होता है.”छलड़ी’ के दिन होल्यार सबसे पहले चीर दहन की राख का टीका करते हैं और फिर कोई ढोलक पकड़ता है, कोई मजीरा, कोई झांझर,तो कोई ढपली. होली खेलने वालों को होल्यार कहा जाता है. यह सभी होल्यार शिवमंदिर में शिव की होली से शुरुआत करते हैं.
” अरे हाँ हाँ जी शंभो तुम क्यों ना खेलो होरी लला,
अच्छा हाँ हाँ जी शंभो तुम क्यों ना खेलो होरी लला.
ब्रह्मा जी खेलें , बिष्णु जी खेलें. खेलें गणपति देव
शंभो तुम क्यों ना खेलो होरी लला.
हाँ हाँ जी शंभो तुम क्यों ना खेलो होरी लला. ”
फिर अन्य होलियां गायी जाती हैं जैसे.
“अरे अंबारी एक जोगी आया लाल झुमैला वाला वे
ओहो लाल झुमैला वाला वे ”
होल्यार अपने जुलूस का एक मुखिया चुन लेते हैं जो पूरी होली को नियंत्रित करता है. इसके बाद गांव/मोहल्ले के हर घर में होल्यार जाते हैं जहाँ उनके लिये पहले से दरियां बिछायी गयी होती हैं.सभी होल्यार पहले बैठ के होली गाते हैं. घर के लोग होल्यारों का स्वागत करते हैं. घर का मुखिया सभी होल्यारों को अबीर का टीका लगाता है. उनका स्वागत चिप्स,पापड़,कटे हुए फल, गुझिया, सौप,सुपारी, गरी आदि से किया जाता है कुछ लोग चाय भी पिलाते हैं. घर का मुखिया जुलूस के मुखिया को कुछ पैसे भी देता है. हर घर से कुछ कुछ पैसे लिये जाते हैं. इन पैसों से या तो सामुहिक भंडारा होता है या पूरे मोहल्ले में मिठाई बांटी जाती है या फिर सामुहिक महत्व की चीजें जैसे ढोलक,मजीरा आदि खरीद लिया जाता है.
अंत में होल्यार दरी से उठ कर खड़े होकर होली गाते हैं…घर के सदस्य घर के खिड़कियों जिन्हे पहाड़ में छाजा कहा जाता है उससे रंग वाला पानी डालते हैं. तब बढ़े बूढ़े आगे पीछे हो जाते हैं और युवा लोग मोर्चा संभालते हैं और भीगते भीगते चिढ़ाने के लिये होली गाते रहते हैं.इसमें थोड़ी अश्लीलता का पुट भी कभी कभी आ जाता है जैसे
“कहो तो यहीं रम जायें गोरी नैना तुम्हारे रसा भरे,
कहो तो यहीं रम जायें गोरी नैना तुम्हारे रसा भरे
उलटि पलट करि जायें गोरी नैना तुम्हारे रसा भरे
कहो तो यहीं रम जायें गोरी तबले तुम्हारे कसे हुए “
या फिर
“सिप्पय्या आंख मार गयो रात मोरे सय्यां ,
सिप्पय्या आंख मार गयो रात मोरे सय्यां “
जबहि सिपय्या ने ….. भरतपुर लुट गयो रात मोरे सय्यां “
कुछ दिनों पहले इस गाने को किसी फिल्म में भी लिया गया था लेकिन मैने यह गाना फिल्म से बहुत पहले होलियों में सुना व गाया था.
यह सफर आगे जारी रहेगा …अभी कुछ अच्छे गाने आपको सुना दूँ….
सतरंगी रंग बहार , होली खेल रहे नर नारी
कोई लिये हाथ पिचकारी,कोई लिये फसल की डारी
घर घर में धूम मचाय,होली खेल रहे नर नारी
सतरंगी रंग बहार , होली खेल रहे नर नारी
कोई नाच रहा कोई गाये कोई ताल मृदंग बजाये
घर घर में धूम मचाय, होली खेल रहे नर नारी.
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झुकि आयो शहर में ब्यौपारी, झुकि आयो शहर में ब्यौपारी
इस ब्यौपारी को भूख बहुत है,पुरियां पकाय दे नथवाली.
झुकि आयो शहर में ब्यौपारी
इस ब्यौपारी को प्यास बहुत है,पनिया पिलाय दे नथवाली.
झुकि आयो शहर में ब्यौपारी
इस ब्यौपारी को नींद बहुत है,पलेंग बिछाय दे नथवाली.
झुकि आयो शहर में ब्यौपारी
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पिछले भाग की पॉडकास्ट यदि आप सुनना चाहें तो वह भी सुनें. इस पॉडकास्ट के अंत में दो होलियाँ भी गायी गयी हैं जिसका अनुरोध संजू भाई ने किया था.
[इस पॉडकास्ट को mp3 फोर्मेट में डाउनलोड करने के लिये यहाँ क्लिक करें. साइज 4.28 MB]
पिछ्ले अंक में दिल्ली संतनगर बुराडी से खीम सिंह रावत जी ने एक बहुत ही अच्छी होली भेजी थी. वह होली इस प्रकार थी.
प्रभु ने धारो वामन रूप , राजा बली के दुआरे हरी
राजा बली को अरज सुना दो , तेरे दुआरे अतिथि हरी
मांग रे वमणा जो मन ईच्छा , सो मन ईच्छा में देऊं हरीहमको दे राजा तीन पग धरती, काँसे की कुटिया बनाऊं हरी
मांग रे बमणा मांगी नी ज्याण , के करमो को तू हीना हरी
दू पग नापो सकल संसारा , तिसरौ पग को धारो हरी
राजा बलि ने शीश दियो है, शीश गयो पाताल हरीपांचाला देश की द्रोपदी कन्या, कन्या स्वयंबर रचायो हरी
तेल की चासनी रूप की मांछी, खम्बा का टूका पर बांधो हरी
मांछी की आंख जो भेदी जाले, द्रोपदी जीत लिजालो हरी
दुर्योधनज्यू उठी बाण जो मारो, माछी की आंख ना भेदो हरी
द्रौपदी उठी बोल जो मारो , अन्धो पिता को तू चेलो हरी
कर्णज्यू उठी बाण जो मारो, माछी की आंख ना भेदो हरी
द्रौपदी उठी बोल जो मारो , मैत घरौ को तू चेलो हरी
अर्जुनज्यू उठी बाण जो मारो, माछी की आंख को भेदो हरी
अर्जुनज्यू उठें द्रौपदी लै उठी, जयमालै पहनायो हरीपैली शब्द ओमकारा भयो है, पीछे विष्णु अवतार हरी
बिष्णु की नाभी से कमलक फूला, फूला में ब्रह्मा जी बैठे हरी
ब्रह्मा जी ने सृष्टि रची है , तीनों लोक बनायो हरी
पाताल लोक में नाग बसो है , मृत्युलोक में मनुया हरी
स्वर्गालोक में देव बसे हैं , आप बसे बैकुंठ हरी
रावत जी से निवेदन है कि यदि वह पढ़ रहे हैं तो अपना ई-मेल आई डी बतायें जो आई-डी उन्होने पिछ्ली बार छोड़ा था उस पर मेल करने से मेल वापस आ गयी.
इस श्रंखला के अन्य लेख
1. कुमांऊनी होली : अलग रंग अलग ढंग
जारी …………………….
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होली तो यूपी मे भी ऐसी ही होती थी,पर अब कहा वो उडता गुलाल ,कहा वो रंग भरे ड्रम ,जाने कहा चली गई वो होली की तरंग ,बस यादे ,हा यादे रह जाती है जी.
[काकेश ने कहा : अरुण जी यूपी की होली हमने भी बहुत खेली है. आप भी कुछ होली की यादें बांटिये. केवल याद करने से काम नहीं चलेगा जी]
“ कुमांउनी होली or गुड़ ka nam na ho to maja nahi Aata bachpan mai hum boltae thea ki “holi Aaye sahar mai गुड़ Khane ko”
muja yad hai bachpan ke wo din jab hum yahi gate tha or kub gud milta tha thab…………………. Holi Hai……….
[काकेश ने कहा : उमेश जी गुड़ का जिक्र भी आयेगा आगे इसमें. जब महिलाओं की होली की बात करेंगे.आप इस श्रंखला को पढ़ते रहिये.]
kakesh da
kya aap mujhe holi ke geet mp3/wmv format ya kisi bhi anya format mein bhej sakte hain. Mein aapka aabhari rahoonga.
dhanyavaad
Shailendra
[काकेश ने कहा : शैलेन्द्र जी मैं इस श्रंखला से संबंधित सभी गाने एम पी 3 फॉर्मेट में डाउनलोड के लिये उपलब्ध कराता रहुंगा. मेल पर भेजना संभव नहीं हो पायेगा.]
पढ़कर और पॉडकास्ट सुनकर लगा जैसे होली खेल रहे हैं…वाह ही वाह, काकेश जी.
[ काकेश ने कहा : शिव कुमार जी दुर्योधन की होली की प्रतीक्षा है. 🙂 कल परुली ने बहुत मिस किया आपको. आप दुर्योधन के साथ कहाँ थे. ? होली पर तो रामगढ़ वाले भी कुछ कर रहे होंगे पता चले तो बताइयेगा. ]
kakesh ji,
office me hun. kya aapkey audio ke download ka link mil sakta hai. office me aaram se download karkey ghar me khud bhi sununga baki logon ko bhee sunaunga.
[काकेश ने कहा : गंगाधर जी. आपकी बात मान कर शीघ्र ही डाउनलोड का लिंक उपलब्ध करवा रहा हूँ. ]
होली वो चाहे कुमाऊ की हो या यू.पी या बिहार या दिल्ली होली मौज-मस्ती का त्यौहार माना जाता है। हाँ पहले और आज की होली मे फर्क जरुर आ गया है।
काकेश जी आपको होली मुबारक हो।
सही कहा काकेश दा,
चल उड़ जा भंवर, तोको मारेंगे और हो-हो-हो मोहन गिरधारी, ऎसो अनाड़ी चुनर गयो फाड़ी, इन होलियों मे भी कुछ-कुछ अश्लीलता का पुट है।
बहुत-बहुत धन्यवाद……. जय उत्तराखण्ड।
भैया, अश्लील क्या? जो वर्जनायें हैं उनका कोई तो रिलीज होना चाहिये। उत्तरप्रदेश में विवाह के समय गारी गाने का भी वही अभिप्राय है।
प्रसन्नता के निमित्त तो मिलने चाहियें। भले ही कभी वे अश्लीलता की परिधि में पन्हुच जाते हों।
काकेश दा! इस बार होली की फोटो, वीडियो नहीं जुट पाये हैं. लेकिन अगली दफा इनकी कमी नहीं होगी. मैं इस बार खूब सारी फोटो खीचने की सोच रहा हूँ. थोडा बहुत अश्लीलता होली के अंत तक गानों में आने लगती है, लेकिन मैं इसे अश्लीलता नहीं ‘उन्मुक्तता’ मानूंगा. कुल मिला कर तो पहाड की होली में भक्ति संबन्धी गानों का ही बोलबाला रहता है…
आपको और बांकी सभी लोगों को होली की शुभकामनायें….
thankyou very much viry nice holi song Iam serching this song but you are sending thankyou very much . from jeewa
kakesh dajyu, maja aa gaya, aajkal to jidhar jao udhar kumaoni holi ka hi mil reha hai, holi ka collection mene bhi myar pahad me dekha tha, pankaj aur mehtaji ne kaafi holiyan uplabdh karayi hain wahan.
Jahan tak ashlilta ka sawal hai us baat per mai Hem ki baat ka anumodan hi karoonga.
Aapko parivaar samet holi mubarak ho.
waah kakesh bhai waaah….mast yaad aa gayee bhai gaon ki….ek aapne ek hem ne aur uper se fir tarun bhai ne,,,,abto ghar ka keeda katne sa laga hai…thnx a lot
सुन्दर है। शानदार है। धांसू है। होली है।
Wah Kakesh ji bahut maja aa gaya, mujhe pahad me holi khele 25 saal ho gaye he per apke gane sunkar laga jese kal ki bat hai. Holi prem our masti ka parv hae, holi ke geet prem ke abhiwakti ha jo ki Krishn bhagwan ne sikhaye the. Aprwashi pahadiu ke lia apka pryas wusi thandi hawa ki tarh ha jo kabhi bachpan mai bajadio sa aatee thi. dhanyavad, kripya jari rakhye.
Rajendra,
kandivali(E)
Mumbai
apka program bahut achha laga
Kakesh Da Maja aagaya Holi ke Chando ko padkar,
Holi ke panch din bahut hi maje se bitaye jate hai, Raat Ki Baith Holi ho ya Di ki Khari holi,
Khari holi ke liye style chahiye to Bathi holi ke liye sur
holi hae
bhai ji holi ki bHADHI
plzzz I need some kumauni jhoda
like
khol de mata khol bhawani
mero rangilo dever ghar