परुली की शादी के बारे में कोई धारणा नहीं थी. वह तो यह भी नहीं जानती थी कि शादी का मतलब क्या होता है. उसके लिये तो शादी का मतलब सिर्फ इतना था कि शादी के बाद लड़की को घर छोड़ के जाना होता है,पढ़ाई बन्द हो जाती है,साड़ी पहननी पड़ती है और दूसरे घर में जाके घूंघट के अन्दर ही रहना पड़ता है.एक डेढ़ साल बाद एक बच्चा भी हो जाता है. यह कैसे होता है इसके बारे में भी उसे कोई विशेष जानकारी नहीं थी. स्कूल में बड़ी लड़कियां शादी और बच्चे की बातें रस ले लेकर करती. मुँह नीचे कर हँसती पर परुली को कुछ भी पल्ले नहीं पड़ता.
उसके बाबू आज मलगाड़ गांव गये थे पांडे जी से बात पक्की करने. परुली के दिल में जाने कैसे कैसे ख्याल आ रहे थे. वह मन ही मन प्रार्थना कर रही थी कि किसी तरह बात टल जाये और वह अभी शादी करने से बच जाये.लेकिन ऐसा कैसे होगा यह उसे मालूम नहीं था. स्कूल में भी आज वह खोयी खोयी से रही.शाम को बाबू आये तो बहुत खुश थे.चाख (पहला कमरा) में बैठ कर घर वालों को पूरी बात रहे थे.हर बात में पांडे ज्यू की तारीफ..
“पांडे ज्यू भल मैस (अच्छे आदमी) ठहरे. भौत बढिया घर हुआ हो वह. घर में गोरु,बल्द सब ही हुए. जमीन भी भौत ठहरी. कित्ते नाली तो बता रहे थे. पांडे ज्यू आदमी भी अच्छे हुए.गोपाल भी अच्छा ही हुआ. कोई ऐब नहीं ठहरा उसे. दिल्ली जैसी जगह में ठहरा फिर भी कितना सौम्य. शिबौ-शिब भौत काम करना पड़ने वाला हुआ बल उसे. पांडे ज्यू कह रहे थे कि परुली को थोड़ी ‘सार-पतार’ ( तमीज, मैनर्स) आ जाये तो इसे भी कुछ दिनों के लिये दिल्ली भेज देंगे.मैने कहा आप जैसा भी करेंगे आप की ही हुई अब परुली…… ”
आगे नहीं सुन पायी परुली. मलखंड (ऊपर वाला कमरा) में जाके रजाईयों के बीच मुँह छिपा कर रोने लगी. उसका डाक्टर बनने का सपना आंसूओं के साथ बहने लगा. आज पहली बार उसे अपनी लड़की होने का अहसास हुआ. एक लड़की किस हद तक मजबूर हो सकती है इस बात से मन ही मन उसे खुद से घृणा होने लगी. सब कितने खुश थे. वो उनकी खुशी नहीं छीनना चाहती थी लेकिन जो हो रहा था उसके लिये वह खुद को तैयार भी नहीं कर पा रही थी. मन में आता कि वह कह दे कि नहीं करनी उसे शादी. लेकिन क्या कह पायेगी वह यह सब और फिर लोग क्या कहेंगे..”जोस्ज्यू की लड़की ने शादी के लिये मना कर दिया” …कितनी तो बातें बनेंगी.. उसकी खुद की सहेलियाँ उससे बातें नहीं करेंगी…आंसूओं का सैलाब लगता था कि उसे बहा ले जायेगा…
उधर घर में खुशी का माहौल था. परुली की ईजा भी बहुत खुश थी. बगल की काखी (चाची), कैंजा (मौसी), जेठज्या (ताई) और अन्य औरतें भी घर में बधाईयां देने आयीं
“भल भौ हो (अच्छा हुआ).. बड़ा अच्छा संबंध मिला बल.. ” .
हाँ हो सब गोल्ज्यू की किरपा हुई हो..” ..
“तो कब कर रहे हो ब्या ….मंगसीर (नवंबर-दिसंबर) में करोगे कि जेठ (मई-जून) में
“इस साल तो परुली का बोर्ड हुआ .. इम्तयान (परीक्षा) हो जाये तो जेठ में ही करेंगे. पिठ्या (टीका,सगाई) कोई भल दिन देख के लगा देंगे”
यह बात परुली ने भी सुनी.रो रो कर उसकी आंखे लाल हो गयी थी पर उसे सुखद आश्चर्य हुआ कि शादी के लिये भी उसके बोर्ड की परीक्षाओं को को ध्यान में रखा जा रहा है. वह सोचने लगी कि यदि वह ईजा से डाक्टर बनने वाली बात करे तो शायद ईजा की समझ में बात आ जाये और अभी शादी ना करने के लिये मान जाये…लेकिन उसके बाबू और घर के अन्य लोग ईजा की बात मानेंगे यह अपने आप में एक बड़ा प्रश्न था. फिर भी उसे लगा कि उसे कम-से-कम अपनी ईजा से तो बात करनी ही चाहिये… उसे आशा की एक धुधली किरण दिखायी देने लगी…लेकिन फिर उसे चमुली की बात याद आयी…. “डॉक्टर बनना इतना आसान नही है परुली. ढेर सारे डबल (पैसे) लगते है बल. इत्ते सारे डबल तेरे बौज्यू कहाँ से लायेंगे.तेरे को तो हाईस्कूल ही करा रहे हैं वही बहुत है.”.यदि ईजा सब लोगों को मना भी ले तो उसे पढ़ायेंगे कैसे.
यह सब सोचते सोचते परुली के सर में दर्द होने लगा और वह ईजा का इंतजार करते करते सो गयी…
जारी…..
पिछले भाग : 1. परुली…. 2. परुली: चिन्ह साम्य होगा क्या ??
कहानी अच्छी चल रही है।
परुली के बारे में सोचती हूँ तो कल्पना में एक लाल लाल, फटे गाल वाली प्यारी सी लड़की ,जो पेड़ों पर चढ़ भेंसों के लिए बाँज के पत्ते तोड़ती है । स्कूल जाते रास्ते में काफल , हिसालू और किलमोड़े तोड़कर खाती है । काम से कभी समय मिले तो घर की सीढ़ियों पर बैठ दूर बर्फ से ढके पहाड़ देखती है और शायद सोचती है कि उनके पार क्या होगा ।
कभी हम जैसी कोई देश में रहने वाली उसके किसी काका की बेटी उनके घर रहने आती होगी तो उसे उसका कुमाँऊनी बोलना ना आना हास्यास्पद लगता होगा । कभी लड़ाई झगड़े व गुस्से के पलों में उससे कहती होगी ” मैं तुझे भ्योल गिरे द्यूँल ।” या फिर एक स्वैटर बुनते बुनते मेरी काका की बिटिया हेमा या बसी सा कहती होगी , ” लम्बाई में चौड़ हो ग्यो, चौड़ाई में ठुल ।”
फिर सोचती हूँ कि क्या एक और जोस्ज्यू की परुली बैरती के पाँडे कि दुल्हैणी बन जाएगी । पर उन पाँडे ज्यू से मिलने मलगाड़ गांव क्यों जाना पड़ा ? क्या बैरती या गैराड़ नहीं ?
इस बहुत अपनी सी लगने वाली परुली के लिए मन में बहुत हूक उठ रही है ।
घुघूती बासूती
” लम्बाई में नान* हो ग्यो, चौड़ाई में ठुल ।”
घुघूती बासूती
still watching, lets see wahts happened with her.
I am too curious now..
let see
Naveen
पढ़ रहा हूं, प्रतीक्षा रहेगी!!
परूली के साथ रिश्ता सा बन पड़ा है……प्रतीक्षा रहेगी
क्या होगा परुली का? रिश्ता तो निश्चित रूप से बन गया है, काकेश जी. और क्या कहें, सिवाय इसके कि आंखें लगाए बैठे हैं. ये सुनने के लिए कि परुली के साथ क्या होता है.
परुली की कहानी पढते हुए ऐसा लगता है जैसे मैं ही परुली हूँ… आगे का इंतजार रहेगा…
तो क्य सच मै परूली की शादी हो जायेगी, और डाक्टर बनने का सपना धरा रह जायेगा,
काकेश दा की कहानी के अगले भाग का इन्तजार रहेगा…
नवीन पाठक
Dear Kakesh Ji, Superb! request you to kindly do not leave the ‘Real Touch’. Beautifully expressed and go on expressing the REALITY OF LIFE OF OUR VILLAGERS, THEIR SOCIAL SET UP as is expressed by our fellow ‘ghughutibasuti’ – ME ONE OF THEM. God Bless You.
PARU
परुली का रिश्ता तो लगभग तय हो गया है, या यों कहिये की परिस्थितियों ने उसे इस बात के लिए मजबूर कर दिया है. डॉक्टर बनने की ललक उसमें जिंदा है और बनकर रहेगी aur इस उदाहरण से उत्तराखंड मैं नारी कि दशा को एक ने दिशा देगी ऐसा हमारी इच्छा है.
परुली चरित्र को जीवंत करने के लिए अनेक साधुवाद.
Very interesting, very well written and very thought provoking story.
Magar afsosh yeh hi hamare samaj ka karwai sach hai. Yaha aaj bhi ladki ko boj mana jaata hai.
Curiously waiting for what happens next???
KCS Rawat
बहुत सुंदर। काकेश जी प्लीज चिन्ह मत साम्य कराना, अभी पढ़ने दो परूली को प्लीज.. प्लीज..
प्लीज ,इतनी जलदी जल्दी ब्रेक मत लिया कीजिये । बहुत उत्सुकता है … आगे क्या होने वाला है !!!
kahani bhut Aachee lage.entjar rehga Aagle bhag ka.thanks
Dear All
thanks just i got story of paruli from your side.
really ye story bahut badiya lagi or please stop mat karna paruli ki kahani ko puri sunana.
Thanks
With Warm Regards
Chandan Joshi
kakesh ji aapki kahaniya sahi mein marmsparshi hain, mai kaafi samay se aapke lekh pad raha hun, aapki kahaniyon mein pahad ki vastavikta ki jhalak milti hai. apni kahaniyan isi tarah likhte rahiye hum sabhi ko aapki kahaniyon kaa besabri se intezaar rehta hai.
ek baat aur kakesh ji kripya karke apna purna parichaya mughe mail kariyega main aapka aabhari rahunga.
mushe a h kahani bahoth pasunt hai mushe bhi ai si kahani likhani hai tho kaise lihku