कल योगेश जी ने बताया कि पूजा की अर्ध-नग्नता के पीछे किसी मीडिया वाले का हाल था.यदि ये सच है तो निन्दनीय है. सच जो भी हो मुझे आश्चर्य इस बात का है कि कैसे मीडिया इस बात को इतना बढ़ा चढा कर पेश कर सकता है.टाइम्स ऑफ इंडिया ने पूजा की अनसैंसर्ड चित्र को अपने मुख पृष्ठ पर छापा. क्या ये सही है??
आप गूगल पर पूजा चौहान के बारे में खोजें आपको ना जाने कितनी साइट उसके चित्रों से भरी मिलेंगी…मुझे एक झटका सा लगा जब कुछ पॉर्न ब्लौग और साइट पर पूजा के चित्रों को चट्खारे ले के पेश किया गया. कुछ लोगों ने इसे भारत से भी जोड़ा ..उनका कहना है कि भारत में ऎसी घटनाऎं बढ़नी चाहिये ताकि वो कुछ और ऎसी तसवीरें देख सकें…
इंटरनैट के लिखे को आप मिटा नहीं सकते.कुछ दिनों बाद जब पूजा के परिवार वाले या उसकी खुद की बेटी जब इंटरनैट पर ये सब देखेगी तो उस पर क्या बीतेगी? कैसे जियेगी वो इस तथाकथित सभ्य समाज में? क्या विरोध का ये तरीका ठीक है?? क्या पूजा की नग्नता में मुख्य सवाल कहीं छुप गया है? क्या हम ऎसे ही चटखारे लेकर इस समाचार को छापते रहेंगे और पढ़ते रहेंगें…??
कल अपनी कुछ कविताओं में भी कुछ ऎसे ही प्रश्न उठाने की कोशिश की थी मैने …पर बहुत से लोगों की नजर वहां पर शायद नहीं पड़ी…
क्या जबाब है आपके पास इन सवालों का !!
कोइ जबाब नहीं है.
किसी के पास भी कोई जबाब नहीं है काकेश जी. क्या जबाब दें हम! आप कैसे कह रहे हैं कि हम सभ्य हैं! हमारे अंदर का जंगलीपन मौजूद है. मैं शर्मशार हूं.
सवाल जायज हैं, जवाब नदारद हैं। हमने इसी कारण तस्वीर को नग्न देवी काली माता से मिलाकर, ब्लर करके छापा था, ताकि संदेश रहे- नग्नता थोड़ी ढके।
http://masijeevi.blogspot.com/2007/07/blog-post_7899.html
पर समाज व मीडिया की नंगई उसका कुछ कर सकें- कैसे ?
भाइ ये जब घर से निकली तो चैनल वाले आगे आगे थे,सारा कांड उन्ही के द्वारा किया गया,किसी के मनो भावो से खेलना उन्हे अपने मतलब के लिये उभारना आज शायद मीडिया का यही काम रह गया है,वरना उसकी समस्या को ये और भी तरीको से इससे ज्यादा उठा सकते थे, वाकई मे हम शर्मशार है.
शर्म के बारे में पूछता है कोई जब हमसे,
हां कह देते है हम कि हमे भी आती है कभी-कभी।
रिश्ता हमारा टूट चुका है वैसे तो शर्म से,
पुराने संबंधो के आधार पर आ जाती है बस कभी-कभी।
भीड़ में रहें तो कह देते हैं कि आती है शर्म,
बाकी नज़रें चुरा-चुरा कर देख लेते हैं कभी-कभी।
चाहते तो नही पर समय जब पूछता है हिसाब औ
जमाना कहता है तो झांक लेते है गिरेबां में कभी-कभी।
क्या कहें इस बारे में खुद से ही शर्म सार है हम…पूजा जैसी ना जाने कितनी औरतो के साथ यह सब होता है और वो कुछ भी नही कर पाती…प्रतिरोध की भावना उनके साथ ही आग में जल जाती है…आखिर कब तक होगा एसा…एक सवाल औरत बन कर रह गई है… जब भी देखती हूँ यह सब सोचती हूँ व्यर्थ जीये जो हम जीये अगर किसी के लिये कुछ ना कर पाये…मन ग्लानी से भर जाता है…
सुनीता(शानू)
अतिवाद की भी पराकाष्ठा है ये ।
बड़ा ही विचित्र संयोग है ये कि एक तरफ हमारी सामाजिक विद्रूपतायें हैं ,वही दूसरी तरफ हमारी कुछ न कर पाने की मज़बूरी (?).
हम स्वीकार भी तो नही कर सकते कि सारा समाज सम्वेदन शून्य है. यदि नही तो निस्चित ही सारा समाज नपुंसक है.
अरविन्द चतुर्वेदी
भारतीयम्
विरोध का ये तरीका सही था या गलत ये अलग मुद्दा है लेकिन इतना तय है कि ये सब मीडिया वालों द्वारा ही प्रायोजित हुआ, सब उन्हीं की प्लानिंग थी।
सव सामने आ गया …बहुत सा ऐसा है जो सामने नहीं आ रहा..भगवान का धन्यवाद दें हम सब…सचाइयाँ सामने आतीं हैं तो पूरी इंसानियत की नज़रें नीची हो जाती हैं.