मुँह ना खुलवाइये-वरना जितना आरोप एक स्त्री लगा सकती है उससे कहीं ज्यादा एक पुरुष

मेरी पोस्ट स्त्रियां क्या खुद से सवाल पूछती हैं?, जिसमे‌ पूरी पोस्ट मात्र टिप्पणीयों से ही बनी थी,उस पर् टिप्पणीयों के नये रिकॉर्ड बन रहे हैं.उसमे‌ कोइ आदम जी तो जैसे स्त्रियो‌ के पीछे ही पड गये हैं.आप भी देखें.

मेरी माँ बहन बेटी सभी स्त्रियाँ है लेकिन मैं जब बेटी का रिश्ता करने जाऊगा तो बेटी चाहती है लडका कम से कम 4 इंच लम्बा हो तथा उससे ज्यदा कमाता हो। क्यो बराबारी चाहती है ये समाज वादी औरतें ? सामाज में सभी को बराबरी नहीं वरन सम्मान मिलना जरूरी है बराबरी की मागॅ इस भेद को केवल अधिक बडा कर रही है। इन बैवकुफ समाज वादी औरतो को भी नहीं पता ये समाज का कितना अहित कर रही है।

एक औरत अपने स्त्री होने का फायदा उठा कर पुरूष से ज्यदा माल बेचती है तब उसे याद नही आती बराबर
कई बस में सफर कर रहे हो या ट्रैन के टिकट की लाईन हो क्यों इन्हें बराबर नही रखा जाता वास्तव में प्रकृति ने हम सभी को अलग अलग रोल दिये हैं और हमें ये करने होंगे। क्यों बराबर धरती नहीं है कही पहाड तो कही तलाब, क्यों बराबर ऋतु नही हैं। आखिर पुरूष तो बराबरी कर 9 मास तक बच्चे को पेट में नहीं रख सकता।

अगर स्त्रियाँ सम्मान चाहती है तो मेरी राय में रात को 2 बजे शराब पीकर समुद्र पर धुमना सम्मान नहीं दिला सकता इस दौड में कई आज कल धुम्रपान मदिरा पान कर रही है कल क्या वो बराबर होकर पुरूष की तरह बलात्कार करना पसंद करेंगी

Adam on January 17th, 2008 at 10:44 am

 

स्त्रियों की सबसे बड़ी समस्या है कि उनमें जलन का भाव है. वो किसी की भी तरक्की नहीं देख सकती.अपने पति की भी नहीं दूसरी स्त्री की तो बिलकुल भी नहीं.पुरुष व स्त्री के कुछ काम बंटे हुए हैं.ये एक सामाजिक व्यवस्था है.जो स्त्रियाँ घर के काम करना नहीं जानती या चाहती या जिनको घर के काम नहीं करने पड़ते वो ही स्त्रियाँ इस प्रकार के स्त्री विमर्श के मुद्दे उठाती है. समस्या स्त्रियों की ही नहीं पुरुषों की भी है. जिस प्रकार स्त्री घर चलाती है पुरुष भी कमाता है यह एक सामाजिक व्यवस्था. यदि स्त्री कमाये और पुरुष घर चलाये तो भी इसमें कुछ हानि नहीं. लेकिन यदि पुरुष घर चलाने लगेगा तो स्त्रियों को उससे भी इन-सिक्योरिटी होने लगेगी. इन-सिक्योरिटी स्त्री के गुण में है और पुरुषों से बराबरी करना भी उसी इंसिक्योरिटी का लक्षण है.जबकि देखा जाये तो कुछ मामलों में स्त्री आगे है तो कुछ में पुरुष. यह प्रतियोगिता का विष्य नहीं वरन सहभागिता का विष्य है. लेकिन कुछ स्त्रियाँ सहभागिता नहीं चाहती.लिखा तो बहुत कुछ जा सकता है पर हम पुरुषों का यह स्वभाव नहीं कि स्त्रियों की तरह हर चीज में खोट निकालें.

रचना जी ने जबाब देने की कोशिश की

rachna singh on January 17th, 2008 at 11:10 am

 

ऐडम जी आप विषय का परिवर्तन क्यो करना चाहेते है , यहाँ बात केवल मुम्बई मे हुए हादसे की हो रही है . स्त्रियोचित गुण अवगुण कि नहीं . जरुरी नहीं है की आप अपनी स्त्रियों के प्रती अपनी भडास को इस ब्लोग के मंच पर निकले । स्त्रियों के लिये क्या उचित है क्या अनुचित इसका फैसला उन्हे ही करने दे ।” पुरुष व स्त्री के कुछ काम बंटे हुए हैं।ये एक सामाजिक व्यवस्था है.जो स्त्रियाँ घर के काम करना नहीं जानती या चाहती या जिनको घर के काम नहीं करने पड़ते वो ही स्त्रियाँ इस प्रकार के स्त्री विमर्श के मुद्दे उठाती है.” वैस आप का ये सेंटेंस बहुत पसंद आया क्योंकी मे तो उम्मीद कर रही थी आप ही ऐसा लिखेगे । आप तो आज भी adam – eve के ज़माने मे रह रहे हैं जबकी एव ने काफी तरकी कर ली है , मानसिक रूप से । आप का नाम कोई है नहीं , आदम और हव्वा के ज़माने के आप है , यहाँ ब्लोग पर क्यो अपना समय बर्बाद कर रहे हैं । और विषय प्रवर्तन करके आपने कुछ पुरुषो कि ” विचरते {घुमते } रहने की आदत को सही साबित किया है ।

Adam on January 17th, 2008 at 12:25 pm

रचना जी ऎसा इसलिये क्योंकि यहाँ पर जो भी स्त्रीयों के महत्व के मुद्दे उठाये उन्होने अपने गुणों या अवगुणों से ही उठाये हैं.आप लोग फालतू में पुरुषों का विरोध करती हैं क्योंकि वही मिला है ना सीधा-साधा -और बेचारे पुरुष स्त्री-विरोधी ना कह दिये जायें इसलिये चुप भैठे हैं. दिल में उनके भी वही बातें हैं लेकिन सब डरते हैं. आपको स्त्री अधिकारों की इतनी ही चिंता है तो सामाजिक व्यवस्था का विरोध कीजिये ना.सामाजिक व्यवस्था पुरुष नहीं बनाता वरन स्त्री और पुरुष दोनों मिलकर बनाते हैं.आज क्यों लोग भ्रूण हत्या करने पर विवश हैं-क्योंकि दहेज एक बुराई है .तो क्या केवल पुरुष दहेज लेता है.सबसे ज्यादा दहेज की लालची तो महिलाऎं होती है. नये नये जेवर,साडियाँ, कोस्मेटिक दहेज में किसे चाहिये महिलाओं को ही ना.लेकिन पुरुष की कमजोरी यही कि वो इसका विरोध नहीं करता. सास के अत्याचार को ससुर मौन सहमति दे देता है.क्यों? यह गलत है. लेकिन इससे सास का दोष कम नहीं हो जाता. असली दोषी तो वही सास है ना.

लेकिन सामाजिक व्यवस्था का विरोध करेंगी तो कई स्त्रीयां भी विरोध में आ जायेंगी इसलिये सही है पुरुषों का विरोध करो. बेचारे पुरुष भी आड़े ना आयेंगे. जहाँ तक 31 दिसंबर की घटना का स्वाल है उसमें भीड़ की गलती है. लेकिन यही भीड़ पुरुषों का भी अहित कर सकती है स्त्री का भी. तो भीड़ का विरोध कीजिये ,भीड़ की मानसिकता का विरोध कीजिये. यदि वहाँ पर लड़्कियों की ही भीड़ होती तो वो भी एक पुरुष का बलात्कार कर देती.कई ऎसी घ्टनाओं का साक्षी रहा हूँ जहाँ मदमस्त लड़्कियों ने एक बेचारे पुरुष को कामवासना के वशीभूत हो मार दिया. उन लड़कियों के बारे में क्या कहेंगी जो एक शादी-शुदा मर्द से प्यार कर दूसरी स्त्री का दिल तोड़ती हैं.

कहता हूँ ना मुँह ना खुलवाइये-वरना जितना आरोप एक स्त्री लगा सकती है उससे कहीं ज्यादा एक पुरुष.

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By काकेश

मैं एक परिन्दा....उड़ना चाहता हूँ....नापना चाहता हूँ आकाश...

8 comments

  1. इतनी विस्तृत ‘चर्चा’ शायद ही कहीं हुई है. आनेवाले दिनों में भारत सरकार आपकी दोनों पोस्ट को समाजशास्त्र के शोधकार्य के लिए इस्तेमाल करेगी. आनेवाले दिनों में कई छात्र आपकी पोस्ट पर शोधकर समाजशास्त्र के डॉक्टर बनेंगे…………:-)

  2. kakesh
    congratulations at least you are one person who seems to have become celebrity overnight in the hindi blog world

  3. @parul
    ab mudaa hain badelegae toh baat ka rukh kaise badlaega , hamari “bakvaas” kab tak jhalaegae !!!!!!!!!!!
    @kakesh
    bhai celebrity bananae ke liyae log litane dav pachae kartey haen , aap ko vasae hii mil gaya yae status !!!!!!! , per aapne mudadae ko manch diaya aur dusro ke vicharo ko apne blog per phir prasarit kiya iskae liyae samay aur interest dono hone chaaheyae

  4. जबरदस्त बहस चल रही है. जारी रहे.
    हम तो दर्शक है आते है , पढ़ते है और चले जाते है.

  5. बहुत खूब,
    ऎसा कतई नहीं है कि मैं प्रभुसत्तावादी हूं, या कि पुरातन विचारों का हूं किंतु हम
    क्यों नहीं स्वीकार कर पाते कि पुरुष और नारी का संबन्ध अधुनातन काल से ही
    वृक्ष और लता का सा रहा है । बराबरी का अधिकार ? यह किंन्ही निहितार्थ के
    चलते कुछ पुरुषों द्वारा ही गढ़ा गया है , और अबला अब बला की बला बन बैठी है।
    चित्त और पट्ट दोंनों ही हथियाने की जुगत है, यह स्वांग

  6. mahashay adam ji apne is ghatna par apni tippdi dete hue kuch byaktigat manobhawo ko bhi byakt kar diya hai jo ki galat lagta hai par racchna ji ne to apki langot hi utar di hai. mudde blog par bahas k liye aate hai ‘jhagda karne k liye nahi.Rachna ji stri hai kar sakti hai.aap to khud ko pavhaniye. Hamare samaj na agar shuru se hi striyo ko ye sammaan aur barabari di hoti to ye halat nahi hoti.Waise mai jaha tak janta hu barabari kabiliyat se milti hai,jhagda karke ya doshropad karke nahi.aur samaj me jo bhi ghat raha hai uske liye stri warg bhi utna hi jimmdar hai jitna purush warg.dono ko saath milkar is burai ko saaf karna chahiye,na ki jhagda. Kyoki burai ki koi jati nahi hoti yakisi jaayi vishes se sambandh nahi hota,sirf srot hota hai aur ye srot koi v ho sakta hai koi stri v ya koi purush v.bahas aise hi chalti rahe baate saaf hoti hai.

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