कुछ समय पहले समकाल में संजय तिवारी जी का लेख छ्पा था जिसमें उन्होने हिन्दी ब्लॉग जगत के बारे में लिखा था. उसके बाद भी वह कुछ समय तक समकाल में लिखते रहे. पिछ्ले कई महीनों से वह अपने अलग डोमेन पर चले गये हैं और अपनी पत्रिका विस्फोट के द्वारा कई सामयिक मुद्दों को उठाते रहे हैं.
कल दैनिक भास्कर (इन्दौर) ने उनकी इस पहल की सराहना की है. आप भी पढ़ें.
हम तो शीर्षक देख कर ही घबरा गये थे, समझे कि भास्कर की बिल्डिंग उड गई , आतंकवादी हमला हो गया, पढने पर पता चला कि अपने संजय जी के विस्फ़ोट का विस्फ़ोट भास्कर मे छपा है उन्हे हमारी बधाईया पहुचा दे जी.भगवान उन्हे और नई बुलंदिया दिखाये
congrates
ब्लॉगो को अखबारों का टेका लगना कब तक चलेगा!
भाई संजय जी वाकई बहुत शानदार काम कर रहे हैं. उन्हें बहुत-बहुत बधाई. विस्फोट बढ़ता रहे, यही कामना है.
संजय जी को बधाईयाँ ,आप को आभर
आपके काम को लोग नोटिस लेते हैं तो अच्छा लगना स्वाभाविक है. लेकिन भास्कर की प्रस्तुति मुझे इसलिए अच्छी लगी कि उन्होंने वेब-पत्रकारिता के संदर्भ में इसकी चर्चा की है.
मैं जानता हूं इस प्रशंसा का असली हकदार मैं नहीं. वे लोग हैं जो विस्फोट पर लिख रहे हैं या उसके लिखे को पढ़ रहे हैं. अगर विस्फोट की कहीं चर्चा होती है तो सारा श्रेय और प्रेय उनका जो विस्फोट के काम को समर्थन दे रहे हैं.
ऐसे लोगों को मेरे हिस्से का भी सुख मिले ताकि वे और उत्साह से आगे काम कर सकें.
संजय तिवारी जी बधाई एवं साधुवाद के पात्र हैं. हमारी ढ़ेरों शुभकामनाऐं उनको. और आपका आभार.
ये बड़ा नेक काम किया आपने कि भास्कर के कवरेज को अपने यहाँ प्रकाशित कर दिया.
इस सौजन्यता से ब्लॉगिंग और हिन्दी दोनो को विस्तार दिया आपने.
साधुवाद काकेश भाई.
भाई काकेश और संजय जी आप दोनों के ही कार्य प्रयास सराहनीय हैं तथा दोनों ही धन्यवाद के पात्र हैं.सही बात है भाई, कि प्रयास को यदि प्रोत्साहन मिल जाए तो आगे बढ़ने के लिए नया जोश मिल जाता है.मैंने हमेशा ही देखा है कि काकेश भाई ने जहाँ कहीं भी किसी को सकारात्मक दिशा में प्रयासरत देखा है उसका भरपूर हौसला बढाया है.यह अपने आप में दुर्लभ है,बहुत कम इस तरह की मानसिकता होती है लोगों में.इश्वर करें आप ऐसे ही बने रहें.
एक अनुरोध है कि समाचारपत्र की जो प्रतिलिपि आपने ब्लॉग पर दिखाया है वह स्पष्ट दिखाई नही दे रहा.यदि हो सके तो उसमे जो लिखा हुआ है ,उसे टाइप कर प्रकाशित कर दें तो सुगमता से दृष्टिगोचर होगा.क्या कहें चार आँख वालों कि मजबूरी आप समझ सकते हैं.
‘विस्फोट’ की सामग्री आज-कल के टीवी न्यूज चैनेलों की प्रदूषित और बे सिर-पैर की (डॉग) बाइट से मुक्ति दिलाने वाली शुद्ध और ताजी हवा की तरह असर करती है। वाक़ई विचारों का उत्तम विस्फोट है यहाँ…
संजय जी को बधाईयाँ ,आप को आभार !!!