यह चिट्ठा 22 मार्च 2007 को यहाँ प्रकाशित किया गया था।
नैनीताल समाचार (जो कि श्री राजीव लोचन शाह द्वारा निकाला जाता है) के नये अंक में श्री मुकेश नौटियाल की यह कविता छपी है। श्री मुकेश नौटियाल की दूसरी बेटी का जन्म 1 फरवरी को हुआ है। बहुत सही स्थिति का वर्णन किया है उन्होंने।
तुम्हारे आने की सूचना
मुझे डाक्टर ने यूं दी –
माफ करना
फिर से लड़की हुई है
लेबर रूम से निकलकर तुम्हारी माँ ने
जब मुझसे नजरें मिलाई
तो उसकी आँखों में तैर रहा था
घना अपराध बोध
जितनी जगह सूचना दी मैंने फोन पर
तुम्हारे आगमन की
उतनी जगह से ‘सॉरी ‘ जैसा
जबाब मिला मुझे
और जब नर्स ने सौंपी तुम्हारी नवोदित देह
मेरे हाथों में
तब मैंने पूछा तुम्हारा सगुन !
(जानता था मैं कि सगुन लिये बगैर
नहीं सौंपती नर्सें
बच्चों को उनके माता पिता के हाथ
तब भी यही हुआ था
जब तुम्हारी दीदी पैदा हुई थी
तीन बरस पहले इसी अस्पताल में )
और जानती हो क्या कहा नर्स ने !
उसने कहा दोहरे बोझ से दबने वाले से
क्या सगुन लेना
निभा लो रस्म जितने से बन पड़े
आज पता चला मुझे
कि तुम ना आओ इसके लिये
तुम्हारे अपनों ने ही रखे थे
अनेकों व्रत उपवास
अभी तो तुम आयी ही हो दुनिया में
नहीं समझ पाओगी इन बातों के अर्थ
पर सालों बाद
जब पढ़ोगी तुम इस कविता को
तो हँसोगी शायद
कि उत्तर आधुनिकता के ठीक पहले तक
अपने यहां की महिला डाक्टर
माफी माँगा करती थी बेटियाँ होने पर
और मेरे जैसे बाप
हारे हुए सिपाही समझे जाते थे
तुम्हारे होने पर…..
बहुत बढ़िया भाव और सुंदर अभिव्यक्ति है भाई …बधाई
समाज के सच को आइना दिखाती हुई बहुत सुन्दर कविता।
क्षमा करें काकेशजी, कल व्यस्तता के चलते टिप्पणी नहीं कर पाया था। चर्चा भी करनी आवश्यक थी।
इस भावपूर्ण कविता को नमन! काश यह सच नहीं होता!
– गिरिराज जोशी “कविराज”
बहुत प्यारी किवता है!