यह चिट्ठा 21 मार्च 2007 को यहाँ प्रकाशित किया गया था।
चाह थी एक ‘सभ्य दुनिया’ में,कदम जब मैं बढ़ाऊं
लोग मेरा प्रेम से स्वागत करें, और गीत गायें
इन रास्तों पर चल चुके पहले कभी,
वो ही मेरे
पथ प्रदर्शक बन, गले अपने लगा लें
चाह थी..
कोई जब उंगली पकड़कर,साथ मेरे यूँ चलेगा
नित नयी मंजिलों से,रूबरू मैं हो सकूंगा
और संग में गीत गाऊंगा,सदा मैं प्यार के ही
प्रीत बाटूंगा सदा मैं,मीत सब का बन सकूंगा
जोड़ पाऊंगा नये अध्याय मैं इतिहास में
देख पाऊंगा मैं दुनिया को, नये एक रंग में
मिल रहे थे मीत कुछ, उत्साह से प्रारम्भ में
कर रहे उत्साह-वर्धन,तालियां दे दे मेरा
लिख रहा था मैं भी तब, नूतन सृजन के वृंद, छंद
भावना में बहके मैं, मुसकुराता मंद मंद
यह नया संसार मुझको, रास अब आने लगा था
कायदों से ‘सभ्य दुनिया’ के रहा मैं, अपरिचित
और अति उत्साह में मुख खोल के गाने लगा था
तब कहीं कुछ घट गया,और बंदूकें तनी
रास आया ना मेरा, इस कदर मुंह खोलना
सभ्यता के नायकों को भाया नहीं यह गीत था
पीठ पर छूरा जो भौंके वो तो सबका मीत था
सृजन के उन शिल्पियों ने , ख्वाब जब तोड़ा मेरा
“धूमकेतु” बनके अब मैं, ढूंढता हूं मंजिलों को
किंतु जीवन कुछ नहीं, बस खुदा का खेल है
एक पल लड़ना यहां,अगले पल फिर मेल है
काकेश
पढ़ लिया दर्द!
काकेश जी, मेरी टिप्पणी से आपकी संवेदना आहत हुई, इसके लिए मुझे खेद है। लेकिन आप खुद ही सोच कर देखें कि आपने चिट्ठा लेखन की शुरुआत “शुरुआती झटके” श्रेणी के अंतर्गत पोस्ट लिखकर की और विषय भी विवादास्पद चुना और लहजा भी कुछ ऐसा, जिसमें नवागत-सुलभ विनम्रता के कोई संकेत नहीं थे। जिस विषय की पृष्ठभूमि से आप भलीभांति अवगत न हों, उसपर भिड़ने के लिए आप ताल ठोंककर मैदान में उतर आएं तो फिर आपको कुछ सुनने के लिए तैयार भी रहना चाहिए। आपकी आपत्ति यही थी न कि चिट्ठाकारों के लिए ऐसी कोई आचार-संहिता नहीं होनी चाहिए जिसमें एक-दूसरे पर किसी प्रकार का व्यक्तिगत आक्षेप या प्रहार किए जाने पर प्रतिबंध लागू हो। यदि आप व्यक्तिगत आक्षेप या प्रहार किए जाने को सही ठहराए जाने का पक्ष लेते हैं तो फिर आपके आहत होने का तुक समझ में नहीं आता।
कोई नया चिट्ठाकार यदि इस तरह से शुरुआत करे तो कोई भी यह अनुमान लगा सकता है कि आप इरादतन ऐसा कर रहे हैं, चाहे वह अपनी तरफ सबका ध्यान आकर्षित करने के लिए कर रहा हो या फिर किसी से प्रेरित होकर ऐसा कर रहा हों। ‘धूमकेतु’ शब्द का प्रयोग व्यंग्यात्मक अर्थ में मैंने नहीं किया था, वह सिर्फ लक्षणात्मक था। धूमकेतु के लक्षण भी ऐसे ही होते हैं। यदि आप ऐसे नहीं हैं तो फिर अन्य आकाशीय पिंडों की तरह नियमित कक्षा में ही परिभ्रमण करें, बेहतर होगा। लेकिन यदि आपको विवादों में उलझना पसंद है और चिट्ठा जगत में एक-दूसरे पर व्यक्तिगत आक्षेप या प्रहार किए जाने को भी सही मानते हैं, तो फिर इस तरह की छोटी-छोटी बातों पर आहत मत हों। आप तो घोषणा कर ही चुके हैं कि आपको चिट्ठा जगत की राजनीति समझनी है और यहां के मगरमच्छों से निपटना है!
पुनश्च: यह भी रेखांकित कर रहा हूं कि कुछ पुराने चिट्ठाकारों के लिए(जिसमें आप शायद मुझे भी शामिल करके चल रहे हैं) ‘मगरमच्छ’ शब्द का प्रयोग करने की पहल आपने ही की थी। उसके बाद ही मैंने आपके लिए ‘धूमकेतु’ शब्द का प्रयोग किया था।
अरे भाई टेंशन काहे लेते हो। खुद तो ऐसे विवाद पर बात की वो भी अनाधिकार, निहपक्षता से लिखते तो कोई कुछ न कहता। लेकिन आपने बात को पूरी तरह जाने बिना ही अपनी राय दे दी।
खैर छोड़िए, ऐसी छोटी-मोटी बातें तो यहाँ होती रहती हैं। आप लिखते रहिए और बेहतरीन लिखिए।