आज बात करते हैं हिन्दी के कुछ चिट्ठाकारों के साथ हुए मेरे अनुभवों की ..
कल लंच के समय बाहर निकला ही थी कि हिन्दी के एक चिट्ठाकार मिल गये.टीका-वीका लगाये थे और इतनी गर्मी में भी फ्रैश फ्रैश लग रहे थे … रिलांयस फ्रैश की तरह….लगता था जैसे अभी अभी हिल स्टेशन घूम के आये हों. कोई व्यक्ति जब परिवार के साथ किसी धाम की यात्रा करके आता है …विशेषकर बद्रीनाथ,केदारनाथ की …तो कुछ दिनों बड़ा ही आध्यात्मिक सा बना घूमता रहता है …वैसे ही वह भी घूम रहे थे.हमें देख वैसे तो गाली देने का मन कर रहा होगा (प्रोफेशनल राइवैलरी जनाब!! ) लेकिन अच्छी अच्छी बातें करने लगे.अरे आप तो कभी मिलते ही नहीं… मिलिये ना कभी कहीं….हमने कहा ….अरे अभी नहीं कुछ दिनों रुक जाइये… थोड़ा नाम वाम हो जाने दीजिये … फिर आयेंगे ताकि ज्यादा नहीं तो कुछ गोपियां तो हमारा भी इंतजार करते मिलें…
अरे नहीं जी आपका नाम तो हो ही गया ….कल ही हम तीन चार हिन्दी चिट्ठाकार मिले थे तो आपकी ही चर्चा कर रहे थे.
हाँ चर्चा तो कर ही रहे होंगे…. पीठ पीछे गाली देने का अवसर कौन जाने देना चाहेगा….
अरे नहीं जी वहां तो ये चर्चा हो रही थी कि आप कितना अच्छा लिखते हैं.
हम समझ गये कि ये पक्का बद्रीनाथ,केदारनाथ का असर है वरना हम यदि चर्चा में ही होते तो क्या टाइम्स मैगजीन में जगह ना पाते.अरे चिट्ठाजगत की टाइम्स मैगजीन फुरसतिया टाइम्स. लेकिन वो चढ़ाते रहे और हम चढ़ते रहे चने के झाड़ पर.
उनसे तो किसी तरह पीछा छुड़ाया लेकिन फिर हम सोचने लगे “चने के झाड़ पर चढ़ने-चढ़ाने” के बारे में.इसकी चर्चा बाद में ….पहले आपको एक और घटना के बारे में बता दें.
पिछ्ले दिनो जब गधों और घोड़ों का बोलबाला था तब एक दिन कुछ घोड़े मिल गये.घोड़े वैसे ही गधों से दोस्ती करना पसंद नहीं करते.. इसीलिये शायद वो हम से नहीं बोले लेकिन आपस में कुछ गहन वार्तालाप सा करते प्रतीत हुए . हम ध्यान लगाकर उनका वार्तालाप सुनने की कोशिश करने लगे.
अरे हमें सरकार से इस बाबत बात करनी चाहिये…
हाँ हाँ ..क्यों नहीं ये तो हमारी इंटेल्क्चुअल प्रोपर्टी है…
हमारे दिमाग में बात समझ में नहीं आयी..दो विद्वानों की बातचीत के बीच में घुसने वाले मूर्ख को वैसे भी कोई बात समझ नहीं आती.. तो हमने पूछ ही लिया कि क्या बात है…
पहले तो एक युवा घोड़े ने हमें अपनी आक्रामक नजरों से घूरा …जैसे कोई तथाकथित धर्मरक्षक किसी नग्न पेंटिंग बनाने वाले चन्द्रमोहन को घूर रहा हो… फिर जब उसने परख लिया कि इस बंदे में भी मनमोहन सिंह की तरह कोई दम नहीं है तो वो बोला…अरे हमें एम एफ हुसैन और बहुत सी कंपनियों के खिलाफ आन्दोलन छेड़ना है …क्यों भाई .. अरे हुसैन साहब हम घोड़ों पर पेंटिग बनाते हैं और हमें रॉंयल्टी भी नहीं देते .. कनाडा वाले हमारे ऊपर पूरी की पूरी पोस्ट लिखते हैं ..खूब टिप्पणी भी पाते हैं पर हमें कुछ नहीं देते.. खुद कॉकटेल पी-पीकर मुटा रहे हैं … हिन्दुस्तान में जितनी भी शक्तिवर्धक दवायें बनती हैं उन में भी हमारी फोटो होती है .. लेकिन कोई हमें रॉयल्टी नहीं देता बल्कि हमें जेल डाला जा रहा है.. और तो और सारी मशीनों की रेटिंग भी घोड़ा-पावर यानि हौर्श-पावर में होती है…. उसके लिये भी हमें कुछ नहीं मिलता … उनकी बात में दम तो था….इसलिये हम चुप हो गये … लेकिन उन्होने अपना डिसकसन जारी रखा …
अरे यार आजकल तो मनुष्य अपनी बातों में भी गधो के साथ साथ हमें शामिल कर रहा है….
क्या बोलते हो बॉस!! एक छुटभैये “तोड़ देंगे फोड़ देंगे” नेता-टाइप घोड़े ने कहा.
हाँ !! कल दो तीन मनुष्य बात कर रहे थे …कंप्यूटर इन्ड्स्ट्री में देखो ना सारे गधे-घोड़े घुसे जा रहे हैं. आधे से ज्यादा तो इसमें गधे हैं और जो घोड़े भी थे उनसे भी गधों की तरह काम लिया जा रहा है…
तो क्या हम गधों के साथ मिलकर कोई मोर्चा खोलें… आजकल वैसे भी कई गधे विभिन्न मुद्दों पर कई शहरों में अपना मोर्चा खोल रहे हैं….
अरे वो ” मोर्चा अगेंस्ट खर्चा “वाले भी गधे ही हैं क्या … एक युवा उत्साही घोड़े ने पूछा…
चुप रहो यार सीरियस बात में भी बिना कुछ समझे बूझे कूद पड़ते हो यार ..हिन्दी चिट्ठाकार की तरह….
अब बहुत ज्यादा गालियां हम से सहन नहीं हुई ….वो लोग अपनी बात कर रहे थे पर हम वहां से सरक लिये …..
अब बतायें आपको चने के झाड़ वाली बात. चने के झाड़ की बात भी घोड़ों से ही सबंधित है. “चने के झाड़ पर चढ़ाना” एक मुहावरा है जो तब प्रयोग में लाया जात जब किसी भी व्यक्ति को ये झूठा अहसास दिलाना होता है कि वो श्रेष्ठ है. इसलिये उसे चने के झाड़ पर चढ़ाया जाता है कि बेटा तू अभी कुछ भी नहीं कर सकता चल पहले इस झाड़ पर चढ़ कुछ चने खा..थोड़ी ताकत वाकत बना घोड़े जैसी फिर तू कुछ कर पायेगा.अभी तो तू फिसड्डी है , बेकार है तुझे चने की सख्त जरूरत है.. इसीलिये हमारे वो चिट्ठाकार हमें कल चने की झाड़ पर चढ़ा रहे थे.
तो आपको बात समझ में आ ही गयी होगी ..
कल महिला सशक्तीकरण के विषय में हमारा बहुत ज्ञान बढ़ा जब कहा गया ” महिला सशक्तीकरण के चक्कर में पड़ने वाले बहुत जल्दी किसी भी किस्म की शक्ति से वंचित हो जाते हैं।” शायद इसीलिये बेचारे मनमोहन सोनिया जी के सशक्तीकरण के चक्कर में शक्ति से वंचित हो गये …
एक और चिट्ठाकर टिप्पणीओफोबिया से ग्रस्त हैं और कह रहे हैं “कोई बचाओ मुझे इस टिप्पणीओफोबिया से” हम तो उनको ये ज्ञान दे आये
आओ आओ ना घबराओ..
हाथ खोल के हाथ दिखाओ
टिपियासा के मारे हम भी
थोड़ा आके तुम टिपियाओ
देखना है कि वो आज आते हैं कि
बस एक बात और …. कल शाम एक चिट्ठाकार ने कुछ अच्छे अच्छे गाने सुनवाये …गाने बहुत अच्छे थे ..मैलोडियस ..हमने भी तारीफ कर दी ..कि हां जी अच्छा लगा गाने सुनकर ..पर ये क्या वो जेब से एक छोटी सी डायरी निकाल लिये ..बोले यहां लिख कर दीजिये ..हमने कहा क्यों? बोले …अरे सबको दिखायेंगे ना कि आपको अच्छा लगा..वो भी टिपियासा से ग्रस्त एक चिट्ठाकार थे….
काकेश भाइ दिल छोटा ना करो हम अपना टाईम्स निकालेगे बस आपका और अपना दो ही नाम लिखेगे और अपनी सारी चिठ्ठियो की चरचा करेगे काहे ये तो हमे चिट्ठा चर्चा लिखते समय भी भूल जाते है या फ़िर हम अपने लिये अलग चर्चा शुरु कर देते है
kya baat ho gai kakesh ji. Hits badhwane ki ichha ho rahi hai kya???
बहुत बहुत प्यारा लिखा है काकेश भाई
भाई जी बहुत अच्छा लिखा है और सच भी।
कौवे, कुत्ते, गधे, भैंस, घोड़े – इतने प्राणी तो हो गए। बचे हुए का नंबर जल्दी लगा लिया जाए, अभी मेनका गाँधी को पता नहीं चला है 🙂
हाँ मूषकजी का नंबर भी हो गया है…
इन प्राणियों के सम्मेलन की रिपोर्ट ये रही-
मूषकराज-मूषक पीर सही न जाये!!
कौवे-घुघुती जी के आदेश पर …
कुत्ते-आईये ‘मोहल्ला’ बदल डालें…
अथ श्वानगाथा: Dogma of Dogs
गधे-गदहॊ की आवाज भाग -१
अथ श्री गदहा सम्मेलन
भैंस-प्रगतिशील, भैस और हम
प्राणियों के सम्मेलन की रिपोर्ट ये रही-
मूषकराज-मूषक पीर सही न जाये!!
कौवे-घुघुती जी के आदेश पर …
कुत्ते-आईये ‘मोहल्ला’ बदल डालें…, अथ श्वानगाथा: Dogma of Dogs
गधे-गदहॊ की आवाज भाग -१, अथ श्री गदहा सम्मेलन
भैंस-प्रगतिशील, भैस और हम
घोड़े-अश्वम जेलम गच्छन्ति
अच्छी कथा की. मजा आया. अब किस जानवर की बारी है, हमारे सिवाय. 🙂
अब आप से अनुरोध है कि एक टाइम सुबह और एक टाइम शाम को तरकश पर पधारते रहें और अच्छा अच्छा लिखते रहें… 🙂
– टिपियासा से ग्रस्त चिट्ठाकार
आप बहुत अच्छा लिखते है. 🙂 यह हम सच कह रहे हैं, चने तो बिना झाड़ पर चड़े बजार वाले खाओ तो भी ताकत आ जायेगी.
–आप तो हमारे मित्र हैं मगर यह अरुण बाबू कौन टाईम्स निकालने जा रहे हैं…बस आप और वो!!!…हम भी हूँ भाई!! काकेश, आप हमारा नाम भी रिक्मेंडेशन में लगवाये मित्रता का तकाजा है. 🙂
अच्छा है। संजय जी को सूचना के अधिकार के तहत जानकारी दी जाये।
लेख में : वरना हम यदि चर्चा में ही होते तो क्या टाइम्स मैगजीन में जगह ना पाते.
अरे टाइम्स के चक्कर में न आइये. देखा नहीं एक गोस्वामी को जो कवर पन्ने पर आया पर अब अन्दर है (जमानत मिली क्या – पता नहीं)!
आप तो मस्त हो ब्लॉगरी करिये.
ज्ञानदत्त जी ने सुझाया भरभण्ड के चक्कर में न पड़िये, मस्त होकर ब्लॉगरी कीजिए.. फिर भी हिंया-हुंवा बहके बिना आपलोगों का मन नहीं मानता. अरे, घी-मक्खन दाबकर लगे रहिये, भइया.