कल प्रमोद दद्दा पूछे कि “आप लिंक्ड है कि नहीं” हम सोचे ई का हो गया ….दद्दा सकाले सकाले का पूछ रहे हैं …वो भी सार्वजनिक रूप से . अब हम कैसे बतायें कि हम लिंक्ड है कि नहीं..वो भी सबके सामने…..घर में एक अदद बीबी भी है ना…. फिर जब पोस्ट में पढ़े तो उ तो एक नयी ही बात बताये कि लिंक करने से क्या क्या होता है… तो हम भी सार्वजनिक रूप से लोक लाज की फिकर किये बिना कह दिये … “अरे इ बड़े काम का बात बताये हैं… हम को तो इस लिकिंत कलंकित के बारे में पता ही नहीं था..वरना पहले ही तकादा करने आये होते ..कि हमरा लिंक काहे नहीं दिये ..चलिये तब ना सही अब कर देते हैं..लगा दीजिये ना जी एक ठो हमार भी लिंक …कर दीजिये ना हमको भी लिंकित ..हमको बहूत अच्छा लगेगा जी …वैसे मालुम है कि आप लिंकित तो ना ही करेंगे पर तकादा करने में क्या हरज …वैसे भी हम लेडी नहीं लेडा हूँ…” हम सोचे कि कहां हम भरभण्ड के चक्कर में पड़ रहा हूं ..लिंकित तो ना ही होंगे …लेकिन सांझ को देखा तो हम भी लिंकित थे… तब रात को खूब सूतल…. और सपने देखने लगे और बड़बड़ाने लगे…
“लिंक न होने से लिंकन की स्थिति बेहतर है”.हमरा सौभाग्य है कि हम “अ”,”अ”,”अ” के एक “अ” से तो लिंक हो ही गये.. आपको शायद मालूम हो हिन्दी चिट्ठाजगत के अमर,अकबर और अन्थोनी (एंथोनी इंगलिश में होता है) के बारे में …क्या कहा नहीं मालूम !!..ये लो जी ..इतना भी नहीं मालूम. ये तीन है “अ” हैं अभय ,अजदक और अनामदास.अक्सर साथ साथ ही पाये जाते हैं….हाँलांकि वो कहते हैं “लेखक हमेशा अकेला होता है, संघी नहीं” ..लेकिन जो दिखता है हम तो वही बोले… वैसे इनके साथ छोटी लाईन से सफर करने वाले एक “अ” और हैं…कोई सिदो हैमबर्गर हैम्ब्रम टाईप .. लेकिन वो अभी ट्रेनिंग ले रहे हैं…किसी छोटे शहर से आये हैं ..इसलिये नींद में बड़बड़ाकर उपन्यास लिखने की प्रैक्टिस कर रहे हैं… इस बात से इनकी पत्नी बहुत परेशान हैं… आप पूछेंगे वो कैसे ..वो होता क्या है ..ये नींद में बड़बड़ाते हैं और उनकी पत्नी हाथ में कॉपी,पैन लेकर बैठी रहती हैं कि जैसे ही ये बोलें वो नोट कर लें…. इनको किसी ने बता दिया कि ब्लॉग एक डॉट कॉम होता है…तब से हर नंगे और भूखे को खोज रहे हैं कि भला ये कौन सी नयी कौम आ गयी..जिस दिन इनको वो कौम मिल जायेगी उस दिन ये भी छोटी लाईन से बड़ी लाईन में आकर लाईन मारने लगेंगे…
अब हम अपने लिंकन के बारे में बता रहे थे.. हमारे लिंकन की तीन अवस्था हैं जो हर लिंक्ड के जीवन में आती ही हैं .. जब कोई नया नया लिंक्ड होके प्यार की पहली अवस्था को प्राप्त होता है तो वो स्थिति सबसे सुखद और बेहतर होती है…. आपको अपने लिंकित के प्रति अगाध श्रद्धा होती है… उसकी काँव काँव भी कोयल की कूक लगती है… आप उसके कांटो को भी पुराण की भाँति बांचते हैं.. दुनिया में उसके सिवा कोई नहीं होता ..सिर्फ आप और आपका लिंकित … आपको “लिंकित” होकर “कलंकित” होने का कोई डर नहीं होता .. आप हवा में उड़ने लगते हैं ..आपके पास सारी दुनिया से लड़ने की ताकत आ जाती है…आप और आपका लिंकित अक्सर ये सोचते हैं ..कि काश ऎसे ही जिन्दगी की शाम हो जाये… कल रात तक हमारी भी ऎसी ही स्थिति थी ..जब हम लिंकन की पहली अवस्था में थे …चित्र एक देखें … सिर्फ हम और हमारा लिंकित …
फिर जब आप हवा से जमीन की ओर कदम बढ़ाने लगते हैं …तो आपको जिन्दगी की कुछ कुछ हकीकत मालूम होती जाती है….समझ में आता है कि “और भी लिंक हैं जमाने में इसके सिवा” .. तो फिर “पुराण” “कांटे” में परिवर्तित हो जाता है ..पूछ्ने पर पता चलता है अब इन्हें “ज्ञानदत का ज्ञान” प्राप्त हो रहा है ..बुरा हो इस “ज्ञान” का जो हमारे बीच में आ गया . चित्र 2 देखें … इसी “ज्ञान” के कारण सारा झमेला हो गया.. लेकिन फिर भी मन में संतोष की चलो कोई बात नहीं चला लेंगे .थोड़ा बहुत टाइम तो मिलेगा ही ना लिंकित का….चला लेंगे जी वैसे भी ज्ञान प्राप्त होना अच्छी बात है… लोग तो अपनी बीबी बच्चे कि छोड़ कर ज्ञान की तलाश करने भाग जाते हैं ..इन्हें तो घर बैठे ही ज्ञान प्राप्त हो गया….
ये दुनिया का नियम है कि यहां परिवर्तन के अलावा कुछ भी स्थायी नहीं ..परिवर्तन ही पृकृति का नियम है… यही प्यार की तीसरी अवस्था होती है… जब आप पूरी तरह जमीन में आ चुके होते हो तब आपको पता लगता है असली जिन्दगी का स्वाद ..आप नून तेल लकड़ी के चक्कर में पड़ जाते हैं ..आप का लिंकित दुनिया के झमेलों के बीच कहीं छूट सा जाता है… चित्र 3 देखें…यही है असल जिन्दगी जहां आप जीवन की धमाचौकड़ी में केवल एक लिंकन से काम नहीं चला सकते… आपको कई जगह लिंक बनाने होते है.. “बिना लिंक सब सून” वाली अवस्था है…. जितने ज्यादा लिंक उतना ज्यादा नाम और दाम … अब ये बात हमारे भी समझ में आ गयी इसलिये हमें कोई ऎतराज नहीं ..हम तो खुश हैं कि हम लिंकित हैं……
** एक चीज और देखियेगा …पहले अंतरंग तीन थे अब सिर्फ दो ..ये क्या माजरा है…ये तो भाई अजदक ही जानें…
आप दूसरे अ से भी लिंकित हो चुके हैं..
कुछ तकनीकी लेख है? रसायन शास्त्र से जुड़ा लगता है. ऑर्गेनिक केमिस्ट्री से लेना-देना है क्या?
अ-ब करते हुए हमें डर है आज आप कहीं साइकिल भिड़ा के फौजदारी वाला मामला न खड़ा कर दें!.. थोड़ा सुरुर हुआ अच्छी बात है, मगर अब अच्छे बच्चे की तरह ज़मीन पर उतर आइए, चलिए. वैसे ही ज्ञानदत्त जी के लिए आप अज्ञान बने हुए हैं..
चौथे ‘अ’ ने भी सोचा है कि आपको लिंकित कर लिया जाए? इजाजत है?
अ अ अ अ आर्गेनिक केमिस्ट्री..कहाँ है भाई? टिप्पणी मे केमिस्ट्री देख के सारी पोस्ट छान मारी 😀
वैसे जब हम अपना ब्लॉग कभी सवांरेन्गे, तब इन कांटों को भी वहाँ जरूर सजायेंगें।
@अभय जी
कलंकितआई मीन लिंकित करने के लिये धन्यवाद.@ज्ञान जी हम तो आप से ही सीख रहे हैं ..ये क्या है आप ही बताइये… वैसे केमेस्ट्री ये क्या होता है …हम तो चेमेस्ट्री पड़े थे बचपन में ..वैसा ही है क्या …
@प्रमोद जी आप का आदेश मान लिया.. उतर ही गये जमीन पर
@अतुल जी : आप तो पांचवे हैं… इजाजत है जी….
@मिश्रा जी : धन्यवाद
का हो बबुआ ! तुहउं जोड़-तोड़ करै लागा . लगता है तोहका बुझा गया है कि ई ज़माना नेटवर्किंग का हय .
बांकी काकेश द्वारा संपादित
काक स्वामीजी लगे रहो हमहुं तुम्हरे साथ हैं.
वाह मित्र काकेश, लिंकयाया ही गये आखिर…बहुत बधाई और अनेकों लिंक मिलते रहने के लिये शुभकामनायें. 🙂
बधाई कि आप भी लिंकित हुये।
भदौरिया भाइ आप पागल खाने मे अपना इलाज करालो पहले फ़िर डा.लिखना वैसे आप जानवरो के पागलखाने से बाहर निकले कैसे जरा इस पर पहले रोशनी डाले तभी आप बाकी गधो पर कुछ कह पाने का हकदार बन सकते है लेकिन भाषा से आप जानवर से भी नीचे दर्जे के जीव लग रहे है कृपया अपना स्तर उठाये ताकी कम से कम आप गधो को कुछ कहने लायक बन पाये
ये भदौरीयाजी कौन हैं?
क्या इनको जरा भी तमीज नही है… छीः
काकेशजी भदोरीया की भद्दी टिप्पणी काहे लटका रखी है, हटा दिजीये.
अरुण
मेरा सादर नमन स्वीकारो. बहुत सही दिशा है तुम्हारी.
अच्छा है लिंक-प्रथा से कल्याण ही कल्याण होता है। कभी जी में आया तो इस पर पोस्ट लिखेंगे।
Achacha hi