यह प्रयास है मेरी आवाज की मधुशाला को कैसेट के संगीत के साथ मिला कर प्रस्तुत करने का. संगीत मन्नाडे वाली कैसेट से लिया है.
और जैसा कि मैने पिछ्ली पोस्ट में बताया कि अभी कुछ दिनों पहले मैं मधुशाला का पाठ कर रहा था तो एक मित्र ने उसे रिकॉर्ड कर लिया. प्रस्तुत है वही एक पॉडकास्ट के रूप में. मैं मधुशाला की तरंग में था इसलिये माईक हिल रहा था और उसी कारण आवाज कम ज्यादा हो रही है. झेल लीजिये.
पूरी श्रंखला
2. उमर खैयाम की रुबाइयों के अनुवाद..
3. मधुशाला में विराम..टिप्पणी चर्चा के लिये
4. उमर की रुबाइयों के अनुवाद भारतीय भाषाओं में
6. खैयाम की रुबाइयाँ रघुवंश गुप्त की क़लम से
7. मधुज्वाल:मैं मधुवारिधि का मुग्ध मीन
8.कभी सुराही टूट,सुरा ही रह जायेगी,कर विश्वास !!
9. उमर की मधुशाला के निहितार्थ
10. अगर पिलाने का दम है तो जारी रख यह मधुशाला
चिट्ठाजगत चिप्पीयाँ: उमर खैय्याम, मधुशाला, रुबाई, बच्चन, हरिवंश, फिट्जराल्ड, मदिरा, रधुवंश गुप्त, सुमित्रानंदन पंत
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जी झेल गए। 🙂
माशा अल्लाह आपने तो काफ़ी अच्छा गाया है।
काकेश दा,
किच्छू इ सुनते पारलाम न जे. आमार मोने होय किछु एक टा गोंडोगोल आछे…किंतु कामेंट कोरे जाच्छी….आबार आसबो….:-)
गाने के बाद सो गये थे कि नहीं? बढ़िया गाया!! 🙂
वाह। मैने मन्नाडे का टेप तो बारम्बार सुन सुन कर घिस दिया था। आज आप को सुनकर आनन्द आ गया!
मस्त है! 🙂
बढ़िया गाया है बंधु!!!
एक बॉटल रेड वाईन झेलने के बाद सुना मैने 😉
मस्त!!
वाह वाह …
हिमेश भाई के बाद बस आपका ही नाम है 😉
वैसे हिमेश जी ने कुछ समय पहले कहा भी था कि ” मन्ना डे भी नाक से गाते थे ”
सौरभ
बहुत सुन्दर ! बहुत मधुर ।
घुघूती बासूती
बहुत सुंदर गाया है, आज ही पता चला आप भी मधुशाला के रसिक है वैसे ही जैसे हम , हरिवंश हमारे पसंदीदा कवि हैं।