मुझे मधुशाला सदा से ही प्रिय रही है. मेरी मधुशाला की कहानी शुरु हुई सन 1986 में जब मैं पहले पहल दिल्ली आया था. उस समय मैने बच्चन व मन्नाडे की आवाज में मधुशाला वाला कैसेट सुना. सुनकर तो मानिये मैं पागल हो गया. उस कैसेट को ना जाने कितनी बार सुनता रहा. साथ में गाता भी रहा. तब से यह फितूर चालू हुआ.
1989 में पहली बार मधुशाला की किताब को पढ़ा तभी पता चला कि बच्चन की मधुशाला अंग्रेजी के किसी किताब का अनुवाद है.1990 में लाइब्रेरी से जॉन फ़िट्ज़राल्ड की किताब लाकर पढ़ी तब उमर खैय्याम के बारे में और अधिक जानकारी मिली.उस समय अंग्रेजी इतनी तो समझ नहीं आती थी लेकिन डिक्सनरी साथ में रख पूरी किताब पढ़ी. फिर इसी झोंक में मैने भी अपनी टूटी फूटी अंग्रेजी में कुछ पदों की रचना की.छंद विधान रुबाई वाला ही रखा.
Going higher and higher,Getting success Night n Day,
IS NO more MORTAL, must be descended into Clay.
THUS FILL your cup with the wine of Luv and Light,
AND Share it with all people like light Ray .
No need for the Last sleep, to prepare ,
You know not why you go nor where.
Drink! the wine of Joy and Happiness
Make lively today’s silence n future despair
People have tried to Unfold and find
The concealed truth of LIFE , behind
No LAMP they got in midnight dark
BLIND they were and remained blind.
Kakesh : 12.12.90
1993 में सुमित्रानंदन पंत की किताब “मधुज्वाल” हाथ लगी. उसने भी काफी प्रभावित किया और मैने कुछ और पदों की रचना की.
“मधुज्वाल व मधुशाला”
बच्चन जी के छंद में
अद्वितीय साकी वह कैसी, कैसी अद्भुत है हाला?
कर डाला उमर को पागल ऎसा जादूगर प्याला
पंत,बच्चन को प्रेरित कर,मधुरस से नहलाया उनको
लिख डाली उन दोनों ने यों, ‘मधुज्वाल’ औ ‘मधुशाला’
बच्चन जपते रहे रात दिन, मधुशाला, मदिरा माला
मधुज्वाल की लपटों ने कवि पंत को तपा डाला
पीकर कविता की मधु मदिरा,मदमस्त हुए सब पाठकगण
देती हैं संदेश प्रेम का , ‘मधुज्वाल’ औ ‘मधुशाला’
पंत जी के छंद में
नहीं धरा में कोई साकी ,
नहीं मूर्त है मधुबाला.
ये तो जीवन के प्रतीक है
हाला, प्याला, मधुशाला
ये अपना संदेश कामना
मधु की वर्षा हो नित भू पर
मधु, जीवन कोई ज्योति बने अब
मधु में पगे रहें नारी नर
मधु सी मीठी बोली बोलें सब जन
हर कण मधुकण हो प्यारा
सब भ्राता सम रहें परस्पर
मधुमय हो संसार हमारा
काकेश : 21.02.93
हॉस्टल में जब रहा तो एक पीने पिलाने का दौर चालू हुआ. उस समय हॉस्टल में होने वाली अधिकतर मधु-पार्टियों में मुझे बुलाया जाता और हर पार्टी का अंत मेरे मधुशाला के गायन से ही होता.बहुत दिनों तक यह सिलसिला चला. मुझे उस समय मधुशाला के करीब साठ पद कंठस्थ थे. अब तो शायद दस भी याद नहीं है.
बाद में अंग्रेजी के अनुवाद, मैथिली शरण गुप्त और रघुवंश प्रसाद गुप्त का अनुवाद भी पढ़ा.बांग्ला अनुवाद के कुछ पद भी पढ़े. बीच में फारसी सीखने की भी असफल कोशिश की ताकि उमर खैय्याम की मूल रुबाइयों को पढ़ सकूं.अभी भी मुझे कुमांऊनी में हुए अनुवाद और फिर उसी के हिन्दी अनुवाद की तलाश है. साथ ही मैं पं बलदेव प्रसाद मिश्र द्वारा किये अनुवाद को भी ढूंढ रहा हूँ.
तो यह श्रंखला मधुशाला के पीछे मेरी दीवानगी का ही परिणाम है.
कुछ दिनों पहले जब मैं मधुशाला गा रहा था तो मेरे एक मित्र ने उसे रिकॉर्ड भी किया. कोशिश करता हूँ शाम तक उसको भी यहाँ चढ़ा पाऊँ.
[इस श्रंखला का यह अंतिम भाग है ]
इस श्रंखला के पिछ्ले लेख.
1. खैयाम की मधुशाला.. 2. उमर खैयाम की रुबाइयों के अनुवाद.. 3. मधुशाला में विराम..टिप्पणी चर्चा के लिये 4. उमर की रुबाइयों के अनुवाद भारतीय भाषाओं में 5. मैथिलीशरण गुप्त का अनुवाद 6. खैयाम की रुबाइयाँ रघुवंश गुप्त की क़लम से 7. मधुज्वाल:मैं मधुवारिधि का मुग्ध मीन 8.कभी सुराही टूट,सुरा ही रह जायेगी,कर विश्वास !! 9. उमर की मधुशाला के निहितार्थ 10. अगर पिलाने का दम है तो जारी रख यह मधुशाला
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बहुत खूब,
बेहतरीन जानकारी भरा आलेख बधाई।
ये अच्छी बात नई है..हमे खाली सुनाओगे..? अरे भाई बुलाओ पिलाओ फ़िर सुनाओ..तभी मधुशाला का पूरा सम्मान कर पाओगे..आने के इंतजार मे ..:)
बढ़िया है!
भई वाह
बहुत खूब!!
अगर मिले तो मधुशाला के बाद मधुबाला और मधुकलश भी पढ़िए बच्चन साहब की हालांकि मधुशाला वाला टेस्ट आपको नही मिलेगा इनमे लेकिन पढ़िएगा जरुर!!
Wah kakesh ji bahut acha likha, aaj keval yahi bhag padh paya hu, agli bar aur bahg padhne ki koshish karuga.
latest Post :Urgent vacancy for the post of Girl Friend…
बचपन में ही मैंने भी पहली बार मन्ना डे के आवाज़ में मधुशाला का कैसेट सुना था.. पता नहीं क्यों मगर तभी से अच्छा लगता है..
अपनी बात बताकर आपने याद ताज़ा कर दी..
सौरभ