कल अपने क्लिनिक पर बैठे थे तो एक व्यक्ति आये . अब आप कहेंगे कि मैने कभी बताया ही नहीं कि मैं डाक्टर हूँ …हमने तो कल तक आपको ये भी नहीं बताया था कि हम ‘कागाधिराज’ हैं….चलो आपके गिले शिकवे फिर कभी …अभी तो आप कल की बात सुनिये.
जी हाँ मैं डाक्टर हूं और कुत्तों का कुत्ते के काटने का इलाज करता हूँ.कल एक व्यक्ति आये ….
गोल गोल मुंह, छोटे छोटे बाल.. आँखों में फोटो-क्रोमेटिक चश्मा …जो कि थोड़ा भूरा भूरा सा हो गया था … शायद धूप में आये थे. ..गले में गुलाबी रंग का गमछा सा कुछ…आसमानी सी शर्ट या फिर कुर्ता …वो आये और आकर मुस्कुराने लगे.
हम किसी कौवे को गुजरात भेजने के फरमान की तैयारी करने में व्यस्त थे . उसी व्यस्तता के बीच उनको सर उठा के देखा तो लगा कि वो ऎसे मुस्कुरा रहे हैं जैसे कोई समुद्र किनारे फोटो खिचवाने के लिये खड़े हों.हम कुछ बोलने के लिये मुँह खोलें इससे पहले ही वो बोल पड़े….
आज खुश तो बहुत होगे तुम ..!!
क्यों भाई क्या हुआ ?
आजकल बहुत मरीज आ रहे हैं ना तुम्हारे पास….उन्होने व्यंगात्मक लहजे में पूछा.
वैसे पिछ्ले कुछ दिनों से मरीज तो खूब आ रहे थे पर इस ओर ध्यान नहीं गया था… हाँ पर….??
क्या तुम्हें मालूम है कि क्यों आ रहे हैं….???
उन्होने फिर पूछा..नहीं मुझे तो नहीं मालूम …. मैने अज्ञानता जतायी.
तुम्हें नहीं मालूम कि कुछ दिनो से यहां कुछ कुत्तों का आतंक छाया हुआ है..
कुत्तों का आतंक ..??? कैसा आतंक …!!
यहां किसी एक मोहल्ले में आजकल कुछ कुत्तों ने डेरा जमा लिया है और हर आने जाने वाले पर पहले गुर्राते हैं फिर काट लेते हैं . आज तो पता चला है कि उनमे से कुछ कुत्ते पागल भी हो गये हैं.
जरूर हो गये होंगे ..क्योकि अमूमन तो कुत्ता ऎसे काटता नहीं क्योकि कुत्ता तो बहुत वफादार होता है. हमने अपना ‘कुत्ता ज्ञान’ बधारते हुए कहा.
क्या पता अपने मालिक की वफादारी ही कर रहे हों..
मालिक की वफादारी !! यानि कि कोई मालिक भी है इनका !!
वो बोले….अब ये तो पता नहीं पर कुछ लोगों को कहते सुना कि इन कुत्तों का भी कुछ ‘हिडन ऎजेंडा’ है….
लेकिन इसका कुछ तो करना पड़ेगा ना..नहीं तो कहीं यहां रेबीज ना फैल जाये. हमने अपनी डाक्टरी चिंता जतायी…
लेकिन करें तो क्या करें…. वो बोले .
हम मौन रहे ..
वे बोले ऎसे मौन रहोगे तो फिर सारे 365 दिन ही मौन रहना पड़ेगा …. उन्होने चिंतक की तरह उकसाते हुए कहा.
हाँ सो तो है… लेकिन करें तो क्या करें…हम इसी सोच विचार में थे कि सामने से लड़खड़ाते हुए दो आदमी आते दिखायी दिये…दोनों ने एक दूसरे को सहारा दे रखा था… एक को तो हम पहचान गये …वो थे ‘भगत जी’ …जो डाक विभाग में पोस्टमैन थे और चिट्ठा चिट्ठी इधर उधर पहुंचाने का काम करते थे….बहुत बकबक भी करते थे… इसीलिये कुछ लोग उन्हें नारद जी भी कह के बुलाते थे…
आइये भगत जी आइये …ये लड़खड़ाते हुए क्यों आ रहे हैं और ये महाशय कौन हैं…हमने पूछा.
ये हैं मेरे दोस्त इरफान मियां…वे बोले.
आदाब..
आदाब..
दुआ-सलाम के बाद मैने देखा दोनों के पांवों में जख्मों के निशान थे.
अरे ये क्या हुआ आप लोगों को ..कहीं आप दोनो भी मोहल्लों वाले कुत्तों के चक्कर में तो नहीं पड़ गये…
चक्कर में नही साहब चंगुल में कहिये…
लेकिन कैसे..?
अब क्या बतायें साहब ,भगत जी ने बोलना प्रारम्भ किया , आप को तो मालूम है आजकल ये डाक बांटने का काम कितना कठिन होता जा रहा है..
वो तो ठीक है पर ये जख्म…
अरे वही बता रहा हूं साहब .. मैं रोज डाक लेने डाकखाने जाता हूं और इरफ़ान भाई अपनी प्यारी सी बिटिया ‘सारा’ को स्कूल छोड़ने … हम दोनों का समय लगभग एक सा ही होता है. जाने का….
लेकिन पिछ्ले कुछ दिनों से एक मोहल्ले में कुछ कुत्ते आ गये हैं पहले तो बेवजह भौंकते हैं और फिर कुछ बोलो तो काट खाते हैं…. इरफ़ान मियां ने बात को जारी रखते हुए कहा… और ‘सारा’ बिटिया तो और भी डरी हुई है..वो कहती है मैं स्कूल नहीं जाऊंगी ..वहां रास्ते में बहुत कुत्ते हैं…मेरे टीचर (भैन जी) मेरे को अच्छी- अच्छी चिट्ठी घर में ही भेज देंगी और उसी से ही बहुत कुछ सीख जाउंगी….
जैसे नेहरू जी भेजा करते थे चिट्ठी …जेल से …. भगत जी बीच में टपकते हुए बोले.
अरे अभी नेहरू जी को छोड़ो …काम की बात करो…मैं बोला…
हाँ तो उन्ही कुत्तों ने हमें भी जख्मी कर दिया… इरफान मिंया बोले..
मैने दोनो की मरहम पट्टी की ..टिटनैस का एक इंजक्सन दिया .. तब उनकी हालत थोड़ी ठीक हुई..
भगत जी बोले …लेकिन इससे कैसे बचें साहब … आप कब तक इंजक्सन लगाते रहेंगे..कुछ तो सोचना पड़ेगा ही ना…
क्यो ना हम ये कस्बा ही छोड़ दें… इरफ़ान मिय़ां बोले…
कस्बा ही छोड़ दें !! ये भी कोई बात है… भगत जी ने प्रतिकार किया. हम कस्बा तो नहीं बदल सकते . और फिर क्यों बदलें.
क्यों .. क्या बात है..मैने जानना चाहा…
अरे भाई ये कस्बा तो अच्छा ही है .यहां अपने पप्पू के पास होने की पूरी गैरंटी है और एक फायदा और है सुना जाता यहां रहने वालों का पुनर्जन्म स्काट्लैंड में होता है 🙂
ये तो ठीक बात है लेकिन इस कस्बे के मालिक भी कभी कभी जाते हैं ना उन बदनाम कुत्तों वाले मोहल्ले में. इरफ़ान मियाँ बोले..
मालिक!! यानि ..कस्बे का भी कोई मालिक होता है क्या… ? हमने चौंक कर पूछा.
अरे कस्बे के मेयर साहब.. अब मेयर साब तो मालिक ही हुए ना .
हाँ वो तो है… लोकतंत्र में हर चुना हुआ व्यक्ति देश , समाज ,गांव , शहर का मालिक ही होता है. हम बोले
लेकिन कल जब कुछ लोग आपके पास आये थे कैमरा-सैमरा ले के तो उनको भी आप मालिक मालिक ही ना बोल रहे थे. भगत जी ने पूछा.
भईये आजकल तो जिसके पास कैमरा है वो भी मालिक ही है… इरफ़ान मियाँ बोले.
और जिसके पास हथोड़ा है वो … भगत जी ने चुटकी लेने के अंदाज में पूछा.
वो है मालिक का बाप .. हमने गुस्से में कहा ….आप तो काम की बात पर आइये.
हाँ तो मैं कह रहा था कि मेयर साहब कभी उन बदनाम गली मुहल्लों में जाते हैं ना .. इरफ़ान मियाँ ने बात को जारी रखते हुए कहा.
हाँ ..लेकिन वो तो शांतिदूत बनके जाते है ना …भगत जी बोले.
शांति… अरे ये शांति कौन है हमने तो केवल चंपा का ही नाम सुना था इरफ़ान मियाँ ने पूछा .
अरे वो वाली शांति नही मियाँ.. अशांति वाली शांति.
लेकिन जाते तो हैं ना वो भी… इरफ़ान मियाँ बोले
ओ हो… तो उस से क्या होता है… वो फिर लाइन में आ ही जाते है ना .. और फिर कभी कभी तो चलता ही है .. भगत जी समझाते हुए बोले …और हाँ यहां ‘कच्ची कली’ भी देखने को भी मिलती है कभी कभी.
हमने भी सोचा के भगत जी से इस बात पर बहस करना ठीक नहीं इतना बड़ा काम करते हैं… कहीं कल से हमारी चिट्ठी ले जाने से मना कर दें तो.
हमने कहा…लेकिन गुरु जी आप ये बताओ कुत्ते कहाँ है कस्बे में या मोहल्ले में.
कौन कुत्ते .. भगत जी कुत्तों को भूल ‘कच्ची कली’ में खो गये थे .
अरे वही वो भौकने वाले कुत्ते ..मैने उन्हें याद दिलाते हुए कहा.
अच्छा हाँ .. अरे भौकने वाले नही साहब कुछ तो पीछे ही पड़ जाने वाले और कुछ दिनों से लग रहा है कि कुछ पागल वगैरह भी हैं…
हाँ हाँ मालूम है… अच्छा ये बताओ आपका डाकखाना और आपकी बेटी का स्कूल जहां है वहां को जाने के लिये क्या एक ही रास्ता है. क्या..कोई दूसरा रास्ता नहीं है…
मतलब …?
मतलब ये कि क्या आप उस मोहल्ले को और उसके कुत्तों को अवोईड नहीं कर सकते..
अवोईड !!! .. इरफान मियां के लिये ये शायद नया शब्द था.
अरे बच कर निकलना, नजरअंदाज करना.. भगत जी ने समझाते हुए बात जारी रखी..हाँ कर तो सकते हैं पर वो मोहल्ला भी तो हमारे ही समाज का ही अंग है ना….कब तक अवोइड करेंगे .
हाँ वो तो ठीक है पर जब तक वो कुत्ते काटना ना छोड़ दें या सारे कुत्तों को रेबीज की वैकसीन ना लग जाये तब तक आप उस मोहल्ले से ना गुजरें…
हाँ ये बात तो ठीक है… ..इरफान मियां ने कहा….
हाँ ..हम दूसरा रास्ता तो अपना ही सकते हैं ..अपना लेंगे ..थोड़ा लंबा पड़ेगा पर ठीक है….भगत जी ने भी सहमति जतायी..
अब तो मेरी बिटिया भी अब बिना किसी ख़ौफ के स्कूल जा पाएगी…
और मैं भी अपनी डाक टाइमली बाँटुंगा …
मेरे सुझाव पर दोनो सहमत थे…और हमारे चश्मे वाले बंधु गुरुदेव की तरह मुस्कुरा रहे थे…
डिस्क्लेमर : ऊपर लिखा लेख किसी व्यक्ति या उसके किसी भी बुरे करम के बारे में नहीं लिखा गया है. ये काकेश की काँव काँव कल्पना का कमाल है . इस कथा के सब पात्र, स्थान एवं परिस्थितियां सार्वजनिक काल्पनिक है. वास्तविक जीवन (वैसे भी जीवन कभी वास्तविक होता कहाँ है ) से इनका दूर दूर तक कुछ भी लेना देना नहीं है. कोई भी समानता केवल उपयोग संयोग मात्र है. यदि आपको कोई आपत्ति हो तो टिप्पणी के माध्यम से दर्ज करायें. हम वादा करते हैं कि उनको किसी दूसरी पोस्ट में इस्तेमाल कर कोई नई पोस्ट नहीं बनायेंगे.
काकेश जी आपत्तिया ही आपत्तिया है एक तो आप अपने आप को तीन चार ईन्जेक्शन पहले ही (प्रीवेन्टिव) लगा ले आपको पागल कुत्तो के काटने का खतरा ज्यादा है
२ भाई बे मतलब इतना हसाओगे गलत बात है कल इसी बात पे पंगा हो जायेगा कि हम ५७%+१५% ज्यादा हसे है दुसरे का हिस्सा मार लिया
कमाल है भाई आपका सेन्स ऑफ़ ह्यूमर..हँसी हँसी में गहरी बातें कर डाली..बेचारे अविनाश के साथ मेरी पूरी सहानुभूति है.. उसकी नीयत बुरी नहीं है.. बस वो कुछ ज़्यादा ही सेल्फ़ राइटियस होने की भूल कर रहा है.. जो उसके विचार से सहमत नहीं हो रहा उसे साम्प्रदयिक घोषित कर दे रहा है..उसे आपके लेख से थोड़ी सीख लेनी चाहिये.. समझना चाहिये कि वो कोई चेतना जगाने का काम तो नहीं कर पा रहा उलटा खुद अलग थलग पड़ जा रहा है.. मुझे बख्श देने के लिये बहुत बहुत शुक्रिया..
वाह, काकेश जी। यह है असली व्यंग्य, यह है लेखन, यह है कहने का अंदाज! मैंने खुद कभी व्यंग्य नहीं लिखा, लेकिन पढ़ा पर्याप्त है। इस स्तर का व्यंग्य बहुत कम मिला है पढ़ने को, कम से कम हिन्दी चिट्ठाकारी में।
@ अभय जी,
जहां तक नीयत की बात है, कोई किसी के दिल में झांकने तो जाएगा नहीं। आप जो लिखते-बोलते हैं, उसी से आपके बारे में राय बनती है। अविनाश ने जो लिखा है, वह भारतीय क़ानून के हिसाब से एक संज्ञेय अपराध है, जिसके लिए उसे तीन वर्ष तक के कारावास की सजा हो सकती है और चाहे जो भी उसके आका हों, उसे बचा नहीं पाएंगे। हो सकता है कि वह मेरी इस बात को धमकी के रूप में ले, लेकिन मैं सिर्फ आगाह कर रहा हूं। क्योंकि क़ानून की जानकारी नहीं होने को किसी अपराध के परिणामों से बचाव का बहाना नहीं बनाया जा सकता। आप उसके शुभचिंतक हैं, यदि समझा सकते हैं उसे तो समझा लीजिए समय रहते।
हालांकि वास्तविक जिंदगी में इतने महत्वपूर्ण और जरूरी काम सबके पास पहले से हैं कि हर कोई इस तरह के फालतू ऑनलाइन विवादों से बचना चाहेगा। चिट्ठाकारी हम लोग महज शौक से करते हैं और यह जीवन की प्राथमिकता में नहीं है। कोई अपने चिट्ठे की हिट्स बढ़ाने और टिप्पणियां पाने का संतोष हासिल करने के लिए इस तरह से व्यर्थ के विवाद खड़ा करेगा, तो यह किसी के लिए अच्छा नहीं रहेगा। ऐसे लोगों से सभी लोग दूरी बनाए रखना ही पसंद करते हैं। काकेश ने जो बात खूबसूरती से व्यंग्य में कह दी है, उस बात को मैं सीधे-सपाट शब्दों में कह रहा हूं। क्योंकि घुमाकर बात को कहना अपन की आदत में नहीं है।
बढ़िया कटाक्ष. एक आंख के बुद्धिजीवियों से तर्क वितर्क करना मूर्खता की निशानी है. जो सुनने को राज़ी नहीं उसको संदर्भ समझ नहीं आते. वह अपनी सुविधा और एजंडे के मुताबिक़ कहता पढ़ता है.
कुछ उसके बारे में — सुनो —
जिगर मुरादाबादी कह गए हैं-
उनका जो फ़र्ज़ है अरबाबे सियासत जाने
मेरा पैग़ाम मोहब्बत है, जहां तक पहुंचे.
शुरू से ही मैंने उस तरह के ‘हंस’विवेकी चिट्ठों से परहेज़ रखा है. कुछ कथा मासिक और पत्रिकाओं मे ऐसे लेखों की भरमार होती है. अभद्र शब्द, आग-लगाऊ कुतर्क, धर्म विशेष पर आक्षेप!! इनका अस्तित्व ही इस तरह के लेखों पर टिका हुआ है. एक पक्ष जब तक क्रिया न करें तब तक यह प्रतिक्रिया कैसे करेंगे. कई दफ़ा क्रिया इधर तो प्रतिक्रिया उधर से ही आती है. यानी बहोत सूक्ष्म में इनका वजूद कट्टरवादियों के दूसरे धड़े के अस्तित्व पर अवलंबित है. मौलिकता के नाम पर क्या है ये तो पढ़ने के बाद ही पता चल गया था. तभी मैंने ‘हंसविवेकी’ कथाओं का ज़िक्र किया है.
धर्मनिरपेक्षता का यह मतलब बिलकुल नहीं कि ख़ास क़ौम ही निशाने पर रखा जाए. इस हद तक हमले किए जाएं कि बात ग़ैरक़ानूनी कृत्य तक पहुंच जाए. अब ऐसा ही हो रहा है तो मुझे समझ आ रहा है कि सेकुलरिज़्म को नुक़सान पहुंचाने वालों में सांप्रदायिक तत्वों के साथ-साथ ऐसे सेकुलरवादियों का भी कम योगदान नहीं है.
आदरणीय, आपके विचारो से मेरे विचार शून्य से सौ फ़ीसद न भी मिले किंतु इस आधार पर मैं आपका अपमान करने का अधिकारी नहीं हो सकता. ऐसा ही सौम्य व्यवहार मेरे साथ होना चाहिए. अपनी लाइन बड़ी करने के लिए दूसरों की लाइन छोटी करना घटियापने की निशानी है.
अब जाकर हमारे फुरसतिया और उड़नतस्तरी के कलेजे को ठंढ़क पड़ी होगी कि चलो कोई तो है लाइन में जो लेखन में उनके कांधे का बोझ हल्का कर रहा है। क्यों सुकुलजी और समीर भाई इस लाइन वाले बालक के सिर पर आप लोगों का हाथ है कि नहीं? वैसे भी पिछली बार ही काकेश भाई ने आप दोनों के जुत्ते को जुतियों और सेंडिलों से भेंट कराकर अपनी योग्यता सिद्ध कर दी थी।
खूबसूरत व्यंग्य… आपके अंदाज के दीवाने हो गये है हम।
काकेश, आप कुछ इंजेक्शन भी भेज दीजिये डाक से यहाँ वहाँ, इतने सारे हिट मिले पोस्ट को लेकिन किसी को कुछ कहना नही, इतनी कम टिप्पणियां। व्यंग्य तो अच्छा लिखा है, अगर नही लिखा है तो भी किसी ने नही कहा कि क्या कांव कांव कर गये।
अच्छा है, मेरी बधाई… ऐसे ही लिखते रहें।
:), bahut sahii
अच्छा व्यंग था मजा आ गया खास कर जब हथौडों वालों को बाप की संज्ञा दिया गया था।
हो हो हो
(अब इसे भी भो भो भो मत पढ लेना)
मित्र काकेश
बढ़िया लिखे हो. बधाई!
@ शशि भाई
कलेजे को ठंढ़क-अरे,ऐसी लगी कि निमोनिया की नौबत आयी जा रही है. काकेश और फुरसतिया जी की बात करते हो और साथ में हम-बहुत विनोदी हो भाई!! हा हा, इनके सामने तो हम बस यही कहते हैं-हम भी लाइन में-सबसे पीछे-चल रहे हैं खरामा खरामा!! 🙂
मेरी प्रतिक्रिया यहां देखें :
http://samakaal.wordpress.com
अरे वाह काकेश जी नहीं मालूम था कि आप इतना अच्छा व्यंग्य भी लिखते हैं। प्रतीकात्मक व्यंग्य लिखने वाले कुछ चिट्ठाकारों में आप भी शुमार हो गए।
बाकी भईया हमने तो कुत्तों के डर से उस मोहल्ले में जाना ही छोड़ दिया। इससे बेहतर कोई तरीका नहीं।
बहुत अच्छे। गंभीर बात को भी हंसी हंसी में कह दिया।
वाह वाह।
@अरुण जी : इंजेक्सन तो पहले ही लगा लिये थे जी.
@ अभय जी (ग़ुरुदेव) : तारीफ के लिये शुक्रिया.
@ सृजन जी : आपने तारीफ की तो लगा तर गये . अब तो पूरी आकाशगंगा पार कर ही लेंगे .
@ शशि जी : आप भी कहां टांग खीचने लगे भाई साहब . दोनों धुरंधरों का आशीर्वाद है तभी तो ये सब लिख पा रहे हैं…और समीर जी तो अब हमरे मित्र भी हो गये हैं.
@ नीरज जी , तरुण जी , पंकज जी , जगदीश जी , प्रमेन्द्र जी , मसिजीवी जी : आप सबका भी ढेरों धन्यवाद.
@ अविनाश भाई : आपका विशेष धन्यवाद .
@श्रीश जी : लगता है आपने मेरी पहले वाली पोस्ट नहीं पढ़ी . अब पढ़ भी डालिये जनाब.
@ चौपटस्वामी जी : मैने अपनी आपत्ति आपके चिट्ठे पर दर्ज करा दी है.
@ मित्र समीर : भइये आप लोग तो जहां खड़े होते हो लाइन वहीं से शुरु होती है…हम तो सिर्फ लाइन ही ढूंढते रहते हैं. वैसे धन्यवादा आपका भी.
दो दिन नेट से दूर रहा और आज आपकी रचना पढ़ी। वाकई आपने बहुत उम्दा व्यंग लिखा है।
एक बात और इंजेक्शन मेरे लिए भी रख लेना, उधर मेरा नाम भी लिखा हुआ था एक बार।