प्रिंट मीडिया में आजकल हिन्दी चिट्ठाकारिता की बहुत धूम है.हाल ही में बालेन्दु जी का कादम्बिनी में छ्पा लेख तो आपने पढ़ा ही होगा. कथादेश में भी अविनाश जी का हिन्दी चिट्ठाजगत पर एक लेख हर माह छ्पता रहता है.समकाल में भी ऎसा ही लेख छ्पा था.कई ऎसे भी चिट्ठाकार हैं जिनके लेख भी पत्रिकाओं में छ्पते रहे हैं.पिछ्ले माह भी कुछ पत्रिकाओं में ऎसे ही लेख छ्पे.आइये आज बात करते हैं दो पत्रिकाओं की.
मीडिया विमर्श मीडिया पर आधारित सामग्री प्रदान करने वाली हिंदी की पत्रिका है जो कागज और वेब दोनों पर प्रकाशित होती है.जुलाई माह में इनके चिट्ठे पर एक पोस्ट आयी थी ‘रेडियो’ पर लिखें पारिश्रमिक के साथ. इस पोस्ट को पढ़कर कुछ चिट्ठाकारों ने रेडियो पर लिखा. हमें भी लगा कि लिखकर कमाई का यह अच्छा अवसर है.
इस पत्रिका के ताजा अंक में जो लेख छ्पे हैं उनमे जिन चिट्ठाकारों के लेख हैं वो है.
रविशंकर श्रीवास्तव , सृजन शिल्पी , राजीव रंजन प्रसाद और काकेश यानि मैं (हाँलाकि अभी पारिश्रमिक की प्रतीक्षा है).
भावी सत्ता एक और पत्रिका है जिसके संयोजक योगेश समदर्शी चलाते हैं. इस पत्रिका के ताजा अंक में भी कुछ चिट्ठाकारों के लेख छ्पे हैं. वो सभी चिट्ठकार हैं अरुण अरोरा यानि पंगेबाज,समीर लाल यानि उड़न तश्तरी, कमल शर्मा यानि वाह मनी और गरिमा तिवारी.
लेख हैं.
1. बिहारी नहीं दक्षिण भारतीय अव्वल : पंगेबाज
2. कोई लौटा दे मेरे बीते हुए दिन : समीर लाल
3. जीवन को सुखद बनाने का ज्ञान : गरिमा तिवारी
4. कहाँ खो गया झुमरी तलैया : कमल शर्मा
तो चलिये लगे हाथ सब को बधाई देते चलें.बधाई जी बधाई.
चलिए, बयार थोड़ी सी उलटी बहनी तो शुरू हुई… 🙂
बधाई!!
काकेश की कुड़कुड़ जारी रहे. एक सूचना यह है कि समकाल में ब्लाग पर नया कालम शुरू हो रहा है- इस अंक से “ब्लाग कालम”.
@रवि जी आपके लिये तो अब यह पुरानी बात हो गयी है. LFY पर ना जाने कब से पढ़ता हूँ आपको.
@संजय भाई : ठीक है जी आपने बताया था इसी लिये पिछ्ले दिनों समकाल खरीदी थी पर कुछ भी नहीं था. ठीक है अगला अंक भी खरीद लेंगे जी.
सही है। अच्छी खबरें दी। कुछ दिन में लगता है सब ब्लाग वाले ही पत्रिकाओं में दिखेंगे। 🙂
जानकर बड़ा अच्छा लगा. लिखने के बारे में बताया इसके फल के बारे में भी बताइयेगा
हमरी बधाई भी टिका लो.
मेरे भी इक्का-दुक्का लेख प्रभासाक्षी में छपे हैं, और बालेन्दु भाई की मेहरबानी से पारिश्रमिक भी ठीकठाक मिला है, दस वर्ष तक नईदुनिया (इन्दौर) में प्रकाशित होने के बाद अब वैसे मैं उल्टा चल रहा हूँ, यानी ब्लॉगिंग की तरफ़ (स्वान्तः सुखाय)… 🙂
“मीडिया विमर्श” जैसी पत्रिका की अरसे से जरूरत महसूस की जा रही थी जिसमें मीडिया से संबंधित विभिन्न पहलुओं पर जरूरी विमर्श हो सके। पत्रकारिता में “चिराग तले अंधेरा” वाली बात रही है। जो पत्रकारिता देश-दुनिया की तमाम बातों पर नज़र रखती है, खुद उस पर नज़र पर रखने वाला भी कोई होना चाहिए।
जहां तक चिट्ठाकारी और चिट्ठाकारों के बारे में, पत्र-पत्रिकाओं में लेखों के छपने का संबंध है, शुरुआती दौर में चिट्ठाकारी के बारे में जागरुकता फैलाने और इस विधा को लोकप्रिय बनाने में इनका निश्चय ही बहुत योगदान रहेगा। लेकिन हमें यह भी ध्यान में रखना चाहिए कि ब्लॉग की विधा का जन्म ही मुख्यधारा की मीडिया के विकल्प के रूप में हुआ है, क्योंकि यहां वह बात कही जाती है, जिसे मुख्यधारा हाशिए पर डालती रही है। यहां सच को उस बेबाक तरीके से कहा जाता है जैसा मुख्यधारा में कहने की हिम्मत नहीं होती।
इस वैकल्पिक मीडिया की यह स्वायत्तता, पहचान और भंगिमा बनाए रखने के लिए जरूरी है कि हम मुख्यधारा के समानांतर स्वतंत्र तरीके से इसका विकास करें।
विकसित देशों में ब्लॉग लिखने वाले को प्रिंट के लेखकों से कम सम्मान नहीं मिलता है। उम्मीद है कि भारत में भी जल्द ही ये स्थिति आ जाएगी।
काकेश जी मेरा नाम भी याद रखने के लिये अच्छा वाला शुक्रिया 🙂
हम्म! चलिए इस पोस्ट से मुझे कुछ हिन्दी की पत्रिकाओं के नाम तो पता चल गये अब उन्हे बाजार में ढूढेगें, वर्ना हमें तो धर्मयुग, सारिका और सरिता के आगे कुछ पता ही नही था। इअन सब ब्लोगर भाइयों को बधाई और हमारी शुभकामनाएं । हर्ष जी आप की कही बात सच हो जाए तो हम भी थोड़ी गरदन ऊंची कर लेगें।