(इस पोस्ट को साइबर कैफे से ऑनलाइन हिन्दिनी औजार का प्रयोग कर लिख रहा हूँ . इसलिये कुछ मात्रा की गलतियाँ हैँ जो कल ही सुधार पाऊँगा . आप मन ही मन सुधार लेँ . एक दिन उधार दें.)
आजकल कवियों पर शोध करने का फैशन चल निकला है . कोई कवि और कविता को नापने के चक्कर में पड़ा है ..तो कोई कवि की खोली झोली में झाँक रहा है.
कोई कवियों की शैली और कार्यों कि तुलना कर रहा है तो कोई कविता चर्चा में व्यस्त है.एक ओर कविता कोष में २००० पन्ने जोड़े जा चुके है और दूसरी ओर कवि तो कवि ,कविता-पाठकों तक को पुरुस्कार मिल रहे है . यानि पूरा का पूरा माहौल ही ‘कवितामय’ है . घुघुती जी की पड़ोसी ‘कविता’ तो फूले नही समा रही होगी .
अब कविता को नापने के चक्कर में हमारा क्या हाल हुआ था ….ये तो आप जान ही चुके हैं.
” सुबह आप की तरह मैं भी कविता को नापना चाहता था तो मिली नहीं ……. आप ने याद दिलाया और कहा कि पड़ोस वाली कविता को नापो तो उसकी माँ तो नहीं मिली पापा मिल गये ..आप ने कहा था माँ से पूछ लेना पापा का जिक्र तो था नहीं तो हम बिना पूछे नापने लगे. और जो झन्नाटेदार झांपड़ पड़ा कि घूम गये. आप भी ना …क्या क्या सलाह देती हैं…बू हू हू…. ”
कल सदी की महान मँत्र कविता को पढ़ने का भी सौभाग्य मिला . सचमुच मन गदगदा उठा ….. और मन गदा उठाकर भागना ही चाहता था कि उसे समझाया , धमकाया और उसे किसी तरह रास्ते पर लाया .
वैसे कुछ लोग आजकल प्रेरणा लेने के चक्कर मे भी पड़े हैँ … तो हमने सोचा कि हम भी प्रेरणा ले ही लेँ. अब जब खालिस,भावुक और सुन्दर कविता लिखने वाली घुघुती जी इतना अच्छा व्यँग्य लिख सकती हैँ तो अपन कविता मे हाथ क्यों नही आजमा सकते.
तो हमने भी लिख डाली सदी की महान ‘बिना मात्रा वाली’ कविता
चपल मन थम !!
मत मचल,
जतन कर,
हरदम अनबन ,
जखम, कनक-सम,
कसक तम,
चपल मन थम.
चल अचल,
बन मरहम, हरदम,
बन मत, तक्षक
न उगल गरल,
बन, मत-तक्षक,
बस संभल,
रहम कर,
खटर पटर ,
जमघट,
हट !! ,
बम-गरम, हमदम,
मचमच मत कर,
नटखट,
बदल !! ,
सब घर,
न डर,
बरस जलज सम,
कर अरपन,
नयन,चरन पर,
गलत मत कर,
खतम कर,
अब,
सब,
चपल मन थम !!
और कहते कहते मन को थाम ही लिया …. लेकिन इस महान बिना मात्रा की कविता से मन थम तो गया पर मन भरा नहीं . तो सोचा कि क्यों ना सदी की सबसे बरबाद कविता भी लिख डालेँ .
तो लीजिये वो भी हाजिर है .
”
झाँपड़ है, तमाचा है, कँटाप है,
बाबा जी की झोली में साँप है.
लिट्टी है चोखा है,
स्वाद ये अनोखा है. *
मूड़ी है झाल है, **
अंटी में माल है.
धांय किड़ी किड़ी,धांय किड़ी किड़ी, *!
सिगरेट को छोड़ जलाले एक बीड़ी.
घास की ओस,
बेटा है खरगोस,
तिनके वाली दूब,
अब सजेगी खूब.
फ्रीं फ्रां ध्रीग ध्रांग,
भ्रूम भाँ भ्रूम भाँ,
भों भों , काँव काँव,
आ गये अब चुनाव.
शोर है शराब है,
सत्ता का गलियारा है,
मार मत और इसे,
बेचारा दुखियारा है.
पेट में आंत है,
शेरनी के दांत है,
गाँवों की जीत है,
आज सभी मीत हैं.
सटर पटर ,
गटर गटर ,
तड़्क भड़्क,
कहाँ सड़क ?
कौन कड़क !!
मत हड़क ,
मत भड़क .
बाप ने कमाया है ,
बेटे ने लुटाया है .
झूठा है, झूठा है, झूठा है,
लूटा है, लूटा है, लूटा है,
टूटा है, टूटा है, टूटा है
खाया है, खाया है, खाया है,
भाया है, भाया है, भाया है,
माया है, माया है, माया है.
बरबाद कर,
स्वीकार कर,
जुलम कर,
जालिम बन,
अर्थ है, *(धन के अर्थ में)
अनर्थ है,
समर्थ है,
व्यर्थ है.
बिजली है ?
पानी है ?
बिटिया है ,
सयानी है .
खूँ खाँ खूँ खाँ ,
खून खराबा ,
कूँ काँ क़ूँ काँ ,
काके दा ढाबा ,
मान कर,
मानकर,
अपमान कर,
ध्यान कर ,
चल निकल,
सटक तू,
मत अटक तू,
गलहार है,
तैयार है,
आ बैठ ,
कुर्सी पर ,
अब इस सदी की सबसे बरबाद कविता का अर्थ कोई हम से ना पूछे .
अभय जी से पूछ ले.
हम तो चले..
* (ये प्रमोद जी की एक टिप्पणी से लिया है.लिट्टी-चोखा बिहार के प्रमुख व्यंजनो में है)
** (झाल-मूड़ी बंगाल में बहुत प्रसिद्ध है,भेल पूरी या लैया-चना जैसा)
*! (उड़ीसा में बोलचाल में प्रयुक्त होता है)
कुछ भी लिखा ।लेकिन पढने मे मजा आया। कुछ कवियों से अच्छा लिख गए हो।बधाई।
साइबर कैफे में भी कैफी प्रेरणा मिल जाती है आपको…!!
वाह, आप तो लाइन में काफी तेजी से आगे बढ़ते जा रहे हैं।
वाह काकेश जी ! क्या बात है ? अब तो आप हमारे व्यंग्य की ओर रुख करने का कारण जान ही गए होंगे । हमें प्रतियोगिता से बहुत डर लगता है । जब आप इतना अच्छा लिखेंगे तो हमें कौन पढ़ेगा ?
घुघूती बासूती
सब कुछ सही चल रहा था.. माहौल जम गया था.. बाबा की खाली की गद्दी मिली ही जाती थी..पर कर दी ना गड़बड़..सीना ठोंक के कहना था.. इस सदी की सबसे महान कविता.. मगर विनम्रता के चक्कर में सब खर मण्डल हो गया.. और दूसरी गलती.. अपने तो फंसे ही फंसे.. फिर सब डाल दिया मेरे सर पर..?
‘खर मण्डल’ नहीं..’खरमण्डल’ पढें
बाकि तो आप जानों, मगर कवितायें दोनों बहुत ही बेहतरीन बन पड़ी हैं. वाह वाह, बधाई!!
बहुत अच्छे व्यंग के साथ सुंदर लिखा है आपने …बधाई
वहाSSSS………………वाहSSSS…………………काकेस जी कमाल कर दिया आपने भी इंची भी ऐसी लगाई की बाकी कवियों की तो बांध दी आपने सदी नहीं यह तो विस्तार पर और विस्तार है…… 🙂 🙂 🙂
दोनों ही कमाल की कविताएं है। अचरज नहीँ यदि कोई प्रतिभावान संगीतकार इन्हें चलचित्रों के गीत में ढाल दे और कुछ दिनों में ये लोकप्रिय भी हो जाएं।
गज्जब ! भाई गज्जब ! बिलकुल उत्तर आधुनिक भावबोध की कविता है । दूसरी वाली ।
पहली प्रयोगवाद दौर की है ।
सदी के सब्से महान कवि को प्रणाम !
जिन पंक्तियो ने सबसे ज़्यादा प्रभावित किया वे हैं
“धांय किड़ी किड़ी , धांय किड़ी किड़ी”
” बिजली है ?
पानी है ?
बिटिया है ,
सयानी है ”
🙂
वाह वाह
काकेश गुदड़ी के लाल है,
कमाल से भी बड़े कमाल है.
बहती नाक का सहारा,
मस्त मुलायम रूमाल है.