परुली तुमने मुझे गुनहगार बना दिया

मैने सुना था कि कभी कभी लेखक द्वारा रचा गया कोई काल्पनिक चरित्र लेखक से भी आगे निकल जाता है और लेखक को पाठकों के हिसाब से फिर उस चरित्र को ढालना पड़ता है. जैसे जब हैरी पॉटर की लेखिका ने अपनी किताब में हैरी पॉटर को मारने की बात की तो कई पाठकों ने उसका विरोध किया. कई जगह प्रदर्शन भी हुए और अंतत: लेखिका को झुकना पड़ा. वैसे मुझे खुशफहमी नहीं है कि मैने हैरी पॉटर जैसा कोई चरित्र निर्मित किया है लेकिन फिर भी मैं अपने उन पाठको के प्रति नतमस्तक हूँ जिन्होने मेरे एक चरित्र को इस तरह से अपनाया कि उसे वह मुझसे ज्यादा पहचानने लगे.

जब मैने परुली कहानी का पहला भाग लिखा था तो मैं उसे एक लघु कथा के रूप में पहले ही भाग में समाप्त मान रहा था. लेकिन पाठकों की उत्सुकता “आगे क्या होगा?से लगा कि पाठक इसके आगे की कहानी जानना चाहते हैं. तो मैं हर बुधवार की सुबह परुली का भाग्यविधाता बनता रहा. जिसे लोगों ने काफी पसंद भी किया.कई पाठक बुधवार को कहानी डालने में देरी होने पर मेल करने लगे कि परुली का क्या हुआ. मुझे भी इसमें आनंद आ रहा था. लेकिन फिर ऑफिस में व्यस्तता बड़ी तो मुझे बुधवार की सुबह इस कहानी को लिखना भारी पड़ने लगा. इसलिये पिछ्ले बुधवार मुझे लगा कि इस कहानी को फास्ट ट्रैक में रखकर समाप्त कर दूँ. ताकि हर बुधवार को लिखने का झंझट ना रहे. लेकिन मुझे क्या मालूम था कि परुली के दीवाने इस कदर नाराज हो जायेंगे.

देखिये क्या कहते हैं पाठक

सुजाता जी ने April 16th, 2008 ,11:34 am पर टिपियाया

अरे ! आज तो आपने बड़ी जल्दी में निबटा दिया कहानी को । हम तो हाथ मलते रह गये !अभी तो स्वाद आना शुरु हुआ था । क्या सचमुच कहानी खत्म ? जाएँ ?

संजीत जी और अरुण जी का ऑबजेक्शन

Sanjeet Tripathi जी ने April 16th, 2008 ,11:54 am पर टिपियाया

वाकई यार, ये तो बड़ी जल्दी ही समेट दिया आपने, कुछ ऐसे जैसे त्रस्त से हो गए हों आप इस सीरिज़ के लेखन से और सब कुछ बस निपटाना चाहते हों
आई ऑब्जेक्ट ;)

अरूण् जी ने April 16th, 2008 ,12:25 pm पर टिपियाया

हम इसे नही पढते ये तो हमारे साथ धोखा है ,पहले रायता मन मर्जी का फ़ैलाया और फ़िर फ़टाफ़ट निपटा दिया क्या आप फ़िल्म लेखन ट्राई कर रहे थे क्या जी ? जो पहले फ़ैलाते चले गये और जब पता चला कि फ़िल्म दो घंटे की बन गई है तो बस पन्द्रह मिनट मे निपटाने मे लग गये ,दुबारा लिखा /(मिटा कर) जाये इसे :)

इस कहानी के बहुत से पाठक ऐसे भी थे जो ब्लॉगर नहीं थे. सबसे तीखी प्रतिक्रिया उन्ही पाठकों की थी.माला जी ने कहा

mala telang जी ने April 17th, 2008 ,5:31 pm पर टिपियाया

काकेश भाई, ये आपने हमारे साथ बहुत बड़ा धोखा किया है । माना कि समयाभाव है , आप हमसे समय और मांग लेते .. हम खुशी खुशी दे देते ,लेकिन आपने तो हमसे ऐसा पीछा छुड़ाया जैसे सारे गाँव के कुत्ते आपके पीछे पड़ गये हों… जाइये ,इस तरह परुली का डॉक्टर बनना हमें जरा भी रास नहीं आया ,आप हमें बताएं ,कौन इलाज करवायेगा परुली से ? माफ करें मैं तो नहीं ।

नवीन पाठक जी बोले.

नवीन पाठक जी ने April 17th, 2008 ,8:32 pm पर टिपियाया

काकेश दा,
ये जो आज आपने अपने सारे दोस्तो के साथ धोखा किया है, आपको कुछ लगा कि नही…
पर आपने कहानी का अन्त तो सुखद कर दिया, लेकिन अन्त ऐसा होता नही है..कि डा. प्रिया का डा. अतुल के साथ दिल मिल गया और शादी हो गयी…
पहाड के इस माहौल मे लड्किया डाक्टर नही बन सकती है, ,,,

संजय पुजारी जी सबसे ज्यादा नाराज दिखे.

Sanjay Pujari जी ने April 19th, 2008 ,2:32 pm पर टिपियाया

नहीं काकेश जी … दिल तोड़ दिया. मैने तो आपको अच्छा लेखक समझा था लेकिन आप लेखक हो ही नहीं सकते. सिर्फ अपने लिखने का शौक पूरा कर रहे हो और नैट पर लोगों को बेवकूफ बना रहे हो. [अपने मन के मुताबिक कुछ भी लिखा और जब इस बारे में ज्यादा सोचा नहीं गया तो कहानी को 15 लाइनों में खतम कर दिया. भाई साहब ये कहानी अगर ऐसी ही खतम करनी थी तो जिस दिन शुरु हुई उसी दिन खतम क्लर देते..खाली इतने दिनों तक अपना टाइम लगाया और बांकी लोगों को बेवकूफ बनाया.]

और हेम पांडे जी ने तो अपना आक्रोश व्यक्त करने के लिये कहानी का अंतिम भाग ही लिख भेजा.

hem pandey जी ने April 22nd, 2008 ,7:13 pm पर टिपियाया

‘परुली’ की अन्तिम कड़ी ने मुझे भी अन्य की तरह निराश किया. अपने आक्रोश को व्यक्त करने के लिए मैंने अन्तिम कड़ी को इस प्रकार लिख डाला है:-

परुली की दशा देख कर उसकी ईज़ा ने निश्चय कर लिया कि वह फूल जैसी अपनी बेटी की भावनाओं का खून नहीं होने देगी.उसे लगने लगा था कि इस ब्या से परुली सुखी तो नहीं ही होगी. परुली के बाबू से फुरसत में बात करने पर जोस्ज्यु को भी यही ठीक लगा कि यह रिश्ता टूट जाए.
अब इसे पूरे परिवार कि प्रबल सामूहिक इच्छा का प्रभाव समझिए या संजोग कि घटनाक्रम भी कुछ अनुकूल रहे.खान्तोली के गणेश दत्त जी, जो ‘ब्याकर’ (शादियाँ तै कराने वाला) कहलाते थे, ने अपनी भतीजी की जुगाड़ गोपाल के लिए लगा ली और पांडे ज्यू के दिमाग में यह बात भी बिठा दी कि परुली तो ज्यादा ही बीमार ठैरी, ज्यादा दिन बचने वाली भी नहीं हुई.जोस्ज्यु की भी हालत ऐसी नहीं हुई कि वे गोपाल को कुछ ज्यादा दे सकें.पिठ्याँ अभी लगा नहीं है.इस लिए ये रिश्ता ख़तम करने में कोई हर्ज़ भी नहीं हुआ.

इसी बीच जोस्ज्यु के क़का का लड़का महेश, जो चालीस साल से हैदराबाद में था,इष्टदेव की पूजा के लिए पहली बार गाँव आया. उसके दोनों बेटे विदेश में थे और दोनों ने ही अंतर्जातीय विवाह कर रखे थे .महेश रिटायर हो गया था और उसने अपने मौसेरे भाई हरीश के मार्फ़त लखनऊ कुर्मांचल नगर में मकान खरीद लिया था.अब वह लखनऊ में ही रहने वाला था.वह हफ्ते भर जोस्ज्यु के घर में रहा. उसने भी जोस्ज्यु को प्रेरित किया कि वे परुली को आगे पढाएँ और यथासंभव आर्थिक सहायता का भी भरोसा दिलाया.वापस जाते समय वह पाँच सौ रुपये परु के और पाँच सौ रुपये बोजी के हाथ में रख गया.जीवन में पहली बार जोस्ज्यु ने इतनी बड़ी रकम किसी मेहमान या यजमान से एक बार में प्राप्त की थी.

महेश के जाने के बाद परुली भी तेजी से स्वास्थ्य लाभ करने लगी.डॉक्टर पुनेठा की दवा के साथ-साथ महेशकका की आशाजनक बातों से भी वह जल्दी ही बीमारी से उबर गयी.परीक्षा आते आते वह पूर्ण स्वस्थ हो चुकी थी.संभवतः गोल्ज्यु ने महेश कका को परुली के जीवन में एक नया मोड़ लाने के लिए भेजा था.ये महेश कका की बातों का ही असर था कि परुली का आत्मविश्वास बढ़ रहा था.इसी आत्मविश्वास के चलते उसने परीक्षा दी और ५७% अंकों से उत्तीर्ण की.

अब तो जोस्ज्यु भी परुली की पढ़ाई को ले कर उत्साहित थे. परुली गाँव की लड़कियों में ही नहीं, लड़कों में भी सबसे प्रतिभावान सिद्ध हो रही थी.परुली ने इंटर में बायोलोजी ले ली थी.उसकी ड्राइंग अच्छी थी.इसलिए उसे चित्र बनाने में परेशानी नहीं होती थी.प्रायः चित्रों में उसे गुड भी मिलता था,जिसे वह जोस्ज्यु को दिखाती थी और जोस्ज्यु मन ही मन खुश होते थे.हाँ शुरू शुरू में मेढक का डायसेक्शन करते समय उसे घिन जरूर आई थी.
परुली ,जिसे अब ईजा-बाबू परु ही कहते थे,न केवल पढ़ाई में ज्यादा मन लगा रही थी वरन् घर के काम में भी ज्यादा ध्यान देने लगी थी और इस बात का विशेष ध्यान रखती थी कि ईजा के काम का बोझ कम हो जाए. यद्यपि ईजा-बाबू छोटे भाई चंदू से काम नहीं कराते थे,किंतु परु उसे काम के लिए उत्साहित करती थी.वह सोचती थी कि वह स्वयं पढ़ने के लिए बाहर चली जायेगी तो ईजा के लिए अत्ती काम हो जायेगा.
जोस्ज्यु और जोस्याणी कभी बैठे बातें करते तो उनकी बातों में परु की चिंता जरूर झलकती.
जोस्ज्यु कहते :- हँ वे, हमने कहीं परु का ब्या टाल कर ग़लत तो नहीं किया.
जोस्याणी कहती – नैं हो, चुप रौ.अब मन कैं झन गजबजाओ. गोल्ज्यु ने जो किया भल ही किया होगा. देखते नहीं पढ़ने में हमेशा फस्ट ठैरी.घर का काम भी भली कै संभालने वाली ठैरी.
फ़िर कुछ शरमा कर बोलती – आज कल देखण-चाण भी खूब हो गयी है.

इसे परुली का भाग्य कहो या गोल्ज्यु की कृपा कि केमिस्ट्री के टीचर तारा दत्त जी अल्मोड़ा से ट्रांसफर होकर परु के इंटर कालेज में आ गए.केमिस्ट्री पढाने के लिए अल्मोड़ा में तारा दत्त जी का बहुत नाम था.तारा दत्त जी की ही कृपा से परु केमिस्ट्री का कीडा बन गयी.उसे अधिकांश फार्मूले और एक्वेशन कंठस्थ थे.केमिस्ट्री ही वह विषय था जिसके बूते परु ने इंटर भी ५८% नंबरों से पास कर लिया.

परु पिछले दो सालों से पत्रों द्वारा महेश कका के सम्पर्क में थी.महेश कका अब लखनऊ में निवास कर रहे थे.उन्हें भी परु से लगाव हो आया था.तीज त्यौहार परु को कुछ रुपये भे भेज दिया करते थे.

डाक्टरी के लिए परु ने पी.एम.टी. की तैयारी महेश कका के निर्देशन में ही की थी.उसका सेंटर भी लखनऊ था.अब जा के लगा कि स्कूल की पढाई में अच्छे नंबर लाना और बात है,लेकिन पी.एम.टी. क्लीअर करना उतना आसान नहीं.पी. एम.टी.देने के बाद परु को डर लगने लगा.उसे लगा कि वह शायद पी.एम.टी.में न निकल पाये.वो अब ज्यादा ही भक्त हो गयी थी.देवी के थान नित्य दिया लगाना उसका नियम हो गया था और उसकी एक ही मन्नत होती- देवी माता! मेंके डाक्टर बणे दिए.
रिजल्ट आ गया.परु को काउन्सेलिंग के लिए बुलाया गया.परु की खुशी का पारावार न था.उसने सोचा वह अब डाक्टर बन ही जायेगी.परू के पूरे परिवार में जश्न था.इजा बाबू ने उसे खुशी-खुशी लखनऊ के लिए विदा किया.पडोस के जमुना दत्त जी का लड़का कैलाश छुट्टी बिता कर फौज की ड्यूटी में वापस जा रहा था,उसका साथ भी मिल गया.महेश कका के लिए गडेरी,भांगा,भट,घौत और दो दाने निमु के भेंट में भेजे.जोस्ज्यु खत्याड़ी वाले खेत को बेचने की तैयारी कराने लगे ताकि परु की पढाई का खर्च निकल सके.

लखनऊ में फाइनल काउन्सेलिंग के बाद पता चला की परु का एडमिशन नहीं होगा.वह कट ऑफ़ को छूने से रह गयी थी. परु के कल्पनाओं का महल भरभरा कर गिर पड़ा.उसे जबरदस्त सदमा लगा.वह गाँव वालों को क्या मुंह दिखायेगी?सभी कहेंगे -बहुत फलफला रही थी.सुद्दै जो क्या ठहरा डाक्टर बनना!एक बार उसे लगा की उसे आत्महत्या कर लेनी चाहिए,लेकिन यह विचार ज्यादा देर तक हावी न हो सका.ईजा- बाबू और चंदू के ख्याल ने उसे सकारात्मक विचारों की ओर मोड़ दिया.

काउन्सेलिंग के कुछ दिन बाद ही महेश कका ख़बर लाये कि आरक्षित कोटे की सीटें पूरी नहीं भर पायीं हैं और शासन इस बार ये सीटें सामान्य सीटों से भरने पर विचार कर रहा है.शायद परु का नंबर भी आ जाए क्योंकि परु ज्यादा पीछे नहीं थी.हुआ भी वही.नई सूची मैं परु का नाम आ गया.
परु के जीवन का यह सबसे महत्वपूर्ण दिन था.बचपन से पाले सपने को साकार करने के लिए यह पहला पक्का कदम था.परु की खुशी देख कर महेश कका के भी आंसू निकल आए.

गाँव में जोस्ज्यु अब तक के घटनाक्रम से अवगत न थे.वे तो परु को डाक्टर मान चुके थे.परु की चिट्ठी आयी- मेरा एडमिशन हो गया है.गोल्ज्यु के थान प्रसाद चढ़ा देना. जोस्ज्यु उपाध्यायजी के यहाँ से मिसिरी ले आए. परु की ईजा ने गोल्ज्यु के थान परसाद चढा कर पूरे गाँव मे बांटा.ज्यादातर लोगों का एक ही जवाब था -भल भै हो तुमेरी परुलि डाक्धर बण गे.लेकिन कुछ ज्यादा समझदार लोग यह भी कह रहे थे-अल्ले काँ(अभी कहाँ) आई त पाँच साल तक पढाई करनी पड़ने वाली ठैरी.तब जो बनेगी डाकटर.

पढाई का कुछ खर्च खत्याड़ी वाला खेत बेचने से चल गया था.महेश कका ने भी काफी मदद की. उन्होंने परु को होस्टल न भेजकर अपने घर पर रख लिया जिससे रहने खाने का खर्च बच जाए.

एडमिशन होने तक परु को उतनी मुश्किल नहीं हुई जितनी एडमिशन के बाद. मेडिकल कालेज की जबरदस्त रैगिंग से परु विचलित हो गयी. उसने रैगिंग का नाम तो सुना था लेकिन इस प्रकार की रैगिंग होगी,उसे अनुमान नहीं था.उसे कालेज जाना किसी यातना झेलने जैसा लगने लगा.महेश कका उसकी परेशानी को भाँप गए.उन्होंने परु की चाची से बात की. परु की चाची ने उसे रैगिंग के आतंक से उबरने में मदद की.
परु जब पी.एम.टी. देने पहली बार लखनऊ आयी थी तो इतनी बड़ी ट्रेन देखकर,इतना बड़ा शहर देख कर,इतनी चहल पहल,इतनी भागमभाग देख कर जहाँ चमत्कृत हुई थी वहीं घबराई भी.उसे लगा था कि इतने बड़े शहर में रहकर पढाई करना कितना मुश्किल होगा.लेकिन अब इस चकाचौंध से उसकी घबराहट दूर होने लगी और उसे इसमें रस आने लगा.कालेज में भी उसका ग्रुप बन गया था.वहाँ भी उसे अच्छा लगता था.

यह परु का फर्स्ट इअर था.कालेज में एनुअल फंक्शन चल रहे थे.उसके ग्रुप की रीमा भाटिया बोली-
‘प्रिया तुम इतनी क्यूट हो. ब्यूटी कम्पीटिशन में पार्टिसिपेट क्यों नहीं करतीं?’
अमित और दूसरे साथियों ने भी इस बात पर जोर दिया.प्रिया ने कुछ शर्माते हुए कहा-
‘ठीक है,मैं आज अंकल से परमिशन लूंगी.’
‘परमिशन!’नेहा बोली’भला इसमें उन्हें क्या ऐतराज़ हो सकता है?तुम्हें एक चांस मिल रहा है.हो सकता है आज मिस मेडिकल कालेज,कल मिस लखनऊ फ़िर मिस इंडिया और मिस वर्ल्ड भी तुम बनो.एक्सपोजर ऐसे ही तो होता है.’
परु चुप रही.नेहा की बातों से परु को लगने लगा था कि महेश कका उसे अनुमति दे देंगे क्योंकि वे उसे हमेशा प्रोत्साहित करते थे.

लेकिन जब महेश कका से इस बारे में बात हुई तो उन्होंने परु को प्यार से समझाते हुए मना कर दिया.हालांकि उनकी बातों से ऐसा लग रहा था कि डिबेट या स्पोर्ट्स में पार्टिसिपेट करने की अनुमति दे देते.महेश कका की इस बात पर परु को बुरा लगा और वह अनमनी हो गयी.

उसके दोस्तों ने इस बात पर उसके अंकल-आंटी का मजाक भी बनाया.मारिया तो यहाँ तक कहने लगी-
‘ये तुम्हारे पेरेंट्स होते तो मना नहीं करते.तुम्हें तो होस्टल ज्वाइन कर लेना चाहिए.वहाँ कम से कम फ्रीली रह तो सकोगी.’

निपट गाँव से एक अत्यन्त सरल प्रतिभावान लडकी शहरी चकाचौंध भरे बनावटी माहौल में ठीक से तारतम्य नहीं बिठा पा रही थी.इसी लिए जब महेश कका ने उसे न्यू इअर पार्टी में होटल में रात भर जश्न मनाने के लिए मना कर दिया तो वह भड़क उठी और बोली-
‘कका क्या आप समझते हैं कि मैं वहाँ जा कर कोई ग़लत काम करूंगी या शराब पियूंगी?क्या सभी लडकियां जो वहाँ जा रही हैं इसी लिए जा रहे हैं?उनके पेरेंट्स उनको क्यों नहीं रोक रहे?’
इसी रौ में उसने होस्टल ज्वाइन करने की इच्छा भी जाहिर कर दी.वह यह भी भूल गयी कि महेश कका उसका आधा खर्च वहन कर रहे हैं.होस्टल का खर्च वह कहाँ से लाएगी?
उसके तेवर देख कर चाची तो तमक उठी और बोल दिया-
‘जाने दीजिये इसको होस्टल.जब उसे आपकी इज्ज़त नहीं करनी तो आप क्यों इसकी फिक्र करते हैं?हम इसके लिए कितना कर रहे हैं इसे उसकी भी परवाह नहीं.बेशर्म हो गयी है.पर निकल गए हैं इसके.’
महेश कका को भी काफी सदमा लगा.दुखी हो कर बोले-
‘बेटा मैंने तो तुझे अपनी बेटी मान लिया था.तेरा भला बुरा सोचना मेरा फ़र्ज़ था. लेकिन तुझे मेरी बातें बुरी लग रही हैं तो अपने मन की कर ले .हाँ,इतना जरूर कहूंगा कि तेरे बाबू की स्थिति ऐसी नहीं कि होस्टल का खर्च उठा सकें.अभी तो तेरा फर्स्ट इअर ही है.’
लेकिन प्रिया पर उनकी बातों का कोई असर नहीं हुआ.वह गुस्से में थी और उसने होस्टल जाने का निश्चय कर लिया था.दूसरे दिन वह इस बारे में दोस्तों से बात करने वाली थी.आज की पार्टी में शामिल न हो पाने का भी उसे बहुत मलाल था.
कालेज पहुँचने पर कुछ और ही चर्चा थी.रात की पार्टी में स्टूडेंट्स के दो गुटों में जम कर हाथापाई हुई थी.बोतलें और कुर्सियाँ चली थीं.पुलिस आ गयी थी.अमित, नेहा और सुष्मिता को रात भर थाने में रहना पड़ा था.सुबह पेरेंट्स को बुला कर उन्हें चेतावनी दी गयी थी.
प्रिया के लिए ऐसी घटना अकल्पनीय थी वह महेश कका से कुतर्क करने के लिए शर्मिन्दा थी.दूसरे दिन के न्यूज़ पेपर में घटना की ख़बर फोटो सहित थी.उसके ग्रुप के कुछ स्टूडेंट्स के फोटो और नाम भी थे..
इस घटना के बाद प्रिया को अहसास हो गया कि महेश कका सदा उसके भले की ही बातें करते हैं.उसे आश्चर्य भी हुआ कि उसने किस दम पर होस्टल ज्वाइन करने का विचार बना लिया था.महेश कका से मुंह्जोरी करने का भी उसे बहुत दुःख था. उनसे आँखें मिलाने में भी उसको शर्म आ रही थी.हाँ एक फायदा जरूर हुआ,इसके बाद कभी परु महेश कका से पूछे बिना एक कदम भी नहीं चली.इसी का परिणाम था कि प्रिया ने अपनी मेडिकल के पढाई सफलता पूर्वक पूरी की.
आज परु को इस बात का अहसास है कि महेश कका ने ही उसके जीवन की दिशा बदली है.उनका बहुत बड़ा अहसान है जिसे जिंदगी भर नहीं भूल सकती-डाक्टर प्रिया जोशी

कहानी यहीं समाप्त होती है.इससे आगे जहाँ तक मुझे मालूम है बता दूँ-प्रिया,उसकी माँ और जोस्ज्यु ने कभी ऐसा व्यवहार नहीं किया जिससे गाँव वाले यह कह सकें कि ये लोग ओच्छि गए हैं.हाँ चंदू को अपनी दीदी के डाक्टर होने पर जरूर गर्व है और इसे वह अपने दोस्तों पर प्रकट भी कर देता है.
डाक्टर प्रिया की नौकरी भी पहाड़ के एक प्राईमरी अस्पताल मे लग गई.सुना है उसका चिह्न किसी डाक्टर अतुल पन्त के लिए गया है.चिह्न साम्य हो गया तो ब्याह पक्का ही समझो क्योंकि दोनों ही समकक्ष संबंधों वाले ठहरे और डाक्टर अतुल के पिताजी केमिस्ट्री के मास्टर तारा दत्त जी हुए जिन्होंने पारु को पढाया था और उसे पसंद भी करते थे.

आप सभी का हार्दिक धन्यवाद. मैं आप लोगों की सोच को नमन करता हूँ. मैं आपका गुनहगार हूँ. इसलिये क्षमा प्रार्थी भी हूँ. मैं समय मिलते ही कहानी के अंतिम भाग को लंबा करके लिखने की कोशिश करुंगा. ब्लॉग पर छापूं ना छापूं लेकिन इससे कमसे कम मेरा अपराधबोध तो कम होगा ही. आप आते रहें और मेरा मार्ग दर्शन करते रहें यही कामना है.

By काकेश

मैं एक परिन्दा....उड़ना चाहता हूँ....नापना चाहता हूँ आकाश...

15 comments

  1. हेम पांडे जैसे interactive पाठको का मिलना एक सौभाग्य है। पूरा अंत ही लिख डाला। काकेश, वाकई परुली की कथा को विस्तार और सार्थक अंत तक पहुंचाएं। यह ज़रूरी है।

  2. अब चुपचाप हेम जी की कहानी आगे बढाईये समझे ? वरना हम मान लेगे कि आप हम से पंगा लेने पर उतारू है 🙂

  3. ह्म्म, सई जा रहे हो अब!!
    पंगेबाज की बातां मान लो, नई तो ये आवारा भी पंगा ले डालेगा हां अऊर
    इस आवारा से पंगा पड़ता है बेहद महंगा 😉

  4. :)वाकई आप बहुत भाग्यशाली है ऐसे पाठक पा कर, अगली कड़ी का इंतजार है।

  5. इसे कहते हैं, जनता जनार्दन की जय…
    मैं ई – मेल के जरिये आपकी कहानी पढता रहा हूँ. अंत मुझे काफी अटपटा लगा. पर सोचा, कुछ बातें लेखक पर ही छोड़ देनी चाहिए. अब जब आप उसे दुबारा लिख रहे हो, इस लास्ट हिस्से को कृपया हटा दें.

  6. हेम पान्डेय जी कि जय हो !!!
    वाकई कहानी का अन्त बहुत अच्छा और सुखद है, कहानी के उद्देश्य पर विशेश ध्यान दिया है…
    परूली को डा. प्रिया बना दिया है ना कि उसके शादी पे जोर दे के..
    Kakesh da,
    Now whenever you will try to write something about Paruli, be take care of your readers.
    Curiously waiting next part of Paruli in words of Kakesh da..

    Thanks and Regards;
    नवीन पाठक

  7. अच्छा – सही हड़के भई – सोचा कि अब आप आसमान और निबटायेंगे अतैव विराम – पाठकों का अनुरोध/ हुड़क – पांडे जी की बुनो कहानी – वाह – ये तो परुली की खूबी है – या यूँ कहें फैलाया हुआ आपका ही है

  8. Dear Kakesh Da,
    Ya sab jo bhi Readers na lika ha na wo sab Isliya
    ki Apkai liki kahni”Paruli” ko log itna pasand karte tha jitna log Star Tv Ka kyon ki Sas bhi Bahu thi Serial ka………..
    Mr.Pandey na bhi Kub lika maja Aa gaya magar kisi bhi chej ki Jadhe main hoti hai jo apne liki or Aant jesa bhi raha……..
    Mr.Pandey na bhi Apki Parull ka kya kub surat Anta kiy uske liya wo bhi badhi ke patr hai magar Aap sab se jyada kyon ki esa subject tha “paruli ” Ki muja Anta mai pata chal ki uska School ka nam paruli hai………..
    Pls write in ur way……….
    We are waiting………

  9. काकेश जी, आज ही मौका मिला और परुली के जीवन चरित्र को एक साँस में पढ़ लिया. हेम पाण्डे जी के लिए तो जैसे परुली जीती जागती पात्र है. उनके इस प्रेम पर जितनी तारीफ़ की जाए कम है. वैसे जहाँ उन्होंने समाप्त किया…वहीं से ही आप परुली के जीवन को आगे बढ़ा सकते हैं यदि आप चाहें तो….. ! वैसे उम्मीद है कि अगली कहानी के पात्र भी इतने ही जीवंत होगें.

  10. Kakesh Da….Aap aage likhna kab start karenge?Roj – Roj aake Khali haath jaana padta hai…
    Kripaya Jaldi shuru kare!!

  11. लगता है आप काफी व्यस्त हो गये हैं, लेकिन आपकी व्यस्तता से हम जैसे पाठक जरुर परेशान हो जाते हैं।

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