महबूबा ..महबूबा ..

यदि इस पोस्ट का टाइटल पढ़कर आपको फिल्म शोले की याद आ जाये तो इसमें मेरा कोई कसूर नहीं है, लेकिन मैं ना तो आज आपको फिल्म शोले का गाना सुना रहा और ना ही अपनी महबूबा के बारे में बता ‘सच का सामना‘ कर अपने एक अदद पत्नी को परेशान ही कर रहा हूँ। मैं तो उस महबूबा की बात कर रहा हूँ जिसने अपने एक कदम से एक ओर यह बतलाया  कि लोकतंत्र की जड़ें कैसे मजबूत की जा सकती हैं और दूसरी ओर नारी की स्थिति को लेकर निंदित चिंतित लोगों को शुकुन की सांस लेने का मौका दिया। मैं बात कर रहा हूँ कश्मीर में विपक्ष की नेता महबूबा मुफ्ती सईद की, जिन्होंने विधानसभा में स्पीकर के ऊपर माइक फैंक कर यह बता दिया कि वीरांगनाऐं घर में पति पर ही बेलन नहीं चला सकती वरन अपने इस कौशल का प्रदर्शन विधानसभा में भी कर सकती हैं।

अपने इस वीरता भरे कृत्य से उन्होंने ना जाने कितनी चीजें स्पष्ट कर दीं। मैं उन्हें तहे दिल से धन्यवाद देना चाहता हूँ कि उन्होंने ऐसा किया, वरना नेता लोग तो सिर्फ बोलते ही हैं करते कुछ नहीं हैं। अब मेरा विश्वास इस देश पर, इस देश के लोकतंत्र पर, इस देश की महिलाओं पर मजबूत हुआ है। जो लोग बोलते थे कि कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है उनकी इस बात को लोग अब गंभीरता से लेने लगे हैं।

एक चीज जो स्प्ष्ट हो गयी कि जम्मू-कश्मीर में भी अब लोकतंत्र आ गया है। हमेशा से हम सुना करते थे कि हमें जम्मू-कश्मीर में लोकतंत्र की जड़ें मजबूत करनी है। यह और बात है कि इस देश में जहां जहां लोकतंत्र की जड़ें मजबूत हुई हैं वहाँ रुपये पैसों के पेड़ भी लहलहाये हैं जो नेताओं को पुष्प-फल देते रहे हैं। आम जनता उन जड़ों को इस उम्मीद में खाद-पानी देती है कि जब नेताओं से सात पीढ़ियों का इन्तजाम हो जायेगा तो जनता को भी फल चखने को मिल सकते हैं। तो अब यह साबित हो गया है कि जम्मू-कश्मीर में लोकतंत्र आ गया है। वरना हम तो यही लोकतंत्र के चैम्पियन के नाम पर तमिलनाडू, महाराष्ट्र या यू.पी. को रखते जहां जूते-चप्पल से लेकर माइक फैक कर लोकतंत्र के मजबूत होने का प्रमाण दिया जाता रहा है।

दूसरी ओर जब तमिलनाडू में इस तरह की घटना हुई थी तो महामहिम (उनके वजन के हिसाब से लिखना पड़ रहा है) जयललिता के साथ अभद्रता की गयी थी और उनकी ओर जूते-चप्पल, माइक फैंके गये थे। मैं तब से हैरान था कि माइक फैकने के वीर कर्म में कोई महिला कैसे पीछे रह सकती है, और वो भी किसी पुरुष पर। महिला की इस जन्मजात प्रतिभा का प्रदर्शन केवल घर तक ही सीमित रह जाय यह तो रीतिकालीन बात हुई। आज जब महिलायें हर मामले में पुरुष के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल रही हैं….। वैसे जिन्होंने यह मुहावरा गढ़ा होगा मुझे उनके मांनव-ज्ञान पर हमेशा से ही शक रहा है। महिला और पुरुषों की ऊंचाई में हमेशा से ही अंतर रहा है, एक आध अपवाद छोड़ दें तो महिलाओं की ऊंचाई हमेशा ही कम रही है, तो फिर  कंधे से कंधा मिला कर कैसे चला जा सकता है। होना चाहिये था महिलायें हर मामले में पुरुष के साथ कंधे से सर मिलाकर चल रही हैं…खैर…जाने दीजिये…. तो महिला महबूबा ने पुरुष स्पीकर पर माइक फैक कर यह जता दिया कि अब महिलायें केवल घर की चहारदीवारी तक ही सीमित नहीं रही हैं। वह अब बाहर निकल रही हैं। मुझे लगता है कि मुलायम सिंह यादव, शरद यादव और लालू यादव जैसे लोगों को इस बात का खूब अनुभव रहा होगा। इसीलिये वह राजनीति में महिलाओं के 33% आरक्षण का विरोध करते रहते हैं। शरद यादव ने तो आत्महत्या करने तक की धमकी दे दी थी। घर के अंदर बेलन झेलना और सार्वजनिक रूप से माइक झेलने में अंतर होता है। शरद-यादव ऐसी स्थिति आने से पहले ही दुनिया से कूच करना चाहते हैं तो क्या गलत चाहते हैं।

तीसरी चीज जो लोग जम्मू-कश्मीर का तालिबानीकरण करना चाहते हैं। महिलाओं को केवल बुर्के पहना घर के अंदर बैठा देना चाहते हैं, यह माइक उनके लिये भी एक करारा तमाचा है। हम खुश है कि ऐसी सोच वाले लोगों को महबूबा ने सही सबक सिखाया है।

तो क्या हमें महबूबा को धन्यवाद नहीं देना चाहिये। मैंने तो जब से यह समाचार सुना है तब से ही गा रहा हूँ…महबूबा..महबूबा…और अब तो उमर अब्दुल्ला भी निकल लिये। तो उन पर चर्चा कल करेंगे। आज इतना ही…

By काकेश

मैं एक परिन्दा....उड़ना चाहता हूँ....नापना चाहता हूँ आकाश...

17 comments

  1. वाह! वाह!महबूबा महबूबा. गुलशन में माइक चलते हैं, जब विधानसभा में मिलते हैं…
    आये और खूब आये. महबूबा के साथ आये….:-)

  2. मैं सोचता था फिल्म के बारे में जानकारी संवर्धन होगा। आजकल सुना है कोई स्वयंवर चल रहा है आर्यावर्त में। उसपर भी टार्च डालें मित्रवर!

  3. बहुत खूब …।:) ये ज्ञान जी अभी भी स्वयबर में दिलचस्पी ले रहे हैं? क्या बात है?

  4. बहुत बहुत लाजवाब कटाक्ष…

    बहुत सही नस पकडी आपने….घर में बेलन खाना और बात है,पर सार्वजानिक स्थल पर….और वो भी जहाँ कैमरे लगे हों…..यादव भाइयों का बुरा मानना और अड़ना स्वाभाविक है भाई….

    ज्ञान भैया की मांग के साथ हम भी हैं…ध्यान रखियेगा…

  5. आपके ब्लॉग पर कतरने तो पढ़ ही रहा हूँ लेकिन फिलहाल शब्दों का सफर पर आपके योगदान को रेखांकित करते हुए लेख मे आपका नाम पढकर यहाँ पहुंचा हूँ । आपको बधाई एवं शुभकामनायें -शरद कोकास ,दुर्ग, छ.ग..

  6. महिलाएँ किसी बात में कम हैं क्या?
    स्माइली लगाना ठीक रहेगा क्या? ये वाला 🙂

  7. Bahut hee dinon ke bad idhar aana hua aur aapke Mehbooba se mulakat ho gaee. Shukr hai mike Widhan sabha men he feken gaye Marne wale aur khane wale dono kee chamdee motee hai.

  8. अरे, कब चुपके से यह पोस्ट कर गए? कहाँ हैं?
    घुघूती बासूती

  9. इतने दिनों बाद आपकी कलम चलती देख सुख मिला,किन्तु लेखन अभी नियमित नहीं है. इसलिए ‘परुली’ जैसी रचना के लिए न जाने कितनी प्रतीक्षा करनी पड़े.

  10. @ ज़ाकिर भाई, आपने चिट्ठेकारी शुरु की उसके पहले से काकेश का एक पाठक-वर्ग बन चुका था।
    हिन्दी चिट्ठों की पठनीयता बचाये रखने में काकेश का फिर लिखना शुरु करना एक जरूरी कदम माना जाएगा।
    सप्रेम शुभ कामना

  11. बहुत बढ़िया लगा जी, और शिव कुमार मिश्र जी की टीप ने चार चांद लगा दिये।
    सर जी, बहुत समय बाद आये हैं आप, ’खोया पानी’ जैसा कोई प्रोजैक्ट और नहीं परवान चढ़ रहा क्या?

  12. isee vishay par maine bhi vyangy likha tha, lekin poora nahi kar paee….aaj aapke blog par aana hua to laga achchha hee hua varna itna badhiya vynag nahi padh patee….

  13. मैं तो कन्फ्यूज हू लेखक अपने घर की बात बता रहे हैं या जम्बू कश्मीर विधान सभा की, और महबूबा की बात कह रहे हैं या महबूब की, जरा स्पष्ट कीजिये

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