महबूबा ..महबूबा ..

यदि इस पोस्ट का टाइटल पढ़कर आपको फिल्म शोले की याद आ जाये तो इसमें मेरा कोई कसूर नहीं है, लेकिन मैं ना तो आज आपको फिल्म शोले का गाना सुना रहा और ना ही अपनी महबूबा के बारे में बता ‘सच का सामना‘ कर अपने एक अदद पत्नी को परेशान ही कर रहा हूँ।… Continue reading महबूबा ..महबूबा ..

मौलवी मज्जन से तानाशाह तक

कभी अपने बुजुर्ग या बॉस या अपने से अधिक बदमाश आदमी को सही रास्ता बताने की कोशिश न करना। उन्हें ग़लत राह पर देखो तो तीन ज्ञानी बंदरों की तरह अंधे, बहरे और गूंगे बन जाओ!

नेकचलनी का साइनबोर्ड

समझ में न आया कि नेकचलनी का क्या सुबूत हो सकता है, बदचलनी का अलबत्ता हो सकता है। उदाहरण के लिये चालान,मुचलका, गिरफ़्तारी-वारंट, सजा के आदेश की नक़्ल या थाने में दस-नम्बरी बदमाशों की लिस्ट।पांच मिनट में आदमी बदचलनी तो कर सकता है नेकचलनी का सुबूत नहीं दे सकता।

पास हुआ तो क्या हुआ

बेइज्जती के जितने प्रचुर अवसर हमारे यहां हैं दुनिया में कहीं और नहीं। नौकरी पेशा आदमी बेइज्जती को प्रोफ़ेशनल हेजर्ड समझ कर स्वीकार करता है।

फ़ेल होने के फायदे

फ़ेल होने पर सिर्फ एक दिन आदमी की बेइज्जती खराब होती है इसके बाद चैन ही चैन।

बुद्धिजीवियों के देश में…..

भारत विकट बुद्धिजीवियों का देश है. एक को ढूंढो हजार मिलते हैं. कमी नहीं ग़ालिब.

मैं पापन ऎसी जली कोयला भई न राख

जीवन की नश्वरता की कहानी….

कौन कैसे टूटता है ?

एक मार्मिक प्रस्तुति

मैं कहीं कवि ना बन जाऊं….

आप कहीं यह अनुमान ना लगा लें कि मैं किसी कविता नामक सुकन्या के प्रेमपाश में बंधकर कवि बनना चाहता हूँ इसलिये मैं यह घोषणा करना चाहता हूँ कि मुझ बाल बच्चेदार को किसी से प्यार व्यार नहीं है (अपनी पत्नी से भी नहीं 🙂 ) बल्कि मैं तो लिखी जाने वाली कविता से प्रेम… Continue reading मैं कहीं कवि ना बन जाऊं….

जूता- सैंडल पुराण – भाग 1

यह चिट्ठा 3 अप्रैल 2007 को यहाँ प्रकाशित किया गया था।` जूतमबाजी जारी है। कोई सिले जूते की भाषा सुनते सुनते इतना पक गया है, कि कहता है जूते की सुनो वो तुम्हारी सुनेगा। कोई फटे जूते की व्यथा कथा कहते नहीं थक रहा। लेकिन मजे की बात यह है कि ये तो कोई बता… Continue reading जूता- सैंडल पुराण – भाग 1