जब से बà¥à¤²à¥‰à¤—िंग से अलà¥à¤ªà¤µà¤¿à¤°à¤¾à¤®(?) लिया है तब से कई मितà¥à¤°à¥‹à¤‚, पाठकों, शà¥à¤à¤šà¤¿à¤‚तकों ने कई तरीकों से उलाहना दिया है कि मैं लिखता कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ नहीं। बीच में à¤à¤¸à¥‡ ही कà¥à¤› उलाहने सà¥à¤¨à¤¨à¥‡ के बाद आने का मन बना लिया था लेकिन à¤à¤• पोसà¥à¤Ÿ लिखने के बाद मन बना ही नही।
इधर अतà¥à¤² à¤à¤¾à¤ˆ कई बार जगाने का पà¥à¤°à¤¯à¤¾à¤¸ कर चà¥à¤•à¥‡ हैं और खà¥à¤¦ à¤à¥€ कà¥à¤®à¥à¤à¤•à¤°à¥à¤£à¥€ नींद सो लेने के बाद पà¥à¤¨: नये ठिकाने पर अवतरित हो चà¥à¤•à¥‡ हैं। चिटà¥à¤ ा जगत में à¤à¤• दीदी (लिंक नहीं लगा रहा हूà¤) ने à¤à¤• दिल को छू लेनी वाली लंबी मेल à¤à¥‡à¤œ कर ढेर सारा जà¥à¤žà¤¾à¤¨ दे डाला।
सही है कि महानगरों में जीवन बड़ा ही दà¥à¤°à¥‚ह है…जीवन यापन के लिठलोग कोलà¥à¤¹à¥‚ के बैल बनà¥à¤¨à¥‡ को बाधà¥à¤¯ हैं..दिन रात कितना संघरà¥à¤·à¤¶à¥€à¤² रहना पड़ता है à¤à¥€à¤¡à¤¼ के बीच अपने को साबित करने के लिठ, खà¥à¤¦ को सरवाइव कराने के लिà¤. समय सबसे मूलà¥à¤¯à¤µà¤¾à¤¨ है,कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि सदा इस की कितनी किलà¥à¤²à¤¤ रहती है…पर यह à¤à¥€ सतà¥à¤¯ है न कि जीवन हमें à¤à¤• ही मिला है…वह समय कà¤à¥€ नहीं आà¤à¤—ा ,जब सारे जदà¥à¤¦à¥‹à¤œà¤¹à¤¦ समापà¥à¤¤ हो जायेंगे और अलग से à¤à¤•à¤¦à¤® निशà¥à¤šà¤¿à¤¨à¥à¤¤ समय मिलेगा आपको लेखन कारà¥à¤¯ करने के लिà¤..तो कà¥à¤¯à¤¾ कर रहे हैं ???? जीवन के चूहे दौड़ में जीवन खपा देना,सही है कà¥à¤¯à¤¾???दिन हमेशा चौबीस घंटों का ही रहेगा और इसीमे से जैसे सबको समय दे रहे हैं आप वैसे ही इसके लिठà¤à¥€ समय निकलना पडेगा…
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आपसे विनती है कि बà¥à¤²à¥‰à¤— पर लिखना पà¥à¤¨à¤ƒ आरमà¥à¤ कर दें..कोई आवशà¥à¤¯à¤• नहीं कि दिन à¤à¤° में चार पोसà¥à¤Ÿ डाली जाय..महीने में à¤à¤• पोसà¥à¤Ÿ à¤à¥€ à¤à¤¸à¥€ जो सचमà¥à¤š किसी हà¥à¤°à¤¦à¤¯ को छूकर उसमे सकारातà¥à¤®à¤• कà¥à¤› जोड़ सके,डाली जाय तो बहà¥à¤¤ है..आशा है आप मेरे आगà¥à¤°à¤¹ पर गंà¤à¥€à¤°à¤¤à¤¾ से विचार करेंगे..
उनसे वादा किया कि कà¥à¤› लिखता हूà¤à¥¤ तो फिर लिखने बैठगया अब चूंकि लिखने का वादा किया है तो गाहे-बगाहे लिखते रहेंगे। अà¤à¥€ तो जंग लग चà¥à¤•à¥€ कलम को तेज करने की कोशिश में हैं।
दरअसल लिखने की पà¥à¤°à¤•à¥à¤°à¤¿à¤¯à¤¾ में आपका लिखा आपके मसà¥à¤¤à¤¿à¤·à¥à¤• से शà¥à¤°à¥ होते हà¥à¤ कलम या की-बोरà¥à¤¡ के माधà¥à¤¯à¤® से लोगों के सामने आता है। तो लिखने की इस पà¥à¤°à¤•à¥à¤°à¤¿à¤¯à¤¾ में हमारी सोच का बहà¥à¤¤ बड़ा योगदान है। à¤à¤¸à¤¾ नहीं कि लिखने के लिये विषयों की कà¥à¤› कमी हो या फिर वà¥à¤¯à¤¸à¥à¤¤à¤¤à¤¾ इतनी जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ हो गयी हो कि लिखने के थोड़ा सा समय à¤à¥€ ना निकाला जा सके। लेकिन कई बार यह पà¥à¤°à¤¶à¥à¤¨ उठता है कि आखिर लिखें तो लिखें कà¥à¤¯à¥‹à¤‚? कà¥à¤¯à¤¾ होगा लिख कर?
अजदक जी छà¥à¤Ÿà¥à¤Ÿà¥€ के दिन इसी पà¥à¤°à¤¶à¥à¤¨ से दो-चार होते हैं, आखिर लिखना चाहते कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ हैं? पà¥à¤°à¤¤à¥à¤¯à¤•à¥à¤·à¤¾ जी को तो अनà¥à¤¦à¤° की किसी “इलà¥à¤¯à¥‚सिव चीज” को पकड़ने की तमनà¥à¤¨à¤¾ है। à¤à¤¸à¥€ ही तमनà¥à¤¨à¤¾ सà¤à¥€ को होती होगी। अब ना जाने उनको कà¥à¤› मिला कि नहीं यह तो पता नहीं लेकिन साहितà¥à¤¯ के राजमारà¥à¤— पर जाने की न तो अपन की इचà¥à¤›à¤¾ है और ना ही हम इतने काबिल हैं कि इस à¤à¥€à¥œ à¤à¤°à¥‡ राजमारà¥à¤— पर राजनीति की कीचड़ में सनते-सनाते, उसे लांघते आगे बॠसकें। अपन तो किसी तरह पहाड़ की टेड़ी-मेड़ी, उतराती-गहराती पगडंडियों से ही पार पा लें तो बहà¥à¤¤ है।
हाठअनà¥à¤¦à¤° à¤à¤• अजीब तरह की बेचैनी तो है ही जो कà¥à¤› लिखने को …कà¥à¤› कह जाने को….कà¥à¤› रच जाने को पà¥à¤°à¥‡à¤°à¤¿à¤¤ करती है। यह रचनातà¥à¤®à¤•à¤¤à¤¾ किसी à¤à¥€ रूप में हो सकती है, जरूरी नहीं इसकी परिणति à¤à¤• बà¥à¤²à¥‰à¤— पोसà¥à¤Ÿ के रूप में ही हो।
कà¤à¥€ कà¤à¥€ हम किसी à¤à¤• कहानी, à¤à¤• विचारधारा, à¤à¤• दृशà¥à¤¯ से इतने पà¥à¤°à¥‡à¤°à¤¿à¤¤ हो जाते हैं कि हम दà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¤¾ को सिरà¥à¤« à¤à¤• ही चशà¥à¤®à¥‡à¤‚ से देखने लगते हैं। इसलिये à¤à¥€ लिखना शायद जरूरी है कि हम दà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¤¾ को à¤à¤• से अधिक कहानी दे सके..इसको नये नये रंगों में ढाल सकें.. समय को पकड़ने की कोशिश कर सकें। वरना पहाड़ के बारे में बात करने में आप पहाड़ को सिरà¥à¤« मंगलेश डबराल की गरीब वाली दृषà¥à¤Ÿà¤¿ से ही देखेंगे। आपकी दृषà¥à¤Ÿà¤¿ में शायद वह नराई ना होगी जो शायद किसी पहाड़ के रहने वाले को लगती होगी। वही लेखन, शिवानी के माधà¥à¤¯à¤® से, कम से कम यह तो बताता है कि पहाड़ में रोटी के ऊपर रखकर पालक की सबà¥à¤œà¥€ खायी जाती है à¤à¤²à¥‡ ही हम यह ना जान पायें कि और à¤à¥€ बहà¥à¤¤ कà¥à¤› खाया जाता है। तो लेखन की यही महतà¥à¤¤à¤¾ है।
आइये à¤à¤• वीडियो देखें। यह à¤à¥€ कà¥à¤› à¤à¤¸à¤¾ ही कहता है, लेखन ना होता तो दà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¤¾ कितनी à¤à¤•à¤°à¤‚गी होती। यथारà¥à¤¥ व सचà¥à¤šà¤¾à¤ˆ से दूर केवल कालà¥à¤ªà¤¨à¤¿à¤• दà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¤¾à¥¤ आप कà¥à¤¯à¤¾ कहते हैं?
चिनà¥à¤¤à¤¨ को छेड़ गया आपका लेख और यह वीडियो। अपने अगले पोसà¥à¤Ÿ के विषय पर लिखते हà¥à¤¯à¥‡ कà¥à¤› छूटा छूटा सा पà¥à¤°à¤¤à¥€à¤¤ हो रहा था, रिकà¥à¤¤à¤¤à¤¾ आपने à¤à¤° दी।
बहà¥à¤¤ ही सà¥à¤¨à¥à¤¦à¤° और सारà¥à¤¥à¤• ढंग से आपने विवेचित किया कि लेखन कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ आवशà¥à¤¯à¤• है…
बहà¥à¤¤ ऊंचा कà¥à¤› कहने सोचने और सिदà¥à¤§ करने के लिठनहीं,बलà¥à¤•à¤¿ बस यह सोचकर लेखन में जà¥à¤Ÿà¥‡ रहना चाहिठकि जो अनà¥à¤à¤µ समय और जीवन हमें पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤ªà¤² दे रही है,उसमे से कà¥à¤› जो किसी अनà¥à¤¯ के जीवन को à¤à¥€ सà¥à¤°à¤à¤¿à¤¤ कर पाà¤,उसे बाà¤à¤Ÿ लेना चाहिअअपना कà¥à¤› नà¥à¤•à¤¸à¤¾à¤¨ नहीं होने वाला इसमें à¤à¤²à¥‡ सामने वाले का कà¥à¤› à¤à¤²à¤¾ होना तय है…
मैंने बड़ी निकटता से अनà¥à¤à¤µ किया है कि अचà¥à¤›à¤¾ à¤à¤²à¤¾ सा कà¥à¤› जो पढ़ते समय अà¤à¤¿à¤à¥‚त कर जाता है,अपने को पता à¤à¥€ नहीं चल पाटा कि कब कैसे वह पà¥à¤°à¤µà¥ƒà¤¤à¥à¤¤à¤¿ का अंग बन गया है और जीवन को सारà¥à¤¥à¤• दिशा ही दे रहा है…इसलिठअचà¥à¤›à¤¾ पढना और लिखना दोनों बहà¥à¤¤ जरूरी है…
पर अलà¥à¤ª ही सही,à¤à¤¸à¥‡ विराम न लिया करें…à¤à¤¾à¤µà¥‹à¤‚ को कलम से बहते रहने दें,नित नठविचार आ आ कर घेरते रहेंगें और इन à¤à¤¾à¤µà¥‹à¤‚ से आप अपने पाठकों के हà¥à¤°à¤¦à¤¯ को à¤à¥€ आंदोलित करते रहें…..
आप वापस आ गये देख कर बहà¥à¤¤ अचà¥à¤›à¤¾ लग रहा है, हाठ, महीने में à¤à¤• ही पोसà¥à¤Ÿ सही पर कलम को चमका लीजिà¤â€¦à¤µà¥€à¤¡à¤¿à¤¯à¥‹ तो हमको कहीं नहीं दिखा…:(
नई थीम, नया लेख………………नया अंदाज…..बढि़या है, काकेश बाबू।
बà¥à¤²à¥‰à¤— जगत में आपका फिर से सà¥à¤µà¤¾à¤—त है…विशà¥à¤°à¤¾à¤® सà¥à¤µà¤¾à¤¸à¥à¤¥à¥à¤¯ के लिठअचà¥à¤›à¤¾ है बशरà¥à¤¤à¥‡ वो लमà¥à¤¬à¤¾ न हो…. लमà¥à¤¬à¤¾ विशà¥à¤°à¤¾à¤® आलसà¥à¤¯ की शà¥à¤°à¥‡à¤£à¥€ में आ जायेगा…आप आलसी न बने और थोड़े थोड़े अंतराल पर ही सही…लिखते रहें…कà¥à¤¯à¥‚ठके आप बहà¥à¤¤ अचà¥à¤›à¤¾ लिखते हैं…और अचà¥à¤›à¥‡ लेखक को लिखते रहना चाहिअ:))
नीरज
विडिओ गज़ब का है…बेहतरीन…
à¤à¤• बार फ़िर से लौट आने के लिठआà¤à¤¾à¤° और सà¥à¤µà¤¾à¤—त। चाहे कम लिखिठकिनà¥à¤¤à¥ लिखिà¤à¥¤
घà¥à¤˜à¥‚ती बासूती
सबसे पहले पà¥à¤¨à¤°à¥à¤œà¤¾à¤—रण की बधाई। टिपà¥à¤ªà¤£à¥€ में देरी हो गई।
इसे पढ़कर तो लिखना वाक़ई ज़रूरी लगता है, कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि लिखने से ही लोगों के चशà¥à¤®à¥‡ हटेंगे। नहीं à¤à¤• ही कहानी, à¤à¤• ही नज़रिया रहेगा कोई à¤à¥€ चीज़ देखने का। शायद à¤à¤¸à¤¾ à¤à¥€ हो कि किसी लेखन से कोई नया चशà¥à¤®à¤¾ आà¤à¤–ों पर चढ़ जाà¤à¥¤ इसलिठलिखना ज़रूरी है कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि किसी à¤à¥€ देश, दà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¤¾, जाति, धरà¥à¤®, संपà¥à¤°à¤¦à¤¾à¤¯, नसà¥à¤² आदि आदि देखने-समà¤à¤¨à¥‡ को à¤à¤• से अधिक कहानी की ज़रूरत है।
वीडियो अदà¥à¤à¥à¤¤ है, मोहतरमा ने à¤à¤• नठतरह से सोचने पर बाधà¥à¤¯ किया है।
रचनातà¥à¤®à¤•à¤¤à¤¾ किसी à¤à¥€ रूप में हो सकती है, जरूरी नहीं इसकी परिणति à¤à¤• बà¥à¤²à¥‰à¤— पोसà¥à¤Ÿ के रूप में ही हो।
मतलब सà¥à¤ªà¥à¤¤à¤¾à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾ में à¤à¥€ आप रचनातà¥à¤®à¤• रहे हैं।
इनà¥à¤¦à¥Œà¤°à¥€ ईसà¥à¤Ÿà¤¾à¤‡à¤² में कहें तो दिमाग के जाले साफ कर दिà¤à¥¤
इनà¥à¤¦à¥Œà¤°à¥€ ईसà¥à¤Ÿà¤¾à¤‡à¤²…….. इस पंकà¥à¤¤à¤¿ को …..रचनातà¥à¤®à¤•à¤¤à¤¾….. वाली पंकà¥à¤¤à¤¿ के पहले पढ़ें।
kafi achcha blog hai…. Aap logo ke iitne achchi tippainya or or lekh dekh ke mera bi hindi likhne ka man ho raha hai… Par kya karu… Thoda apne aap se or thoda aapne haath ki is machin se majbur hu…
Nokia ki banai is machin me hindi naam ka koi vikalp hi nahi hai…
🙁
mene devnaagrii web site pe gaya tha wanhi se yanha tak panhucha…. Pahli baar internet pe itne saare hindi likhne wale dekh ke kafi achcha laga… 🙂 🙂
मैं à¤à¥€ इसी अलà¥à¤ª विराम की सà¥à¤¥à¤¿à¤¤à¤¿ [कहीये तो सà¥à¤ªà¥à¤¤à¤¾à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾]में हूà¤.आप के लेख को पà¥à¤•à¤° अà¤à¥€ अà¤à¥€ आà¤à¤–ें थोड़ी सी खोली हैं.
आà¤à¤¾à¤°.
लिखना जरूरी है। मैं समठरहा हूं इसी लिये निकलना जरूरी है – कहीं à¤à¥€à¥¤ उसे यातà¥à¤°à¤¾ कह सकते हैं, टूरिजà¥à¤® कह सकते हैं या तीरà¥à¤¥à¤¾à¤Ÿà¤¨ कह सकते हैं।
मैं समà¤à¤¤à¤¾ था कि लिखना शबà¥à¤¦à¥‹à¤‚ का गणितीय संयोजन है। और शबà¥à¤¦à¥‹à¤‚ को मरोड़ा जा सकता है। मैं अà¤à¥€ à¤à¥€ समà¤à¤¤à¤¾ हूं कि शबà¥à¤¦ गौंड़ हैं, पर अपनी सोच में बदलाव आता देखता हू।
ओह, आपकी पोसà¥à¤Ÿ यह कà¥à¤¯à¤¾ लिखवा रही है मà¥à¤à¤¸à¥‡!
आपसे कà¥à¤› बरस पहले मैथिली जी के यहां पर संकà¥à¤·à¤¿à¤ªà¥â€à¤¤ सी मà¥à¤²à¤¾à¤•à¤¾à¤¤ हà¥à¤ˆ थी, इसे पढ़ने से वो याद हो आई, लिखे हà¥à¤ को पढ़ना, आपका बढ़ना अचà¥â€à¤›à¤¾ लग रहा है। इसे विराम न दें, राम की तरह गति दें। शबà¥â€à¤¦à¥‹à¤‚ की ताली
हिनà¥â€à¤¦à¥€ का पà¥à¤°à¤¯à¥‹à¤— न करना अपराध घोषित हो
पà¥à¤°à¤¿à¤¯ काकेश जी, मà¥à¤¯à¤¾à¤° पहाड़ जैसे अचà¥à¤›à¥‡ लेख के लिठआपको बहà¥à¤¤ बहà¥à¤¤ बधाई |
सॉरी , मà¥à¤à¥‡ यह à¤à¤• दोसà¥à¤¤ की मेल से मिला | उसमे किसी का नाम नहीं था कि किसने लिखा है | मà¥à¤à¥‡ यह बहà¥à¤¤ अचà¥à¤›à¤¾ लगा इसलिठमैंने शेयर करने के लिठइसे कॉपी कर दिया | इस अचà¥à¤›à¥‡ लेख के लिठआपको बहà¥à¤¤ बहà¥à¤¤ बधाई | मà¥à¤à¥‡ इस लेख के मूल लेखक का नाम जानकर सà¥à¤–द अनà¥à¤à¥‚ति हà¥à¤ˆ | आशा है यह घटना ( दà¥à¤°à¥à¤˜à¤Ÿà¤¨à¤¾ ) हमारे मजबूत संबंधो की बà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¤¾à¤¦ साबित होगी |
मैं आप के नठबà¥à¤²à¥‰à¤— पोसà¥à¤Ÿ का इंतज़ार
कर रहा हूà¤.
किधर हैं साहब, इन दिनों आप? लौट कर आइà¤à¥¤
अरे काकेश जी आप कहां चले गये । मै तो सालों बाद यहां आई हूà¤, उसके लिये अवशà¥à¤¯ कà¥à¤·à¤®à¤¾ पà¥à¤°à¤¾à¤°à¥à¤¥à¥€ हूठ। पर आप बà¥à¤²à¥‰à¤—-दà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¤¾ के
बà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¤¾à¤¦à¥€ लोगो में से हैं । जारी रहे लिखते रहें । अपने अंदर के काकेश जी को पà¥à¤°à¤—ट होने का अवसर दें । विडियो और लेख जोरदार ।
Kakesh ji waiting for your new post. It’s been a while.
Bahut hi aacha blog hai.
आज पà¥à¤°à¤¾à¤¨à¥€ बà¥à¤²à¥‰à¤— पोसà¥à¤Ÿà¥‡à¤‚ (अखबार-पतà¥à¤°à¤¿à¤•à¤¾ देखते तो कतरनें कहते) देखते यहां तक आया। बस इतना कहूंगा लेखन जरूरी है इसे जारी रखिà¤à¥¤
Searching pieces of Trilochan I landed and set foot on your blog. Delighted going through your ‘cuttings’ that speaks somewhat different language. Comparing writing with giantness, altitudes of mountains and depth of Canyons reminded me of ‘The Prelude’ by Wordsworth.
Apart from writing, I believe reading is more important as there is a lack of reading social animals in our country and the reasons are same which you mentioned above. Epistemological things scarcely entice us as mundane things blinds us by its lustre. Too many chains viz., familial, social bind us. And we have to pull all these till we die. But we should try to break free from our mould. And amidst all these we should take out some time to write. Congarts for your coming back to writing!
लिखना जरूरी है, कà¥à¤› कहना जरà¥à¤°à¥€ है. हां, यह कतई जरूरी नहीं की रोज़ ही लिखा जाà¤. à¤à¤• बार जब आपके शà¥à¤°à¥‹à¤¤à¤¾à¤—ण बन जाते हैं तो आप उनके लिठकटिबदà¥à¤§ हो जाते हैं. खैर, आपके लेख अचà¥à¤›à¥‡ लगे, इसलिठलगा की आपसे मà¥à¤–ातिब हो जाऊ. धनà¥à¤¯à¤µà¤¾à¤¦!