जब से बà¥à¤²à¥‰à¤—िंग से अलà¥à¤ªà¤µà¤¿à¤°à¤¾à¤®(?) लिया है तब से कई मितà¥à¤°à¥‹à¤‚, पाठकों, शà¥à¤à¤šà¤¿à¤‚तकों ने कई तरीकों से उलाहना दिया है कि मैं लिखता कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ नहीं। बीच में à¤à¤¸à¥‡ ही कà¥à¤› उलाहने सà¥à¤¨à¤¨à¥‡ के बाद आने का मन बना लिया था लेकिन à¤à¤• पोसà¥à¤Ÿ लिखने के बाद मन बना ही नही। इधर अतà¥à¤² à¤à¤¾à¤ˆ कई बार… Continue reading लिखना जरूरी कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ है?