कविता की किलकारी

1. रेबीज के नये इंजेक्शन की कसम, किसी कुत्ते में कहां है वह दम, जो भोंकता भी हो, चाटता भी हो,गरियाता भी हो, काटता भी हो,हम तो ऐसे ही थे, औरऐसे ही रहेंगे सनम. 2. तेरे बिना जिन्दगी का नूर चला जायेगा,बिन काटे किसी को क्या मजा आयेगा,गाली खाने से नहीं डरते हैं हम,मेरे दोस्तखायी… Continue reading कविता की किलकारी

कवि का कलपना

केडीके महोदय बालकिशन जी की इस पोस्ट पर अपना कुदरती कवितायी हुनर दिखाना चाहते थे लेकिन सफल नहीं हुए तो हमको बोले कि इस “कवि की कल्पना” को किसी तरह ठेल दो. हमको भला क्या तकलीफ.हम ठेल रहे हैं. गाली.प्रसंशा सब केडीके साहब की.   बालकिशन जी आप किस शोध के चक्कर में पढ़ गये. हमें… Continue reading कवि का कलपना

कभी सुराही टूट,सुरा ही रह जायेगी,कर विश्वास !!

मैने उमर के रुबाइयों के बहुतेरे अनुवाद पढ़े..हिन्दी में भी अंग्रेजी में भी. हिन्दी में मुझे ‘मधुशाला’ (जो कि अनुवाद नहीं है पर इसकी चर्चा बाद में) और ‘मधुज्वाल‘ ने बहुत प्रभावित किया.हाँलाकि रघुवंश गुप्त जी का अनुवाद भी काफी अच्छा है….पर ‘मधुज्वाल’ मुझे उसके नये प्रतिमानों और छंद के नये नये प्रयोगो की वजह… Continue reading कभी सुराही टूट,सुरा ही रह जायेगी,कर विश्वास !!

मधुज्वाल:मैं मधुवारिधि का मुग्ध मीन

उमर खैयाम की रुबाइयों का अनुवाद सुमित्रानंदन पंत ने 1929 में उर्दु के प्रसिद्ध शायर असगर साहब गोडवी की सहायता और इंडियन प्रेस के आग्रह पर किया था. यह अनुवाद “मधुज्वाल” नाम से 1948 में प्रकाशित हुआ था. अन्य हिन्दी अनुवादकों की तरह उनका यह अनुवाद फिट्जराल्ड की की पुस्तक पर आधारित नहीं था बल्कि… Continue reading मधुज्वाल:मैं मधुवारिधि का मुग्ध मीन

नगई महरा: अंतिम भाग

समीर जी का उत्साह बढ़ाने में कोई सानी नहीं. कल की पोस्ट पर उन्होने एक अच्छी सी टिप्पणी की जिससे फिर से ऊर्जा मिली कि बांकी भाग को भी टाइप कर आप तक पहुंचाऊं. थक गये हैं, थोड़ा विश्राम प्राप्त करें मित्र. कार्य इतना उत्तम हैं कि यह कह पाना संभव नहीं कि थक गये… Continue reading नगई महरा: अंतिम भाग

नगई महरा- 2 : त्रिलोचन

कल नगई महरा का पहला भाग प्रस्तुत किया था. आज पेश है उसी का दूसरा भाग.कृपया पूरी कविता पढ़ें आप निश्चित ही कविता के मर्म में उतर पायेंगे.य़ह एक कविता है जिसके अन्दर समाज की एक कहानी भी साथ साथ चल रही है और दिख रहा है समूचा गाँव.आइये आनन्द लें. तब मेरी उमर जैसी… Continue reading नगई महरा- 2 : त्रिलोचन

नगई महरा: त्रिलोचन

‘नगई महरा’ त्रिलोचन की एक सशक्त रचना है.पहलू में त्रिलोचन की कविताओं में भी इस कविता का जिक्र हुआ था. यह एक लंबी कविता है जिसे दो भागों में पेश कर रहा हूँ. इस कविता में ग्रामीण जीवन अपने पूरे यौवन के साथ उतर गया है. गांव के आम शब्द इस कविता में इतने सहज… Continue reading नगई महरा: त्रिलोचन

सभी संगीतप्रेमी चिट्ठाकारों से निवेदन

हिन्दी के कई चिट्ठाकार अब तकनीकी रूप से कुशल हो गये हैं. अपने चिट्ठों में तरह तरह के विजेट और चित्र लगाने लगे हैं. यह एक सुखद परिवर्तन है. इधर कुछ चिट्ठाकारों ने अपने चिट्ठों में मधुर संगीत प्रदान करने वाला कोई विजेट भी लगाया है. जो चिट्ठा खुलते ही मधुर संगीत से आपका स्वागत… Continue reading सभी संगीतप्रेमी चिट्ठाकारों से निवेदन

बिस्तरा है न चारपाई है:त्रिलोचन

बिस्तरा    है   न   चारपाई    है,जिन्दगी   खूब  हमने  पायी   है। कल अंधेरे में जिसने सर काटा,नाम  मत  लो  हमारा   भाई है। ठोकरें  दर-ब-दर  की थी हम थे,कम नहीं हमने मुँह की खाई है। कब  तलक  तीर  वे  नहीं   छूते,अब  इसी  बात  पर   लड़ाई   है। आदमी    जी  रहा  है  मरने कोसबसे    ऊपर    यही  सचाई है। कच्चे ही… Continue reading बिस्तरा है न चारपाई है:त्रिलोचन

चम्पा काले काले अच्छर नहीं चीन्हती:त्रिलोचन

कवि त्रिलोचन बीमार हैं. उनके बारे में ब्लॉग जगत में लिखा भी जा रहा हैं. कुछ दिनों पहले मैने एक पोस्ट लिखी थी जिसमें त्रिलोचन की कुछ कविताऎं प्रस्तुत की थी. कल अतुल ने उसी पोस्ट पर टिप्पणी कर त्रिलोचन के बारे में फणीश्वर नाथ रेणु के संस्मरण के बारे में बताया.उसे पढ़ा और फिर… Continue reading चम्पा काले काले अच्छर नहीं चीन्हती:त्रिलोचन