परुली: चिन्ह साम्य होगा क्या ??

परुली सो तो गयी. दिन भर की थकी थी नींद भी आ गयी. लेकिन ना जाने कितने देर तक सपनों से लड़ती रही. कभी लगता कि वह एक भ्योल (ऊंची पहाड़ी) से नीचे गिरती जा रही है.चारों और कंटीली झाडियां हैं जिनको वह पकड़ने की कोशिश कर रही है पर वह हाथ नहीं आ रहीं.कभी लगता कि वह नौले से पानी ला रही है और उसकी तांबे की गगरी उसके सर से छिटक कर गिर गयी है और वह उसे पकड़ने दौड़ रही है या उसकी ईजा गाय को बांधने गोठ गयी तो गाय ने उसे ही सींग से मार दिया वह गिरी तो गाय उसे अपने पैरों के तले रौदते हुए चली गयी. रात भर इस तरह के सपनों से लड़ती रही. एक दो बार आंख भी खुली तो घुप्प अंधेरा था कुछ दिखायी नहीं दिया. सिर्फ बीतती हुई रात थी.सुबह अभी भी कहीं दूर थी.

रात की बात आयी गयी हो गयी. सुबह से परुली फिर अपने काम में जुट गयी.रोज की तरह छिलुके से चूल्हा जलाया. ईजा के साथ घर का काम किया.स्कूल की ड्रेस के कपड़े बिस्तर के नीचे से निकाल कर पहने और बाकी लड़कियों के साथ स्कूल के लिये चल दी.रास्ते में उसने लड़कियों को कल रात की ईजा-बाबू की बातचीत के बारे में बताया. तो चमुली बोली

“यह तो बहुत बढिया हुआ. तेरा चिंन्ह साम्य हो जायेगा तो तू तो ब्योली (दुल्हन) बन के चले जायेगी. तेरा तो नाक नक्स इतना अच्छा है तभी तो तेरा चिन्ह मांगा है.हम लोगों का तो कोई भी नहीं मांगता. हम भी ब्योली बने तो इस पढ़ाई से तो छुटकारा मिले”.

बाकी लड़कियां उसके साथ हँसी ठिठोली करने लगीं. लेकिन परुली को यह बिल्कुल भी अच्छा नहीं लग रहा था.

“लेकिन मैं अभी पढ़ना चाहती हूँ.” परुली की आवाज में एक दृढ़ता थी.

अरे पढ़ लिख के क्या बैरिस्टर बनेगी. ब्या तो तब भी होगा ना और फिर तो वही भनपान, गोरु-बाछों का मोव निकलना, गुपटाले पाथना, पानी सारना और घरपन के सारे काम, इन सब में तेरी पढ़ाई क्या काम आयेगी रे परुली..और अच्छे रिश्तो के लिये मना नहीं करना चाहिये. वो पारघर की बिन्दी बुआ को नहीं देखा. पढ़ाई के चक्कर में उनके बौज्यू (पिताजी) ने पहले उनका ब्या नहीं किया. अब कब के एम.ए. तो कर लिया लेकिन अब घर में बैठी हैं. कहीं बात ही नहीं बन रही. अब इस उमर में कहाँ होता है ब्या उनका.

उसने भी बिन्दी बुआ के बारे में अपनी ईजा से सुना था कि वह पहले सारे रिश्तों के लिये मना कर देती थी. लेकिन अब तो किसी उमरदार या दूसरे ब्या वाले से भी शादी करने को भी तैयार है लेकिन कोई मिलता ही नहीं. फिर भी परुली को लगा कि वह यदि डॉक्टर बन गयी तो शायद फिर तो रिश्तों की कमी नहीं होगी. यह सोच कर वह बोली.

“लेकिन मैं डॉक्टर बन गयी तो !”

सुनके सभी लड़कियां जैसे एक साथ हँसी. “डॉक्टर बनना इतना आसान नही है परुली. ढेर सारे डबल (पैसे) लगते है बल. इत्ते सारे डबल तेरे बौज्यू कहाँ से लायेंगे.तेरे को तो हाईस्कूल ही करा रहे हैं वही बहुत है.”

यह तो परुली भी जानती थी कि बाबू की जजमानी से घर का खर्च भी मुश्किल से निकल पाता था. आये दिन पैसों को लेकर घर में खिच खिच होती थी.

परुली सोच में पड़ गयी. आज उसका स्कूल की पढ़ाई में भी मन नहीं लगा. उसके डॉक्टर बनने के सपने जैसे हवा में उड़ गये थे.वो तो सोच रही थी कि वह सवा रुपये का उचैण (मन्नत) गोल ज्यू के नाम का रखेगी कि उसका चिन्ह साम्य ना हो और वो ब्या करने से बच जाये.लेकिन अब तो उसको लगने लगा कि यदि उसका ब्या नहीं हुआ तो उसके बोज्यू पर वह एक भार की तरह पड़ी रहेगी. वह अपने बौज्यू पर भार भी नहीं बनना चाहती थी. उसकी ईजा भी कहती थी कि “परुली तेरा ब्या हो जाये तो एक बहुत बड़ा भार सर से निकल जायेगा.” तो क्या वह घर वालों पर एक भार थी? ऎसी ही बातें उसने अपने पड़ोस की माया दीदी से भी बहुत पहले सुनी थी.तब उसे इन सब बातों का मतलब समझ नहीं आया था.कुछ महीने पहले माया दीदी ने जब एक गाड़ में छ्लांग लगा कर अपनी जान दे दी तो उसे बहुत बुरा लगा था और गुस्सा भी आया था. लेकिन अब उसे लग रहा था शायद माया दीदी भी ऎसी ही किसी परिस्थिति से गुजरी होगी.तो क्या उसे भी ……

“प्रिया! आज तुम्हारा ध्यान किधर है !!” मैडम की आवाज आयी.

“मै…म …”

“पढ़ाई में ध्यान लगाओ..”

परुली ने फिर पढ़ाई में ध्यान लगा लिया.दिन बीतते गये. बोर्ड की परीक्षाऎं करीब आ रही थीं. परुली सब कुछ भूल कर बोर्ड की तैयारियों में जुट गयी.एक दिन उसके बाबू आये. आज वह बड़े खुश थे. थोड़ा सा गुड़ और बताशे लाये थे.आमतौर यह वह तब लाते जब कोई खुशी का मौका होता. ईजा तो तब घर पर थी नहीं उन्होने परुली से कहा “परु बेटा जरा चहा तो बना दे”. उनके बातों से अतिरिक्त प्यार झलक रहा था.वह बड़बाज्यू से बात करने लगे, जो पटांगण में बैठ कर अपना हुक्का गुड़गुड़ा रहे थे.

“बाबू आज पांडे ज्यू मिले थे. कह रहे थे कि गोपाल और परुली का चिन्ह साम्य हो गया.इस मंगशीर में जल्दी से कोई लगन निकाल कर ब्या कर लेंगें”

यह बात चाय बनाती परुली ने भी सुनी. वह पानी में चाय की पत्ती डाल चुकी थी और अब वह पत्ती साफ पानी में अपना मटमैला रंग छोड़ रही थी.

जारी….

पिछला भाग : परुली….

By काकेश

मैं एक परिन्दा....उड़ना चाहता हूँ....नापना चाहता हूँ आकाश...

20 comments

  1. पत्ती साफ पानी में अपना मटमैला रंग छोड़ रही थी — इस छोटे से वाक्य ने परुली की मनोदशा का वर्णन कर दिया… ! आगे की कथा का इंतज़ार है .

  2. aakhari pankti ne paruli k man ki avastha bayan kar di,kitnin uthal puthal hogi us man mein.thoda gud aur dhudh mila do tho matmaili chai bhi mithi ho.khair,ab to paruli mein apne gaon ki rupa hi nazar aati hai,wo bhi har gayi garibi se aur teacher banne ka sapna chod shadi karli.par uski kismat dekho,pati jyada padha likha nahi tha,par khetibadi achhi thi.sadhan pariwar,par rupa ko aage padhakar teacher banaya,school khulwaya gaon mein,ab rupa apna sapna bhi jiti hai aur gharwalen logo ka bhi.

  3. परुली की चिन्ता हो रही है ।
    आप की कहानी में तो शिवानी की कहानी से भी अधिक पहाड़ का आभास मिलता है ।
    घुघूती बासूती

  4. मैने तो अब भी उम्मीद लगा रखी है…. परूली अपना लक्ष्य पा कर ही रहेगी. लेकिन कैसे?

  5. काकेश जी,

    परुली की चिंता तो मुझे भी हो रही है. आगे की सुनने के लिए आँख लगाए बैठे रहेंगे.

    [काकेश: शिवकुमार जी : सुनने के लिये आंखे !! सही है …:-) ]

  6. lagta hai jaldi byah ho hi jaayega, lekin ek baat batao ye kaun si chai hai jo matmaila rang chorti hai

    (mujhe aisa lagta hai matmaila mitti aur maila se milkar bana hai, isliye matmaila mitti ki terah ganda hona chahiye)

    bus ek prashan utha tha to socha poonch lun.

    Kehani achi ja rahi hai, shivani style me samvad chal rahe hain.

  7. kakesh jee aapne phir latka diya? hope kee jisse shaadi hogi shayad wahi thoda samjhdar ho.aur paruli ke sapne sach ho sake..I hope kee aisa hee ho.

    Eagerly Waiting for the next part.

  8. अगले ब्रहस्पतिवार तक फिर बेसब्री से इंतजार रहेगा…

  9. mughe lagta hai ki pruli ke sath galat ho rha hai kyuki vo abhi padhna chati hai or padhna uska haq hai isliye usko pdaya jay orparuli ne jo last line mai likha hai ki pati apna rang saaf pani mai chod rahi hai ye sabd dil ko chu jate hai………………….

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