कोई दीवार सी गिरी है अभी
कुछ देर बाद मौलाना आते हुए दिखाई दिये। कीचड़ में डगमग-डगमग करती ईंटों पर संभल-संभल कर क़दम रख रहे थे। इस डांवाडोल पगडंडी पर इस तरह चलना पड़ता था जैसे सरकस में करतब दिखाने वाली लड़की तने हुए तार पर चलती है। लेकिन क्या बात है, वो तो अपने आप को खुली छतरी से संतुलित करती रहती है। जरा डगमगा कर गिरने लगती है तो दर्शक पलकों पर झेल लेते हैं। मौलाना ख़ुदा जाने बिशारत को देखकर बौखला गये या संयोग से उनकी खड़ाऊं ईंट पर फिसल गई, वो दायें हाथ के बल जिसमें नमाजियों की फूकें मारे हुए पानी का गिलास था-गिरे। उनका तहबंद और दाढ़ी कीचड़ में लथपथ हो गई और हाथ पर कीचड़ की जुराब-सी चढ़ गई। एक बच्चे ने बिना क़लई के लोटे से पानी डालकर उनका मुंह हाथ धुलाया, बिना साबुन के। उन्होंने अंगोछे से तस्बीह, मुंह और हाथ पोंछकर बिशारत से हाथ मिलाया और सर झुका कर खड़े हो गये। बिशारत ढह चुके थे, इस कीचड़ में डूब गये। अनायास उनका जी चाहा कि भाग जायें, मगर दलदल में इंसान जितनी तेजी से भागने का प्रयास करता है उतनी ही तेजी से धंसता चला जाता है।
उनकी समझ में न आया कि अब शिकायत और चेतावनी की शुरुआत कहां से करें, इसी सोच एवं संकोच में उन्होंने अपने दाहिने हाथ से जिससे कुछ देर पहले हाथ मिलाया था, होंठ खुजाया तो उबकाई आने लगी। इसके बाद उन्होंने उस हाथ को अपने शरीर और कपड़ों से एक बालिश्त की दूरी पर रखा। मौलाना आने का उद्देश्य भांप गये। ख़ुद पहल की। यह मानने के साथ कि मैं आपके कोचवान रहीमबख़्श से पैसे लेता रहा हूं-लेकिन पड़ोसन की बच्ची के इलाज के लिये। उन्होंने यह भी बताया कि मेरी नियुक्ति से पहले यह नियम था कि आधी रक़म आपका कोचवान रख लेता था। अब जितने पैसे आपसे वसूल करता है, वो सब मुझ तक पहुंचते हैं। उसका हिस्सा समाप्त हुआ। हुआ यूं कि एक दिन वो मुझसे अपनी बीबी के लिये तावीज ले गया। अल्लाह ने उसका रोग दूर कर दिया। उसके बाद वो मेरा भक्त हो गया। बहुत दुखी आदमी है। मौलाना ने यह भी बताया कि पहले आप चालान और रिश्वत से बचने के लिये जब भी उसे रास्ता बदलने का आदेश देते थे, वो महकमे वालों को इसका एडवांस नोटिस दे देता था। वो हमेशा अपनी इच्छा, अपनी मर्जी से पकड़ा जाता था। बल्कि यहां तक हुआ कि एक बार इंस्पेक्टर को निमोनिया हो गया और वो तीन सप्ताह तक ड्यूटी पर नहीं आया तो रहीम बख़्श हमारे आफ़िस में ये पता करने आया कि इतने दिन से चालान क्यों नहीं हुआ, खैरियत तो है? बिशारत ने कोचवान से संबंधित दो-तीन प्रश्न तो पूछे, परंतु मौलाना को कुछ कहने सुनने का साहस अब उनमें न था। उनका बयान जारी था, वो चुपचाप सुनते रहे।
मेरे वालिद के कूल्हे की हड्डी टूटे दो बरस हो गये। वो सामने पड़े हैं। बैठ भी नहीं सकते। चारपाई काट दी है। लगातार लेटे रहने से नासूर हो गये हैं। पड़ोसी आये दिन झगड़ता है कि ‘‘तुम्हारे बुढ़ऊ दिन भर तो ख़र्राटे लेते हैं और रातभर चीख़ते-कराहते हैं, नासूरों की सड़ांध के मारे हम खाना नहीं खा सकते।
वो भी ठीक ही कहता है। ख़ाली चटाई की दीवार ही तो बीच में है। चार माह पहले एक और बेटे ने जन्म लिया। अल्लाह की देन है। बिन मांगे मोती मिले, मांगे मिले न भीख। जापे के बाद ही पत्नी को Whiteleg हो गई। मौला की मर्जी! रिक्शा में डालकर अस्पताल ले गया। कहने लगे, तुरंत अस्पताल में दाखिल कराओ, मगर कोई बेड ख़ाली नहीं था। एक महीने बाद फिर ले गया। अब की बार बोले-अब लाये हो, लम्बी बीमारी है, हम ऐसे मरीज को दाखिल नहीं कर सकते। फ़ज्र और मग़रिब की नमाज से पहले दोनों का गू-मूत करता हूं। नमाज के बाद स्वयं रोटी डालता हूं तो बच्चों के पेट में कुछ जाता है। एक बार नूरजहां ने मां के लिये बकरी का दूध गर्म किया तो कपड़ों में आग लग गयी थी। अल्लाह का लाख-लाख शुक्र है, मेरे हाथ-पांव चलते हैं।
जारी………………[अब यह श्रंखला प्रत्येक शुक्रवार/शनिवार और रविवार को प्रस्तुत की जा रही है.]
[उपन्यास खोयापानी की तीसरे भाग “स्कूल मास्टर का ख़्वाब से " ]
किताब डाक से मंगाने का पता:
किताब- खोया पानी
लेखक- मुश्ताक अहमद यूसुफी
उर्दू से हिंदी में अनुवाद- ‘तुफैल’ चतुर्वेदी
प्रकाशक, मुद्रक- लफ्ज पी -12 नर्मदा मार्ग
सेक्टर 11, नोएडा-201301
मोबाइल-09810387857
पेज -350 (हार्डबाऊंड)
कीमत-200 रुपये मात्र
इस भाग की पिछली कड़ियां
1. हमारे सपनों का सच 2. क़िस्सा खिलौना टूटने से पहले का 3. घोड़े को अब घोड़ी ही उतार सकती है 4. सवारी हो तो घोड़े की 5. जब आदमी अपनी नजर में गिर जाये 6. अलाहदीन अष्टम 7. शेरे की नीयत और बकरी की अक़्ल में फ़ितूर 8.महात्मा बुद्ध बिहारी थे 9.घोड़े का इलाज जादू से 10.कुत्तों के चाल चलन की चौकीदारी 11. कौन किसका खाना है? 12.मुगल वंश हो तो ऐसा
जारी रहिये.. पढ़ते जा रहे हैं. बेहतरीन मेहनत कर रहे हैं अतः साधुवाद.
हाजिर हू श्रीमान हमारा हाजिरी लगा लिया जाये जी 🙂
हम्म लगता है आप पुस्तक मेले से ली गई किताबों को पढ़ भी रहें हैं आजकल 🙂
नायब जानकारी देते हैं आप हर बार,
प्रस्तुति भी लाज़वाब.
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आभार
डा.चन्द्रकुमार जैन
खोया पानी मिल जाए तो कुछ और भी लिखिए. वैसे यह सिलसिला चलता रहे लेकिन बीच बीच में कुछ और भी लिखना जरूरी है. यहां नहीं तो विस्फोट पर सही.
गूगल क्रोम (गूगल का नया ब्राउजर) हिन्दी में :
डाउनलोड कराने के लिए यहाँ जायें
http://hindiinternet.blogspot.com/2008/09/
blog-post_03.html
ये दीवार कब तक गिरी रहेगी?
ckr dgus dk rfjdk vkidk viuk vkSj cgqr u;k gSA
Kul mila ke bahut hi achha blog hai.Keep up the good work.
bahut dino baad dikhai diye, khoya Pani ki kadhiyan toh badhiya hain hi…
होली कैसी हो..ली , जैसी भी हो..ली – हैप्पी होली !!!
होली की शुभकामनाओं सहित!!!
प्राइमरी का मास्टर
फतेहपुर
उपन्यास अंश उपलब्ध कराने के लिए हार्दिक आभार।
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तस्लीम
साइंस ब्लॉगर्स असोसिएशन
baho hi achchha laga aap ki lekhni padh kar, deewar mojh bhati hai.
Hamne ye upanayas manga hee liya aakhirkar.Padh kar acha laga.Is ki jaankari dene ke liye dhanyawad.