एक मास्साब क्लास में बच्चों को रंगो के बारे में पढ़ा रहे थे.उन्होने मास्साबों की चिर परिचित इस्टाईल में पूछा कि “बच्चो रंगो के बारे में तुम लोग क्या जानते हो? “.
अब हमारे जमाने के बच्चे होते तो चुप होकर नीचे देखने लगते कि कहीं मास्साब से नजर मिली और उन्होने उठा कर पूछ लिया तो !! और मन ही मन सोचते कि अरे जानते ही होते तो तेरी क्लास में क्या झक मारने आते….पर आजकल के बच्चे बड़े समझदार हैं.इधर मास्साब ने सवाल पूछा और उधर जबाब हाजिर इसीलिये समझदार मास्टर लोग आजकल सवाल पूछने का जोखिम ही नहीं उठाते.
एक बच्चा उठा और बोला जी “रंगबाजी” वो होती है जिसमें सामने वाले को अपने सारे रंग तब तक दिखाये जाते हैं जब तक कि वो डर के मारे कोई भी रंग ना देखने की कसम ना खाले. मैने रंगबाजी नहीं केवल रंग के बारे में पूछा था.मास्टर ने बच्चे को जबरदस्ती बैठाते हुए कहा.मास्टर ने सोचा अब तो कोई बता नहीं पायेगा और फिर अपनी विद्वता का चोला ओड़ वो बच्चों को समझायेगा.गलती यहीं हो गयी मास्टर से… मास्टर पुराने जमाने का था बच्चे नये जमाने के.
एक और बच्चा उठा और बोला जी रंग वो होता है जो आमिरखान बसंती से मांगते है (सन्दर्भ : रंग दे बसंती .. रंग दे बसंती ).बसंती कौन ..?? मास्टर ने पूछा ..अरे वही धन्नो की मालकिन,वीरु की माशूका और कौन… किसी ने पीछे से ज्ञान वर्धन करते हुए कहा…. और सर रंग वो होता है जो बादलों में भरा रहता है ( सन्दर्भ : रंग भरे बादल में) और जब वह बरसता तो और कुछ भी नहीं भीगता सिर्फ चुनर वाली गोरी ही भीगती है ( सन्दर्भ : रंग बरसे ..भीगे चुनर वाली ).
बच्चा कुछ और ज्ञानवर्धन करता मास्टर ने उसे बैठाते हुए कहा अरे रंग जैसे हरा..पीला..लाल… एक बच्चा बोला जी जैसे सर “लाल किला” ..जहां झंडा फहराने का सपना हर कोई नेता देखता है. ..”लाल बत्ती” जो हर नेता की जरूरत है… और आजकल तो सर ये रंग और भी फेमस हो रहा है ..”लाल मस्जिद” की वजह से…अब सर लाल मस्जिद के मदरसों में पढ़ रहे लाल ऎसा ही तो करेंगे ना कमाल ..
मास्साब ने बीच में किसी तरह बोलने की कोशिश की और कहा कि रंगो के अंग्रेजी नाम होते है जैसे ग्रीन , रैड , ब्लू …जी हां अमिताभ अंकल अंग्रेजी में ही रंग मांगते है कहते है “गिव मी रैड” ..मांगने के मामले में आमिर खान और अमिताभ अंकल समान हैं.. बच्चा बोलता रहा …और ब्लू ये तो मेरा फैवरिट कलर है… दिल्ली सरकार का भी ये फैवरिट कलर होता था जब उन्होने रैड लाइन बसें हटाकर ब्लू लाइन बसें चलायी.. इस फैवरेटिज्म को बरकरार रखने के लिये कई बसे पुलिस वालों ने खरीद ली कुछ अपने रिश्तेदारों को भी खरीदवा दी.. अब शीला जी कह रही हैं कि “मैं ब्लू लाइन बस की बजाय पैदल जाना पसंद करुंगी”..वो तो करेंगी ही ..अब पैदल चलेंगी तो रास्ते में सब लोग फूलों से स्वागत करेंगे..हो सकता है कोई एकाध गिफ्ट भी पकड़ा दे .. ब्लू लाइन बस में क्या मिलेगा ..?? उलटा कंडक्टर पैसे और मांग लेगा टिकट नहीं देगा .. कोई भद्र इंसान चिंकोटी काट देगा या धक्का लगा देगा… ज्यादा ही कोई मेहरबान हुआ तो पर्स पर हाथ साफ कर लेगा.. अब इत्ते से के लिये क्यों बस में जाना..?? हाँ यदि आपकी किस्मत अच्छी हुई और बस ने किसी को टक्कर मार दी तो हो सकता है कि आपको बीच रास्ते उतरना पड़े ताकि आपकी जनता बस को तोडने फोड़ने का काम सुचारू रूप से संपन्न कर सके… और फिर आपकी पैदल चलने की लालसा पूरी हो सकती है…लेकिन ये तो किस्मत के ऊपर डिपेंड करता है … और किस्मत का रिस्क क्यों लेना वैसे ही अभी अभी चुनावों में किस्मत ऎन वक्त पर धोखा देके भाग गयी थी…ना जी ना …आप तो पैदल ही चलिये….
लेकिन ब्लू लाइन ..मास्साब ने अपनी कोई बात रखने की कोशिश की .. एक बच्चे ने बात को उसी तरह काटते हुए अपनी बात जारी रखी जैसे संसद में अध्यक्ष की बात काटते हुए सांसद जारी रहते हैं…देखिये सर अभी सरकार को ब्लू रंग से थोड़ी चिढ़ हो रही है .क्योकि जैसे ब्लू फिल्में बैन है (सिर्फ बैन हैं अनुपलब्ध नहीं ..पीछे बैठा लड़का कल रात की देखी हुई फिल्म को याद कर धीरे से बोला) ..सरकार ब्लू लाइन को भी बंद करने जा रही है ..अब कोई नया रंगा आई मीन रंग आयेगा और नये ढंग से पब्लिक की सेवा करेगा ..इसी को कहते है सर.. सरकार की रंगबाजी …
मास्साब कुछ बोलते इससे पहले ही घंटी बज गयी और मास्साब अपना रजिस्टर उठा कर बाहर निकल गये….
रंग जमा दिया है आपने काकेश जी!:)
बहुत सही,
रंगबाजी के इतने रंग तो हमे भी पता न थे ।
बढिया जानकारी देने के लिये धन्यवाद,
ऐसे रंग बरसाए है कि हम सराबोर हो गए
कहने को मजबूर वन्स मोर हो गए।
दूर दूर की रंगीन कौडि़यॉं खोजी आपने। बधाई
काकेश जी,बहुत सुन्दर रंगबाजी की है।बधाई।
अरे भाइ धन्यवाद रंगबाजी पर ही रुक गये हम तो घबरा गये थे कि पंगेबाजी हथिया ली आज आपने 🙂
काकेशजी, लगता है कि मेरी क्लास के बच्चे आपकी क्लास में भी जाने लगे हैं। चलो जी अच्छा है, दो-दो मिलकर पढ़ायेंगे, तो रिजल्ट ज्यादा चकाचक आयेंगे।
बहुत खुब, शुरुआत दमदार रही। लेख में आलोक पुराणिक जी की शैली झलक रही है। 🙂
काकेश जी आपने तो रंगों की बरसात कर दी। बहुत ख़ूब !
हमें जहाँ तक याद है ये पहले रेड लाईन बसें हुआ करती थी, रेड गया ब्लू जायेगा क्या अब ग्रीन आयेगा। वैसे जो भी है तुम तो रंग जमा गये।