आओ ‘अनाम’ के अस्तित्व को स्वीकारें

Anaam

वैसे तो मुझे खुशी होनी चाहिये थी कि कल ढेर सारी हिट्स भी मिले और टिप्पणीयां भी ….पर ना जाने क्यों उतनी खुशी नहीं हुई .क्योंकि जिस सवाल को लेकर प्रतिकार प्रारम्भ हुआ था वो सवाल तो बना ही रहा बल्कि उस सवाल के जबाब तलाशने की जद्दोजहद में कुछ नये सवाल बनते चले गये . हाँलाकि य़ोगेश जी ने कहा “ बहुत खूब अंदाज में आपने विषय को समाप्त करने के लिये अंतिम भाषण जैसा दे डाला है. मैं समझता हूं कि आपकी इस पोस्ट में इतना दम है कि अब इसे पढने के बाद बेनामी विषय पर कोई पोस्ट नहीं लिखी जानी चाहिये. ” . ये तो मैं नही जानता कि पोस्ट में कितना दम था या है पर कुछ नये और पुराने सवालों पर मेरा स्पष्टीकरण मुझे आवश्यक जान पड़ता है . पहले तो मैं चाहता था कि एक टिप्पणी कर दूं पर जब देखा कि कल टिप्पणीयां भी पोस्ट जितनी बड़ी हो गयी तो दिमाग में आया कि चलो एक पोस्ट ही लिखी जाय . वैसे मेरा मानना है कि अनाम,बेनाम पर बहस काफी लंबी हो गयी है और इसको आगे नहीं खींचना चाहिये पर यह बहस केवल एक अनाम व्यक्ति पर नहीं बल्कि उसके बहाने चिट्ठाजगत के मुद्दों पर भी है .

यहां मैं यह स्पष्ट कर दूं कि मेरी कल वाली पोस्ट किसी व्यक्ति विशेष पर नहीं थी. मैं तो किसी ‘असभ्यता’ का सभ्य तरीके से प्रतिकार कर रहा था.

जब इतनी अच्छी अच्छी टिप्पणीयां आई हैं तो उन्हें बरबाद क्यों जाने दें .थोड़ा सा विश्लेषण कर लिया जाय वैसे भी ‘ई-स्वामी जी’ ने ‘चने की झाड़’ पर चढ़ा ही दिया है यह कहके कि आपके “लेखन में निरपेक्ष विश्लेषण और वैचारिक स्पष्टता” है और कुछ सुधी जनों ने उसका समर्थन भी कर दिया है “मैं भी स्वामीजी की बात से सहमत हूँ।“ कह के 🙂 . ये शब्द आपको ‘व्यर्थ के गुमान में रह कर अपने आपको बड़ा समझना’ नहीं सिखाते वरन आपके ऊपर एक अतिरिक्त जिम्मेवारी डाल देते हैं …. अपेक्षाओं पर खरे उतरने की. धन्यवाद आप सभी का.

चलें टिप्पणीयों के माध्यम से मूल समस्या को समझें और एक आम सहमति सी बनाने का प्रयास करें . सही समस्या की पहचान सही समाधान की पहली सीढ़ी है . यदि हम सही समस्या को पहचान पाएंगे तो समस्या का समाधान भी सहज ही हो जायेगा. अभी जो बात सामने आ रही है कि ये मुद्दा अनाम या बेनाम का नहीं बल्कि टिप्पणीयों में असभ्य भाषा के इस्तेमाल का है .

देखिये कुछ उदाहरण …

“बात गंदी भाषा के असभ्यता पूर्वक इस्तेमाल को लेकर ज्यादा है.”
“बेनामी टिप्पणीयो से कोई परेशानी तब तक नही है जब तक वह सभ्य भाषा मे हो !”
“यदि टिप्पणी की भाषा ठीक है तो भी बेनाम को क्यों कोसे जा रहे हैं।“
“एक इंसान को किसी दूसरे इंसान से जिस न्यूनतम तमीज की अपेक्षा होती है, कम से कम उतनी तमीज तो हम आपस में संवाद करते समय अपनी भाषा में दिखा ही सकते हैं। “
“ग़ुमनामी की आड़ से गाली गलौज.. अति-स्वतंत्र समाज में भी मर्यादायें तो होंगी..मामला उसी सीमा का है..
“मैंने सेठ होशंगाबादी के ब्लॉयग पर देखा था कि एक बेनाम ने जमकर xxxx गालियां दे मारी…… मेरे खिलाफ सही बात बोलिए जिसे बोलना है . मैं नहीं परेशान होता अपनी निंदा से .
“ परेशानी बेनाम से नहीं उसकी आजादी से है।अनजान की आलोचना, बुराई या गाली कोई बर्दाश्त कैसे करेगा?”

तो इतना तो जाहिर ही है कि अनाम की आड़ में हम जूझ रहे हैं किसी दूसरी समस्या से, किसी दूसरे प्रश्न से. यदि हम सही प्रश्न पर विचार करेंगे तो शायद सही हल ढूंढ भी पायेंगे. ये सभी बाते सही हैं और चिंता का विषय भी.

किसी ने कहा है कि अंधेरे को कोसने से बेहतर है एक दीप जलाना . ‘अनाम’ को गरियाना अंधेरे को कोसने जैसा है .’अनाम’ अजेय है. हम ‘अनाम’ से नहीं जीत सकते . ‘अनाम’ तो रक्तबीज है . ‘अनाम’ अमर है . ‘अनाम’ एक साश्वत सत्य है . ‘अनाम’ सर्वव्यापी है .’अनाम’ बहुरूपिया है . इससे पहले भी ‘अनाम’ था ….कई रूपों में ….अभी भी है और आगे भी रहेगा . रूप बदल सकते हैं सन्दर्भ बदल सकते है पर ‘अनाम’ नहीं बदलेगा . वो तो हमारी पहचान का एक हिस्सा है . हम सब किसी ना किसी रूप में ‘अनाम’ हैं . और यही हमारा उदगम (स्टार्टिंग पौइंट ) है. हमारी यात्रा ‘अनाम’ से नामवर बनने की यात्रा है . ‘अनाम’ को कोसना कीचड़ में पत्थर मारने जैसा है . ‘अनाम’ को लतियाना , गरियाना हवा में डंडा चलाने जैसा है . आओ ‘अनाम’ के अस्तित्व को स्वीकारें.

तो हमारी लड़ाई उस ‘अनाम’ से नहीं वरन उस असभ्य भाषा से है जो हमें परेशान करती है . य़े सही बात है .पिछ्ली पोस्ट में मेरा भी यही कहना था कि हमें कॉंनटेन्ट के बारे में सोचना है ना कि कॉंनटेन्ट राइटर के. हमें अपना मोर्चा असभ्यता के विरुद्ध खोलना होगा ना कि गुमनामियत के विरुद्ध . असभ्यता का दायरा विस्तीर्ण है ये केवल टिप्पणीयों तक ही सीमित नहीं है . ये आपके चिट्ठे पर भी उतना ही लागू होता है जितना मेरी टिप्पणी पर. लेकिन हम क्या कर रहे हैं .. टिप्पणीयों से गंद हटाने के लिये अपने चिट्ठे पर गंद भर रहे हैं. असभ्यता के विरोध मे बोलने की बजाय हम खुद असभ्यता का परिचय दे रहे हैं . मेरा प्रतिकार इसी बात पर था और है. किसी ने कल लिखा था

“कल को कोई अपनी एक पहचान लेकर गाली गलौज करने लगे तो भी आप प्रकाशित तो नहीं कर देंगे..” सही बात है …यही तो कर रहे है हम ‘अपनी एक पहचान लेकर गाली गलौज “ . ये बात महत्वपूर्ण नहीं कि ‘किसने लिखा’ बल्कि ये कि ‘क्या लिखा’…..

कैसे हम इस कथित असभ्यता को निकाल बाहर करें ये एक बहुत बड़ा सवाल है . असभ्यता का कोई मानक , युनिवर्सल स्टैंडर्ड नहीं है . जो बात मुझे असभ्य सी लगती है वो आपको सभ्य लग सकती है. और इसका विपरीत भी सही है . अब चूंकि समस्या युनिवर्सल नहीं है तो एक युनिवर्सल समाधान भी मुश्किल है . तो इसमें हमें अपने विवेक से काम लेना होगा. हमारी असभ्यता का निर्धारण हम करेंगे . टिप्पणी-मॉडरेशन असभ्यता-निर्धारण में सहायता करने वाला औजार है . इस औजार का प्रयोग करें और अपने विवेक से निर्धारित करें कि आप क्या रखना चाहते हैं क्या हटाना . जहाँ तक बात चिट्ठों में असभ्यता निर्धारण की है तो उसमे भी हम बहुत कुछ कर सकते है प्रत्यक्ष रूप से नहीं पर परोक्ष रूप से . हम पाठक हैं… हम चुन सकते हैं कि क्या पढ़ें क्या नही .ये अधिकार हमारा है और यदि कोई असभ्य बात आपको लगी किसी चिट्ठे पर तो उसका सभ्य भाषा में प्रतिकार भी कर सकते हैं….


आपको ऎसा नहीं लगता कि ज्ञान कुछ ज्यादा ही हो गया .. मुझे तो ऎसे ही लगता है ..अब सुबह सुबह 4 बजे उठकर मुँह हाथ धोकर , चाय पीने की बजाय कोई चिट्ठा लिखने बैठ जाये तो उससे क्या उम्मीद करें … और फिर चने की झाड़ पर चढ़ाया है तो इतना तो झेलना ही पड़ेगा ना… पर योगेश जी अब निश्चिंत रहें अब ‘बेनामी’ पर नहीं लिखुंगा ….हाँ ‘सूनामी’ पर लिख सकता हूं 🙂

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By काकेश

मैं एक परिन्दा....उड़ना चाहता हूँ....नापना चाहता हूँ आकाश...

4 comments

  1. कुछ कुछ आप जैसा प्रयोग हमने भी किया था उसके मकसद का भी वही हाल हुआ यानि कि सवाल अपनी जगह ही बना रहा 🙁

  2. आज फिर आपने वही सब लगभग दोहरा सा दिया. एक कहानी मैंने कई बार सुनी थी. शायद आपने भी सुनी हो, विवेकानंद जी को कोई व्यकित गालियां देता था. उनके शिष्य ने पूछा स्वामी जी वह व्यक्ति आपको गालियां दे रहा है आप कोई प्रतिक्रिया नहीं दे रहे क्या बात है. विवेकानंद जी ने कहा कि उसने दी पर मैंने तो ली नहीं तो उसका माल उसी के पास रह गया. लिखने दो किसी को गालियां आप उन्हें डिलीट कर दो. वैसे भी कितनी सारी अच्छी बातें हम पढते रहते हैं क्या सब अच्छी बातों को हम स्वीकार करलेते है. उन्हें अपना लेते है. यदि नहीं तो इन गन्दी बातों को इतनी तरजीह देने का क्या तुक. एसे विषयों पर चर्चाओं को नजर अंदाज करना चाहिये. और बहुत सारे विषय हैं जिन पर हम सब बुद्धीमान लोगों को अपना दिमाग लगाना है.

    आप मेरा ब्लाग भी पढा करें. टिप्पणी भी किया करें. एसा करने से पुण्य मिलता है.

  3. बहुत ही अच्छी और सही लगी बातें.काफ़ी हद तक मैं इस से सहमत हूँ. हमारी लडाई असभ्यता से होनी चाहिए.आज बेनामी की जगह किसी गुमनाम के ही नाम का एक मेल id बना लेना कौन सी बड़ी बात है.और यदि व्यक्ति उस नाम विशेष को जाहिर करते हुए असभ्य भाषा में विष वमन करे तो क्या वह स्वीकार्य होगा??
    असल में एक चीज होती है जिसे तहजीब यह संस्कार करते हैं जो शैक्षणिक योग्यता की मुहताज नही होती जन्मजात ही होती है. कितना भी विचलित क्यों न हो सुसंस्कारी व्यक्ति सहज रूप में अपशब्दों का व्यवहार नही कर पाता और सभ्य सुसंस्कृत होने का क्षद्म चोला ओढा हुआ व्यक्ति उसे हरदम ओढे नही रह सकता.. ब्लोगिंग एक सार्वजानिक स्थान है और यदि यहाँ आकर कोई अपनी व्यक्तिगत वैमनस्यता निकाले या अनावश्यक किसी की भावनाओं या छवि को चोट पहुँचाने का प्रयास करे तो किसी भी हालत में उसे प्रश्रय नही देना चाहिए. अपने सामर्थ्य भर उसका विरोध आवश्यक है.

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