उपस्थित हूँ फिर से कुछ दिनों की छुट्टियां बिताने के बाद. छुट्टियों में मैने अधिकतर चिट्ठे पढे पर हर जगह टिप्पणी नही दे पाया …कारण इंटरनैट की धीमी गति. पिछ्ले दिनों ट्रेन से अपने होमटाउन (अब होमटाउन की हिन्दी क्या होगी यह कोई सुधी जन बताये) जाना हुआ.शाम 4 बजे की ट्रेन थी लेकिन दीवाली… Continue reading रेलवे का खाना और स्पैनिश पर्यटक
Author: काकेश
मैं एक परिन्दा....उड़ना चाहता हूँ....नापना चाहता हूँ आकाश...
कटखने बिलाव के गले में घंटी
ज्ञान जी बोले “भैया, यह बताना कि यूसुफी जी ने यह लिखने में कितना समय लिया था। हमें तो इस छाप का सोचने में इतना समय लगे कि उम्र निकल जाये!” . सच जब से मैने यह उपन्यास पढ़ना शुरु किया कुछ इसी तरह के विचार मेरे दिल में भी आये थे.संजीत जी ने कहा… Continue reading कटखने बिलाव के गले में घंटी
इम्पोर्टेड बुज़ुर्ग और यूनानी नाक
[ “खोया पानी” उस व्यंग्य उपन्यास का नाम है जो पाकिस्तान के मशहूर व्यंग्यकार मुश्ताक अहमद यूसुफी की किताब आबे-गुम का हिन्दी अनुवाद है. इस पुस्तक के अनुवाद कर्ता है ‘लफ़्ज’ पत्रिका के संपादक श्री ‘तुफैल चतुर्वेदी’ जी. इस उपन्यास की टैग लाइन है “एक अद्भुत व्यंग्य उपन्यास” जो इस उपन्यास पर सटीक बैठती है.इसी… Continue reading इम्पोर्टेड बुज़ुर्ग और यूनानी नाक
वो तिरा कोठे पे नंगे पांव आना याद है
[ कोठे की कहानियां तो अभी आनी बांकी हैं.एक से बढ़कर एक कहानियां हैं जो आप आगे के हिस्सों में पढेंगे.अभी तो हम हवेली में ही अटके हुए हैं. किबला को अपनी हवेली से कितना प्यार था कि वो अपनी हवेली को महल से कम नहीं समझते थे. किबला की बहादुरी का परिचय भी आप… Continue reading वो तिरा कोठे पे नंगे पांव आना याद है
हवेली की हवाबाजी
[ किबला की बहादुरी का परिचय आप देख चुके हैं कि कैसे उन्होने अपनी सलीम शाही जूती की छाप से कराची में एक घर हथियाया था. किबला की कानपुर में एक हवेली भी हुआ करती थी. हवेली क्या थी सोचें की किबला के लिये एक महल था.किबला की ना जाने कितनी यादें उससे जुड़ीं थीं.… Continue reading हवेली की हवाबाजी
इसको देखो ..बड़ा तेज है भई…
प्रभु कई दिनों से गायब थे. उनके गायब होने से तरह तरह की अटकलों का बाजार गर्म था. कोई कहता प्रभु संजीवनी बूटी खाने लाने गये हैं. कोई कहता कि मंहगाई का जमाना है. प्रभु को भी दुनिया चलानी है शायद अतिरिक्त कमाई का जुगाड़ बैठा रहे होंगे.कोई कहता लॉग ड्राइव पर निकल गये होंगे.जितने… Continue reading इसको देखो ..बड़ा तेज है भई…
हवेली की पीड़ा कराची में
[किसी भी अच्छे व्यंग्य में करुणा का पुट लिये यथार्थ की झलक भी होती है.खोया पानी में भी यह प्रचुर मात्रा में है लेकिन यह करुणा ऎसी है जो हास्य से ही उपजती है. युसूफी साहब भी बीच बीच में कड़वा यथार्थ लेकर आये हैं जो हास्य की चाशनी में लिपटा हुआ है. आइये आज… Continue reading हवेली की पीड़ा कराची में
कांसे की लुटिया,बाली उमरिया और चुग्गी दाढ़ी़
[ पिछ्ले अंको में में आपने किबला का मजेदार परिचय और उनकी लकड़ी की दुकान के बारे में पढ़ा. जिसमें आप उनके चरित्र के बहाने उस समय की स्थितियों से भी परिचित हुए. ज्ञान जी ने टिप्पणी करते हुए कहा “यह तो वास्तव में व्यंग का मुरब्बा है। आंवले को सिझा कर कोंच कोंच कर… Continue reading कांसे की लुटिया,बाली उमरिया और चुग्गी दाढ़ी़
खोया पानी-3:कनमैलिये की पिटाई
[ पहले व दूसरे अंक में आपने किबला का मजेदार परिचय पढा. जिसमें आप उनके चरित्र के बहाने उस समय की स्थितियों से भी परिचित हुए. “खोया पानी” नामक इस व्यंग्य उपन्यास में ऎसे अनेकों जुमले हैं जिनमे हास्य कूट कूट कर भरा है और व्यंग्य इतना महीन है कि समझ में आये तो मजा… Continue reading खोया पानी-3:कनमैलिये की पिटाई
ब्लॉगिंग:कुछ फुटकर विचार
बीच बीच में मुझे ना जाने क्या होने लगता है कि मैं हिन्दी ब्लॉगिंग के बारे में सोचने लगता हूँ.फिर वही उहापोह वाली स्थिति होती है कि लिखें या ना लिखें. अब इस उमर में लेखक या साहित्यकार तो बनने से रहे तो फिर क्या फायदा…अपने काम में मन लगायें और उसी में कुछ करने… Continue reading ब्लॉगिंग:कुछ फुटकर विचार