दुखिया दास कबीर है

दुखी होना आपकी सामाजिक चेतना का लक्षण है. अवसरवादी के लिये दुख लाभ प्राप्ति का मार्ग है.आप अपनी सुविधानुसार दुखी हो सकते हैं.यदि आपके पास एक अदद नौकरी है तो इस बात पर दुखी होइये कि आपका बॉस आपको बहुत परेशान करता है.सुबह से शाम तक आपको एक कोल्हू के बैल की तरह काम करना पड़ता है. बदले में आपको वेतन के रूप में जो पैसे मिलते हैं वो आपकी योग्यता व काम के हिसाब से बहुत कम हैं. यदि आप भारत के अधिकांश युवाओं की तरह पढ़े लिखे अयोग्य हैं तो दुखी होने का पहला हक आपका है. आप बेरोजगारी की समस्या का रोना रोते हुए सरकार को जी भर कोस सकते हैं.आप जगह जगह जा कर कह सकते हैं कि इस देश में योग्य व्यक्ति की कोई पूछ नहीं है. ज्यादा दिनों तक नौकरी ना मिले तो कहिये कि अरे नौकरी की क्या है मिलने को तो कितनी ही मिल जायेंगी लेकिन हम अपनी शर्तों पर काम करना चाहते हैं.आजकल हर जगह भ्रष्टाचार है.लोगों का नैतिक पतन हो चुका है.क्या होगा देश का. ऎसा प्रकट करें कि जैसे सारे देश का भार आपके ऊपर ही है.कुछ दिनो में कुछ ले-दे के एक अदद नौकरी का जुगाड़ हो गया तो कहिये कि क्या करें… सोचा है कि सिस्टम को कोसने से बेहतर है कि सिस्टम में रहकर उसके खिलाफ लड़ें.आजकल कोई देश के बारे में सोचता ही नहीं. यकीन मानिये लोगों की सहानुभूति आपके साथ होगी. 

यदि आप कवि हैं तो भगवान ने आपको एक कलम दी है जिसे कुछ बड़े बूढ़ों ने तलवार से भी ज्यादा मारक बताया है. ये बड़े बूढ़े वही रहे होंगे जो किसी राजा के जमाने में युद्ध के लिये मिसफिट घोषित कर दिये गये होंगे. कवि दुखी होकर उस तलवार से जिस पर चाहे उस पर वार कर सकता है.कवि के दुखी होने का अपना ही एक इश्टाइल होता है जिससे दुखी होने का नाटक कर दूसरों लोगों को पर्याप्त दुखी कर सकता है.इस तरह वह माहोल को दुखमय बना देश व समाज की प्रगति में योगदान देता है.कवि की दुखी होने और करने की विभिन्न क्षमताओं के आधार पर ही उसे तरह तरह पुरुस्कार प्रदान किये जाते हैं.साहित्य के क्षेत्र के जितने भी बड़े बड़े पुरुस्कार हैं वह अधिकतर कवियों को ही दिये जाते है. व्यंग्यकारों को अपनी दुखी न कर पाने की असमर्थता के कारण कोई पुरुस्कार नहीं मिलता.यदि किसी एक आध व्य़ंग्यकार को पुरुस्कार मिला भी हो तो मान लीजिये कि उसने अपनी रचनाओं से लोगों को पर्याप्त दुख दिया होगा.

दुखी होने के मामले में नेता लोग आत्मनिर्भर होते हैं. उन्हें दुखी होने के लिये कोई खास मसक्कत नहीं करनी पड़ती. वो किसी भी मुद्दे पर घड़ियाली आंसू बहा सकते हैं.कैमरे के सामने आते ही वो पूरी तरह चेहरे को लटकायमान बनाते हुए किसी भी मुद्दे पर दुख प्रकट कर सकते हैं. यह सार्वभौमिक सत्य है कि किसी भी नेता द्वारा प्रकट दुख का कारण विपक्षी पार्टी ही होती है.

जिस तरह से दुख के संवेदना जुड़ी हुई है उसी तरह सुख के साथ जलन का रिश्ता है. यदि कोई दुखी है तो आप उससे हमदर्दी जतायेंगे जबकी यदि कोई सुखी है तो आपको उससे हमेशा जलन होगी.इसलिये ज्ञानी लोग अपना सुख कभी प्रकट नहीं करते. वे आपको जलने का कोई अवसर नहीं देते. पेट भरा हो तो आप पेट में गैस की शिकायत कीजिये. पेट खाली हो तो देश में भोजन की समस्या पर विस्तार से भाषण दे डालिये जब तक की आपके लिये भोजन की व्यवस्था ना हो जाये.यदि आप सिंगापुर से शौपिंग करके लौटे हैं तो कहिये ‘क्या करें ऑस्ट्रेलिया नहीं जा पाये इस बार’ और यदि लोगों की सहानुभूतियों के बल पर ऑस्ट्रेलिया चले ही गये तो कहिये ‘यू.एस. जाने की इच्छा थी लेकिन क्या करें’…. और यदि यू. एस. भी पहुंच जायें तो अपने गांव को याद कर रोने लगिये. यानि आपको कोई मौका नहीं जाने देना है दुखी होने का.

किसी पुराने कवि ने कहा है.

सुखिया सब संसार है , खाये और सोये
दुखिया दास कबीर है , जागे और रोये

इन पंक्तियों का सार यही है कि जिन्होने दुखी होने का पर्याप्त अभ्यास कर लिया वह अब सुखी हो गये और अब वह चैन से खा-पी कर सो रहे हैं. लेकिन कबीर दास जी जो अभी इस क्षेत्र में नये हैं वो जाग जाग कर दुखी होने का अभ्यास कर रहे हैं ताकि वह भी सुख को प्राप्त कर खा-पी कर आराम से सो सकें.

इसलिये मेरा निवेदन है कि दुनिया के सभी लोग दुखी हों. आमीन.

चिट्ठाजगत चिप्पीयाँ: हास्य, हास्य व्यंग्य, काकेश

By काकेश

मैं एक परिन्दा....उड़ना चाहता हूँ....नापना चाहता हूँ आकाश...

14 comments

  1. .कवि के दुखी होने का अपना ही एक इश्टाइल होता है -सही है इसी बात पर अभी एक कविता पोस्ट करने जा रहे हैं, जरा दुख दिखा आना. 🙂

  2. हम तो पहले ही सुख की आकांक्षा में सतत दुखी हैं। आपने यह पढ़ा कर और दुखी बना दिया!

  3. कबीरदासजी जब फंडा बता गये हैं सुखी रहने का तो क्या टेंशन है जी।
    खावै और सोवे-पर अमल करें। लाइफ मजे में कटेगी।
    पर यह करने में जितने दुख हैं, उसका अंदाज दुखियों को नहीं हो सकता। खाना आसान नहीं है, सोना आसान नहीं है। बड़के-बड़के नोट खाऊ लोग खाने के नाम पर सिर्फ खिच़ड़ी खा पाते हैं, डाइबिटीज, बीपी। नींद गायब है, सोना नहीं हो पाता। चार प्लाट के आठ प्लाट करने हैं।
    कुछ ज्यादा नहीं करना चाहिए, मस्त रहना चाहिए। खाने-पीने भर का जुगाड़ कर लेना चाहिए। फिर टाइम ब्लागिंग में वेस्ट करना चाहिए।

  4. क्या कांटे की बात कही है आपने कि “बड़े बूढ़े वही रहे होंगे जो किसी राजा के जमाने में युद्ध के लिये मिसफिट घोषित कर दिये गये होंगे.”
    फिर आखिर की ये लाइनें भी ज़माने का राज़ खोल देती हैं कि, “जिन्होने दुखी होने का पर्याप्त अभ्यास कर लिया वह अब सुखी हो गये और अब वह चैन से खा-पी कर सो रहे हैं.”
    उत्तम है…

  5. दुखी होने के लाभों से रचनाकार चिरपरिचित होते हैं।
    इससे उर्जा बनती है मिथ है कि घटती है।
    सुख आलस को जगाता है सच्चाई है कि भगाता है।

    समीर लाल तो तश्तरी हैं उड़ती हुई,
    बाकी सामान कहां है
    कटोरी, चम्मच, गिलास, कप इत्यादि।

    आलोक भाई मेरे अनुसार टाईम ब्लागिंग में वेस्ट नहीं, इंवेस्ट करना चाहिए।

  6. किसी पुराने कवि ने कहा है.

    सुखिया सब संसार है , खाये और सोये
    दुखिया दास कबीर है , जागे और रोये

    ये पुराना कवि शायद कबीर से बहुत जलता था…कबीर दुखी होकर सारी सहानभूति इकठ्ठा कर अपनी जेब में रख लेते होंगे और इस ‘पुराने कवि’ के लिए रत्ती भर भी नहीं छोड़ते थे…और बात साबित भी हुई…इसलिए कि कबीर अभी तक फेमस हैं और ये कवि….वैसे इस पुराने कवि का नाम क्या था?…..

    नाम जो भी हो….आपका लिखा हुआ बहुत मस्त है…जबरदस्त है.

  7. मैं, बालकिशन, ब्लोगरों की दुनिया का चिर दुखी बड़े वापाजी,ज्ञान भइया,मिश्राजी,आलोकजी,और समीरजी को हाजिर नाजिर जानकर आप की इच्छा पूर्ति हेतु आप के लिए सतत और निरंतर दुखों की कामना करता हूँ.
    आमीन

  8. सोच रहा हूँ अब किस दुख पर मैं अपनी तलवार चलाऊँ
    ऐसा कुछ लिख सकूँ सभी की नजरों में , मैं कवि कहलाऊँ
    तुमने तो ऐलान कर दिया, जो तुमने है लिखा-व्यंग्य गै
    तो फिर जितने पुरस्कार हैं शेष, सभी को मैं ही पाऊँ

  9. अच्छा लेखन !अच्छे विचार । दुख और ग्यान पर हम “फ़लां फ़लां “पोस्ट मे लिख चुके है अगर न देखी हो तो देखिये ;))
    bakalamkhud.blogspot.com

  10. kabeer ke baare mein search kiya to aapke blog tak pahuncha. Padh kar maza aaya. Aap ne bhi lekhak ka dharm bakhoobi nibhaya (jaisa ki aapne khud hi likha hai…
    कवि के दुखी होने का अपना ही एक इश्टाइल होता है जिससे दुखी होने का नाटक कर दूसरों लोगों को पर्याप्त दुखी कर सकता है.इस तरह वह माहोल को दुखमय बना देश व समाज की प्रगति में योगदान देता है)

    aisi rachna ke liye sadhuwaad.

  11. शानदार बिचार । सुख और दुख के कुर्मान्चलिय अवधारणाओं पर इक डोटेलि लोक गितका ऊद्दरण देना चाहता हुँ ।
    -फल टिपि बानर लैग्या सौला रुखै छन । दन्त मुर्ख हाँसो औंछ हिय दुखै छन ।
    ( अर्थात फल तो बन्दर ले गये,पत्ते हि पेड मे शेष है । मुर्ख दन्त-पंक्ति मे हँसी आये तो क्या हुवा, हृदय में बहुत दुख है । )
    धन्यबाद

  12. adyapak ji .. mere khyaal mein aapne bilkul galat tark nikala hai

    kabir das ji ta tark yeh tha ..
    सुखिया सब संसार है , खाये और सोये .. is sansaar mein manush adhiktar bas kha aur so kar apna jeevan vsateet kar raha hai.
    उसे apne kaal (मृत॒यु के प़शचात की भोगनी) ka to koi gyat hi nahin hai .. aur na wo us ke kuch kar bhi nahin raha hai

    दुखिया दास कबीर है , जागे और रोये
    kabir ji .. jo apna sachaa adhaar pa chuke hain (वह jo moksha ko prapt kar chuke hain) .. वह जागे hue hain aur sansaar ki is avastha ko dekh kar unka man रोये है

    दुखी होना तो महापुरष kabhi nahin kehte .. वह तो chahte hain ki aapka lok bhi surela ho aur parlok bhi

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