हमारे एक नये नये मित्र बने हैं.नाम है कमलादत्त कांडपाल.नये नये पत्रकार बने हैं. रहने वाले हैं ग्राम कांडा, पट्टी कत्यालू, कफड़खान के. जनेऊ धारी ब्राह्मण है लेकिन खुद को बामण कहलाना ज्यादा पसंद करते हैं.कान में जनेऊ डालने के बाद ही कोई शंका करते हैं चाहे वह लघु हो या दीर्घ. एक ढाई फुट की चुटिया भी है.जिसे बड़े जतन से संभाल कर रखते हैं.दिल्ली में नये नये आये हैं.करोल बाग में किराये पर कमरा लेकर रह रहे हैं.
अब इनसे हमारी दोस्ती कैसे हो गयी यह भी कमाल की ही बात है. दरअसल हमारे कमलादत्त जी को “क” वर्ण से कुत्ताप्यार है. कुत्ताप्यार यानि जैसे कुत्ते को कुत्ते से होता है मतलब काटना व चाटना दोनों इस प्यार में शामिल है. इनकी जिन्दगी का सबसे बड़ा दुख यह है कि इनका नाम कमलादत्त ना होकर कमलकांत क्यों नहीं है तब इनके नाम में भी तीन “K” या “क” होते. मतलब यह कि ये तीन ‘क’ के पीछे पागल हैं. अर्जुन हिंगोरानी, जो अक्सर तीन “K” वाली फिल्में बनाया करते थे जैसे “कब ? क्यों और कहां ?” (1970), “कहानी किस्मत की” (1973), “खेल खिलाड़ी का” (1977), “कातिलों के कातिल”. इनके आदर्श है. तो एक दिन यह हमारे ब्लॉग पर आये और “काकेश की कतरनें” देख ठिठक गये. तीन “क” देख कर इन्होने हमसे संपर्क किया और धीरे धीरे यह संपर्क दोस्ती में बदलने लगा.अब इनके अन्य मित्रों की तरह हम भी इन्हें “केडीके” कहते हैं.
खबरों के बारे में यह आत्मनिर्भर हैं. खबर हो ना हो लेकिन उसको अपने तगड़े विश्लेषण के छोंक के साथ पेश करने में केडीके माहिर हैं.
इधर कई दिनों से व्यस्तता के कारण नियमित लिखना नहीं हो पा रहा तो केडीके ने कहा.
“अमां यार आजकल तुम केवल “खोया पानी” छापते हो, हालांकी इसमें भी एक “k’ है लेकिन फिर भी कुछ और लिखते क्यों नहीं”
“क्या बताऊँ केडीके, पेपर पढ़ने तक का टाइम नहीं है आजकल कुछ लिखें भी तो कैसे?”
“देख केके दोश्त तुमको हम खबर बतायेगें तुम उसको अपने अंदाज में लीख देना”
हम को और क्या चाहिये था.हम तैयार हो गये.किसी भी खबर के बारे में केडीके के अपने तर्क होते हैं,जिन्हे अक्सर इनका बॉस, संपादक नहीं मानता और उसे अखबार में छापने से इंकार कर देता है. यह उन्ही खबरों को हमें बतायेंगे. तो इन्होने वादा किया है कि यह हमें खबरें बतायेंगे जिन्हे हम अपने अंदाज में आप तक पहुंचाते रहेंगे.
तो कोशिश करते हैं केडीके के विश्लेषण के साथ कुछ खबरें आप तक पहुंचाने का.
यह हुई केडीके पर कड़क पोस्ट!
जमाये रहियेगा!
वाह!
कांडपाल जी कान में जनेऊ डालकर शंका करते हैं! किसके ऊपर?
वैसे कांडपाल जी का क से प्यार वाली बात बड़ी जोरदार लगी..अर्जुन हिंगोरानी का इतना बड़ा समर्थक हम तो नहीं देखे जी…
गुड है!
चलिए हम इंतजार करते हैं कि कब आप उनकी लाई खबरें पढ़वाते हैं
जिस हिसाब से K का जोर चल रहा है-आश्चर्य नहीं कि कभी राह चलते आपसे खुदा Khuda टकरा जाये. 🙂
फिलहाल तो केडीके की खबरों का इन्तजार है. देखें तो काहे छापने नहीं तैयार हुए संपादक जी.
बेहतरीन!
कमलादत्त जी का परिचय रोचक और जिज्ञासा जगाने वाला है. आगे इंतजार है.
क्या काकेशजी कैसी करामात की । हमको भी लगा लिया किस्से की प्रतीक्षा में।
करन जौहर को कैसे भूला भुला ?
क्क्क्क्क्कक क्या खबर है केडिके,
करामाती किस्सों का इंतज़ार है…