आइडियल यतीम का हुलिया : यतीम जमा करना बिशारत को चंदा जमा करने से भी मुश्किल नजर आया, इसलिये कि मौली मज्जन ने यह पख़ लगा दी कि यतीम तन्दरुस्त और मुस्टण्डे न हों। सूरत से भी दीन, दरिद्र मालूम होने चाहिये। लम्बे-चौड़े न हों, न इतने छोटे टुइयां कि चोंच में चुग्गा देना पड़े। न इतने ढऊ के ढऊ और पेटू कि रोटियों की थई-की-थई थूर जायें और डकार तक न लें, पर ऐसे गुलबदन भी नहीं कि गाल पर एक मच्छर का साया पड़ जाये तो शहजादा गुलफ़ाम को मलेरिया हो जाये। फिर बुख़ार में दूध पिलाओ तो एक ही सांस में बाल्टी की बाल्टी डकोस जायें। बाजा-बाजा लौंडा टख़ने तक पोला होता है। लड़के बाहर से कमजोर मगर अन्दर में बिल्कुल तन्दुरुस्त होने चाहिये। न ऐसे नाजुक कि पानी भरने कुएं पर भेजो तो डोल के साथ ख़ुद भी खिंचे कुएं के अन्दर चले जा रहे हैं। भरा घड़ा सर पे रखते ही कत्थकों-नचनियों की तरह कमर लचका रहे हैं। रोज एक घड़ा तोड़ रहे हैं। जब देखो हराम की औलाद सुबूत में टूटे घड़े का मुंह लिये चले आ रहे हैं। अबे मुझे क्या दिखा रहा है! ये हंसली अपनी मय्या-बहना को पहना। छोटे क़द और बीच की उम्र के हों। इतने बड़े और ढ़ीठ न हों कि थप्पड़ मारो तो घंटे भर तक हाथ झनझनाता रहे और उन हरामियों का बाल भी बांका न हो। जाड़े में जियादा जाड़ा न लगता हो। यह नहीं कि जरा-सी सर्दी बढ़ जाये तो सारे क़स्बे में कांपते, कंपकंपाते, किटकिटाते फिर रहे हैं और यतीमखाने को मुफ़्त में बदनाम कर रहे हैं। यह जुरूर तसदीक़ कर लें कि रात को बिस्तर में पेशाब न करते हों। ख़ानदान में ऐब और सर में लीखें न हों। उठान के बारे में मौली मज्जन ने स्पष्ट किया कि इतनी संतुलित बल्कि हल्की हो कि हर साल जूते और कपड़े तंग न हों। अंधे, काने, लूले, लंगड़े, गूंगे, बहरे न हों मगर लगते हों। लौंडे सुन्दर हरग़िज न हों, मुंह पर मुंहासे और नाक लम्बी न हो। ऐसे लौंडे आगे चलकर लूती (जनख़े) निकलते हैं। वो आइडियल यतीम का हुलिया बयान करने लगे तो बार-बार बिशारत की तरफ़ इस तरह देखते कि जैसे आर्टिस्ट पोट्रेट बनाते वक़्त मॉडल का चेहरा देख-देख कर आउट लाइन उभारता है। वो बोलते रहे मगर बिशारत का ध्यान कहीं और था। उनके जहन में एक-से-एक मनहूस तस्वीरें उभर रहीं थीं, जिसमें वो ख़ुद को किसी तरह फ़िट नहीं कर पा रहे थे।
अच्छा! आप उस लिहाज से कह रहे हैं : बिशारत की नियुक्ति तो उर्दू पढ़ाने के लिये हुई थी, मगर टीचरों की कमी के कारण उन्हें सभी विषय पढ़ाने पड़ते थे, सिवाय धार्मिक विषय के। जामा मस्जिद धीरजगंज के पेश-इमाम ने यह फ़तवा दिया था कि जिस शख़्स के घर में कुत्ता हो वो धर्मशास्त्र पढ़ाये तो पढ़नेवालों को आवश्यक रूप से स्नान करना पड़ेगा। बिशारत का गणित, ज्योमेट्री और अंग्रेजी बहुत कमजोर थी, लेकिन वो इस हैंडीकैप से जरा जो परेशान हुए हों। पढ़ाने के गुर उन्होंने मास्टर फ़ाख़िर हुसैन से सीखे थे। मास्टर फ़ाख़िर हुसैन का विषय तो इतिहास था लेकिन अक्सर उन्हें मास्टर मेंडीलाल की इंग्लिश की क्लास भी लेनी पड़ती थी। मास्टर मेंडीलाल का गुर्दा और ग्रामर दोनों जवाब दे चुके थे। अक्सर देखा गया था कि जिस दिन नवीं-दसवीं की ग्रामर की क्लास होती वो घर बैठ जाता। उसके गुर्दे में ग्रामर का दर्द उठता था। सब टीचर अपने विषय के अतिरिक्त दूसरा विषय पढ़ाने में कचियाते थे। मास्टर फ़ाख़िर हुसैन अकेले शिक्षक थे जो हर विषय पढ़ाने के लिये हर वक़्त तैयार रहते, हालांकि उन्होंने बी.ए., वाया भटिंडा किया था मतलब ये कि पहले मुंशी फ़ाजिल किया था। इंग्लिश ग्रामर उन्हें बिल्कुल नहीं आती थी। वो चाहते तो अंग्रेजी ग्रामर का घंटा हँस बोल कर या नसीहत करने में गुजार सकते थे लेकिन उनकी अन्तरात्मा ऐसे समय नष्ट करने के कामों की अनुमति नहीं देती थी। दूसरे मास्टरों की तरह वो लड़कों को व्यस्त रखने के लिये इमला भी लिखवा सकते थे, मगर वो इस बहाने को अपनी विद्वता का अपमान समझते थे, इसलिये जिस भारी पत्थर को सब चूम कर छोड़ देते वो उसे अपने गले में बांध कर ज्ञान के समुद्र में कूद पड़ते। पहले ग्रामर की अहमियत पर लैक्चर देते हुए यह बुनियादी नुक्ता बयान करते कि जैसे हमारी गायकी की बुनियाद तबले पर है, गुफ़्तगू की बुनियाद गाली पर है, इसी तरह अंग्रेजी की बुनियाद ग्रामर पर है। अगर कमाल हासिल करना है तो बुनियाद मजबूत करो। मास्टर फ़ाख़िर हुसैन की अपनी अंग्रेजी, इमारत निर्माण का अद्भुत नमूना और संसार के सात आश्चर्यों में से एक थी, मतलब यह कि बग़ैर नींव के थी। कई जगह तो छत भी नहीं थी और जहां थी, उसे चमगादड़ की तरह अपने पैरों की अड़वाड़ से थाम रखा था। उस जमाने में अंग्रेजी भी उर्दू में ही पढ़ाई जाती थी, लिहाजा कुछ गिरती हुई दीवारों को उर्दू शेरों के पुश्ते थामे हुए थे। बहुत ही मंझे हुए और घिसे हुए मास्टर थे। कड़े-से-कड़े समय में आसानी से निकल जाते थे। मिसाल के तौर पर Parsing करवा रहे हैं। अपनी जानकारी में निहायत आसान सवाल से शुरूआत करते। ब्लैक बोर्ड पर ‘टू गो’ लिखते और लड़कों से पूछते, अच्छा बताओ यह क्या है? एक लड़का हाथ उठा कर जवाब देता, Simple Infinite! स्वीकार में गर्दन हिलाते हुए फ़र्माते, बिल्कुल ठीक, लेकिन देखते कि दूसरा उठा हुआ हाथ अभी नहीं गिरा। उससे पूछते, आपको क्या तकलीफ़ है? वो कहता, नहीं सर! Noun Infinite है। फ़र्माते अच्छा आप उस लिहाज से कह
रहे हैं। अब क्या देखते हैं कि क्लास का सबसे जहीन लड़का अभी तक हाथ उठाये हुए है। उससे कहते, आपका सिगनल अभी तक डाउन नहीं हुआ। कहिये! कहिये! वो कहता, ये Gerundial Infinite है जो Reflexive Verb से अलग होता है, नेस्फ़ील्ड ग्रामर में लिखा है। इस मौके पर मास्टर फ़ाख़िर हुसैन को पता चल जाता कि “गहरे समन्दरों में सफ़र कर रहे हैं हम।“ लेकिन बहुत सहज और ज्ञानपूर्ण अन्दाज में फ़र्माते अच्छा तो आप गोया इस लिहाज के कह रहे हैं। इतने में नजर उस लड़के के उठे हुए हाथ पर पड़ी जो एक कान्वेन्ट से आया था और फ़र-फ़र अंग्रेजी बोलता था। उससे पूछा, ‘‘वेल! वेल! वेल!’’ उसने जवाब दिया, “Sir I am afraid, this is an Intransitive Verb”अच्छा! तो गोया आप उस लिहाज से कह रहे हैं’’ फिर I am afraid के मुहावरे से अपरिचित होने के कारण बहुत प्यार भरे अंदाज में पूछा, “बेटे! इसमें डरने की क्या बात है?” अक्सर फ़र्माते कि इंसान को ज्ञान की खोजबीन का दरवाजा हमेशा खुला रखना चाहिये। ख़ुद उन्होंने सारी उम्र बारहदरी में गुजारी। अब ऐसे टीचर कहां जिनके अज्ञान पर भी प्यार आये।
जारी………………[अब यह श्रंखला प्रत्येक शुक्रवार और रविवार को प्रस्तुत की जा रही है.]
[उपन्यास खोयापानी की दूसरे भाग “धीरजगंज का पहला यादगार मुशायरा से” ]
इस भाग की अन्य कड़ियां.
1. फ़ेल होने के फायदे 2. पास हुआ तो क्या हुआ 3. नेकचलनी का साइनबोर्ड 4. मौलवी मज्जन से तानाशाह तक 5. हलवाई की दुकान और कुत्ते का नाश्ता 6. कुत्ता और इंटरव्यू 7. ब्लैक होल ऑफ़ धीरजगंज 8. कोई बतलाओ कि हम बतलायें क्या? 9. विशेष मूली और अच्छा-सा नाम 10. ज़लील करने के कायदे
किताब डाक से मंगाने का पता:
किताब- खोया पानी
लेखक- मुश्ताक अहमद यूसुफी
उर्दू से हिंदी में अनुवाद- ‘तुफैल’ चतुर्वेदी
प्रकाशक, मुद्रक- लफ्ज पी -12 नर्मदा मार्ग
सेक्टर 11, नोएडा-201301
मोबाइल-09810387857
पेज -350 (हार्डबाऊंड)
कीमत-200 रुपये मात्र
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बढिया जी ..:)
1. यतीमियत और
2. ग्रामर
की अज्ञानता पर बलिहारी जाते हैं मित्र!
शानदार!
क्या शब्द चित्र खींचा है।
शानदार!!
SHANDAR CHA JANDAR……BAKIYA KARI KE MALA FER LETE HAIN
PRANAM.