कुछ ऊलजलूल…

पिछ्ले कुछ दिनों से दिल्ली से बाहर था..इस शोर शराबे,भीड़ भड़ाके से दूर.. शांत पहाड़ की वादियों में. एक वरिष्ठ चिट्ठाकार ने भी वादा किया था कि वे जुलाई के प्रथम सप्ताह में मेरे साथ पहाड़ आयेंगे उसी हिसाब से सारा कार्यक्रम बनाया था पर फिर वो नहीं आये..फिर मैं ही अपने परिवार को लेके चल पड़ा ..कुछ  दिन हल्द्वानी रहा फिर मेरे अपने शहर अल्मोड़ा में भी जाना हुआ. वही अल्मोड़ा जो मेरे बचपन का साक्षी रहा है.वही अल्मोड़ा जिसने मुझे जीवन की आपाधापी से जूझना सिखाया..वहीं जहां मैने सुनहले भविष्य के सपने देखे..जिसकी पटाल वाली बाजार में दोस्तों के साथ घूमा ..जहां गोलू देवता,भोलेनाथ और नंदादेवी को वहां की मान्यताओं के हिसाब से पूजा. .. अभी कई सालों बाद वहां गया तो पाया कि कितना बदल गया है मेरा अल्मोड़ा… पटाल वाली बाजार के सारे पत्थर बदल दिये गये हैं  कोई नये पत्थर लगाये गये हैं. ..जो पहले जैसी शोभा नहीं देते.. नये नये मकान बन गये हैं कई नये होटल खुल गये हैं… और भी बहुत कुछ बदल गया है इस शहर में…

इधर हिन्दी चिट्ठाजगत में भी बहुत कुछ घट गया है …घट रहा है…अभी पंगेबाज ने अलविदा कहा.. पहले धुरविरोधी अलविदा कह चुके हैं… मेरा मन भी पिछ्ले कुछ विवादों से बोझिल सा हो गया है… कुछ लोग होते हैं इस चिट्ठाकारी में… जो केवल खुद ही लिखते हैं बिना इस बात की परवाह किये हुए कि उनके आसपास क्या हो रहा है ..कौन क्या कर रहा है.. मैने हमेशा से ही अपने आसपास के विषयों को छुआ ..इसी कारण मेरी दूसरी ही पोस्ट विवादों में घिर गयी… मुझे खुद के लेखन से ज्यादा दूसरों का लेखन प्रभावित करता रहा है..इसलिये उन्ही सब से प्रेरणा ले के लिखता रहा हूँ.. जब से ये “नारद विवाद” हुआ तब से लिखने की इच्छा खतम सी हो गयी .. ना मालूम  किस बात का कोई गलत मतलब निकाल ले….

लेकिन ना तो मैं अलविदा कह रहा हूँ ना ही चिट्ठा बन्द करने की धमकी दे रहा हूँ.. 🙂 बस अभी कुछ दिनों से जो कर रहा हूँ वही करुंगा ..यनि सिर्फ चिट्ठों को पढ़ुंगा और टिपियाउंगा…

इधर ब्लॉगवाणी भी अवतरित हुई है… पहला प्रारूप काफी अच्छा लगता है …हांलांकि वो कह रहे हैं कि अभी परीक्षण चल रहा है ..पर परीक्षण भी काफी अच्छा है… आगे देखिये और क्या क्या होता है….

कहीं कुछ दरक गया लगता है,
कोई थक के लुढ़क गया लगता है.
साहिलों के करीब ही था मेरा माझी,
लेकिन तूफान फिर लिपट गया लगता है.

बदलते रास्ते हैं, फिर भी जिन्दा हैं,
टूटे अहसास हैं , फिर भी जिन्दा हैं,
आप समझो इसे या ना समझो.
हम तो आज तलक शर्मिन्दा हैं.

राह से तेरी नहीं गुजरना अब,
वक्त मेरा बदलने वाला है.
रात काली जरूर थी मेरे हमदम,
अब तो सूरज निकलने वाला है…

काकेश

By काकेश

मैं एक परिन्दा....उड़ना चाहता हूँ....नापना चाहता हूँ आकाश...

12 comments

  1. बने रहिये मित्र.. और कुछ व्यंग्य बाण चलाइये.. कुछ टाँग खींचिये.. कुछ चिंतन मंथन कीजिये.. ये विवाद तो लगे ही रहेंगे.. आप भी लगे रहिये..

  2. बेहतरीन,शायरी कर रहे हैं जी। शायरी के करीब आइये, पर हां शायरों से दूर रहिये। खराब सोहबत हो जायेगी।

  3. ओह! क्‍या से क्‍या हो गया बेवफ़ा तेरे..

  4. काकेश भाई,
    आप तो रूमानी हो गये । लिखिये भी और जी भर के टिपियाइये भी, आखिर समीर अंकिल से कुछ तो सीखिये ।

    आपकी अगली पोस्ट का इन्तजार रहेगा ।

  5. टेंशन नी लेने का काकेश भाई। मस्त-रहिए व्यस्त रहिए। 🙂

  6. विचारों से क्यों बोझिल होतें हैं, विवद वाली चिट्ठियां मत पढ़िये और बिना विवाद के मसलों पर लिखते चलिये।

  7. वो कौन सा मंजर है जो चट्टान को व्यथित कर गया–बताना तो जरा समीर अंकिल को!! 🙂

    अमां यार, छोटी सी सबकी जिंदगी है. हंसी खुशी काटो. मौज मस्ती में रहो. जरुरी हो ही जाये तो विवाद में हाजिरी लगा आओ मगर बने रहो. जो दिल को अच्छा लगे वो करो.

    वैसे, नीरज ने तो हमें समीर अंकिल कह कह कर बुढ़ापा लाने की गारंटी कर ही दी है तो अब बचे थोड़े दिनों में बस लिखें और टिपियायें. 🙂

  8. अरे आप बाहर गए थे, वही कहूँ दिल्ली में आपकी कोई खबर नहीं मिली। बहरहाल कविता अच्छी लगी आपकी .

  9. @अभय जी , प्रत्यक्षा जी , समीर जी , नीरज भाई , श्रीश जी उन्मुक्त जी और सागर जी आप सभी का धन्यवाद ..हौसला बड़ाने के लिये

    आलोक जी, मनीश जी आप को कविता अच्छी लगी धन्यवाद.

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