अभय जी ने कहा कि
“ काकेश जी.. आपके व्यंग्य बाण की राह हम देख रहे हैं”
.. जी नहीं आज व्यंग्य की विधा में बात नहीं करुंगा .. थोड़ी गंभीर बात करनी है …और दिन में कभी कभी तो मैं गंभीर बात करता ही हूँ…
अभय जी ने आज अपनी पोस्ट में कहा कि मैने (काकेश ने) भी अपनी पोस्ट में कुछ लोगों के बारे में लिखा था इसलिये नारद द्वारा कारवाई तो मुझ पर भी होनी चाहिये थी…. अब नारद किस तरह से कारवाई का निर्णय लेता है उससे मेरा कोई सरोकार नहीं है और मैं इस बात पर अपने विचार भी नहीं रख रहा हूँ कि अभी नारद द्वारा जो निर्णय लिया गया वो सही है या गलत. …मैं तो सिर्फ अपनी बात रख रहा हूँ…
मुझे खुशी है कि अभय जी ने मुझे गंभीर और शालीन इंसान बताया .. (हूँ नहीं 🙂 ) .. धन्यवाद!! .. लेकिन जहां तक मेरी पोस्ट को लेकर उन्होने कहा कि नारद को मेरे ऊपर कारवाई करनी चाहिये थी (यदि किसी और पर की है तो ..क्योकिं मेरा अपराध भी कमोबेश वही था जो इन महाशय का है) तो उससे मैं सहमत नहीं हूँ… व्यक्तिगत लांछ्न और व्यंग्य में फरक होता है … जब हम किसी पर व्यंग्य करते हैं तो उसके कुछ विचार कुछ आदतों कुछ क्रिया कलापों या कुछ विशेष पक्षों पर एक मजाकिया नजर डालते हैं .. ये कोई व्यक्तिगत द्वेष नहीं है ना ही इसमें कोई वैमनस्य की भावना होती है.. हाँ वैचारिक मतभेद होता है … होना भी चाहिये..यदि ब्लौगजगत में वो भी ना करें तो क्या करें ..? जिस तरह आपने कहा “ क्या आपके जनतांत्रिक समाज मे मनुष्य के पास यह हक़ नहीं होगा..? और फिर ऐसी भाषा..? ” ..जी हाँ हमें भी पूरा हक है आप पर कटाक्ष करने का … (आपको भी है पर आप करते ही नहीं …हम तो तैयार बैठे रहते हैं 🙂 ) और यहां पर बात सिर्फ भाषा की ही नहीं है ..भाषा में निहित अर्थों की भी है… भाषा तो महत्वपूर्ण है ही … कहा भी गया है “ सत्यं ब्रूयात , प्रियम ब्रूयात “ .. आप सत्य को किस भाषा में कह रहे हैं वो भी उतना ही महत्वपूर्ण है जितना की सत्य….
हमारी हिन्दी की आम बोलचाल में बहुत से लोग गालियों का निर्बाध प्रयोग करते हैं .. हम लोग हॉस्ट्ल में थे तो कहते थे कि आप गाली उसी को देते हैं जो या तो आपका कट्टर दुश्मन होता है या फिर आपका जिगरी दोस्त. वही गाली दो अलग अलग व्यक्तियों को दो अलग अलग अर्थ दे जाती है .. आपने शायद पुराणिक जी का व्यंग्य पढ़ा होगा .. जहाँ आप हरामी शब्द की नयी व्याख्या पाते हैं
“अगर हरामी शब्द के टेकनीकल मतलब को छोड़ दिया जाये, तो अब यह शब्द प्यार और सम्मान का सूचक है।“
और ये बात किन्ही अर्थों में सही भी है… आप चाहें इस पोस्ट पर लोग़ों ने क्या क्या टिप्पणी की हैं ..जो देखा जाये तो कुछ नहीं सिर्फ गालियाँ है पर एकदम दूसरे अर्थों में…..
अभय जी ने मेरी दो पोस्टों का हवाला दिया… मुझे खुशी है इसी बहाने कुछ लोगों ने वो पोस्ट पढ़ लीं 🙂 पर जरा आप भी इन पोस्टों को ध्यान से देखें … इन पोस्टों में किसी भी ब्लौग का किसी भी तरह का लिंक या किसी व्यक्ति विशेष पर कोई सीधे आक्षेप है ??…नहीं है … किसी व्यक्ति का नाम भी सीधे तौर पर नहीं आया है… सब कुछ प्रतीकों के जरिये दिखाने,समझाने की कोशिश की गयी है .. हाँलाकि जो चिट्ठाजगत की गतिविधियों से अवगत हैं उन्हें ये प्रतीक समझ आ भी जायेंगे और यही मकसद भी था/है ..लेकिन यदि हम किसी को नाम लेकर या लिंक देकर कोई पोस्ट लिखते हैं ..तब आप उस पर सीधे आक्षेप लगाते हैं लेकिन जब हम प्रतीकों के जरिये अपनी बात रख रहे हैं तो इसमें व्यक्ति गौण हो जाता है और उसके कुछ क्रिया कलाप प्रमुख .. और फिर यदि चिट्ठाजगत के बाहर का व्यक्ति उसे पढॆ (आज या आज से दस साल बाद भी) तो उसे वो पोस्ट सिर्फ उन्ही अर्थों में परिपूर्ण लगेगी जिन अर्थों में वो दिखती है .. यानि उस पोस्ट का महत्व चिट्ठाकारी के इतर भी है … इन पोस्टों की चिंता स्थानीय होते हुए भी सार्वजनिक हैं…. आइये एक उदाहरण के साथ बताता हूँ …
अभय जी ने लिखा
“उन्होने मेरे और अविनाश के बीच चले एक विवाद को दो कुत्तो की लड़ाई के समकक्ष रखा.. ऐसी एक तस्वीर डाल के.. अविनाश की तुलना वे एक पागल कटखन्ने कुत्ते से पहले ही कर चुके थे..”
यहीं अभय जी से मेरा मतांतर है.. यदि मैं कहूँ कि “क्यों कुत्तों की तरह लड़ रहे हो ? “ तो ये टिप्पणी लड़ने वाले व्यक्तियों पर नहीं वरन उनके द्वारा किये जा रहे “लड़ने” की क्रिया पर है.. यदि इसी वाक्य को इस तरह से कहें कि “ क्यों कुत्ते… क्यों लड़ रहे हो ? “ तो ये लांछन है … जहां दो लड़ने वाले व्यक्तियों की तुलना कुत्तों से की गयी है … इसी तरह से जब वह कहते हैं “अविनाश की तुलना वे एक पागल कटखन्ने कुत्ते से पहले ही कर चुके थे “ तो ये भी गलत है ..क्योकि मैने अविनाश जी की तुलना कभी भी नहीं की..पर हाँ मेरा विरोध या मतभेद उनके मोहल्ले ब्लौग पर किये जा रहे कुछ दुष्प्रचार पर था ..और उस क्रिया को मैने अपने व्यंग्य में निशाना बनाया .. ये व्यक्तिगत रूप से अविनाश जी पर की गयी टिप्पणी नहीं थी… ( वैसे आज मैने अविनाश जी को ई-पत्र लिखकर अपनी इस टिप्प्णी पर खेद भी प्रकट किया है… यदि वो इससे आहत हुए हों तो… …लेकिन जिन बातों पर मेरा वैचारिक मतभेद था …वो तब भी था और आज भी है … भविष्य का पता नहीं .. ) .. ठीक इन्ही अर्थों में अन्य प्रतीक जैसे कौवे,गधे,सुअर भी प्रयोग किये गये हैं… तो मेरा अनुरोध कि इन तुलनाओं को व्यक्तिगत तुलना ना माना जाये…
अभय जी मेरे पसंदीदा चिट्ठाकारों में हैं ..जब मैं यह कहता हूँ तब मेरा मतलब सिर्फ और सिर्फ उनके लेखन से होता है . मैं उनके बारे में व्यक्तिगत रूप से ज्यादा नहीं जानता तो व्यक्तिगत रूप से उन पर टिप्पणी करना मेरे लिये ठीक भी नहीं है…. इसलिये मैं सिर्फ उनको पढ़ता हूँ और मन हुआ तो अपनी प्रतिक्रिया टिप्पणी के माध्यम से देता भी हूँ.. ..तो एक पाठक के नाते ही जब मेरा ये अधिकार बनता है कि मैं उनके लिखे पर टिप्पणी करूं तो ये भी बनता है कि मैं उनके विचारों से सहमत ना होकर उन पर व्यंग्य लिखूं …
तो ये थी मेरी बात …
वैसे शायद आपके मालूम हो उन्होने अपने ब्लौग से गुलाबी गमछे वाली फोटो हटा दी है और दाड़ी वाली फोटो लगा दी है .क्योकि मैने अपने दोनों ही पोस्टों में उनकी गुलाबी गमछे वाली फोटो का ही प्रयोग किया था ..इसीलिये वो थोड़ा घबरा गये और दाड़ी बढ़ाने लगे 🙂 .तो अगला व्यंग्य उनकी दाढ़ी वाली फोटो के माध्यम से होगा .. यदि वो आहत ना होने का वादा करें तो…. 🙂
हम अभय जी की तरफ से वादा करते हैं, न तो वे आहत होंगे, न हम।
भाइ काकेश कोई टिपियाना नही आज हम भी आप को मेल ही करेगे
आपने अपनी विचार को सफ़ाई से रखा.. अच्छी बात है.. मेरा आशय आपकी बात और दूसरी बातों को एक स्तर पर एक समान कहने का था भी नहीं.. मेरा मतलब है कि खट्टी मीठी कड़वी बातें होतीं रहेंगी.. उन पर थोड़ा उदार मन बनाये रखा जाय.. और राहुल का चिट्ठा बहाल किया जाय.. और मैं चाहूँगा इस अपील में आप भी हमारा साथ दें..
सही है, बात साफ रहनी चाहिए।
“सत्यं ब्रूयात , प्रियम ब्रूयात “…. ये भावना बनी रहे..
विरहिणी चलो दूसरे गांव
न ढूँढ़ो अंगारों में च्हांव
भाइ काकेश. कीचड़ में पत्थर फ़ैंककर क्यों अपने कपड़े खराब करते हो
सही है। हमें इंतजार है।
अपनी बात बहुत ही अच्छी तरह रखी आपने। आपकी लेखनी के तो हम कायल होते जा रहे हैं।
हमने भी अपनी पोस्ट में श्वानों पर लिखा है। हमने केवल आपका और समीरजी का लिंक दिया था क्योंकि हमें लगता था कि आप इसे अन्यथा नहीं लेंगे। अन्य किसी को लिंकित नहीं किया था। गनीमत है अभयजी को हमरी पोस्ट याद नहीं रही, वरना हम तो इतना अच्छे से समझा भी नहीं सकते थे।
आज भी आपके चिट्ठे पर टिप्पणी कर रहा हूँ वरना पीली पृष्ठभूमि वाले चिट्ठों पर तो हम टिपियाने में डरते हैं।
शुक्र मनाएँ कि कुत्ते हमारे ब्लॉग नहीं पढ़ सकते नहीं तो कहाँ मुँह छुपाते हम लोग 🙂