किसी को मिर्ची लगे तो कैसा लगता होगा मतलब खुशी होती होगी या गुस्सा आता होगा,दुख होता होगा या खीझ होती होगी, यह जीवन मिथ्या लगने लगता होगा या बदले में दूसरों को गाली देने का मन करता होगा, खुद को सयाना मान लेने लगते होंगे या दूसरों को नादान समझने लगते होंगे,खुद को बुद्धीजीवी और दूसरों को बुद्धू मानने लगते होंगे या अपने बचे खुचे सर के बाल नोचने लगते होंगे.अब यह तो वही बता सकता है जिसको मिर्ची लगी हो लेकिन खाकसार ने मिर्ची पर एक शोध किया है जो शीघ्र ही अफ्रीकन देश बुर्गुंडी की प्रतिष्ठित पत्रिका “खामोश लब” में छ्पने वाला है. प्रस्तुत हैं उसी के कुछ संपादित अंश.
मिर्ची मुख्यत: तीन प्रकार की होती है. एक वह मिर्ची जो आप खाओ तो आपको ही लगती है दूसरी वह जो आपके खाने से नहीं वरन कुछ करने या ना करने से दूसरों को लगती है तीसरी मिर्ची वह होती है जो खायी नहीं जाती वरन सुनी जाती है.आइये इन्ही तीनों प्रकार जी मिर्ची पर एक विस्तृत नजर डालें.
पहली मिर्ची वह होती है जो आमतौर पर हरे या लाल रंग की होती है यह आकार में लंबी होती है.इस प्रकार की मिर्ची खाने के काम आती है लेकिन अधिकांशत: खाते ही यह अपना रंग दिखाना चालू कर देती है.इसके लगने के लक्षणों में मुंह का लाल होना, आंखों या नाक से पानी आना प्रमुख हैं. इस प्रकार की मिर्ची खाते समय तो केवल मुँह में ही लगती है लेकिन खाने के बाद और भी कई जगहों पर लगती है.कई बार इसका असर चौबीस से अड़तालीस घंटो तक रहता है.ज्यादा मिर्ची लगने पर लोग पानी का प्रयोग करते हैं कई बार कुछ लोग बरफ का प्रयोग भी करते पाये जाते हैं.आप अपनी इच्छानुसार मिर्ची का प्रयोग कम या ज्यादा कर सकते हैं.यह मिर्ची आमतौर पर सबको समान रूप से लगती है हालांकि स्त्रियाँ इस प्रकार की मिर्ची का प्रयोग ज्यादा करती है पर उन पर इसका असर कम होता देखा गया है.
दूसरी प्रकार की मिर्ची सबसे खतरनाक टाइप की होती है.इस मिर्ची का असर सब पर समान रूप से नहीं होता. यह शरीर के किस हिस्से में लगती है इस पर अभी शोध जारी है. इसका असर अलग अलग परिस्थितियों में अलग अलग समय तक रहता है.जैसे कांग्रेस कुछ करती है तो लैफ़्ट को मिर्ची लग जाती है और यह तब तक लगती रहती है जब तक की उनकी धमकियों से कांग्रेस वाले लोग उसी तरह से मिमियाने ना लगें जैसे कुत्तों के भौंकने पर बिलौटे मिमियाने लगते हैं. हमारे देश के एक महान कलाकार गोविंदा जी के जीवन वृतांत का अध्ययन करें तो आप पायेंगे कि अपने जमाने में जब वह रस्ते से जा रहे थे,भेल पूरी खा रहे थे और साथ में लड़की भी घुमा रहे थे तो करिश्मा जी को मिर्ची लगी थी. खाकसार का मानना है कि यह मिर्ची इसलिये लगी होगी क्योंकि गोविंदा जी खुद तो भेल पूरी खा रहे थे लेकिन लड़की को सिर्फ घुमा रहे थे तो यह बात तो किसी भी भिन्नाटी टाइप नारीवादी महिला को बुरी लगेगी ही ना.एक स्त्री के शोषण का सवाल है यह कोई मजाक या मौज का विषय नहीं.इस मिर्ची के लगने के लक्षण भी अलग अलग व्यक्तियों पर अलग अलग पड़ते हैं.इस मिर्ची का प्रभाव भी परिस्थितियों के अनुसार अलग अलग समय तक रहता है. यह मिर्ची आमतौर पर सबको समान रूप से नहीं लगती है जैसे स्त्रियों को यह मिर्ची थोड़ी जल्दी लग जाती है. अपने लैफ़्ट वाले भी आये दिन इस मिर्ची का शिकार बनते रहते हैं.
तीसरी प्रकार की मिर्ची सुनने के काम आती है और शास्त्रों के अनुसार इस प्रकार की मिर्ची सुनने वाले आल्वेज खुश रहते हैं यहाँ तक की ये लोग गटर में गिरे होने के बाबजूद सुहाने मौसम के गाने गा सकते हैं. इससे यह सिद्ध होता है कि तीनों प्रकार की मिर्चियों में इस मिर्ची को ज्यादा प्राथमिकता देनी चाहिये लेकिन आंकड़ों के मुताबिक व्यवहार में दूसरे टाइप की मिर्ची ज्यादा प्रयुक्त होती है.
आप भी इस बारे में अपनी राय से अवगत करायें ताकि आपकी राय भी शोध पत्र में शामिल की जा सके.
क्या बात है। लोग गटर में गिरे होने के बाबजूद सुहाने मौसम के गाने गा सकते हैं.
पर मिर्ची लग चुकी है। आप ने लगाई है। झेलने को तैयार रहिए।
यह क्या किया, जायका चरपरा कर दिया। अच्छा है, अब मिर्च लगने पर आपका लेख याद आया करेगा।
पहली और तीसरी मिर्ची का असर तो सिर्फ उस पर ही होता जिसे लगे… लेकिन दूसरी मिर्ची का कैसा-कैसा, कहां-कहां असर होगा, कहना मुहाल है.
वाह जी, आपका व्यंग्य पढ़ के सुबह ‘बन गई’.
धन्यवाद
वाह! यह पोस्ट बड़ी है मिर्च-मिर्च!
बुरी बात है. मैं मिर्ची में ही उलझकर रह गया. शोध-प्रबंध की ज्ञानात्मक ऊंचाइयों तक पहुंच नहीं सका..
आपके मिर्ची शोध पर आपको डॉ.मिर्ची की उपाधि दी जाती है ।
दूसरी वाली मिर्ची के अन्य सामाजिक व पारिवारिक पहलू खोल कर बताएँ । यह मिर्ची स्त्रियों को अधिक या जल्दी लगती है ,इस सिद्धांत की निष्पत्ति के ठोस आधार या अध्ययन बता कर पुष्ट किए जाएँ । बाकी सब ठीक है ।
कहते हैं माघ महीने की मिर्ची बड़ी तीखी होती है……..:-)
हाय-हाय मिर्ची !
उफ़-उफ़ मिर्ची !!
ये आपको भारत रत्न ना मिलने पर लगॊ मिर्ची का असर है जो आप तुलसी की तरह ज्ञान्वान हो गये हो…:)
ये क्या हुआ???
🙂
भाई मिर्ची पर इतना मीठा लेख…. मज़ा आ गया..मिर्ची की और और भी प्रजातियाँ हैं उन पर भी लिख मारिये…. अच्छा लगा।
भई वाह वाह। पहाड़ी मिर्ची की बात ही और कुछ होती है। और शिमला मिर्च का तो कहना क्या, साइज से डराती है। आपको क्या शिमला मिर्च मान लें।
ही ही ही 🙂
आजकल वैसे भी हिन्डी ब्लॉग जगट में इडर उडर ज्या़डा ही मिर्ची लग रई है चिट्ठाकारों को 🙂 सी सी सी… उफ मिर्ची… पानी…
इतने प्रकार भी होते हैं ? पता ही नहीं था विशद व्याख्या के लिये धन्यवाद………….
सी सी सी सी
बड़ी तेज है भाईजान..
क्या बात है, क्यों न इसी बात पर आपको मियां मिर्च की उपाधि दे दी जाए 😉
इस तरह आग में मिर्ची झोंकने भी मिर्ची लगती है, जानते नहीं हैं क्या?
एक लोकगीत भी है : छोटी मिरच बड़ी तेज ….
बेसी ‘झाल’ नहीं थी पोस्ट में और नमक भी ठीक था सो आनन्द आया .
आपका मिर्ची शोध अदभुद है
तीनो मिर्चियों पर आपके कुछ नोट्स मेरे पास रह गए हैं
इन्हे छिड़क कर परोसें.
यूस्ड इन : पहली किचेन में, दूसरी जेहन में, तीसरी टशन में.
बेस्ट विद : पहली समोसे के साथ, दूसरी भरोसे के साथ, तीसरी पान के खोखे के पास.
सिम्बल : सी सी $$$, आई सी $$$, सी टी $$$
प्री-काशन : पहली लाल न हो, दूसरी से बवाल न हो, तीसरी बेताल न हो.
फिसिकल प्रापर्टी : गर्म साँसे, बेशर्म आँखें, नर्म बातें
रिसल्ट्स इन : पहली से स्वाद, दूसरी से दिमाग, तीसरी से मिजाज़ गेट्स कम्पलीटली स्प्वाइल्ड.
मिर्ची आइडल : चाट वाला, करिश्मा, गटर मैन
रेडियो मिर्ची यह यह पोस्ट । बिल्कुल सही !
hansi bhi aur vyangya bhi dono ek jagah mile ilmen thodk lawaris film ka bhi kar dete jisme amitji ne kutte ke pille yani pappi ko hari mirch…..
🙂 डा। मिर्ची की उपाधी सही है आप के लिए। लेकिन ये पोस्ट अधूरी है मिर्ची के बाकी के प्रकार की भी cयाखया करें
डा। मिर्ची की उपाधी एकदम सही है आप के लिए। पर ये पोस्ट अधूरी है मिर्ची के बाकी के प्रकारों की भी व्याख्या की जाए
Is there any place in hyderabad where i can regularly get the LAFJ.
I like this patrika very much but unable to get regularly in hyderabad.