बाबू से बात करने के बाद परुली सोच में पड़ गयी.वह ऐसा क्या करे कि उसका ब्या रुक जाये. उसके सामने बहुत से विकल्प नहीं थे. वह एक दो बार मना जरूर कर सकती थी कि वह ब्या नहीं करेगी.लेकिन फिर भी उसके ईजा बाबू ना माने तो उसके हाथ में कुछ नहीं था और यदि उसका स्कूल जाना बंद हो गया तब…तब तो जैसे सारे रास्ते ही बंद हो जायेंगे. परुली का मन हुआ कि वह कहीं भाग जाये लेकिन कहाँ जायेगी वह उसे तो कुछ भी नहीं मालूम. वह तो अपने गांव और पास के शहर के रास्ते के अलावा कुछ भी नहीं जानती.
सामने के पहाड़ों के ऊपर से शाम धीरे धीरे उतर रही थी. घर के बहुत से काम पड़े थे. लेकिन परुली चाख के छाजे में बैठ कर सामने के पहाडों को ताक रही थी. उसके अन्दर एक तूफान उठ रहा था. वह सोच रही थी कि कितनी विवश है वह. वह जो चाहती है उसे पूरा भी नहीं कर सकती.सामने के पहाड़ों पर कुछ बत्तियां अब जलने लगीं थी लेकिन अभी परुली के घर में अंधेरा ही था. शाम को चिमनी वाला लैम्प और लम्फू जलाने की जिम्मेवारी परुली की ही थी.लेकिन आज उसे कुछ भी याद ना था.
इधर उसके बाबू गुस्से में थे.बीढ़ी पीते हुए वह सोच रहे थे कि किसी तरह से यह ब्या हो जाये तो उनकी सांस में सांस आये.मन ही मन वह यह भी सोच रहे थे कि यदि परुली डॉक्टर बन जाये तो पूरे गांव में उनका नाम तो हो ही जायेगा. लेकिन डॉक्टर बनना कोई आसान काम तो है नहीं. छ्ह सात साल तो लगेंगे ही. फिर डाक्टर बनने के बाद बिरादरी में लड़का कहाँ मिलेगा. कोई भी लड़का यहाँ इतना पढ़ा लिखा होता ही नहीं है. बहुत से बहुत इंटर कर लिया और लग गये कहीं नौकरी में या चले गये लखनऊ, दिल्ली. कोई ज्यादा ही अच्छा हुआ पढ़ने में तो बी.ए. कर लिया, बी.टी.सी. कर लिया और बन गये किसी स्कूल के मास्टर.परुली डाक्टर बन भी गयी तो सारी उमर कुंवारा बैठना पड़ेगा.बदनामी होगी सो अलग.लोग तरह तरह की बातें बनायेगें कि लड़की में पक्का कोई खोट होगा तभी तो इसका ब्या नहीं हो रहा.ना हो ना … इससे तो अच्छा है कि किसी तरह से ब्या हो जाये तो पिंड छूटे.
ईजा ने अपने सर के ऊपर से हरी घास का गट्ठा भीणे (चबूतरा) में रखा तो उसकी आवाज से परुली और उसके बाबू दोनों की सोच टूटी. शाम अब पहाड़ों से उतरकर पेड़ों के रास्ते होते हुए आंगन में आ चुकी. पर्याप्त अन्धेरा हो चुका था. गोठ में गोरु-बाछ भी भूख के मारे अड़ाट कर रहे थे. उनको भी अभी तक घास नहीं डाली थी. ईजा के आते ही परुली हाथ के झूठे गिलास को लेकर उठी.
“परुली …के हगो रे तुकु (क्या हो गया रे तुझे) ..अभी तक घर में उजेला नहीं किया.”
“हाँ ..ईजा ..कर रही हूँ …”.परुली उठते हुई बोली और जल्दी जल्दी घर के सारे काम निपटाने लगी .परुली को खुद अपनी सोच पर गुस्सा आया कि घर के इतने सारे काम पड़े थे और वह ना जाने क्या सोच रही थी.
“जा ..भ्योल घुरी जा … (गुस्से में एक गाली की तरह इस्तेमाल किया जाता है) .. अभी तक गोर-बाछों को घास भी नहीं डाली.अब मैं दूध क्या तेरे कपाव से निकालूं. तेरी पढाई के चक्कर में घर का सत्यानाश हो रहा है. रुक… कहती हूँ तेरे बाबू से कि इसका स्कूल बन्द करवा दो”
जिसको देखो उसके स्कूल के पीछे पड़ा है. छारे (राख) से चाय के बर्तन मांजते हुए वह सोच रही थी कि उसका ब्या हो जायेगा तो फिर ये सब काम कौन करेगा. तब तो ईजा को ही यह सब करना पड़ेगा तो फिर अभी क्यों उसकी ईजा उस पर इतना चिल्लाती है. ठीक है …हो जाने दो मेरा ब्या …फिर पता चलेगा कि मैं कितना काम करती हूँ.वह बड़बड़ाई.
उसके बाबू शाम से ही ईजा से एकांत में बात करने का मौका ढूंढ रहे थे.लेकिन ईजा आते ही सारे कामों व्यस्त हो गयी.रात का खान भी हो गया लेकिन बात करने का मौका ही नहीं मिला.बाबू चाख में बड़बाज्यू के साथ सोते थे. बड़बाज्यू जल्दी सो जाते थे और उनको कान भी कम ही सुनाई पड़ता था. तो आमतौर पर सोने से पहले ईजा-बाबू थोड़ी देर बात करते. तब तक बच्चे बिचाखंड (बीच वाला कमरा) में सो जाते. आज भी वही हुआ.
“हवे… सुणो त्वील (सुना तुमने) ..कि परुली क्या कह रही थी आज “
गरम दूध को ठंडा करने के लिये गिलास से लोटे में डाल कर गिलास में फूँक मारते हुए ईजा बोली…” ना हो …के कुणेछि ? ( क्या कह रही थी)”
” कह रही थी कि मैं ब्या नहीं करुंगी ..”
“किलै (क्यों) ?? ” दूध से ध्यान हटा कर बाबू की ओर हल्की से नजर उठा कर देखते हुए ईजा चौंकते हुए बोली.
” कुणै (कह रही है) कि मैं डाक्टर बनुंगी”
ईजा की जान में जान आयी.वह तो सोच रही थी कि कोई गंभीर बात है. वह फिर से दूध के काम में व्यस्त हो गयी.
“हाँ वो तो मेरे को भी कह रही थी…कहने दो हो उसे …अभी नानतिन ठहरी ..किसी टीचर ने कुछ बोल दिया तो उसके दिमाग में बात बैठ गयी….ब्या हो जायेगा तो धीरे धीरे सब भूल जायेगी….”
” लेकिन …उसने सब पता कर रखा है कि डॉक्टरी कैसे होती है …कौन सा इम्तान देना पड़ता है…”
“अच्छा”
” और आज बता रही थी कि कोई बैक से पैसा भी मिल जाता है बल डॉक्टरी पढ़ने के लिये.”
” होश्यार तो परु हुई ही .. शिबौ-शिब ..कितनी हौस (शौक) हो रही ठहरी उसे डॉक्टर बनने की. बन जाती तो पूरे गौं (गांव) में अपना नाम तो हो ही जाता…”. दूध का गिलास और मिसरी बाबू को पकड़ाते हुए ईजा बोली.
” वो तो ठीक ही ठहरा…मन तो मेरा भी यही कह रहा है.. लेकिन डॉक्टरी करने में छ: सात साल लगने वाले हुए ..फिर कौन करेगा इससे शादी… ” . मिसरी का टपुका लगाते हुए बाबू ने कहा.
“अरे हमारी परु इतनी देखण-चाण है ..इससे तो कोई भी ब्या कर लेगा हो …”
“तू भी पगली है… अरे डॉक्टरी करने के बाद कोई इंटर पास लड़के से जो क्या कर देंगे शादी. पढ़ा लिखा लड़का भी तो चाहियेगा ना ….वह कां (कहाँ) मिलेगा.. ”
” तो फिर ….यदि पांडे ज्यू से बात करें कि वो ब्या के बाद इसे पढ़ायें तो ब्या के बाद भी तो डॉक्टर बन सकती है …परु….”
” अरे पांडे ज्यू की इतनी खेतीबाड़ी है …चार चार गोरु हैं.. उनको कौन संभालेगा. उनकी घरवाली से अब नहीं संभलता इसीलिये तो वो काम करने वाली ब्वारी (बहू) लाना चाह रहे ठहरे…ब्या हो गया तो फिर थोड़ी होने वाली हुई पढ़ाई …घर के कामों में लगी रहेगी ये तो ..और फिर ब्या के बाद तो उनकी अमानत हुई ना ….हम जोर जो क्या डाल सकने वाले हुए…जैसा वो ठीक समझेंगे करेंगे…”
” तब तो परु को डॉक्टर बनाने के लिये उसके ब्या को रोकना ही होगा…”
“तू भी ना क्या भ्यास (मूर्खों) जैसे बात करती है…सारे बिरादरी में सबको मालूम है परु के ब्या के बारे में ..यदि अब हम मना करेंगे तो बिरादरी में नाक कट जायेगी.. सब लोग थू थू करेंगे..परु का जीना भी मुश्किल कर देंगे… ”
“तो के करी जौ (तो क्या किया जाय ) …”
“करना क्या है … जैसे गोल्ज्यू की दया से ब्या ठीक हुआ है …ब्या कर देते हैं…उसकी किस्मत में होगा तो बन जायेगी डॉक्टर… ”
” लेकिन किसी वजह से पांडे ज्यू राठ ही ब्या के लिये मना कर दें तो बात आयी गयी हो जायेगी. ”
” लेकिन वह मना क्यों करने वाले हुए अब तो चिन्ह भी साम्य हो गया ठहरा…बस लगन निकलना बांकी है ..वह भी कुछ दिनों में निकल जायेगा”
” के तो करौ हो (कुछ तो करो जी) “
” तू पड़ जा …मैं कुछ सोचुं.. ( तू सो जा मैं सोचता हूँ )
जारी……..
पिछले भाग : 1. परुली…. 2. परुली: चिन्ह साम्य होगा क्या ?? 3. परूली : शादी की तैयारी 4. परुली:आखिर क्या होगा ? 5. परुली: हिम्मत ना हार ..
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पिछ्ले अंक में नवीन पाठक जी ने कहा कि ” काकेश दा इसको लम्बा खीच रहे है…काकेश दा…… एक दिन पुरा बुद्दवार बैठ के कहानी को अन्जाम दे दो…” तो उनसे मैने कहा था कि इस इतवार इसको पूरा लिखने की कोशिश करुंगा लेकिन इतवार को समय ही नहीं मिल पाया. इसलिये आज सुबह चार बजे उठकर लिखने बैठा. काफी हद तक कहानी लाइन पर आ रही है. सोचता हूँ कि अगले अंक में इसे खतम कर ही दूँ. जो भी होगा परुली का देखा जायेगा. हाँलाकि पाठकों का दबाब है कि परुली डाक्टर बन जाये लेकिन जैसा पिछ्ले अंक में मनीष सिंह बिष्ट ने कहा कि वह देखना चाहते हैं कि कैसे एक पहाड़ी लड़की संघर्ष करते हुए आगे बढ़ती है. तो सच कहूँ तो मुझे इस बात की बहुत कम संभावना लगती है कि परुली डॉक्टर बन पायेगी. लेकिन कहानी में एक लेखक के पास यह शक्ति होती है कि वह परिस्थितियों में सकारात्मक परिवर्तन कर पाये. तो देखें अगले बुधवार क्या होता है.
कल कुमांऊनी होली का अगला अंक प्रस्तुत किया जायेगा कृपया जरूर पधारें.
राम जाने पारूली का क्या होगा ।
Hi Kakesh Ji,
Read your story about Paruli.Very interesting and touching.You have depicted the desires and struggle of a simple pahari girl in a attention catching way.I was reading the comments made in previous editions to this story that few readers dont wish to wait and want the full story at one go.I believe that waiting for the next chapter increases curiosity and the fun of reading and till now nowehere the story has become boring or getting too stretched.
I would want you to keep up the good work and take your time in writing the story.
Would wait for the next chapter on next Wednesday.Till then let me go through your other stories.
Happy writing.
rashi
काकेश दा,
कहानी के पुराने भाग तो तो पिछले कई दिनो से पढ रहे है लेकिन आज पता नही क्यू एक अजीब सी उल्झन हो रही है, ये कहानी इतनी दर्दनाक बन चुकी है, कि ओफिश मै भी पढते समय अपने आशुऔ को रोका नही जा रहा है..
काकेश दा मन तो कह रहा है ये बच्ची डाक्टर बन ही जाये, लेकिन पहाड के परिवेश को शायद ये मन्जूर न हो.. खैर हम भी गोल ज्यु से प्राथना करते है कि वो इस बच्ची कि मनोकामना पूरी कर दे.. आगे गोल ज्यु की इच्छा…
Naveen Pathak
लेखन शैली आपकी है फिर भी परिवेश के कारण शिवानी की याद आ ही जाती है। उम्मीद है इस कक्षा का अंत शिवानी के उपन्यासों की तरह दुखद नहीं होगा।
Kakesh ji,
aaj pahalee bar aapki site par aayee. paruli ki kahani bhi padhai aur purani narai bhi. sach me aankhon se aansu aa gaye. apney betey aur bahu ko bhi padai aapaki narai wali kahani. unko bhi bahut pasand aayi.
me apney desh aur pahad se bahut door hun lekin aaj aapkey lekh pad kar lag raha hai ki me wahi pahunch gayi hun.aap paruli ko doctor bana dijiye please ye me aur meri bahu ki demand hai aapse. uskey dard ko aur mat badahaiyega kakesh ji. shayad aapsey umara me badi hungi to apni kakhi bat manengey na aap.
mera aashirwad milega aapko.
[ देवनागरी रूपांतर : काकेश द्वारा
काकेश जी ,
आज पहली बार आपकी साइट पर आयी. परुली की कहानी भी पढ़ी और पुरानी नराई (वाली पोस्ट) भी. सच में आंखों में आंसू आ गये. अपने बेटे और बहू को भी पढ़ाई आपकी नराई वाली कहानी (पोस्ट). उनको भी बहुत पसंद आयी.
मैं अपने देश और पहाड़ से बहुत दूर हूँ लेकिन आपके लेख पढ़कर ऐसा लग रहा है कि मैं वहीं पहुंच गयी हूँ. आप परुली को डॉक्टर बना दीजिये प्लीज. ये मैं और मेरी बहू की डिमांड है आपसे. उसके दर्द को और मत बढ़ाइयेगा काकेश जी. शायद आपसे उम्र में बड़ी हुंगी तो अपनी काखी की बात मानेंगे ना आप.
मेरा आशीर्वाद मिलेगा आपको. ]
[काकेश ने कहा –> जीवंती जी आप मेरे ब्लॉग पर आयी मेरे अहोभाग्य. एक बात कहूँ मेरी एक चाची का नाम जीवंती ही है. तो मेरे लिये तो आप काखी ही हुई.आपका आशीर्वाद मिला सचमुच बहुत अच्छा लगा. अगला भाग लिखते समय आपकी और आपकी बहू की डिंमांड ध्यान में रखुंगा. आप आते रहिये इस ब्लॉग पर]
Namaskar Kakesh jee,
Ummeed toh yehi hai kee Paruli ke saath acha hee hoga, ab is paruli ke karta dharta sab khuch aap hee hue, khuch acha hee kareiyega uske saath.
Dear Kakesh ji,
Jesa ki log comment kar rahe ki bahut darda de diya hai Paruli ko bas ab usae Doctor bana do lakin kakesh da isko jes rooop mai bhi Aap pese karenga uahi sabse Aacha hoga kyon ki kahani ka ant bhi reader ki marji se ho gaya to wo kahni nahi Public demand ke hisab se Kyon ki Sas Bhi Bahu Ban jayega !
Phir Ab kya hoga wali Bat Nahi Rahege…………Na Hi Wait Rahega Hamesa ki tarha Wednesday ka………. Aap Sahi Ja rahai hai Likte Rahoo …………
काकेश जी ,
Hum sab log apne muluk se door behadoun me baithkar apne Uttarakhand ke bare me sochte rahte hain. Umeed karte hain ki aapke lekh se hame kuch siksha mile aur sab mil-baithkar apni apni kahaniyan sunaye aur mil kar apne muluk ki seva aur utthan karen.
Dhanyabaad….
K.S.RAWAT
Uttarakhand, Uttaranchal
काकेश दा! परूली के इजा-बाज्यू की सोच में कुछ परिवर्तन तो आ गया.. लेकिन सिर्फ शादी टल जाने से ही परूली डाक्टर तो नहीं बन पायेगी? परूली की कहानी का अगले हफ्ते सुखांत हो जाये, तो आशा है कि इसी तरह की एक और मर्मस्पर्शी श्रंखला आप पुनः शुरू करेंगे…
परुली को संघर्ष तो करना पड़ सकता है पर अगर हिम्मत और जज्बा हो तो परुली जरुर डॉक्टर बन जायेगी।
तरीका यही है। कोई भी बड़ा काम पहले स्वप्नमें जन्म लेता है फिर मूर्त रूप लेता है। पुख्ता स्वप्न बोइये पात्रों के दिमाग में!
wonderful..
touching and real..
Dear Kakesh Ji,
Your writing is addictive. Please do not feel pressurised to finish Paruli’s story. It is totally your prerogative as you have conceived it, and carried through analytical gestation period. So delivery should be of your choice. After leaving Pithoragarh in 1980, it has been almost 28 years away from Kumaun. During summer vacation of high school board exams in 1974, I had a previlege to enjoy GIC library where for the first time I read Shailesh Matiyani and Panu Kholia. This initiated me into reading Shivani’s novels and finally Kagar Ki Aag in Saptahik Hindustan. After that it had been a long drought and your stories are an oasis. It is a great feeling to experience a touch of Kumaun every now and then in a land that is physically so distant, I mean USA.
More power to you and your creativity.
Best regards
Nirmal Joshee
Warner Robins, Georgia, USA.
priya Kakeshji
aap likhte rahiye. I have read that you write the next part of storey on every wednesday. apko abhi kahani ko khatam nahi karna hain. ese barate rahiye aur jo bhi apke man main aata hai wo likhe apka har lekh es kahani main dil ko chune wala hota. main chahta hoon ki ye apki kahani main apne dosto aur sabhi un logo ko sunao jo internet se door rahte hain aur ya hamari community se door rahte hain.
काकेश भाई, लेखन की सफलता तभी दिखती है जब पाठक आपके पात्रों से अपने को जोड़ ले और दिख ही रहा है कि परुली से हर किसी ने अपने को जोड़ लिया है चाहे वह पाठक पहाड़ी हो या न हो।
चाहता मैं भी यही हूं कि परुली का ब्या न हो और वह डॉक्टर बने ही लेकिन पाठको के दबाव में आकर आप अपने लेखन के स्वाभाविक फ़्लो को नष्ट न होने दें, कहानी जैसे मन में बह रही हो वैसे ही शब्दों में उतारें!!
अकेले इस परूली सीरीज ने ही सबको आपके अंदर के कहानीकार का क़ायल बना दिया है।
काकेश, बहुत बढ़िया लिख रहे हैं । कृपया कोशिश करें कि जब अगला अंक लिखने बैठें तब हमारी टिप्पणियों को कुछ समय के लिए एकदम भुला दें । तभी आपका लेखन स्वाभाविक रहेगा । अन्यथा ना चाहते हुए भी हमारा दबाव आपपर बनेगा ।
अगले अंक की प्रतीक्षा रहेगी । होली की शुभकामनाएँ ।
घुघूती बासूती
Great going Kakeshji…
We want Paruli to fight for her rights and achieve what she wants to achieve in her life…..
सुन्दर है जी। हमने तो पहली बार पढ़ी परुली कथा। कित्ते वैसे हैं न! बहुत अच्छा लगा। राख से बरतन मांजना! और भी तमाम चीजे याद आई! शिबौ-शिब से कसप के डायलाग याद आये। हड़बड़ायें नहीं। अपनी स्पीड से अपने मन से लिखें। बहुत खूब है जी।
बहुत खूब…बहुत बढ़िया लेखन. परुली की सहजता ही उसके लिए कुछ करेगी.
इंतजार रहेगा अगले भाग का.
Kakesh bhai Holi ki badhaiyan!!
Lagta hai kahani ka ant nikat aa gaya hai…kya kahu..itni hi vinti hai ki ant ko natural rakhiyega jo apka dil kahe wo hi ant achcha rahega…waiting for the wednesday..
Keep it up!
namaskar,
kiran
i find paru a determined girl..she should win…….i dont know to which decade u r relating this story to, but if u show the defeat of paru, it will be totally devastating and crash hopes of hundreds of such paru’s of our beloved land…….
p.singhdeo
सुन्दर है जी। हमने तो पहली बार पढ़ी परुली कथा। कित्ते वैसे हैं न! बहुत अच्छा लगा। राख से बरतन मांजना! और भी तमाम चीजे याद आई! शिबौ-शिब से कसप के डायलाग याद आये। हड़बड़ायें नहीं। अपनी स्पीड से अपने मन से लिखें। बहुत खूब है जी।
kakesh ji paruli ne BHAGWAN GORIYA semannat mangi aur karar rakha hai phir to chahe kuch bhi ho jaye usse doctor banne se koi naho rok sakta.
आखिर परुली के ईजा औऱ बोज्यू की आँखों में भी सपना तरंगने लगा … वो भी सोच विचारने लगे हैं कि कैसे परुली डॉक्टर बन सकती है…. यही क्या कम है? जरूर कोई रास्ता निकलेगा … ,बस गोलज्यू से यही प्रार्थना है कि परुली को फिलमी अंदाज में डॉक्टर ना बनाएं…
काकेश जी एक बात बताएं कि ये गोलज्यु देवता वहीं हैं क्या , जिनका मंदिर अलमोड़ा के पास है और उस मंदिर में असंख्य घंटे घंटियाँ टंगे हुये हैं ….
काकेश जी आप के ब्लॉग में पहली बार आना हुवा| परुली काथ भली लागी| आघिल देखो गोलज्यु क्या करते हैं| आघिल काथे इंतजार में|