कल प्रियंकर जी के चिट्ठे पर एक मासूम सा सवाल उठा “ये त्रिलोचन कौन है?” जिसका उत्तर अपने संस्मरणों के साथ पहलू में दिया गया. फिर बोधिसत्व जी ने थोड़ा जीवन परिचय देते हुए दो कविताय़ें भी छाप दी. उसी कड़ी को आगे बढ़ाते हुए पेश हैं त्रिलोचन की कुछ कविताऎं.
कुछ बातें जो मैं जानता हूँ त्रिलोचन के बारे में.
नागार्जुन, शमशेर और त्रिलोचन की त्रयी आधुनिक हिंदी कविता का आधारस्तंभ मानी जाती है. इस त्रयी के त्रिलोचन हरिद्वार के ज्वालापुर इलाके में लोहामंडी की एक तंग गली के मकान में अपनी बीमारी से जूझ रहे हैं. त्रिलोचन भारतीय सॉनेट के अहम हस्ताक्षर रहे हैं.उन्होने सॉनेट को भारतीय परिवेश दिया .उन्होने 500 से ज्यादा सॉनेट लिखे हैं. सॉनेट चौदह लाइन की कविता होती है जिसे शेक्सपियर ने अपनी रचनाओं में बखूबी प्रयोग किया.
त्रिलोचन के कुछ सॉनेट
जनपद का कवि
उस जनपद का कवि हूँ जो भूखा दूखा है,
नंगा है, अनजान है, कला–नहीं जानता
कैसी होती है क्या है, वह नहीं मानता
कविता कुछ भी दे सकती है। कब सूखा है
उसके जीवन का सोता, इतिहास ही बता
सकता है। वह उदासीन बिलकुल अपने से,
अपने समाज से है; दुनिया को सपने से
अलग नहीं मानता, उसे कुछ भी नहीं पता
दुनिया कहाँ से कहाँ पहुँची; अब समाज में
वे विचार रह गये नही हैं जिन को ढोता
चला जा रहा है वह, अपने आँसू बोता
विफल मनोरथ होने पर अथवा अकाज में।
धरम कमाता है वह तुलसीकृत रामायण
सुन पढ़ कर, जपता है नारायण नारायण।
भीख मांगते उसी त्रिलोचन को देखा कल
भीख मांगते उसी त्रिलोचन को देखा कल
जिस को समझे था है तो है यह फ़ौलादी
ठेस-सी लगी मुझे, क्योंकि यह मन था आदी
नहीं; झेल जाता श्रद्धा की चोट अचंचल,
नहीं संभाल सका अपने को । जाकर पूछा
‘भिक्षा से क्या मिलता है। ‘जीवन।’ ‘क्या इसको
अच्छा आप समझते हैं ।’ ‘दुनिया में जिसको
अच्छा नहीं समझते हैं करते हैं, छूछा
पेट काम तो नहीं करेगा ।’ ‘मुझे आप से
ऎसी आशा न थी ।’ ‘आप ही कहें, क्या करूं,
खाली पेट भरूं, कुछ काम करूं कि चुप मरूं,
क्या अच्छा है ।’ जीवन जीवन है प्रताप से,
स्वाभिमान ज्योतिष्क लोचनों में उतरा था,
यह मनुष्य था, इतने पर भी नहीं मरा था ।
कुछ अन्य कवितायें.
आत्मालोचन
शब्द
मालूम है
व्यर्थ नहीं जाते हैं
पहले मैं सोचता था
उत्तर यदि नहीं मिले
तो फिर क्या लिखा जाए
किन्तु मेरे अन्तर निवासी ने मुझसे कहा-
लिखा कर
तेरा आत्मविश्लेषण क्या जाने कभी तुझे
एक साथ सत्य शिव सुन्दर को दिखा जाए
अब मैं लिखा करता हूँ
अपने अन्तर की अनुभूति बिना रँगे चुने
कागज पर बस उतार देता हूँ ।
आछी के फूल
मग्घू चुपचाप सगरा के तीर
बैठा था बैलों की सानी पानी कर
चुका था मैंने बैठा देखकर
पूछा,बैठे हो, काम कौन करेगा.
मग्घू ने कहा, काम कर चुका हूं
नहीं तो यहां बैठता कैसे,
मग्घू ने मुझसे कहा,
लंबी लंबी सांस लो,
सांस ले ले कर मैंने कहा,सांस भी
ले ली,
बात क्या है,
आछी में फूल आ रहे हैं,मग्घू ने कहा,अब
ध्यान दो,सांस लो,
कैसी मंहक है.
मग्घू से मैंने कहा,बड़ी प्यारी मंहक है
मग्घू ने पूछा ,पेड़ मैं दिखा दूंगा,फूल भी
दिखा दूंगा.आछी के पेड़ पर जच्छ रहा करते हैं
जो इसके पास रात होने पर जाता है,उसको
लग जाते हैं,सताते हैं,वह किसी काम का
नहीं रहता.
इसीलिये इससे बचने के लिये हमलोग
इससे दूर दूर रहते हैं
पीपल
मिट्टी की ओदाई ने
पीपल के पात की हरीतिमा को
पूरी तरह से सोख लिया था
मूल रूप में नकशा
पात का,बाकी था,छोटी बड़ी
नसें,
वृंत्त की पकड़ लगाव दिखा रही थी
पात का मानचित्र फैला था
दाईं तर्जनी के नखपृष्ठ की
चोट दे दे कर मैंने पात को परिमार्जित कर दिया
पीपल के पात में
आदिम रूप अब न था
मूल रूप रक्षित था
मूल को विकास देनेवाले हाथ
आंखों से ओझल थे
पात का कंकाल भई
मनोरम था,उसका फैलाव
क्रीड़ा-स्थल था समीरण का
जो मंदगामी था
पात के प्रसार को
कोमल कोमल परस से छूता हुआ.
पिछले दिनों व्यस्त रहने के चलते इस सब क्रम से अनभिज्ञ रहा.. चन्दू भाई के आग्रह को आप ने पूरा किया.. और मुझे शर्मिन्दगी से बचा लिया.. इस के लिए धन्यवाद..
धन्यवाद मित्र. कल प्रियंकर की पोस्ट पढ़ कर मन बड़ा उदास सा हो रहा है.
कविता ज्यादा नहीं पढ़ी है पर त्रिलोचन इस दशा में हैं – यह जान कर बहुत कुछ सोचने लगा हूं.
भइया काकेश, इतना सारा माल तो आपके पास पड़ा था, खुद ही परस दिया होता, औरों से क्यों कहा? अब अगर मौका मिले तो ‘चंपा काले-काले अक्षर नहीं चीन्हती’ और ‘नगई महरा’ की मुंहदिखाई भी करा दो…
बहुत अच्छी कविता,बहुत दुखद कहानी,
शायद यही है हिंदी की कहानी…?
भाई इसमें औरों और अपनों की बात कहाँ से आ गई । त्रिलोचन सब के अपने हैं।
हो सके तो विस्तरा है न चारपाई है भी छापें ।
दुखद है, शाकिंग है, बोधिसत्वजी-अभय तिवारीजी-क्या ब्लागर्स किसी भी तरह से कुछ भी कर सकते हैं क्या इस सिलसिले में।
इन अनमोल रचनाओं को पढ़ कर आज अपने पूछे गए प्रश्न से मै भी बहुत शर्मिंदा हूँ। मै सचमुच नही जानता था कि मै एक इतने बड़े महान और गहरी सोच वाले रचनाकार से अनजान रहा। अब उनका परिचय और रचनाओं को पढ़कर मन को सात्वंना मिल रही है। आप सब का बहुत धन्यवाद । जिन्होनें मेरी जिज्ञासा को शांत किआ।आशा है इसी तरह आप हमारा ज्ञानवर्धन करते रहेगें ।आप सब का एक बार फिर धन्यवाद।
भाई काकेश!
आपने बहुत ज़रूरी काम किया है . आभारी हूं .
आलोक जी
त्रिलोचन जी को लेकर मेरी और अभय की बात हुई है । उनके लिए कुछ भी करना हमारे लिए संतोष की बात होगी । पर सवाल यह है कि किया क्या जाए।
जहाँ तक मेरी जानकारी है उन्हे आर्थिक कष्ट नहीं है। पर इस बात को दरयाफ्त कैसे करें । आप लोग और चंदू भाई दिल्ली में हैं । वहाँ से त्रिलोचन जी की ताजा यथार्थ स्थिति का पता लगा कर हमें सूचित करें। जो भी करना होगा हम वह करने के लिए तैयार हैं ।
त्रिलोचन जी के साथ हिंदी के लोग उपेक्षा का बरताव कर रहे हैं । जो कहीं अधिक मारक है। उनकी अवस्था 90 के पार है । तय है कि आज उन्हे सहारे की आवश्यकता होगी। उनकी बूढ़ी आँखे हिंदी के तमाम सपूतों को खोजती होंगी पर । मैं कह नहीं सकता कि कौन हिंदी वाला इस बीच गया हो उनसे मिलने । हिंदी जगत ने उनकी तरफ से आँखें फेर ली हैं । यह उनके लिए कहीं अधिक बड़ा आघात है । उनकी इसी उपेक्षा से आहत होकर मैंने अपनी कविता लिखी थी । खैर ।
आने वाले अगस्त में वे 90 के हो रहे हैं पर मुझे नहीं लगता कि उन पर हिंदी पत्र-पत्रिकाओं में कुछ खास छपना-छपाना है। यह हिंदी का पुराना चरित्र है । इसका क्या करें । हम कोशिश कर के त्रिलोचन जी की अधिकाधिक रचनाएं ब्लॉग पर डालें । उन पर गंभीर चर्चा करें तो भी कुछ बात बन सकती है।
आप पता कर सकें तो अच्छा होगा। जो करना होगा हम पीछे नहीं हटेंगे।
आप का
बोधिसत्व
त्रिलोचन ने गजलें और चतुश्पदियाँ भी ख़ूब लिखी हैं. हो सके तो कुछ उनमें से भी लाएं .रही बात उपेक्षा की तो हर ईमानदार आदमी के साथ वह करना हिंदी वालों की फितरत भी है और मजबूरी भी. उस सिलसिले में हम-आप सबसे पहला काम तो यही कर सकते हैं कि ब्लॉगों पर उनके बारे में ज्यादा से ज्यादा लिख कर और उस पर टिप्पणियां कर के हिंदी आलोचना को उसकी औकात बता दें. कबीर, दादू, रैदास या तुलसी को हम किसी आलोचक के मार्फ़त नहीं, जन के मार्फ़त जानते हैं. रही बात पुरस्कार-सम्मान की, तो इनकी अब न तो त्रिलोचन को कोई जरूरत है और न कोई इनका महत्त्व ही. क्या ही बेहतर हो हम लोग हरिद्वार में चलकर या कहीँ त्रिलोचन के साहित्य पर एक छोटा सा सादा सा आयोजन करें और तथाकथित हिंदी वालों को (जो वे हैं नहीं) उनकी औकात बता दें.
काकेशजी,मेरी जानकारी के अनुसार त्रिलोचनजी ने एक लाख से ऊपर सानेट लिखे हैं। उनकी ज्यादा से ज्यादा रचनायें नेट पर लाने के लिये कोशिश करनी चाहिये।
सॉनेट क्या होते हैं पहली बार जाना. रचनायें पढ़कर बहुत अच्छा लगा और साथ ही त्रिलोचन जी स्वास्थय के बारे जान दुख हुआ. ईष्ट देव जी विचारों को साधुवाद. मेरे लायक कोई सेवा हो, तो सूचित किया जाये.
कृपया मैत्री पर त्रिलोचन के बारे में पढ़ें.