टिप्पणी-चर्चा,स्त्री-विमर्श व इस ब्लॉग का भविष्य

वैसे तो टिप्पणीकार टिप्पणीचर्चा करते ही हैं लेकिन अपने ब्लॉग के लिये यह काम हमने ही शुरु कर दिया है.कई बार किसी भी ब्लॉग पर बहुत अच्छी टिप्पणीयाँ आती हैं… कभी कभी कई अच्छी टिप्पणीयाँ दब जाती हैं उनको भी लोगों तक पहुचाना मुझे जरूरी लगता है. इसलिये सोचा कि अब अपने ब्लॉग पर आयी कुछ सार्वजनिक महत्व की टिप्पणीयों की चर्चा यहीं शुरु कर दूँ..वैसे पहले भी करता रहा हूँ

आलोक जी ने मेरी एक पोस्ट पर कहा

” लेखकीय पहचान एक्सचेंज आफर से मिलती है। जो आपको अच्छा लेखक ना माने, उसे लेखक तक मानने से इनकार दीजिये।”

आजकल ब्लॉग में स्त्री-विमर्श खूब चल रहा है. मेरी एक पोस्ट में तो सारे रिकॉर्ड ही टूट गये. यह अभी भी जारी है.

मैने एक टिप्पणी पोस्ट बनायी थी जिस पर विस्तृत टिप्पणीयाँ आयीं. उसी से संबंधित एक पोस्ट में स्वप्नदर्शी जी ने कहा

“बहस का कोइ अंत नही है, और ये समस्या बहस से सुलझने वाली भी नही है. [ये समस्या] सिर्फ और सिर्फ व्यवहार और अनुभूतियों से ही सुलझेंगी. खासकर किसी भी समाज की असभ्यता का सबसे ज्यादा शिकार इसके सबसे कमज़ोर वर्ग ही होते है, जैसे औरते, बच्चे, बूढे. जिस तरह का विमर्श यहां देखने को मिला, मुझे बहुत शर्म है अपने भारत पर, इसके बाशिन्दो पर. और अगर वाकई सभ्य समाज बनाना है तो सभ्यता इसी में है कि सबको समान अवसर दिया जाय, एक इंसान के बतौर. स्त्री विमर्श को छोड भी दिया जाय, तो बूढो कि स्थिति, अपाहिज लोगों के लिये सार्वजनिक जीवन में इससे भी कम जगह है. किस शहर की बसें, यायायात के साधन,ऑफिस, और तमाम दूसरी सार्वजनिक जगह हैं, जहां, स्वभिमान के साथ ये लोग जा सकते है? शिरकत कर सकते है?

य़े टकराव का ज़माना है, समस्या का सीधा समाधान और नैतिक और राजनैतिक दृष्टि के अभाव में, सवर्ण-दलित, अगडे-पिछड़े, औरत-मर्द, जवान-बूढे, क्षेत्रियता, धर्म, सभी की वाट लगने वाली है.

ये मन की ग़ांठें है, इतनी आसानी से नही खुलेंगी……….

एक मरतबा, एक जमीन्दार रशूख वाले साहब, होस्टल में पढने गये, और टोयलेट का फ्लश चलाना उन्हे अपनी शान के खिलाफ लगा. इस काम को उन्होने, भंगी का काम माना. पर होस्टल मे कौन था जो उनका भंगी बनता? अंत मे उनकी पेशी हुयी, और फिर उन्होने अपनी गन्द साफ करनी सीखी.

इसीलिये, जिनके दिमाग मे गन्द भरी है, फ्लश उन्ही को चलाना पड़ेगा. नही तो उसकी गन्द से सबसे पहले उनके आसपास वाले, परिवार वाले बीमार होंगे, उनके अपनो को सबसे ज्यादा तकलीफ होगी. बाकी छ अरब लोगों के साथ किसी भी औरत का सिर्फ, माँ, बहन, प्रेमिका या पत्नी का समबन्ध नही हो सकता और इस परिधी मे दुनिया के अधिकांश लोगो को क्या उसके अपमान का लायसेंस मिला हुआ है?

लेकिन कुछ लोग इससे सहमत नहीं भी हैं. डॉक्टर अमर कुमार ने कहा

बहुत खूब,
ऎसा कतई नहीं है कि मैं प्रभुसत्तावादी हूं, या कि पुरातन विचारों का हूं किंतु हम
क्यों नहीं स्वीकार कर पाते कि पुरुष और नारी का संबन्ध अधुनातन काल से ही
वृक्ष और लता का सा रहा है । बराबरी का अधिकार ? यह किंन्ही निहितार्थ के
चलते कुछ पुरुषों द्वारा ही गढ़ा गया है , और अबला अब बला की बला बन बैठी है।
चित्त और पट्ट दोंनों ही हथियाने की जुगत है, यह स्वांग

इसी विषय पर प्रत्यक्षा जी की गुस्से वाली यह पोस्ट पढ़ना ना भूलें.

चलिये अब विषयांतर….

मेरे संकल्पों को लेकर आलोक जी ने एक अच्छी बात कही कि “अनुशासित सिर्फ कंप्यूटर होते हैं या कुत्ते। हम रचनाधर्मी लोग हैं। अनंत के साधक हैं, यूं तुच्छ संकल्पों की सीमाओं में अपने पुरुषार्थ को ना बांधिये।”. उनसे पूरी सहमति और इतना अनुशासन है भी नहीं अपन में…….लेकिन फिर भी इस ब्लॉग के पाठको के लिये राह आसान हो इसका प्रबन्ध कर रहा हूँ.

शास्त्री जी समय समय पर विषय आधारित चिट्ठों की वकालत करते रहते हैं. अब अपने से कोई दस ब्लॉग तो मैंटेन हो नहीं पायेंगे इसलिये फिलहाल के लिये दिनों के हिसाब से इस ब्लॉग को विभिन्न भागों में बांटने का प्रयास कर रहा हूँ.

सोमवार : समसामयिक/व्यंग्य/पॉडकास्ट

मंगलवार: समसामयिक/व्य़ंग्य/मौज

बुधवार : पहाड़ी नराई

गुरुवार : मधुशाला या उस जैसी ही कोई श्रंखला

शुक्रवार : खोया पानी

शनिवार : टिप्पणी चर्चा/ पाठकों के जबाब/ब्लॉग संबंधी

रविवार : खोया पानी

ये सभी पोस्ट सुबह आठ बजे से पहले प्रकाशित कर दी जायेंगी. इसके अतिरिक्त यदि कभी कोई अन्य विषय हुआ तो उसे अलग से दिन के किसी भी समय प्रकाशित कर दिया जायेगा. आशा करता हूँ कि इससे पाठको को सुविधा होगी और वो अपने हिसाब से इस ब्लॉग को पढ़ सकेंगे.

आपके कोई सुझाव हों तो जरूर बताइयेगा…..

By काकेश

मैं एक परिन्दा....उड़ना चाहता हूँ....नापना चाहता हूँ आकाश...

11 comments

  1. बहुत अच्छा। यह सब नये साल के रिजॉल्यूशन का ऑफ शूट लगता है। हमारी रुचि तो इसमें है कि वजन कम करने के रिजॉल्यूशन का क्या हुआ। कम होना प्रारम्भ हुआ या नहीं!

  2. ओह, आई अम इंप्रेस्‍ड. मगर खोया पानी दो बार? और खोये हम?

  3. ये आपने ठीक किया. अब हम हर मंगलवार टकराएँगे. हमारा सारा काम जो मौज मस्ती का होता है. बाकी से दूर का रिश्ता नहीं 🙂

  4. काकेश जी,

    बहुत ही बढ़िया प्लान. आपके आनेवाली सभी पोस्ट का इंतजार रहेगा. टिपण्णी चर्चा बहुत खूब रहती है.

  5. अरे वाह, बिल्कुल नया तरीका ढूँढ के लाये हो। तुम्हारा ये अंदाज भा गया लेकिन एक बात बताओ भाभी जी और बच्चों से क्या गलती हो गयी, कम से कम एक दिन उनके लिये तो छोड़ दो मियाँ। तुम्हारी सिंस्येरटी देख कर हमको तो ना जाने कैसा कैसा हो रहा है।

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