स्वामी जी आजकल आमतौर पर नजर तो आते नहीं. वैसे भी जो स्वामी अमरीका में बैठकर पैसे पीटता है वो कम ही नजर आता है. 🙂 बहुत से स्वामी इसी लिये अमरीका का रुख करते हैं और वहीं के होकर रह जाते हैं तो ई वाली स्वामी कोनो अनौखे थोड़े हैं.
लेकिन अपने हैप्पी बर्थ डे बढ़ा सही वाला चितन किये हैं. पहिले तो हमहूं बोले दे “हैप्पी बर्थ-डे स्वामी जी”
फिर उसी बात को तनि आगे बढ़ायें.जो प्रशन आप उठाये रहिन वैसे तो ऊ बहुतैई बड़ा प्रशन है. ऊ पर तो कभी लिखबो करेंगे. अभी तो तो इतनो ही कहनो है कि इस प्रशन को सुनके तो गोस्वामी तुलसीदास जी भी घबरा गये.
एक बार लिखे हैं.
होइहि सोइ जो राम रचि राखा । को करि तर्क बढ़ावै साखा ॥
सब वही होने वाला है जो राम ने रचा है.
फिर कहते हैं.
करम प्रधान विश्व करि राखा, जो जस करी, सो तस फल चाखा
अब जब गोस्वामी कनफुजिया गये तो ई-स्वामी तो कनफुजियायेंगे ही.
आप बतायें जी का सही का गलत.
एक क्वांटम मेकेनिक्स है दूसरी जनरल मैकेनिक्स। वैज्ञानिक दोनों में समन्वय का प्रयास कर रहे हैं।
दिनेश जी, बिलकुल सही बोले हैं। दुन्नौ सही है। स्वामी/गोस्वामी का चिंतवना एकदम सहिअय है नू।
काकेश जी, हमें तो बहुत पहले से पता था कि गोस्वामी जी काफी कनफ्युजिए गए थे । तभी तो हमारी धुनाई की सलाह देकर चलते बने । अब हम उनका क्या बिगार सकते हैं सिवाय अपना सिर धुनने के !
घुघूती बासूती
काकेश जी, हमें तो बहुत पहले से पता था कि गोस्वामी जी काफी कनफ्युजिए गए थे । तभी तो हमारी धुनाई की सलाह देकर चलते बने । अब हम उनका क्या बिगाड़* सकते हैं सिवाय अपना सिर धुनने के !
घुघूती बासूती
सवाल तो जोरदार है। जवाब तलाशने पड़ेंगे।
अभी हम आए थे सवाल देखने के लिए. अलोक पुराणिक जी ने भी जवाब तलाशने के लिए मोहलत मांगी है, सो हम भी मांग रहे हैं. समय दीजिये, जवाब लेकर आते हैं……………:-)
वैसे स्वामी जी के बारे में आपने जो कुछ लिखा, ठीक है. लेकिन ‘गो-स्वामी’ को कहीं आप ‘गो का स्वामी’ साबित करने पर तो नहीं तुले हैं?……..:-)
जैसे गोस्वमीजी कनफुजिया गए थे वैसे ही बुद्ध, महावीर, कबीर, नानक, मीराबाई, सहजोबाई, दादूदयाल, रैदास, राबिया, रसखान, रहीम, रामकृष्ण परमहंस, विवेकानंद (सूची बहुत लंबी हो सकती है) भी बहुत कनफुजियाए हुए थे। इन लोगों ने अपना कनफ़्यूज़न तो दूर कर लिया था पर हमसे साफ साफ कुछ कह नहीं पाए और लोग इनके नाम पर लाठियाँ भाँजने और सिन धुनने लगे। वैसे ये कहकर भी क्या जाते, गूँगे ने गुड़ खाया तो स्वाद कैसे बताएगा।
वैसे दिनेशरायजी ने पते की बात कह दी है।
गोस्वामी जी के कथन में विरोधाभास नजर आता है, पर विरोध है नहीं। कर्म फल, कर्म पर आर्धारित है, पर कर्म-फल केवल कॉज-इफेक्ट रिलेशनशिप नहीं है। उसका नियंता वह है जिसका नाम तुलसी पहली चौपाई में ले रहे हैं।
हिन्दुओं में यह बड़ी खराब बात है – कहेंगे कि इत्ता बढ़िया काम कर रहे हैं पर सारा चीटिंग भगवान उनके साथ ही करते हैं। 🙂
And this one from Raman Maharshi:
Karma (कर्म) it self can not give Phalam (फलम). It is Jadam (जड़म). It is God who dispenses Karma Phalam.
बहुत बहुत धन्यवाद!
मुझे इस विषय पर आपके चिंतन की भी प्रतिक्षा रहेगी! 🙂