आप कहीं यह अनुमान ना लगा लें कि मैं किसी कविता नामक सुकन्या के प्रेमपाश में बंधकर कवि बनना चाहता हूँ इसलिये मैं यह घोषणा करना चाहता हूँ कि मुझ बाल बच्चेदार को किसी से प्यार व्यार नहीं है (अपनी पत्नी से भी नहीं 🙂 ) बल्कि मैं तो लिखी जाने वाली कविता से प्रेम… Continue reading मैं कहीं कवि ना बन जाऊं….
Author: काकेश
मैं एक परिन्दा....उड़ना चाहता हूँ....नापना चाहता हूँ आकाश...
तुझको मिर्ची लगी तो मैं क्या करूं?
किसी को मिर्ची लगे तो कैसा लगता होगा मतलब खुशी होती होगी या गुस्सा आता होगा,दुख होता होगा या खीझ होती होगी, यह जीवन मिथ्या लगने लगता होगा या बदले में दूसरों को गाली देने का मन करता होगा, खुद को सयाना मान लेने लगते होंगे या दूसरों को नादान समझने लगते होंगे,खुद को बुद्धीजीवी… Continue reading तुझको मिर्ची लगी तो मैं क्या करूं?
खरबूजा खुद को गोल कर ले तब भी तरबूज नहीं बन सकता
किबला वाली कहानी का अंत अब निकट है. इसमें व्यंग्य के साथ साथ करुणा भी है और जीवन की सच्चाई भी. अब आप आगे पढ़िये. =========================================== हम जिधर जायें दहकते जायें कराची में दुकान तो फिर भी थोड़ी बहुत चली, मगर क़िबला बिल्कुल नहीं चले। ज़माने की गर्दिश पर किसका ज़ोर चला है जो उनका… Continue reading खरबूजा खुद को गोल कर ले तब भी तरबूज नहीं बन सकता
ऎडसैन्स से कमाई क्या सचमुच….!!
कल रामचन्द्र मिश्र जी ने ऎडसैन्स से अपनी पहली कमाई को सार्वजनिक किया. इससे पहले रवि जी भी कह चुके हैं उनके ब्रॉडबैन्ड का खर्चा पानी भी ऎडसैन्स से निकल जाता है. यह अच्छे संकेत हैं और यह आशा जगाते हैं कि ऎडसैंस से कुछ कमाई की जा सकती है. मुझे लगता है कुछ और… Continue reading ऎडसैन्स से कमाई क्या सचमुच….!!
बीबी! मिट्टी सदा सुहागन है
व्यंग्य हो और उसमें छिपा हुआ ग़म ना हो तो फिर कैसा व्य़ंग्य. अब कौन कहेगा कि क़िबला जो इतने गुस्सैल हैं वो दिल के कितने पाक-साफ हैं. आप भी देखिये क्या है उनकी ज़िन्दगी का ग़म. =========================================== अपाहिज बीबी और गश्ती चिलम उनकी जिंद़गी का एक पहलू ऐसा था जिसके बारे में किसी ने… Continue reading बीबी! मिट्टी सदा सुहागन है
उमर की मधुशाला के निहितार्थ
अब तक तो आप समझ ही चुके होंगे कि उमर खैय्याम की रुबाइयों में कितनी व्यापकता है. जब मैं उमर खैय्याम की रुबाइयों और उनके उन अनुवादों के बारे में सोचता हूँ जो भारत में हुए तो उनमें एक साम्य जैसा लगता है. पहले उमर खैय्याम की मूल रचना की बात करें. उमर खैयाम ने… Continue reading उमर की मधुशाला के निहितार्थ
केमो बस की सर्-रर प्वां प्वां..
बस पहाड़ी रास्तों पर हाँफते धीमे रफ्तार डीज़ल का धुँआ उगलते चढ़ रही है.केमो* की उस बस में बैठते ही उसे लगा था कि वह जैसे अपने घर पहुंच गया.ट्रेन की सारी रात की थकन बस में अपना सूटकेस रखते ही जैसे उड़न छू हो गयी. उन टेढ़े मेढ़े,ऊंचे नीचे रास्तों में हिचकोले खाती बस… Continue reading केमो बस की सर्-रर प्वां प्वां..
मैं यह नौकरी नहीं छोड़ुंगा…
वो मेरे मित्र थे.पत्रकार तो वो थे ही लेकिन साथ साथ एक कवि भी थे, यानि कि पूरा का पूरा डैडली कंबीनेशन. लिखने बैठते तो किस विषय पर क्या लिख दें इसका उनको ही पता नहीं रहता था. प्रमाद की अवस्था में पहुंच जाते तो क्या क्या बकने लगते.दूसरों के लिखे को अपना बताने लगते.… Continue reading मैं यह नौकरी नहीं छोड़ुंगा…
ये मेरा ब्लॉग और मेरा ब्लॉग
नवभारत टाइम्स में वरिष्ठ कवि/पत्रकार श्री मंगलेश डबराल जी ने हिन्दी ब्लॉग पर एक लेख लिखा. वो धन्यवाद के पात्र तो हैं ही कि उनकी नजरें इस नये बने अराजनैतिक, व्यक्तिगत, रूमानी, भावुक और अगंभीर माध्यम पर इनायत हुई लेकिन इन सबके ऊपर उन्होने हिन्दी ब्लॉगजगत पर जो आरोप लगाये हैं वो शायद इस हँसी-ठिठोली… Continue reading ये मेरा ब्लॉग और मेरा ब्लॉग
क़िबला का रेडियो ऊंचा सुनता था
पिछ्ली पोस्ट में नीरज जी ने कहा. “किताब हर लिहाज़ से विलक्षण है. शब्द यहाँ जादू से जगाते लगते हैं…हैरानी होती है पढ़ के की इंसान के जेहन में ऐसे जुमले आ कहाँ से जाते हैं…ये किताब हर समझदार इंसान को पढ़नी चाहिए…” संजीत जी बोले ” वाकई शानदार शब्द चित्र। अभी तक आपने इस… Continue reading क़िबला का रेडियो ऊंचा सुनता था