आजकल फिर पॉडकास्टिंग का बोल बाला है . तरकश की अच्छी अच्छी पॉडकास्ट तो सुनते ही थे पॉडभारती भी आ गया/गयी. इस सब को देख हमको यदि हमें भी जोश उमड़ गया …इस बुढ़ापे में …तो क्या गलत है . तो लीजिये पेश है पॉडकास्टिंग के लिये नया चिट्ठा और नयी पॉड्कास्ट. कई बार हम… Continue reading कृपया गँदा मत कीजिये-पॉडकास्ट
Author: काकेश
मैं एक परिन्दा....उड़ना चाहता हूँ....नापना चाहता हूँ आकाश...
कवि कविता और इन्ची टेप ..सदी की सबसे बरबाद कविता.
(इस पोस्ट को साइबर कैफे से ऑनलाइन हिन्दिनी औजार का प्रयोग कर लिख रहा हूँ . इसलिये कुछ मात्रा की गलतियाँ हैँ जो कल ही सुधार पाऊँगा . आप मन ही मन सुधार लेँ . एक दिन उधार दें.) आजकल कवियों पर शोध करने का फैशन चल निकला है . कोई कवि और कविता को… Continue reading कवि कविता और इन्ची टेप ..सदी की सबसे बरबाद कविता.
शब्दों की पड़ताल में,हम रह गये नि:शब्द ..
पिछ्ले हफ्ते मौन थे इसलिये नहीं कि किसी भाई ने धमकाया / समझाया हो कि मौन रहूं बल्कि इसलिये कि रोटी देने वाले ने भेज दिया किसी काम से और हम मजदूर की तरह चल दिये …यानि कि ऑफिस के काम से हमें शहर के बाहर जाना पड़ा . लप्पू-ट्प्पू (लैपटौप) तो साथ था पर… Continue reading शब्दों की पड़ताल में,हम रह गये नि:शब्द ..
घुघुती जी के आदेश पर …
घुघुती जी का ‘आदेश’ हुआ की आप कौवों को फरमान भेजिये कि वो उनके घर के आस पास जायें क्योकि वो पिछ्ले सात साल से कौवों को घुघुतिया नहीं खिला पा रही हैं. वैसे अब तो घुघुतिया अगले साल आयेगा लेकिन हमने सोचा कि चलो हम तो अपना काम कर ही दें . तो हम… Continue reading घुघुती जी के आदेश पर …
आईये ‘मोहल्ला’ बदल डालें…
कल अपने क्लिनिक पर बैठे थे तो एक व्यक्ति आये . अब आप कहेंगे कि मैने कभी बताया ही नहीं कि मैं डाक्टर हूँ …हमने तो कल तक आपको ये भी नहीं बताया था कि हम ‘कागाधिराज’ हैं….चलो आपके गिले शिकवे फिर कभी …अभी तो आप कल की बात सुनिये. जी हाँ मैं डाक्टर हूं… Continue reading आईये ‘मोहल्ला’ बदल डालें…
श्रीश जी के बहाने ऐश..
वैसे तो नाम के बारे में बहुत कुछ लिखा जा चुका है. शैक्सपियर जी से लेकर श्रीश जी तक ने बहुत कुछ लिखा है…. और हमारे आमिर “कोला” खान जी ने भी इसके बारे में कहा है कि “पापा कहते हैं बड़ा नाम करेगा” तो इसी नाम की बात को लेकर कुछ बात करते हैं.… Continue reading श्रीश जी के बहाने ऐश..
कविता : ना जाने क्यों …
प्यार की निष्ठाओं पर उठते सवालों के बीच रहता हूँ इस घर में शब्द ,जब मौन की धरातल पर सर पटक चुप हो जायें आस्था, जब विडम्बना की देहली पर दस्तक देने लगे गीली आँखों के कोने में कोई दर्द , बेलगाम पसरा हो तनहाइयां ,जब चीख के बोलना भूल जायें आसमान ,अपनी स्वतंत्रता के… Continue reading कविता : ना जाने क्यों …
और ‘जनसत्ता’ नहीं मिला…
कल जब विश्वस्त सूत्रों से ज्ञात हुआ की आज रविवासरीय जनसत्ता में हमारी प्रजाति के बारे में कुछ छप रहा है तो बड़ी खुशी हुई और तब से प्रतीक्षा करने लगे आज के ‘रविवासरीय जनसत्ता’ की . सुबह सुबह जब पेपर वाला आया तो उसे ‘जनसत्ता’ देने के लिये कहा . उसने कहा कि उसके… Continue reading और ‘जनसत्ता’ नहीं मिला…
आओ ‘अनाम’ के अस्तित्व को स्वीकारें
वैसे तो मुझे खुशी होनी चाहिये थी कि कल ढेर सारी हिट्स भी मिले और टिप्पणीयां भी ….पर ना जाने क्यों उतनी खुशी नहीं हुई .क्योंकि जिस सवाल को लेकर प्रतिकार प्रारम्भ हुआ था वो सवाल तो बना ही रहा बल्कि उस सवाल के जबाब तलाशने की जद्दोजहद में कुछ नये सवाल बनते चले गये… Continue reading आओ ‘अनाम’ के अस्तित्व को स्वीकारें
बेनामी सूनामी से भी ज्यादा भयंकर !!??
आज मैं बैचेन हूँ.. इसलिये नहीं की मेरी पिछली पोस्ट “निश:ब्द” की तरह पिट गयी.. इसलिये भी नहीं कि मुझे फिर से “नराई” लगने लगी … इसलिये भी नहीं कि मुझे किसी ‘कस्बे’ या ‘मौहल्ले’ में किसी ने हड़का दिया हो .. इसलिये भी नहीं कि मेरा किसी ‘पंगेबाज’ से पंगा हो गया हो .बल्कि… Continue reading बेनामी सूनामी से भी ज्यादा भयंकर !!??