हुल्लड़ जी की रचना:शिव कुमार जी द्वारा.

मेरी पिछ्ली पोस्ट पर शिव कुमार जी ने एक बेहतरीन हास्य रचना टिपियायी.कहीं वो छुप ना जाये इसलिये उसे पोस्ट में भी डाल रहा हूँ.लेकिन पहले एक बोनस रचना.ये भी शायद हुल्लड़ जी की ही है. सुबह सबेरे ही देखा था,लेकिन सपना भंग हो गयाप्रेम पत्र पर टिकट लगाया,फिर भी वह बैरंग हो गया.जिसको लिखना… Continue reading हुल्लड़ जी की रचना:शिव कुमार जी द्वारा.

त्रयी के त्रिलोचन की कवितायें.

कल प्रियंकर जी के चिट्ठे पर एक मासूम सा सवाल उठा “ये त्रिलोचन कौन है?” जिसका उत्तर अपने संस्मरणों के साथ पहलू में दिया गया. फिर बोधिसत्व जी ने थोड़ा जीवन परिचय देते हुए दो कविताय़ें भी छाप दी. उसी कड़ी को आगे बढ़ाते हुए पेश हैं त्रिलोचन की कुछ कविताऎं. कुछ बातें जो मैं… Continue reading त्रयी के त्रिलोचन की कवितायें.

यह खाट बिछा लो आँगन में, लेटो, बैठो, आराम करो।

कल जब मित्र समीरलाल जी ने “मोटों की महिमा” छापी तो अपने मोटापे पर आती जाती शरम फिर गायब हो गयी और एक पुरानी पढी कविता याद आ गयी.. लीजिये कविता प्रस्तुत है… आराम करो आराम करो एक मित्र मिले, बोले, “लाला, तुम किस चक्की का खाते हो? इस डेढ़ छँटाक के राशन में भी… Continue reading यह खाट बिछा लो आँगन में, लेटो, बैठो, आराम करो।

पूजा का प्रतिरोध और हम..

कल के टाइम्स ऑफ इंडिया में पूजा की तसवीर पहले पन्ने पर थी.चित्र नीचे देंखें ..खबर पढ़ी तो दिल दहल गया और साथ ही मन ही मन पूजा के साहस की प्रसंशा भी की.आज मसिजीवी ने जब इस पर लिखा और फिर सुजाता जी ने भी इसे छुआ तो रहा ना गया..और कुछ शब्दों की… Continue reading पूजा का प्रतिरोध और हम..

धड़-धड़-धड़-धड़, बम बम बम बम…..

कल आपकी टिप्पणीयों से कुछ तो साहस मिला कि कुछ भी लिखें पर लिखना चाहिये…वैसे मेरा भी मानना यही रहा है कि किसी भी चीज को छोड़ के भागने की प्रवृति ठीक नहीं है ..इसलिये अभी पंगेबाज जी को भी मनाने में लगे हैं कि वो भी वापस आ ही जायें… देखिये मान जायें तो… Continue reading धड़-धड़-धड़-धड़, बम बम बम बम…..

मन रे तू काहे ना ….!!

मन जब उद्विग्न हो तो ना जाने क्या क्या सोचने लगता है.रोटी और पैसे के सवालों से जूझना जीवन की सतत आकांक्षा है पर उसके अलावा भी तो हम हैं..क्या सिर्फ रोटी पैसा और मकान ही चाहिये जीने के लिये…यदि वो सब मिल गया तो फिर क्या करें??? …कैसे जियें? क्या इतना काफी है जीने… Continue reading मन रे तू काहे ना ….!!

कविता : ना जाने क्यों …

प्यार की निष्ठाओं पर उठते सवालों के बीच रहता हूँ इस घर में शब्द ,जब मौन की धरातल पर सर पटक चुप हो जायें आस्था, जब विडम्बना की देहली पर दस्तक देने लगे गीली आँखों के कोने में कोई दर्द , बेलगाम पसरा हो तनहाइयां ,जब चीख के बोलना भूल जायें आसमान ,अपनी स्वतंत्रता के… Continue reading कविता : ना जाने क्यों …

तुम्हारे होने पर…..

यह चिट्ठा 22 मार्च 2007 को यहाँ प्रकाशित किया गया था। नैनीताल समाचार (जो कि श्री राजीव लोचन शाह द्वारा निकाला जाता है) के नये अंक में श्री मुकेश नौटियाल की यह कविता छपी है। श्री मुकेश नौटियाल की दूसरी बेटी का जन्म 1 फरवरी को हुआ है। बहुत सही स्थिति का वर्णन किया है… Continue reading तुम्हारे होने पर…..

बालक की अभिलाषा .

यह चिट्ठा 21 मार्च 2007 को यहाँ प्रकाशित किया गया था। चाह थी एक ‘सभ्य दुनिया’ में,कदम जब मैं बढ़ाऊं लोग मेरा प्रेम से स्वागत करें, और गीत गायें इन रास्तों पर चल चुके पहले कभी, वो ही मेरे पथ प्रदर्शक बन, गले अपने लगा लें चाह थी.. कोई जब उंगली पकड़कर,साथ मेरे यूँ चलेगा… Continue reading बालक की अभिलाषा .